1|1|अल्लाह के नाम से जो बड़ा कृपालु और अत्यन्त दयावान हैं। 1|2|प्रशंसा अल्लाह ही के लिए हैं जो सारे संसार का रब हैं 1|3|बड़ा कृपालु, अत्यन्त दयावान हैं 1|4|बदला दिए जाने के दिन का मालिक हैं 1|5|हम तेरी बन्दगी करते हैं और तुझी से मदद माँगते हैं 1|6|हमें सीधे मार्ग पर चला 1|7|उन लोगों के मार्ग पर जो तेरे कृपापात्र हुए, जो न प्रकोप के भागी हुए और न पथभ्रष्ट 2|1|अलीफ़॰ लाम॰ मीम॰ 2|2|वह किताब यही हैं, जिसमें कोई सन्देह नहीं, मार्गदर्शन हैं डर रखनेवालों के लिए, 2|3|जो अनदेखे ईमान लाते हैं, नमाज़ क़ायम करते हैं और जो कुछ हमने उन्हें दिया हैं उसमें से कुछ खर्च करते हैं; 2|4|और जो उस पर ईमान लाते हैं जो तुम पर उतरा और जो तुमसे पहले अवतरित हुआ हैं और आख़िरत पर वही लोग विश्वास रखते हैं; 2|5|वही लोग हैं जो अपने रब के सीधे मार्ग पर हैं और वही सफलता प्राप्त करनेवाले हैं 2|6|जिन लोगों ने कुफ़्र (इनकार) किया उनके लिए बराबर हैं, चाहे तुमने उन्हें सचेत किया हो या सचेत न किया हो, वे ईमान नहीं लाएँगे 2|7|अल्लाह ने उनके दिलों पर और कानों पर मुहर लगा दी है और उनकी आँखों पर परदा पड़ा है, और उनके लिए बड़ी यातना है 2|8|कुछ लोग ऐसे हैं जो कहते हैं कि हम अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते हैं, हालाँकि वे ईमान नहीं रखते 2|9|वे अल्लाह और ईमानवालों के साथ धोखेबाज़ी कर रहे हैं, हालाँकि धोखा वे स्वयं अपने-आपको ही दे रहे हैं, परन्तु वे इसको महसूस नहीं करते 2|10|उनके दिलों में रोग था तो अल्लाह ने उनके रोग को और बढ़ा दिया और उनके लिए झूठ बोलते रहने के कारण उनके लिए एक दुखद यातना है 2|11|और जब उनसे कहा जाता है कि "ज़मीन में बिगाड़ पैदा न करो", तो कहते हैं, "हम तो केवल सुधारक है।"" 2|12|जान लो! वही हैं जो बिगाड़ पैदा करते हैं, परन्तु उन्हें एहसास नहीं होता 2|13|और जब उनसे कहा जाता है, "ईमान लाओ जैसे लोग ईमान लाए हैं", कहते हैं, "क्या हम ईमान लाए जैसे कम समझ लोग ईमान लाए हैं?" जान लो, वही कम समझ हैं परन्तु जानते नहीं 2|14|और जब ईमान लानेवालों से मिलते हैं तो कहते, "हम भी ईमान लाए हैं," और जब एकान्त में अपने शैतानों के पास पहुँचते हैं, तो कहते हैं, "हम तो तुम्हारे साथ हैं और यह तो हम केवल परिहास कर रहे हैं।" 2|15|अल्लाह उनके साथ परिहास कर रहा है और उन्हें उनकी सरकशी में ढील दिए जाता है, वे भटकते फिर रहे हैं 2|16|यही वे लोग हैं, जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले में गुमराही मोल ली, किन्तु उनके इस व्यापार में न कोई लाभ पहुँचाया, और न ही वे सीधा मार्ग पा सके 2|17|उनकी मिसाल ऐसी हैं जैसे किसी व्यक्ति ने आग जलाई, फिर जब उसने उसके वातावरण को प्रकाशित कर दिया, तो अल्लाह ने उसका प्रकाश ही छीन लिया और उन्हें अँधेरों में छोड़ दिया जिससे उन्हें कुछ सुझाई नहीं दे रहा हैं 2|18|वे बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धे हैं, अब वे लौटने के नहीं 2|19|या (उनकी मिसाल ऐसी है) जैसे आकाश से वर्षा हो रही हो जिसके साथ अँधेरे हों और गरज और चमक भी हो, वे बिजली की कड़क के कारण मृत्यु के भय से अपने कानों में उँगलियाँ दे ले रहे हों - और अल्लाह ने तो इनकार करनेवालों को घेर रखा हैं 2|20|मानो शीघ्र ही बिजली उनकी आँखों की रौशनी उचक लेने को है; जब भी उनपर चमकती हो, वे चल पड़ते हो और जब उनपर अँधेरा छा जाता हैं तो खड़े हो जाते हो; अगर अल्लाह चाहता तो उनकी सुनने और देखने की शक्ति बिलकुल ही छीन लेता। निस्सन्देह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 2|21|ऐ लोगो! बन्दगी करो अपने रब की जिसने तुम्हें और तुमसे पहले के लोगों को पैदा किया, ताकि तुम बच सको; 2|22|वही है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन को फर्श और आकाश को छत बनाया, और आकाश से पानी उतारा, फिर उसके द्वारा हर प्रकार की पैदावार की और फल तुम्हारी रोजी के लिए पैदा किए, अतः जब तुम जानते हो तो अल्लाह के समकक्ष न ठहराओ 2|23|और अगर उसके विषय में जो हमने अपने बन्दे पर उतारा हैं, तुम किसी सन्देह में न हो तो उस जैसी कोई सूरा ले आओ और अल्लाह से हटकर अपने सहायकों को बुला लो जिनके आ मौजूद होने पर तुम्हें विश्वास हैं, यदि तुम सच्चे हो 2|24|फिर अगर तुम ऐसा न कर सको और तुम कदापि नहीं कर सकते, तो डरो उस आग से जिसका ईधन इनसान और पत्थर हैं, जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार की गई है 2|25|जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें शुभ सूचना दे दो कि उनके लिए ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी; जब भी उनमें से कोई फल उन्हें रोजी के रूप में मिलेगा, तो कहेंगे, "यह तो वही हैं जो पहले हमें मिला था," और उन्हें मिलता-जुलता ही (फल) मिलेगा; उनके लिए वहाँ पाक-साफ़ पत्नि याँ होगी, और वे वहाँ सदैव रहेंगे 2|26|निस्संदेह अल्लाह नहीं शरमाता कि वह कोई मिसाल पेश करे चाहे वह हो मच्छर की, बल्कि उससे भी बढ़कर किसी तुच्छ चीज़ की। फिर जो ईमान लाए है वे तो जानते है कि वह उनके रब की ओर से सत्य हैं; रहे इनकार करनेवाले तो वे कहते है, "इस मिसाल से अल्लाह का अभिप्राय क्या है?" इससे वह बहुतों को भटकने देता है और बहुतों को सीधा मार्ग दिखा देता है, मगर इससे वह केवल अवज्ञाकारियों ही को भटकने देता है 2|27|जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे सुदृढ़ करने के पश्चात भंग कर देते हैं और जिसे अल्लाह ने जोड़ने का आदेश दिया है उसे काट डालते हैं, और ज़मीन में बिगाड़ पैदा करते हैं, वही हैं जो घाटे में हैं 2|28|तुम अल्लाह के साथ अविश्वास की नीति कैसे अपनाते हो, जबकि तुम निर्जीव थे तो उसने तुम्हें जीवित किया, फिर वही तुम्हें मौत देता हैं, फिर वही तुम्हें जीवित करेगा, फिर उसी की ओर तुम्हें लौटना हैं? 2|29|वही तो है जिसने तुम्हारे लिए ज़मीन की सारी चीज़े पैदा की, फिर आकाश की ओर रुख़ किया और ठीक तौर पर सात आकाश बनाए और वह हर चीज़ को जानता है 2|30|और याद करो जब तुम्हारे रब ने फरिश्तों से कहा कि "मैं धरती में (मनुष्य को) खलीफ़ा (सत्ताधारी) बनानेवाला हूँ।" उन्होंने कहा, "क्या उसमें उसको रखेगा, जो उसमें बिगाड़ पैदा करे और रक्तपात करे और हम तेरा गुणगान करते और तुझे पवित्र कहते हैं?" उसने कहा, "मैं जानता हूँ जो तुम नहीं जानते।" 2|31|उसने (अल्लाह ने) आदम को सारे नाम सिखाए, फिर उन्हें फ़रिश्तों के सामने पेश किया और कहा, "अगर तुम सच्चे हो तो मुझे इनके नाम बताओ।" 2|32|वे बोले, "पाक और महिमावान है तू! तूने जो कुछ हमें बताया उसके सिवा हमें कोई ज्ञान नहीं। निस्संदेह तू सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।" 2|33|उसने कहा, "ऐ आदम! उन्हें उन लोगों के नाम बताओ।" फिर जब उसने उन्हें उनके नाम बता दिए तो (अल्लाह ने) कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा न था कि मैं आकाशों और धरती की छिपी बातों को जानता हूँ और मैं जानता हूँ जो कुछ तुम ज़ाहिर करते हो और जो कुछ छिपाते हो।" 2|34|और याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा कि "आदम को सजदा करो" तो, उन्होंने सजदा किया सिवाय इबलील के; उसने इनकार कर दिया और लगा बड़ा बनने और काफ़िर हो रहा 2|35|और हमने कहा, "ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी जन्नत में रहो और वहाँ जी भर बेरोक-टोक जहाँ से तुम दोनों का जी चाहे खाओ, लेकिन इस वृक्ष के पास न जाना, अन्यथा तुम ज़ालिम ठहरोगे।" 2|36|अन्ततः शैतान ने उन्हें वहाँ से फिसला दिया, फिर उन दोनों को वहाँ से निकलवाकर छोड़ा, जहाँ वे थे। हमने कहा कि "उतरो, तुम एक-दूसरे के शत्रु होगे और तुम्हें एक समय तक धरती में ठहरना और बिसलना है।" 2|37|फिर आदम ने अपने रब से कुछ शब्द पा लिए, तो अल्लाह ने उसकी तौबा क़बूल कर ली; निस्संदेह वही तौबा क़बूल करने वाला, अत्यन्त दयावान है 2|38|हमने कहा, "तुम सब यहाँ से उतरो, फिर यदि तुम्हारे पास मेरी ओर से कोई मार्गदर्शन पहुँचे तो जिस किसी ने मेरे मार्गदर्शन का अनुसरण किया, तो ऐसे लोगों को न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे।" 2|39|और जिन लोगों ने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वहीं आग में पड़नेवाले हैं, वे उसमें सदैव रहेंगे 2|40|ऐ इसराईल का सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया था। और मेरी प्रतिज्ञा को पूरा करो, मैं तुमसे की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करूँगा और हाँ मुझी से डरो 2|41|और ईमान लाओ उस चीज़ पर जो मैंने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो तुम्हारे पास है, और सबसे पहले तुम ही उसके इनकार करनेवाले न बनो। और मेरी आयतों को थोड़ा मूल्य प्राप्त करने का साधन न बनाओ, मुझसे ही तुम डरो 2|42|और सत्य में असत्य का घाल-मेल न करो और जानते-बुझते सत्य को छिपाओ मत 2|43|और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो और (मेरे समक्ष) झुकनेवालों के साथ झुको 2|44|क्या तुम लोगों को तो नेकी और एहसान का उपदेश देते हो और अपने आपको भूल जाते हो, हालाँकि तुम किताब भी पढ़ते हो? फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? 2|45|धैर्य और नमाज़ से मदद लो, और निस्संदेह यह (नमाज) बहुत कठिन है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिनके दिल पिघले हुए हो; 2|46|जो समझते है कि उन्हें अपने रब से मिलना हैं और उसी की ओर उन्हें पलटकर जाना है 2|47|ऐ इसराईल की सन्तान! याद करो मेरे उस अनुग्रह को जो मैंने तुमपर किया और इसे भी कि मैंने तुम्हें सारे संसार पर श्रेष्ठता प्रदान की थी; 2|48|और डरो उस दिन से जब न कोई किसी भी ओर से कुछ तावान भरेगा और न किसी की ओर से कोई सिफ़ारिश ही क़बूल की जाएगी और न किसी की ओर से कोई फ़िद्‌या (अर्थदंड) लिया जाएगा और न वे सहायता ही पा सकेंगे। 2|49|और याद करो जब हमने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें अत्यन्त बुरी यातना देते थे, तुम्हारे बेटों को मार डालते थे और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे; और इसमं तुम्हारे रब की ओर से बड़ी परीक्षा थी 2|50|याद करो जब हमने तुम्हें सागर में अलग-अलग चौड़े रास्ते से ले जाकर छुटकारा दिया और फ़िरऔनियों को तुम्हारी आँखों के सामने डूबो दिया 2|51|और याद करो जब हमने मूसा से चालीस रातों का वादा ठहराया तो उसके पीछे तुम बछड़े को अपना देवता बना बैठे, तुम अत्याचारी थे 2|52|फिर इसके पश्चात भी हमने तुम्हें क्षमा किया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखालाओ 2|53|और याद करो जब मूसा को हमने किताब और कसौटी प्रदान की, ताकि तुम मार्ग पा सको 2|54|और जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "ऐ मेरी कौम के लोगो! बछड़े को देवता बनाकर तुमने अपने ऊपर ज़ुल्म किया है, तो तुम अपने पैदा करनेवाले की ओर पलटो, अतः अपने लोगों को स्वयं क़त्ल करो। यही तुम्हारे पैदा करनेवाले की स्पष्ट में तुम्हारे लिए अच्छा है, फिर उसने तुम्हारी तौबा क़बूल कर ली। निस्संदेह वह बड़ी तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है।" 2|55|और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम तुमपर ईमान नहीं लाएँगे जब तक अल्लाह को खुल्लम-खुल्ला न देख लें।" फिर एक कड़क ने तुम्हें आ दबोचा, तुम देखते रहे 2|56|फिर तुम्हारे निर्जीव हो जाने के पश्चात हमने तुम्हें जिला उठाया, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ 2|57|और हमने तुमपर बादलों की छाया की और तुमपर 'मन्न' और 'सलबा' उतारा - "खाओ, जो अच्छी पाक चीजें हमने तुम्हें प्रदान की है।" उन्होंने हमारा तो कुछ भी नहीं बिगाड़ा, बल्कि वे अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे 2|58|और जब हमने कहा था, "इस बस्ती में प्रवेश करो फिर उसमें से जहाँ से चाहो जी भर खाओ, और बस्ती के द्वार में सजदागुज़ार बनकर प्रवेश करो और कहो, "छूट हैं।" हम तुम्हारी खताओं को क्षमा कर देंगे और अच्छे से अच्छा काम करनेवालों पर हम और अधिक अनुग्रह करेंगे।" 2|59|फिर जो बात उनसे कहीं गई थी ज़ालिमों ने उसे दूसरी बात से बदल दिया। अन्ततः ज़ालिमों पर हमने, जो अवज्ञा वे कर रहे थे उसके कारण, आकाश से यातना उतारी 2|60|और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लिए पानी की प्रार्थना को तो हमने कहा, "चट्टान पर अपनी लाठी मारो," तो उससे बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट जान लिया - "खाओ और पियो अल्लाह का दिया और धरती में बिगाड़ फैलाते न फिरो।" 2|61|और याद करो जब तुमने कहा था, "ऐ मूसा, हम एक ही प्रकार के खाने पर कदापि संतोष नहीं कर सकते, अतः हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो कि हमारे वास्ते धरती की उपज से साग-पात और ककड़ियाँ और लहसुन और मसूर और प्याज़ निकाले।" और मूसा ने कहा, "क्या तुम जो घटिया चीज़ है उसको उससे बदलकर लेना चाहते हो जो उत्तम है? किसी नगर में उतरो, फिर जो कुछ तुमने माँगा हैं, तुम्हें मिल जाएगा" - और उनपर अपमान और हीन दशा थोप दी गई, और अल्लाह के प्रकोप के भागी हुए। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार करते रहे और नबियों की अकारण हत्या करते थे। यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और वे सीमा का उल्लंघन करते रहे 2|62|निस्संदेह, ईमानवाले और जो यहूदी हुए और ईसाई और साबिई, जो भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाया और अच्छा कर्म किया तो ऐसे लोगों का उनके अपने रब के पास (अच्छा) बदला है, उनको न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे - 2|63|और याद करो जब हमने इस हाल में कि तूर पर्वत को तुम्हारे ऊपर ऊँचा कर रखा था, तुमसे दृढ़ वचन लिया था, "जो चीज़ हमने तुम्हें दी हैं उसे मजबूती के साथ पकड़ो और जो कुछ उसमें हैं उसे याद रखो ताकि तुम बच सको।" 2|64|फिर इसके पश्चात भी तुम फिर गए, तो यदि अल्लाह की कृपा और उसकी दयालुता तुम पर न होती, तो तुम घाटे में पड़ गए होते 2|65|और तुम उन लोगों के विषय में तो जानते ही हो जिन्होंने तुममें से 'सब्त' के दिन के मामले में मर्यादा का उल्लंघन किया था, तो हमने उनसे कह दिया, "बन्दर हो जाओ, धिक्कारे और फिटकारे हुए!" 2|66|फिर हमने इसे सामनेवालों और बाद के लोगों के लिए शिक्षा-सामग्री और डर रखनेवालों के लिए नसीहत बनाकर छोड़ा 2|67|और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "निश्चय ही अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि एक गाय जब्ह करो।" कहने लगे, "क्या तुम हमसे परिहास करते हो?" उसने कहा, "मैं इससे अल्लाह की पनाह माँगता हूँ कि जाहिल बनूँ।" 2|68|बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हम पर स्पष्टा कर दे कि वह गाय कौन-सी है?" उसने कहा, "वह कहता है कि वह ऐसी गाय है जो न बूढ़ी है, न बछिया, इनके बीच की रास है; तो जो तुम्हें हुक्म दिया जा रहा है, करो।" 2|69|कहने लगे, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि उसका रंग कैसा है?" कहा, "वह कहता है कि वह गाय सुनहरी है, गहरे चटकीले रंग की कि देखनेवालों को प्रसन्न कर देती है।" 2|70|बोले, "हमारे लिए अपने रब से निवेदन करो कि वह हमें बता दे कि वह कौन-सी है, गायों का निर्धारण हमारे लिए संदिग्ध हो रहा है। यदि अल्लाह ने चाहा तो हम अवश्य। पता लगा लेंगे।" 2|71|उसने कहा, " वह कहता हैं कि वह ऐसा गाय है जो सधाई हुई नहीं है कि भूमि जोतती हो, और न वह खेत को पानी देती है, ठीक-ठाक है, उसमें किसी दूसरे रंग की मिलावट नहीं है।" बोले, "अब तुमने ठीक बात बताई है।" फिर उन्होंने उसे ज़ब्ह किया, जबकि वे करना नहीं चाहते थे 2|72|और याद करो जब तुमने एक व्यक्ति की हत्या कर दी, फिर उस सिलसिले में तुमने टाल-मटोल से काम लिया - जबकि जिसको तुम छिपा रहे थे, अल्लाह उसे खोल देनेवाला था 2|73|तो हमने कहा, "उसे उसके एक हिस्से से मारो।" इस प्रकार अल्लाह मुर्दों को जीवित करता है और तुम्हें अपनी निशानियाँ दिखाता है, ताकि तुम समझो 2|74|फिर इसके पश्चात भी तुम्हारे दिल कठोर हो गए, तो वे पत्थरों की तरह हो गए बल्कि उनसे भी अधिक कठोर; क्योंकि कुछ पत्थर ऐसे भी होते है जिनसे नहरें फूट निकलती है, और कुछ ऐसे भी होते है कि फट जाते है तो उनमें से पानी निकलने लगता है, और उनमें से कुछ ऐसे भी होते है जो अल्लाह के भय से गिर जाते है। और अल्लाह, जो कुछ तुम कर रहे हो, उससे बेखबर नहीं है 2|75|तो क्या तुम इस लालच में हो कि वे तुम्हारी बात मान लेंगे, जबकि उनमें से कुछ लोग अल्लाह का कलाम सुनते रहे हैं, फिर उसे भली-भाँति समझ लेने के पश्चात जान-बूझकर उसमें परिवर्तन करते रहे? 2|76|और जब वे ईमान लानेवाले से मिलते है तो कहते हैं, "हम भी ईमान रखते हैं", और जब आपस में एक-दूसरे से एकान्त में मिलते है तो कहते है, "क्या तुम उन्हें वे बातें, जो अल्लाह ने तुम पर खोली, बता देते हो कि वे उनके द्वारा तुम्हारे रब के यहाँ हुज्जत में तुम्हारा मुक़ाबिला करें? तो क्या तुम समझते नहीं!" 2|77|क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह वह सब कुछ जानता है, जो कुछ वे छिपाते और जो कुछ ज़ाहिर करते हैं? 2|78|और उनमें सामान्य बेपढ़े भी हैं जिन्हें किताब का ज्ञान नहीं है, बस कुछ कामनाओं एवं आशाओं को धर्म जानते हैं, और वे तो बस अटकल से काम लेते हैं 2|79|तो विनाश और तबाही है उन लोगों के लिए जो अपने हाथों से किताब लिखते हैं फिर कहते हैं, "यह अल्लाह की ओर से है", ताकि उसके द्वारा थोड़ा मूल्य प्राप्त कर लें। तो तबाही है उनके हाथों ने लिखा और तबाही है उनके लिए उसके कारण जो वे कमा रहे हैं 2|80|वे कहते है, "जहन्नम की आग हमें नहीं छू सकती, हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों की बात और है।" कहो, "क्या तुमने अल्लाह से कोई वचन ले रखा है? फिर तो अल्लाह कदापि अपने वचन के विरुद्ध नहीं जा सकता? या तुम अल्लाह के ज़िम्मे डालकर ऐसी बात कहते हो जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं? 2|81|क्यों नहीं; जिसने भी कोई बदी कमाई और उसकी खताकारी ने उसे अपने घरे में ले लिया, तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है; वे उसी में सदैव रहेंगे 2|82|रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वही जन्नतवाले हैं, वे सदैव उसी में रहेंगे।" 2|83|और याद करो जब इसराईल की सन्तान से हमने वचन लिया, "अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करोगे; और माँ-बाप के साथ और नातेदारों के साथ और अनाथों और मुहताजों के साथ अच्छा व्यवहार करोगे; और यह कि लोगों से भली बात कहो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो।" तो तुम फिर गए, बस तुममें से बचे थोड़े ही, और तुम उपेक्षा की नीति ही अपनाए रहे 2|84|और याद करो जब तुमसे वचन लिया, "अपने ख़ून न बहाओगे और न अपने लोगों को अपनी बस्तियों से निकालोगे।" फिर तुमने इक़रार किया और तुम स्वयं इसके गवाह हो 2|85|फिर तुम वही हो कि अपने लोगों की हत्या करते हो और अपने ही एक गिरोह के लोगों को उनकी बस्तियों से निकालते हो; तुम गुनाह और ज़्यादती के साथ उनके विरुद्ध एक-दूसरे के पृष्ठपोषक बन जाते हो; और यदि वे बन्दी बनकर तुम्हारे पास आते है, तो उनकी रिहाई के लिए फिद्ए (अर्थदंड) का लेन-देन करते हो जबकि उनको उनके घरों से निकालना ही तुम पर हराम था, तो क्या तुम किताब के एक हिस्से को मानते हो और एक को नहीं मानते? फिर तुममें जो ऐसा करें उसका बदला इसके सिवा और क्या हो सकता है कि सांसारिक जीवन में अपमान हो? और क़यामत के दिन ऐसे लोगों को कठोर से कठोर यातना की ओर फेर दिया जाएगा। अल्लाह उससे बेखबर नहीं है जो कुछ तुम कर रहे हो 2|86|यही वे लोग है जो आख़िरात के बदले सांसारिक जीवन के ख़रीदार हुए, तो न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें कोई सहायता पहुँच सकेगी 2|87|और हमने मूसा को किताब दी थी, और उसके पश्चात आगे-पीछे निरन्तर रसूल भेजते रहे; और मरयम के बेटे ईसा को खुली-खुली निशानियाँ प्रदान की और पवित्र-आत्मा के द्वारा उसे शक्ति प्रदान की; तो यही तो हुआ कि जब भी कोई रसूल तुम्हारे पास वह कुछ लेकर आया जो तुम्हारे जी को पसन्द न था, तो तुम अकड़ बैठे, तो एक गिरोह को तो तुमने झुठलाया और एक गिरोह को क़त्ल करते हो? 2|88|वे कहते हैं, "हमारे दिलों पर तो प्राकृतिक आवरण चढ़े है" नहीं, बल्कि उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनपर लानत की है; अतः वे ईमान थोड़े ही लाएँगे 2|89|और जब उनके पास एक किताब अल्लाह की ओर से आई है जो उसकी पुष्टि करती है जो उनके पास मौजूद है - और इससे पहले तो वे न माननेवाले लोगों पर विजय पाने के इच्छुक रहे है - फिर जब वह चीज़ उनके पास आ गई जिसे वे पहचान भी गए हैं, तो उसका इनकार कर बैठे; तो अल्लाह की फिटकार इनकार करने वालों पर! 2|90|क्या ही बुरी चीज़ है जिसके बदले उन्होंने अपनी जानों का सौदा किया, अर्थात जो कुछ अल्लाह ने उतारा है उसे सरकशी और इस अप्रियता के कारण नहीं मानते कि अल्लाह अपना फ़ज़्ल (कृपा) अपने बन्दों में से जिसपर चाहता है क्यों उतारता है, अतः वे प्रकोप पर प्रकोप के अधिकारी हो गए है। और ऐसे इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना है 2|91|जब उनसे कहा जाता है, "अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उस पर ईमान लाओ", तो कहते है, "हम तो उसपर ईमान रखते है जो हम पर उतरा है," और उसे मानने से इनकार करते हैं जो उसके पीछे है, जबकि वही सत्य है, उसकी पुष्टि करता है जो उसके पास है। कहो, "अच्छा तो इससे पहले अल्लाह के पैग़म्बरों की हत्या क्यों करते रहे हो, यदि तुम ईमानवाले हो?" 2|92|तुम्हारे पास मूसा खुली-खुली निशानियाँ लेकर आया, फिर भी उसके बाद तुम ज़ालिम बनकर बछड़े को देवता बना बैठे 2|93|कहो, "यदि अल्लाह के निकट आख़िरत का घर सारे इनसानों को छोड़कर केवल तुम्हारे ही लिए है, फिर तो मृत्यु की कामना करो, यदि तुम सच्चे हो।" 2|94|अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है 2|95|अपने हाथों इन्होंने जो कुछ आगे भेजा है उसके कारण वे कदापि उसकी कामना न करेंगे; अल्लाह तो जालिमों को भली-भाँति जानता है 2|96|तुम उन्हें सब लोगों से बढ़कर जीवन का लोभी पाओगे, यहाँ तक कि वे इस सम्बन्ध में शिर्क करनेवालो से भी बढ़े हुए है। उनका तो प्रत्येक व्यक्ति यह इच्छा रखता है कि क्या ही अच्छा होता कि उस हज़ार वर्ष की आयु मिले, जबकि यदि उसे यह आयु प्राप्त भी जाए, तो भी वह अपने आपको यातना से नहीं बचा सकता। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे कर रहे है 2|97|कहो, "जो कोई जिबरील का शत्रु हो, (तो वह अल्लाह का शत्रु है) क्योंकि उसने तो उसे अल्लाह ही के हुक्म से तम्हारे दिल पर उतारा है, जो उन (भविष्यवाणियों) के सर्वथा अनुकूल है जो उससे पहले से मौजूद हैं; और ईमानवालों के लिए मार्गदर्शन और शुभ-सूचना है 2|98|जो कोई अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसके रसूलों और जिबरील और मीकाईल का शत्रु हो, तो ऐसे इनकार करनेवालों का अल्लाह शत्रु है।" 2|99|और हमने तुम्हारी ओर खुली-खुली आयतें उतारी है और उनका इनकार तो बस वही लोग करते हैस जो उल्लंघनकारी हैं 2|100|क्या यह एक निश्चित नीति है कि जब कि उन्होंने कोई वचन दिया तो उनके एक गिरोह ने उसे उठा फेंका? बल्कि उनमें अधिकतर ईमान ही नहीं रखते 2|101|और जब उनके पास अल्लाह की ओर से एक रसूल आया, जिससे उस (भविष्यवाणी) की पुष्टि हो रही है जो उनके पास थी, तो उनके एक गिरोह ने, जिन्हें किताब मिली थी, अल्लाह की किताब को अपने पीठ पीछे डाल दिया, मानो वे कुछ जानते ही नही 2|102|और जो वे उस चीज़ के पीछे पड़ गए जिसे शैतान सुलैमान की बादशाही पर थोपकर पढ़ते थे - हालाँकि सुलैमान ने कोई कुफ़्र नहीं किया था, बल्कि कुफ़्र तो शैतानों ने किया था; वे लोगों को जादू सिखाते थे - और उस चीज़ में पड़ गए जो बाबिल में दोनों फ़रिश्तों हारूत और मारूत पर उतारी गई थी। और वे किसी को भी सिखाते न थे जब तक कि कह न देते, "हम तो बस एक परीक्षा है; तो तुम कुफ़्र में न पड़ना।" तो लोग उन दोनों से वह कुछ सीखते है, जिसके द्वारा पति और पत्नी में अलगाव पैदा कर दे - यद्यपि वे उससे किसी को भी हानि नहीं पहुँचा सकते थे। हाँ, यह और बात है कि अल्लाह के हुक्म से किसी को हानि पहुँचनेवाली ही हो - और वह कुछ सीखते है जो उन्हें हानि ही पहुँचाए और उन्हें कोई लाभ न पहुँचाए। और उन्हें भली-भाँति मालूम है कि जो उसका ग्राहक बना, उसका आखिरत में कोई हिस्सा नहीं। कितनी बुरी चीज़ के बदले उन्होंने प्राणों का सौदा किया, यदि वे जानते (तो ठीक मार्ग अपनाते) 2|103|और यदि वे ईमान लाते और डर रखते, तो अल्लाह के यहाँ से मिलनेवाला बदला कहीं अच्छा था, यदि वे जानते (तो इसे समझ सकते) 2|104|ऐ ईमान लानेवालो! 'राइना' न कहा करो, बल्कि 'उनज़ुरना' कहा और सुना करो। और इनकार करनेवालों के लिए दुखद यातना है 2|105|इनकार करनेवाले नहीं चाहते, न किताबवाले और न मुशरिक (बहुदेववादी) कि तुम्हारे रब की ओर से तुमपर कोई भलाई उतरे, हालाँकि अल्लाह जिसे चाहे अपनी दयालुता के लिए ख़ास कर ले; अल्लाह बड़ा अनुग्रह करनेवाला है 2|106|हम जिस आयत (और निशान) को भी मिटा दें या उसे भुला देते है, तो उससे बेहतर लाते है या उस जैसा दूसरा ही। क्या तुम नहीं जानते हो कि अल्लाह को हर चीज़ का सामर्थ्य प्राप्त है? 2|107|क्या तुम नहीं जानते कि आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है और अल्लाह से हटकर न तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक? 2|108|(ऐ ईमानवालों! तुम अपने रसूल के आदर का ध्यान रखो) या तुम चाहते हो कि अपने रसूल से उसी प्रकार से प्रश्न और बात करो, जिस प्रकार इससे पहले मूसा से बात की गई है? हालाँकि जिस व्यक्ति न ईमान के बदले इनकार की नीति अपनाई, तो वह सीधे रास्ते से भटक गया 2|109|बहुत-से किताबवाले अपने भीतर की ईर्ष्या से चाहते है कि किसी प्रकार वे तुम्हारे ईमान लाने के बाद फेरकर तुम्हे इनकार कर देनेवाला बना दें, यद्यपि सत्य उनपर प्रकट हो चुका है, तो तुम दरगुज़र (क्षमा) से काम लो और जाने दो यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला लागू न कर दे। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 2|110|और नमाज़ कायम करो और ज़कात दो और तुम स्वयं अपने लिए जो भलाई भी पेश करोगे, उसे अल्लाह के यहाँ मौजूद पाओगे। निस्संदेह जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है 2|111|और उनका कहना है, "कोई व्यक्ति जन्नत में प्रवेश नहीं करता सिवाय उससे जो यहूदी है या ईसाई है।" ये उनकी अपनी निराधार कामनाएँ है। कहो, "यदि तुम सच्चे हो तो अपने प्रमाण पेश करो।" 2|112|क्यों नहीं, जिसने भी अपने-आपको अल्लाह के प्रति समर्पित कर दिया और उसका कर्म भी अच्छे से अच्छा हो तो उसका प्रतिदान उसके रब के पास है और ऐसे लोगो के लिए न तो कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे 2|113|यहूदियों ने कहा, "ईसाईयों की कोई बुनियाद नहीं।" और ईसाइयों ने कहा, "यहूदियों की कोई बुनियाद नहीं।" हालाँकि वे किताब का पाठ करते है। इसी तरह की बात उन्होंने भी कही है जो ज्ञान से वंचित है। तो अल्लाह क़यामत के दिन उनके बीच उस चीज़ के विषय में निर्णय कर देगा, जिसके विषय में वे विभेद कर रहे है 2|114|और उससे बढ़कर अत्याचारी और कौन होगा जिसने अल्लाह की मस्जिदों को उसके नाम के स्मरण से वंचित रखा और उन्हें उजाडने पर उतारू रहा? ऐसे लोगों को तो बस डरते हुए ही उसमें प्रवेश करना चाहिए था। उनके लिए संसार में रुसवाई (अपमान) है और उनके लिए आख़िरत में बड़ी यातना नियत है 2|115|पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के है, अतः जिस ओर भी तुम रुख करो उसी ओर अल्लाह का रुख़ है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा समाईवाला (सर्वव्यापी) सर्वज्ञ है 2|116|कहते है, अल्लाह औलाद रखता है - महिमावाला है वह! (पूरब और पश्चिम हीं नहीं, बल्कि) आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, उसी का है। सभी उसके आज्ञाकारी है 2|117|वह आकाशों और धरती का प्रथमतः पैदा करनेवाला है। वह तो जब किसी काम का निर्णय करता है, तो उसके लिए बस कह देता है कि "हो जा" और वह हो जाता है 2|118|जिन्हें ज्ञान नहीं हैं, वे कहते है, "अल्लाह हमसे बात क्यों नहीं करता? या कोई निशानी हमारे पास आ जाए।" इसी प्रकार इनसे पहले के लोग भी कह चुके है। इन सबके दिल एक जैसे है। हम खोल-खोलकर निशानियाँ उन लोगों के लिए बयान कर चुके है जो विश्वास करें 2|119|निश्चित रूप से हमने तुम्हें हक़ के साथ शुभ-सूचना देनेवाला और डरानेवाला बनाकर भेजा। भड़कती आग में पड़नेवालों के विषय में तुमसे कुछ न पूछा जाएगा 2|120|न यहूदी तुमसे कभी राज़ी होनेवाले है और न ईसाई जब तक कि तुम अनके पंथ पर न चलने लग जाओ। कह दो, "अल्लाह का मार्गदर्शन ही वास्तविक मार्गदर्शन है।" और यदि उस ज्ञान के पश्चात जो तुम्हारे पास आ चुका है, तुमने उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, तो अल्लाह से बचानेवाला न तो तुम्हारा कोई मित्र होगा और न सहायक 2|121|जिन लोगों को हमने किताब दी है उनमें वे लोग जो उसे उस तरह पढ़ते है जैसा कि उसके पढ़ने का हक़ है, वही उसपर ईमान ला रहे है, और जो उसका इनकार करेंगे, वही घाटे में रहनेवाले है 2|122|ऐ इसराईल की सन्तान! मेरी उस कृपा को याद करो जो मैंने तुमपर की थी और यह कि मैंने तुम्हें संसारवालों पर श्रेष्ठता प्रदान की 2|123|और उस दिन से डरो, जब कोई न किसी के काम आएगा, न किसी की ओर से अर्थदंड स्वीकार किया जाएगा, और न कोई सिफ़ारिश ही उसे लाभ पहुँचा सकेगी, और न उनको कोई सहायता ही पहुँच सकेगी 2|124|और याद करो जब इबराहीम की उसके रब से कुछ बातों में परीक्षा ली तो उसने उसको पूरा कर दिखाया। उसने कहा, "मैं तुझे सारे इनसानों का पेशवा बनानेवाला हूँ।" उसने निवेदन किया, " और मेरी सन्तान में भी।" उसने कहा, "ज़ालिम मेरे इस वादे के अन्तर्गत नहीं आ सकते।" 2|125|और याद करो जब हमने इस घर (काबा) को लोगों को लिए केन्द्र और शान्तिस्थल बनाया - और, "इबराहीम के स्थल में से किसी जगह को नमाज़ की जगह बना लो!" - और इबराहीम और इसमाईल को ज़िम्मेदार बनाया। "तुम मेरे इस घर को तवाफ़ करनेवालों और एतिकाफ़ करनेवालों के लिए और रुकू और सजदा करनेवालों के लिए पाक-साफ़ रखो।" 2|126|और याद करो जब इबराहीम ने कहा, "ऐ मेरे रब! इसे शान्तिमय भू-भाग बना दे और इसके उन निवासियों को फलों की रोज़ी दे जो उनमें से अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाएँ।" कहा, "और जो इनकार करेगा थोड़ा फ़ायदा तो उसे भी दूँगा, फिर उसे घसीटकर आग की यातना की ओर पहुँचा दूँगा और वह बहुत-ही बुरा ठिकाना है!" 2|127|और याद करो जब इबराहीम और इसमाईल इस घर की बुनियादें उठा रहे थे, (तो उन्होंने प्रार्थना की), "ऐ हमारे रब! हमारी ओर से इसे स्वीकार कर ले, निस्संदेह तू सुनता-जानता है 2|128|ऐ हमारे रब! हम दोनों को अपना आज्ञाकारी बना और हमारी संतान में से अपना एक आज्ञाकारी समुदाय बना; और हमें हमारे इबादत के तरीक़े बता और हमारी तौबा क़बूल कर। निस्संदेह तू तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है 2|129|ऐ हमारे रब! उनमें उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठा जो उन्हें तेरी आयतें सुनाए और उनको किताब और तत्वदर्शिता की शिक्षा दे और उन (की आत्मा) को विकसित करे। निस्संदेह तू प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 2|130|कौन है जो इबराहीम के पंथ से मुँह मोड़े सिवाय उसके जिसने स्वयं को पतित कर लिया? और उसे तो हमने दुनिया में चुन लिया था और निस्संदेह आख़िरत में उसकी गणना योग्य लोगों में होगी 2|131|क्योंकि जब उससे रब ने कहा, "मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो जा।" उसने कहा, "मैं सारे संसार के रब का मुस्लिम हो गया।" 2|132|और इसी की वसीयत इबराहीम ने अपने बेटों को की और याक़ूब ने भी (अपनी सन्तानों को की) कि, "ऐ मेरे बेटों! अल्लाह ने तुम्हारे लिए यही दीन (धर्म) चुना है, तो इस्लाम (ईश-आज्ञापालन) को अतिरिक्त किसी और दशा में तुम्हारी मृत्यु न हो।" 2|133|(क्या तुम इबराहीम के वसीयत करते समय मौजूद थे? या तुम मौजूद थे जब याक़ूब की मृत्यु का समय आया? जब उसने बेटों से कहा, "तुम मेरे पश्चात किसकी इबादत करोगे?" उन्होंने कहा, "हम आपके इष्ट-पूज्य और आपके पूर्वज इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ के इष्ट-पूज्य की बन्दगी करेंगे - जो अकेला इष्ट-पूज्य है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) हैं।" 2|134|वह एक गिरोह था जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसका है, और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारा है। और जो कुछ वे करते रहे उसके विषय में तुमसे कोई पूछताछ न की जाएगी 2|135|वे कहते हैं, "यहूदी या ईसाई हो जाओ तो मार्ग पर लोगे।" कहो, "नहीं, बल्कि इबराहीम का पंथ अपनाओ जो एक (अल्लाह) का हो गया था, और वह बहुदेववादियों में से न था।" 2|136|कहो, "हम ईमान लाए अल्लाह पर और उस चीज़ पर जो हमारी ओर से उतरी और जो इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उसकी संतान की ओर उतरी, और जो मूसा और ईसा को मिली, और जो सभी नबियों को उनके रब की ओर से प्रदान की गई। हम उनमें से किसी के बीच अन्तर नहीं करते और हम केवल उसी के आज्ञाकारी हैं।" 2|137|फिर यदि वे उसी तरह ईमान लाएँ जिस तरह तुम ईमान लाए हो, तो उन्होंने मार्ग पा लिया। और यदि वे मुँह मोड़े, तो फिर वही विरोध में पड़े हुए है। अतः तुम्हारी जगह स्वयं अल्लाह उनसे निबटने के लिए काफ़ी है; वह सब कुछ सुनता, जानता है 2|138|(कहो,) "अल्लाह का रंग ग्रहण करो, उसके रंग से अच्छा और किसका रंह हो सकता है? और हम तो उसी की बन्दगी करते हैं।" 2|139|कहो, "क्या तुम अल्लाह के विषय में हमसे झगड़ते हो, हालाँकि वही हमारा रब भी है, और तुम्हारा रब भी? और हमारे लिए हमारे कर्म हैं और तुम्हारे लिए तुम्हारे कर्म। और हम तो बस निरे उसी के है।" 2|140|या तुम कहते हो कि इबराहीम और इसमाईल और इसहाक़ और याक़ूब और उनकी संतान सब के सब यहूदी या ईसाई थे? कहो, "तुम अधिक जानते हो या अल्लाह? और उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा, जिसके पास अल्लाह की ओर से आई हुई कोई गवाही हो, और वह उसे छिपाए? और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेखबर नहीं है।" 2|141|वह एक गिरोह थो जो गुज़र चुका, जो कुछ उसने कमाया वह उसके लिए है और जो कुछ तुमने कमाया वह तुम्हारे लिए है। और तुमसे उसके विषय में न पूछा जाएगा, जो कुछ वे करते रहे है 2|142|मूर्ख लोग अब कहेंगे, "उन्हें उनके उस क़िबले (उपासना-दिशा) से, जिस पर वे थे किस ची़ज़ ने फेर दिया?" कहो, "पूरब और पश्चिम अल्लाह ही के है, वह जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है।" 2|143|और इसी प्रकार हमने तुम्हें बीच का एक उत्तम समुदाय बनाया है, ताकि तुम सारे मनुष्यों पर गवाह हो, और रसूल तुमपर गवाह हो। और जिस (क़िबले) पर तुम रहे हो उसे तो हमने केवल इसलिए क़िबला बनाया था कि जो लोग पीठ-पीछे फिर जानेवाले है, उनसे हम उनको अलग जान लें जो रसूल का अनुसरण करते है। और यह बात बहुत भारी (अप्रिय) है, किन्तु उन लोगों के लिए नहीं जिन्हें अल्लाह ने मार्ग दिखाया है। और अल्लाह ऐसा नहीं कि वह तुम्हारे ईमान को अकारथ कर दे, अल्लाह तो इनसानों के लिए अत्यन्त करूणामय, दयावान है 2|144|हम आकाश में तुम्हारे मुँह की गर्दिश देख रहे है, तो हम अवश्य ही तुम्हें उसी क़िबले का अधिकारी बना देंगे जिसे तुम पसन्द करते हो। अतः मस्जिदे हराम (काबा) की ओर अपना रूख़ करो। और जहाँ कहीं भी हो अपने मुँह उसी की ओर करो - निश्चय ही जिन लोगों को किताब मिली थी, वे भली-भाँति जानते है कि वही उनके रब की ओर से हक़ है, इसके बावजूद जो कुछ वे कर रहे है अल्लाह उससे बेखबर नहीं है 2|145|यदि तुम उन लोगों के पास, जिन्हें किताब दी गई थी, कोई भी निशानी ले आओ, फिर भी वे तुम्हारे क़िबले का अनुसरण नहीं करेंगे और तुम भी उसके क़िबले का अनुसरण करने वाले नहीं हो। और वे स्वयं परस्पर एक-दूसरे के क़िबले का अनुसरण करनेवाले नहीं हैं। और यदि तुमने उस ज्ञान के पश्चात, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं का अनुसरण किया, तो निश्चय ही तुम्हारी गणना ज़ालिमों में होगी 2|146|जिन लोगों को हमने किताब दी है वे उसे पहचानते है, जैसे अपने बेटों को पहचानते है और उनमें से कुछ सत्य को जान-बूझकर छिपा रहे हैं 2|147|सत्य तुम्हारे रब की ओर से है। अतः तुम सन्देह करनेवालों में से कदापि न होगा 2|148|प्रत्येक की एक ही दिशा है, वह उसी की ओर मुख किेए हुए है, तो तुम भलाईयों में अग्रसरता दिखाओ। जहाँ कहीं भी तुम होगे अल्लाह तुम सबको एकत्र करेगा। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 2|149|और जहाँ से भी तुम निकलों, 'मस्जिदे हराम' (काबा) की ओर अपना मुँह फेर लिया करो। निस्संदेह यही तुम्हारे रब की ओर से हक़ है। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है 2|150|जहाँ से भी तुम निकलो, 'मस्जिदे हराम' की ओर अपना मुँह फेर लिया करो, और जहाँ कहीं भी तुम हो उसी की ओर मुँह कर लिया करो, ताकि लोगों के पास तुम्हारे ख़िलाफ़ कोई हुज्जत बाक़ी न रहे - सिवाय उन लोगों के जो उनमें ज़ालिम हैं, तुम उनसे न डरो, मुझसे ही डरो - और ताकि मैं तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दूँ, और ताकि तुम सीधी राह चलो 2|151|जैसाकि हमने तुम्हारे बीच एक रसूल तुम्हीं में से भेजा जो तुम्हें हमारी आयतें सुनाता है, तुम्हें निखारता है, और तुम्हें किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) की शिक्षा देता है और तुम्हें वह कुछ सिखाता है, जो तुम जानते न थे 2|152|अतः तुम मुझे याद रखो, मैं भी तुम्हें याद रखूँगा। और मेरा आभार स्वीकार करते रहना, मेरे प्रति अकृतज्ञता न दिखलाना 2|153|ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य और नमाज़ से मदद प्राप्त। करो। निस्संदेह अल्लाह उन लोगों के साथ है जो धैर्य और दृढ़ता से काम लेते है 2|154|और जो लोग अल्लाह के मार्ग में मारे जाएँ उन्हें मुर्दा न कहो, बल्कि वे जीवित है, परन्तु तुम्हें एहसास नहीं होता 2|155|और हम अवश्य ही कुछ भय से, और कुछ भूख से, और कुछ जान-माल और पैदावार की कमी से तुम्हारी परीक्षा लेंगे। और धैर्य से काम लेनेवालों को शुभ-सूचना दे दो 2|156|जो लोग उस समय, जबकि उनपर कोई मुसीबत आती है, कहते है, "निस्संदेह हम अल्लाह ही के है और हम उसी की ओर लौटने वाले है।" 2|157|यही लोग है जिनपर उनके रब की विशेष कृपाएँ है और दयालुता भी; और यही लोग है जो सीधे मार्ग पर हैं 2|158|निस्संदेह सफ़ा और मरवा अल्लाह की विशेष निशानियों में से हैं; अतः जो इस घर (काबा) का हज या उमपा करे, उसके लिए इसमें कोई दोष नहीं कि वह इन दोनों (पहाडियों) के बीच फेरा लगाए। और जो कोई स्वेच्छा और रुचि से कोई भलाई का कार्य करे तो अल्लाह भी गुणग्राहक, सर्वज्ञ है 2|159|जो लोग हमारी उतारी हुई खुली निशानियों और मार्गदर्शन को छिपाते है, इसके बाद कि हम उन्हें लोगों के लिए किताब में स्पष्ट कर चुके है; वही है जिन्हें अल्लाह धिक्कारता है - और सभी धिक्कारने वाले भी उन्हें धिक्कारते है 2|160|सिवाय उनके जिन्होंने तौबा कर ली और सुधार कर लिया, और साफ़-साफ़ बयान कर दिया, तो उनकी तौबा मैं क़बूल करूँगा; मैं बड़ा तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान हूँ 2|161|जिन लोगों ने कुफ़्र किया और काफ़िर (इनकार करनेवाले) ही रहकर मरे, वही हैं जिनपर अल्लाह की, फ़रिश्तों की और सारे मनुष्यों की, सबकी फिटकार है 2|162|इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की की जाएगी और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी 2|163|तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला पूज्य-प्रभु है, उस कृपाशील और दयावान के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं 2|164|निस्संदेह आकाशों और धरती की संरचना में, और रात और दिन की अदला-बदली में, और उन नौकाओं में जो लोगों की लाभप्रद चीज़े लेकर समुद्र (और नदी) में चलती है, और उस पानी में जिसे अल्लाह ने आकाश से उतारा, फिर जिसके द्वारा धरती को उसके निर्जीव हो जाने के पश्चात जीवित किया और उसमें हर एक (प्रकार के) जीवधारी को फैलाया और हवाओं को गर्दिश देने में और उन बादलों में जो आकाश और धरती के बीच (काम पर) नियुक्त होते है, उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ है जो बुद्धि से काम लें 2|165|कुछ लोग ऐसे भी है जो अल्लाह से हटकर दूसरों को उसके समकक्ष ठहराते है, उनसे ऐसा प्रेम करते है जैसा अल्लाह से प्रेम करना चाहिए। और कुछ ईमानवाले है उन्हें सबसे बढ़कर अल्लाह से प्रेम होता है। और ये अत्याचारी (बहुदेववादी) जबकि यातना देखते है, यदि इस तथ्य को जान लेते कि शक्ति सारी की सारी अल्लाह ही को प्राप्त हो और यह कि अल्लाह अत्यन्त कठोर यातना देनेवाला है (तो इनकी नीति कुछ और होती) 2|166|जब वे लोग जिनके पीछे वे चलते थे, यातना को देखकर अपने अनुयायियों से विरक्त हो जाएँगे और उनके सम्बन्ध और सम्पर्क टूट जाएँगे 2|167|वे लोग जो उनके पीछे चले थे कहेंगे, "काश! हमें एक बार (फिर संसार में लौटना होता तो जिस तरह आज ये हमसे विरक्त हो रहे हैं, हम भी इनसे विरक्त हो जाते।" इस प्रकार अल्लाह उनके लिए संताप बनाकर उन्हें कर्म दिखाएगा और वे आग (जहन्नम) से निकल न सकेंगे 2|168|ऐ लोगों! धरती में जो हलाल और अच्छी-सुथरी चीज़ें हैं उन्हें खाओ और शैतान के पदचिन्हों पर न चलो। निस्संदेह वह तुम्हारा खुला शत्रु है 2|169|वह तो बस तुम्हें बुराई और अश्लीलता पर उकसाता है और इसपर कि तुम अल्लाह पर थोपकर वे बातें कहो जो तुम नहीं जानते 2|170|और जब उनसे कहा जाता है, "अल्लाह ने जो कुछ उतारा है उसका अनुसरण करो।" तो कहते है, "नहीं बल्कि हम तो उसका अनुसरण करेंगे जिसपर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।" क्या उस दशा में भी जबकि उनके बाप-दादा कुछ भी बुद्धि से काम न लेते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हों? 2|171|इन इनकार करनेवालों की मिसाल ऐसी है जैसे कोई ऐसी चीज़ों को पुकारे जो पुकार और आवाज़ के सिवा कुछ न सुनती और समझती हो। ये बहरे हैं, गूँगें हैं, अन्धें हैं; इसलिए ये कुछ भी नहीं समझ सकते 2|172|ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी-सुथरी चीज़ें हमने तुम्हें प्रदान की हैं उनमें से खाओ और अल्लाह के आगे कृतज्ञता दिखलाओ, यदि तुम उसी की बन्दगी करते हो 2|173|उसने तो तुमपर केवल मुर्दार और ख़ून और सूअर का माँस और जिस पर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो, हराम ठहराया है। इसपर भी जो बहुत मजबूर और विवश हो जाए, वह अवज्ञा करनेवाला न हो और न सीमा से आगे बढ़नेवाला हो तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 2|174|जो लोग उस चीज़ को छिपाते है जो अल्लाह ने अपनी किताब में से उतारी है और उसके बदले थोड़े मूल्य का सौदा करते है, वे तो बस आग खाकर अपने पेट भर रहे है; और क़ियामत के दिन अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न उन्हें निखारेगा; और उनके लिए दुखद यातना है 2|175|यहीं लोग हैं जिन्होंने मार्गदर्शन के बदले पथभ्रष्टका मोल ली; और क्षमा के बदले यातना के ग्राहक बने। तो आग को सहन करने के लिए उनका उत्साह कितना बढ़ा हुआ है! 2|176|वह (यातना) इसलिए होगी कि अल्लाह ने तो हक़ के साथ किताब उतारी, किन्तु जिन लोगों ने किताब के मामले में विभेद किया वे हठ और विरोध में बहुत दूर निकल गए 2|177|नेकी केवल यह नहीं है कि तुम अपने मुँह पूरब और पश्चिम की ओर कर लो, बल्कि नेकी तो उसकी नेकी है जो अल्लाह अन्तिम दिन, फ़रिश्तों, किताब और नबियों पर ईमान लाया और माल, उसके प्रति प्रेम के बावजूद नातेदारों, अनाथों, मुहताजों, मुसाफ़िरों और माँगनेवालों को दिया और गर्दनें छुड़ाने में भी, और नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अपने वचन को ऐसे लोग पूरा करनेवाले है जब वचन दें; और तंगी और विशेष रूप से शारीरिक कष्टों में और लड़ाई के समय में जमनेवाले हैं, तो ऐसे ही लोग है जो सच्चे सिद्ध हुए और वही लोग डर रखनेवाले हैं 2|178|ऐ ईमान लानेवालो! मारे जानेवालों के विषय में हत्यादंड (क़िसास) तुमपर अनिवार्य किया गया, स्वतंत्र-स्वतंत्र बराबर है और ग़़ुलाम-ग़ुलाम बराबर है और औरत-औरत बराबर है। फिर यदि किसी को उसके भाई की ओर से कुछ छूट मिल जाए तो सामान्य रीति का पालन करना चाहिए; और भले तरीके से उसे अदा करना चाहिए। यह तुम्हारें रब की ओर से एक छूट और दयालुता है। फिर इसके बाद भो जो ज़्यादती करे तो उसके लिए दुखद यातना है 2|179|ऐ बुद्धि और समझवालों! तुम्हारे लिए हत्यादंड (क़िसास) में जीवन है, ताकि तुम बचो 2|180|जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ जाए, यदि वह कुछ माल छोड़ रहा हो, तो माँ-बाप और नातेदारों को भलाई की वसीयत करना तुमपर अनिवार्य किया गया। यह हक़ है डर रखनेवालों पर 2|181|तो जो कोई उसके सुनने के पश्चात उसे बदल डाले तो उसका गुनाह उन्हीं लोगों पर होगा जो इसे बदलेंगे। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ सुननेवाला और जाननेवाला है 2|182|फिर जिस किसी वसीयत करनेवाले को न्याय से किसी प्रकार के हटने या हक़़ मारने की आशंका हो, इस कारण उनके (वारिसों के) बीच सुधार की व्यवस्था कर दें, तो उसपर कोई गुनाह नहीं। निस्संदेह अल्लाह क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है 2|183|ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर रोज़े अनिवार्य किए गए, जिस प्रकार तुमसे पहले के लोगों पर किए गए थे, ताकि तुम डर रखनेवाले बन जाओ 2|184|गिनती के कुछ दिनों के लिए - इसपर भी तुममें कोई बीमार हो, या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में संख्या पूरी कर ले। और जिन (बीमार और मुसाफ़िरों) को इसकी (मुहताजों को खिलाने की) सामर्थ्य हो, उनके ज़िम्मे बदलें में एक मुहताज का खाना है। फिर जो अपनी ख़ुशी से कुछ और नेकी करे तो यह उसी के लिए अच्छा है और यह कि तुम रोज़ा रखो तो तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जानो 2|185|रमज़ान का महीना जिसमें कुरआन उतारा गया लोगों के मार्गदर्शन के लिए, और मार्गदर्शन और सत्य-असत्य के अन्तर के प्रमाणों के साथा। अतः तुममें जो कोई इस महीने में मौजूद हो उसे चाहिए कि उसके रोज़े रखे और जो बीमार हो या सफ़र में हो तो दूसरे दिनों में गिनती पूरी कर ले। अल्लाह तुम्हारे साथ आसानी चाहता है, वह तुम्हारे साथ सख़्ती और कठिनाई नहीं चाहता, (वह तुम्हारे लिए आसानी पैदा कर रहा है) और चाहता है कि तुम संख्या पूरी कर लो और जो सीधा मार्ग तुम्हें दिखाया गया है, उस पर अल्लाह की बड़ाई प्रकट करो और ताकि तुम कृतज्ञ बनो 2|186|और जब तुमसे मेरे बन्दे मेरे सम्बन्ध में पूछें, तो मैं तो निकट ही हूँ, पुकार का उत्तर देता हूँ, जब वह मुझे पुकारता है, तो उन्हें चाहिए कि वे मेरा हुक्म मानें और मुझपर ईमान रखें, ताकि वे सीधा मार्ग पा लें 2|187|तुम्हारे लिए रोज़ो की रातों में अपनी औरतों के पास जाना जायज़ (वैध) हुआ। वे तुम्हारे परिधान (लिबास) हैं और तुम उनका परिधान हो। अल्लाह को मालूम हो गया कि तुम लोग अपने-आपसे कपट कर रहे थे, तो उसने तुमपर कृपा की और तुम्हें क्षमा कर दिया। तो अब तुम उनसे मिलो-जुलो और अल्लाह ने जो कुछ तुम्हारे लिए लिख रखा है, उसे तलब करो। और खाओ और पियो यहाँ तक कि तुम्हें उषाकाल की सफ़ेद धारी (रात की) काली धारी से स्पष्टा दिखाई दे जाए। फिर रात तक रोज़ा पूरा करो और जब तुम मस्जिदों में 'एतकाफ़' की हालत में हो, तो तुम उनसे न मिलो। ये अल्लाह की सीमाएँ हैं। अतः इनके निकट न जाना। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे डर रखनेवाले बनें 2|188|और आपस में तुम एक-दूसरे के माल को अवैध रूप से न खाओ, और न उन्हें हाकिमों के आगे ले जाओ कि (हक़ मारकर) लोगों के कुछ माल जानते-बूझते हड़प सको 2|189|वे तुमसे (प्रतिष्ठित) महीनों के विषय में पूछते है। कहो, "वे तो लोगों के लिए और हज के लिए नियत है। और यह कोई ख़ूबी और नेकी नहीं हैं कि तुम घरों में उनके पीछे से आओ, बल्कि नेकी तो उसकी है जो (अल्लाह का) डर रखे। तुम घरों में उनके दरवाड़ों से आओ और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो 2|190|और अल्लाह के मार्ग में उन लोगों से लड़ो जो तुमसे लड़े, किन्तु ज़्यादती न करो। निस्संदेह अल्लाह ज़्यादती करनेवालों को पसन्द नहीं करता 2|191|और जहाँ कहीं उनपर क़ाबू पाओ, क़त्ल करो और उन्हें निकालो जहाँ से उन्होंने तुम्हें निकाला है, इसलिए कि फ़ितना (उत्पीड़न) क़त्ल से भी बढ़कर गम्भीर है। लेकिन मस्जिदे हराम (काबा) के निकट तुम उनसे न लड़ो जब तक कि वे स्वयं तुमसे वहाँ युद्ध न करें। अतः यदि वे तुमसे युद्ध करें तो उन्हें क़त्ल करो - ऐसे इनकारियों का ऐसा ही बदला है 2|192|फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, अत्यन्त दयावान है 2|193|तुम उनसे लड़ो यहाँ तक कि फ़ितना शेष न रह जाए और दीन (धर्म) अल्लाह के लिए हो जाए। अतः यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अत्याचारियों के अतिरिक्त किसी के विरुद्ध कोई क़दम उठाना ठीक नहीं 2|194|प्रतिष्ठित महीना बराबर है प्रतिष्ठित महिने के, और समस्त प्रतिष्ठाओं का भी बराबरी का बदला है। अतः जो तुमपर ज़्यादती करे, तो जैसी ज़्यादती वह तुम पर के, तुम भी उसी प्रकार उससे ज़्यादती का बदला लो। और अल्लाह का डर रखो और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है 2|195|और अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करो और अपने ही हाथों से अपने-आपकोतबाही में न डालो, और अच्छे से अच्छा तरीक़ा अपनाओ। निस्संदेह अल्लाह अच्छे से अच्छा काम करनेवालों को पसन्द करता है 2|196|और हज और उमरा जो कि अल्लाह के लिए है, पूरे करो। फिर यदि तुम घिर जाओ, तो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश कर दो। और अपने सिर न मूड़ो जब तक कि क़ुरबानी अपने ठिकाने न पहुँच जाए, किन्तु जो व्यक्ति तुममें बीमार हो या उसके सिर में कोई तकलीफ़ हो, तो रोज़े या सदक़ा या क़रबानी के रूप में फ़िद्याी देना होगा। फिर जब तुम पर से ख़तरा टल जाए, तो जो व्यक्ति हज तक उमरा से लाभान्वित हो, जो जो क़ुरबानी उपलब्ध हो पेश करे, और जिसको उपलब्ध न हो तो हज के दिनों में तीन दिन के रोज़े रखे और सात दिन के रोज़े जब तुम वापस हो, ये पूरे दस हुए। यह उसके लिए है जिसके बाल-बच्चे मस्जिदे हराम के निकट न रहते हों। अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है 2|197|हज के महीने जाने-पहचाने और निश्चित हैं, तो जो इनमें हज करने का निश्चय करे, को हज में न तो काम-वासना की बातें हो सकती है और न अवज्ञा और न लड़ाई-झगड़े की कोई बात। और जो भलाई के काम भी तुम करोंगे अल्लाह उसे जानता होगा। और (ईश-भय) पाथेय ले लो, क्योंकि सबसे उत्तम पाथेय ईश-भय है। और ऐ बुद्धि और समझवालो! मेरा डर रखो 2|198|इसमे तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने रब का अनुग्रह तलब करो। फिर जब तुम अरफ़ात से चलो तो 'मशअरे हराम' (मुज़दल्फ़ा) के निकट ठहरकर अल्लाह को याद करो, और उसे याद करो जैसाकि उसने तुम्हें बताया है, और इससे पहले तुम पथभ्रष्ट थे 2|199|इसके पश्चात जहाँ से और सब लोग चलें, वहीं से तुम भी चलो, और अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करो। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 2|200|फिर जब तुम अपनी हज सम्बन्धी रीतियों को पूरा कर चुको तो अल्लाह को याद करो जैसे अपने बाप-दादा को याद करते रहे हो, बल्कि उससे भी बढ़कर याद करो। फिर लोगों सें कोई तो ऐसा है जो कहता है, "हमारे रब! हमें दुनिया में दे दो।" ऐसी हालत में आख़िरत में उसका कोई हिस्सा नहीं 2|201|और उनमें कोई ऐसा है जो कहता है, "हमारे रब! हमें प्रदान कर दुनिया में भी अच्छी दशा और आख़िरत में भी अच्छा दशा, और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।" 2|202|ऐसे ही लोग है कि उन्होंने जो कुछ कमाया है उसकी जिन्स का हिस्सा उनके लिए नियत है। और अल्लाह जल्द ही हिसाब चुकानेवाला है 2|203|और अल्लाह की याद में गिनती के ये कुछ दिन व्यतीत करो। फिर जो कोई जल्दी करके दो ही दिन में कूच करे तो इसमें उसपर कोई गुनाह नहीं। और जो ठहरा रहे तो इसमें भी उसपर कोई गुनाह नहीं। यह उसके लिेए है जो अल्लाह का डर रखे। और अल्लाह का डर रखो और जान रखो कि उसी के पास तुम इकट्ठा होगे 2|204|लोगों में कोई तो ऐसा है कि इस सांसारिक जीवन के विषय में उसकी बाते तुम्हें बहुत भाती है, उस (खोट) के बावजूद जो उसके दिल में होती है, वह अल्लाह को गवाह ठहराता है और झगड़े में वह बड़ा हठी है 2|205|और जब वह लौटता है, तो धरती में इसलिए दौड़-धूप करता है कि इसमें बिगाड़ पैदा करे और खेती और नस्ल को तबाह करे, जबकि अल्लाह बिगाड़ को पसन्द नहीं करता 2|206|और जब उससे कहा जाता है, "अल्लाह से डर", तो अहंकार उसे और गुनाह पर जमा देता है। अतः उसके लिए तो जहन्नम ही काफ़ी है, और वह बहुत-ही बुरी शय्या है! 2|207|और लोगों में वह भी है जो अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधन की चाह में अपनी जान खता देता है। अल्लाह भी अपने ऐसे बन्दों के प्रति अत्यन्त करुणाशील है 2|208|ऐ ईमान लानेवालो! तुम सब इस्लाम में दाख़िल हो जाओ और शैतान के पदचिन्ह पर न चलो। वह तो तुम्हारा खुला हुआ शत्रु है 2|209|फिर यदि तुम उन स्पष्टा दलीलों के पश्चात भी, जो तुम्हारे पास आ चुकी है, फिसल गए, तो भली-भाँति जान रखो कि अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 2|210|क्या वे (इसराईल की सन्तान) बस इसकी प्रतीक्षा कर रहे है कि अल्लाह स्वयं ही बादलों की छायों में उनके सामने आ जाए और फ़रिश्ते भी, हालाँकि बात तय कर दी गई है? मामले तो अल्लाह ही की ओर लौटते है 2|211|इसराईल की सन्तान से पूछो, हमने उन्हें कितनी खुली-खुली निशानियाँ प्रदान की। और जो अल्लाह की नेमत को इसके बाद कि वह उसे पहुँच चुकी हो बदल डाले, तो निस्संदेह अल्लाह भी कठोर दंड देनेवाला है 2|212|इनकार करनेवाले सांसारिक जीवन पर रीझे हुए है और ईमानवालों का उपहास करते है, जबकि जो लोग अल्लाह का डर रखते है, वे क़ियामत के दिन उनसे ऊपर होंगे। अल्लाह जिस चाहता है बेहिसाब देता है 2|213|सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे (उन्होंने विभेद किया) तो अल्लाह ने नबियों को भेजा, जो शुभ-सूचना देनेवाले और डरानवाले थे; और उनके साथ हक़ पर आधारित किताब उतारी, ताकि लोगों में उन बातों का जिनमें वे विभेद कर रहे है, फ़ैसला कर दे। इसमें विभेद तो बस उन्हीं लोगों ने, जिन्हें वह मिली थी, परस्पर ज़्यादती करने के लिए इसके पश्चात किया, जबकि खुली निशानियाँ उनके पास आ चुकी थी। अतः ईमानवालों को अल्लाह ने अपनी अनूज्ञा से उस सत्य के विषय में मार्गदर्शन किया, जिसमें उन्होंने विभेद किया था। अल्लाह जिसे चाहता है, सीधे मार्ग पर चलाता है 2|214|क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में प्रवेश पा जाओगे, जबकि अभी तुम पर वह सब कुछ नहीं बीता है जो तुमसे पहले के लोगों पर बीत चुका? उनपर तंगियाँ और तकलीफ़े आई और उन्हें हिला मारा गया यहाँ तक कि रसूल बोल उठे और उनके साथ ईमानवाले भी कि अल्लाह की सहायता कब आएगी? जान लो! अल्लाह की सहायता निकट है 2|215|वे तुमसे पूछते है, "कितना ख़र्च करें?" कहो, "(पहले यह समझ लो कि) जो माल भी तुमने ख़र्च किया है, वह तो माँ-बाप, नातेदारों और अनाथों, और मुहताजों और मुसाफ़िरों के लिए ख़र्च हुआ है। और जो भलाई भी तुम करो, निस्संदेह अल्लाह उसे भली-भाँति जान लेगा। 2|216|तुम पर युद्ध अनिवार्य किया गया और वह तुम्हें अप्रिय है, और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें अप्रिय हो और वह तुम्हारे लिए अच्छी हो। और बहुत सम्भव है कि कोई चीज़ तुम्हें प्रिय हो और वह तुम्हारे लिए बुरी हो। और जानता अल्लाह है, और तुम नहीं जानते।" 2|217|वे तुमसे आदरणीय महीने में युद्ध के विषय में पूछते है। कहो, "उसमें लड़ना बड़ी गम्भीर बात है, परन्तु अल्लाह के मार्ग से रोकना, उसके साथ अविश्वास करना, मस्जिदे हराम (काबा) से रोकना और उसके लोगों को उससे निकालना, अल्लाह की स्पष्ट में इससे भी अधिक गम्भीर है और फ़ितना (उत्पीड़न), रक्तपात से भी बुरा है।" और उसका बस चले तो वे तो तुमसे बराबर लड़ते रहे, ताकि तुम्हें तुम्हारे दीन (धर्म) से फेर दें। और तुममे से जो कोई अपने दीन से फिर जाए और अविश्वासी होकर मरे, तो ऐसे ही लोग है जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में नष्ट हो गए, और वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है, वे उसी में सदैव रहेंगे 2|218|रहे वे लोग जो ईमान लाए और जिन्होंने अल्लाह के मार्ग में घर-बार छोड़ा और जिहाद किया, वहीं अल्लाह की दयालुता की आशा रखते है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 2|219|तुमसे शराब और जुए के विषय में पूछते है। कहो, "उन दोनों चीज़ों में बड़ा गुनाह है, यद्यपि लोगों के लिए कुछ फ़ायदे भी है, परन्तु उनका गुनाह उनके फ़ायदे से कहीं बढकर है।" और वे तुमसे पूछते है, "कितना ख़र्च करें?" कहो, "जो आवश्यकता से अधिक हो।" इस प्रकार अल्लाह दुनिया और आख़िरत के विषय में तुम्हारे लिए अपनी आयते खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम सोच-विचार करो। 2|220|और वे तुमसे अनाथों के विषय में पूछते है। कहो, "उनके सुधार की जो रीति अपनाई जाए अच्छी है। और यदि तुम उन्हें अपने साथ सम्मिलित कर लो तो वे तुम्हारे भाई-बन्धु ही हैं। और अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवाले को बचाव पैदा करनेवाले से अलग पहचानता है। और यदि अल्लाह चाहता तो तुमको ज़हमत (कठिनाई) में डाल देता। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" 2|221|और मुशरिक (बहुदेववादी) स्त्रियों से विवाह न करो जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानदारी बांदी (दासी), मुशरिक स्त्री से कहीं उत्तम है; चाहे वह तुम्हें कितनी ही अच्छी क्यों न लगे। और न (ईमानवाली स्त्रियाँ) मुशरिक पुरुषों से विवाह करो, जब तक कि वे ईमान न लाएँ। एक ईमानवाला गुलाम आज़ाद मुशरिक से कहीं उत्तम है, चाहे वह तुम्हें कितना ही अच्छा क्यों न लगे। ऐसे लोग आग (जहन्नम) की ओर बुलाते है और अल्लाह अपनी अनुज्ञा से जन्नत और क्षमा की ओर बुलाता है। और वह अपनी आयतें लोगों के सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि वे चेतें 2|222|और वे तुमसे मासिक-धर्म के विषय में पूछते है। कहो, "वह एक तकलीफ़ और गन्दगी की चीज़ है। अतः मासिक-धर्म के दिनों में स्त्रियों से अलग रहो और उनके पास न जाओ, जबतक कि वे पाक-साफ़ न हो जाएँ। फिर जब वे भली-भाँति पाक-साफ़ हो जाए, तो जिस प्रकार अल्लाह ने तुम्हें बताया है, उनके पास आओ। निस्संदेह अल्लाह बहुत तौबा करनेवालों को पसन्द करता है और वह उन्हें पसन्द करता है जो स्वच्छता को पसन्द करते है 2|223|तुम्हारी स्त्रियों तुम्हारी खेती है। अतः जिस प्रकार चाहो तुम अपनी खेती में आओ और अपने लिए आगे भेजो; और अल्लाह से डरते रहो; भली-भाँति जान ले कि तुम्हें उससे मिलना है; और ईमान लानेवालों को शुभ-सूचना दे दो 2|224|अपने नेक और धर्मपरायण होने और लोगों के मध्य सुधारक होने के सिलसिले में अपनी क़समों के द्वारा अल्लाह को आड़ और निशाना न बनाओ कि इन कामों को छोड़ दो। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है 2|225|अल्लाह तुम्हें तुम्हारी ऐसी कसमों पर नहीं पकड़ेगा जो यूँ ही मुँह से निकल गई हो, लेकिन उन क़समों पर वह तुम्हें अवश्य पकड़ेगा जो तुम्हारे दिल के इरादे का नतीजा हों। अल्लाह बहुत क्षमा करनेवाला, सहनशील है 2|226|जो लोग अपनी स्त्रियों से अलग रहने की क़सम खा बैठें, उनके लिए चार महीने की प्रतिक्षा है। फिर यदि वे पलट आएँ, तो अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 2|227|और यदि वे तलाक़ ही की ठान लें, तो अल्लाह भी सुननेवाला भली-भाँति जाननेवाला है 2|228|और तलाक़ पाई हुई स्त्रियाँ तीन हैज़ (मासिक-धर्म) गुज़रने तक अपने-आप को रोके रखे, और यदि वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखती है तो उनके लिए यह वैध न होगा कि अल्लाह ने उनके गर्भाशयों में जो कुछ पैदा किया हो उसे छिपाएँ। इस बीच उनके पति, यदि सम्बन्धों को ठीक कर लेने का इरादा रखते हों, तो वे उन्हें लौटा लेने के ज़्यादा हक़दार है। और उन पत्नियों के भी सामान्य नियम के अनुसार वैसे ही अधिकार हैं, जैसी उन पर ज़िम्मेदारियाँ डाली गई है। और पतियों को उनपर एक दर्जा प्राप्त है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 2|229|तलाक़ दो बार है। फिर सामान्य नियम के अनुसार (स्त्री को) रोक लिया जाए या भले तरीक़े से विदा कर दिया जाए। और तुम्हारे लिए वैध नहीं है कि जो कुछ तुम उन्हें दे चुके हो, उसमें से कुछ ले लो, सिवाय इस स्थिति के कि दोनों को डर हो कि अल्लाह की (निर्धारित) सीमाओं पर क़ायम न रह सकेंगे तो यदि तुमको यह डर हो कि वे अल्लाह की सीमाओ पर क़ायम न रहेंगे तो स्त्री जो कुछ देकर छुटकारा प्राप्त करना चाहे उसमें उन दोनो के लिए कोई गुनाह नहीं। ये अल्लाह की सीमाएँ है। अतः इनका उल्लंघन न करो। और जो कोई अल्लाह की सीमाओं का उल्लंघन करे तो ऐसे लोग अत्याचारी है 2|230|(दो तलाक़ो के पश्चात) फिर यदि वह उसे तलाक़ दे दे, तो इसके पश्चात वह उसके लिए वैध न होगी, जबतक कि वह उसके अतिरिक्त किसी दूसरे पति से निकाह न कर ले। अतः यदि वह उसे तलाक़ दे दे तो फिर उन दोनों के लिए एक-दूसरे को पलट आने में कोई गुनाह न होगा, यदि वे समझते हो कि अल्लाह की सीमाओं पर क़ायम रह सकते है। और ये अल्लाह कि निर्धारित की हुई सीमाएँ है, जिन्हें वह उन लोगों के लिए बयान कर रहा है जो जानना चाहते हो 2|231|और यदि जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निश्चित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, जो सामान्य नियम के अनुसार उन्हें रोक लो या सामान्य नियम के अनुसार उन्हें विदा कर दो। और तुम उन्हें नुक़सान पहुँचाने के ध्येय से न रोको कि ज़्यादती करो। और जो ऐसा करेगा, तो उसने स्वयं अपने ही ऊपर ज़ुल्म किया। और अल्लाह की आयतों को परिहास का विषय न बनाओ, और अल्लाह की कृपा जो तुम पर हुई है उसे याद रखो और उस किताब और तत्वदर्शिता (हिकमत) को याद रखो जो उसने तुम पर उतारी है, जिसके द्वारा वह तुम्हें नसीहत करता है। और अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि अल्लाह हर चीज को जाननेवाला है 2|232|और जब तुम स्त्रियों को तलाक़ दे दो और वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो उन्हें अपने होनेवाले दूसरे पतियों से विवाह करने से न रोको, जबकि वे सामान्य नियम के अनुसार परस्पर रज़ामन्दी से मामला तय करें। यह नसीहत तुममें से उसको की जा रही है जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखता है। यही तुम्हारे लिए ज़्यादा बरकतवाला और सुथरा तरीक़ा है। और अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते 2|233|और जो कोई पूरी अवधि तक (बच्चे को) दूध पिलवाना चाहे, तो माएँ अपने बच्चों को पूरे दो वर्ष तक दूध पिलाएँ। और वह जिसका बच्चा है, सामान्य नियम के अनुसार उनके खाने और उनके कपड़े का ज़िम्मेदार है। किसी पर बस उसकी अपनी समाई भर ही ज़िम्मेदारी है, न तो कोई माँ अपने बच्चे के कारण (बच्चे के बाप को) नुक़सान पहुँचाए और न बाप अपने बच्चे के कारण (बच्चे की माँ को) नुक़सान पहुँचाए। और इसी प्रकार की ज़िम्मेदारी उसके वारिस पर भी आती है। फिर यदि दोनों पारस्परिक स्वेच्छा और परामर्श से दूध छुड़ाना चाहें तो उनपर कोई गुनाह नहीं। और यदि तुम अपनी संतान को किसी अन्य स्त्री से दूध पिलवाना चाहो तो इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं, जबकि तुमने जो कुछ बदले में देने का वादा किया हो, सामान्य नियम के अनुसार उसे चुका दो। और अल्लाह का डर रखो और भली-भाँति जान लो कि जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसे देख रहा है 2|234|और तुममें से जो लोग मर जाएँ और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाएँ, तो वे पत्नियों अपने-आपको चार महीने और दस दिन तक रोके रखें। फिर जब वे अपनी निर्धारित अवधि (इद्दत) को पहुँच जाएँ, तो सामान्य नियम के अनुसार वे अपने लिए जो कुछ करें, उसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं। जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है 2|235|और इसमें भी तुम पर कोई गुनाह नहीं जो तुम उन औरतों को विवाह के सन्देश सांकेतिक रूप से दो या अपने मन में छिपाए रखो। अल्लाह जानता है कि तुम उन्हें याद करोगे, परन्तु छिपकर उन्हें वचन न देना, सिवाय इसके कि सामान्य नियम के अनुसार कोई बात कह दो। और जब तक निर्धारित अवधि (इद्दत) पूरी न हो जाए, विवाह का नाता जोड़ने का निश्चय न करो। जान रखो कि अल्लाह तुम्हारे मन की बात भी जानता है। अतः उससे सावधान रहो और अल्लाह अत्यन्त क्षमा करनेवाला, सहनशील है 2|236|यदि तुम स्त्रियों को इस स्थिति मे तलाक़ दे दो कि यह नौबत पेश न आई हो कि तुमने उन्हें हाथ लगाया हो और उनका कुछ हक़ (मह्रन) निश्चित किया हो, तो तुमपर कोई भार नहीं। हाँ, सामान्य नियम के अनुसार उन्हें कुछ ख़र्च दो - समाई रखनेवाले पर उसकी अपनी हैसियत के अनुसार और तंगदस्त पर उसकी अपनी हैसियत के अनुसार अनिवार्य है - यह अच्छे लोगों पर एक हक़ है 2|237|और यदि तुम उन्हें हाथ लगाने से पहले तलाक़ दे दो, किन्तु उसका मह्र- निश्चित कर चुके हो, तो जो मह्रह तुमने निश्चित किया है उसका आधा अदा करना होगा, यह और बात है कि वे स्वयं छोड़ दे या पुरुष जिसके हाथ में विवाह का सूत्र है, वह नर्मी से काम ले (और मह्र पूरा अदा कर दे) । और यह कि तुम नर्मी से काम लो तो यह परहेज़गारी से ज़्यादा क़रीब है और तुम एक-दूसरे को हक़ से बढ़कर देना न भूलो। निश्चय ही अल्लाह उसे देख रहा है, जो तुम करते हो 2|238|सदैव नमाज़ो की और अच्छी नमाज़ों की पाबन्दी करो, और अल्लाह के आगे पूरे विनीत और शान्तभाव से खड़े हुआ करो 2|239|फिर यदि तुम्हें (शत्रु आदि का) भय हो, तो पैदल या सवार जिस तरह सम्भव हो नमाज़ पढ़ लो। फिर जब निश्चिन्त हो तो अल्लाह को उस प्रकार याद करो जैसाकि उसने तुम्हें सिखाया है, जिसे तुम नहीं जानते थे 2|240|और तुममें से जिन लोगों की मृत्यु हो जाए और अपने पीछे पत्नियों छोड़ जाए, अर्थात अपनी पत्नियों के हक़ में यह वसीयत छोड़ जाए कि घर से निकाले बिना एक वर्ष तक उन्हें ख़र्च दिया जाए, तो यदि वे निकल जाएँ तो अपने लिए सामान्य नियम के अनुसार वे जो कुछ भी करें उसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 2|241|और तलाक़ पाई हुई स्त्रियों को सामान्य नियम के अनुसार (इद्दत की अवधि में) ख़र्च भी मिलना चाहिए। यह डर रखनेवालो पर एक हक़ है 2|242|इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयतें खोलकर बयान करता है, ताकि तुम समझ से काम लो 2|243|क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो हज़ारों की संख्या में होने पर भी मृत्यु के भय से अपने घर-बार छोड़कर निकले थे? तो अल्लाह ने उनसे कहा, "मृत्यु प्राय हो जाओ तुम।" फिर उसने उन्हें जीवन प्रदान किया। अल्लाह तो लोगों के लिए उदार अनुग्राही है, किन्तु अधिकतर लोग कृतज्ञता नहीं दिखलाते 2|244|और अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो और जान लो कि अल्लाह सब कुछ सुननेवाला, जाननेवाले है 2|245|कौन है जो अल्लाह को अच्छा ऋण दे कि अल्लाह उसे उसके लिए कई गुना बढ़ा दे? और अल्लाह ही तंगी भी देता है और कुशादगी भी प्रदान करता है, और उसी की ओर तुम्हें लौटना है 2|246|क्या तुमने मूसा के पश्चात इसराईल की सन्तान के सरदारों को नहीं देखा, जब उन्होंने अपने एक नबी से कहा, "हमारे लिए एक सम्राट नियुक्त कर दो ताकि हम अल्लाह के मार्ग में युद्ध करें?" उसने कहा, "यदि तुम्हें लड़ाई का आदेश दिया जाए तो क्या तुम्हारे बारे में यह सम्भावना नहीं है कि तुम न लड़ो?" वे कहने लगे, "हम अल्लाह के मार्ग में क्यों न लड़े, जबकि हम अपने घरों से निकाल दिए गए है और अपने बाल-बच्चों से भी अलग कर दिए गए है?" - फिर जब उनपर युद्ध अनिवार्य कर दिया गया तो उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सब फिर गए। और अल्लाह ज़ालिमों को भली-भाँति जानता है। - 2|247|उनसे नबी ने उनसे कहा, "अल्लाह ने तुम्हारे लिए तालूत को सम्राट नियुक्त किया है।" बोले, "उसकी बादशाही हम पर कैसे हो सकती है, जबबकि हम उसके मुक़ाबले में बादशाही के ज़्यादा हक़दार है और जबकि उस माल की कुशादगी भी प्राप्त नहीं है?" उसने कहा, "अल्लाह ने तुम्हारे मुक़ाबले में उसको ही चुना है और उसे ज्ञान में और शारीरिक क्षमता में ज़्यादा कुशादगी प्रदान की है। अल्लाह जिसको चाहे अपना राज्य प्रदान करे। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है।" 2|248|उनके नबी ने उनसे कहा, "उसकी बादशाही की निशानी यह है कि वह संदूक तुम्हारे पर आ जाएगा, जिसमें तुम्हारे रह की ओर से सकीनत (प्रशान्ति) और मूसा के लोगों और हारून के लोगों की छोड़ी हुई यादगारें हैं, जिसको फ़रिश्ते उठाए हुए होंगे। यदि तुम ईमानवाले हो तो, निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए बड़ी निशानी है।" 2|249|फिर तब तालूत सेनाएँ लेकर चला तो उनने कहा, "अल्लाह निश्चित रूप से एक नदी द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेनेवाला है। तो जिसने उसका पानी पी लिया, वह मुझमें से नहीं है और जिसने उसको नहीं चखा, वही मुझमें से है। यह और बात है कि कोई अपने हाथ से एक चुल्लू भर ले ले।" फिर उनमें से थोड़े लोगों के सिवा सभी ने उसका पानी पी लिया, फिर जब तालूत और ईमानवाले जो उसके साथ थे नदी पार कर गए तो कहने लगे, "आज हममें जालूत और उसकी सेनाओं का मुक़ाबला करने की शक्ति नहीं हैं।" इस पर लोगों ने, जो समझते थे कि उन्हें अल्लाह से मिलना है, कहा, "कितनी ही बार एक छोटी-सी टुकड़ी ने अल्लाह की अनुज्ञा से एक बड़े गिरोह पर विजय पाई है। अल्लाह तो जमनेवालो के साथ है।" 2|250|और जब वे जालूत और उसकी सेनाओं के मुक़ाबले पर आए तो कहा, "ऐ हमारे रब! हमपर धैर्य उडेल दे और हमारे क़दम जमा दे और इनकार करनेवाले लोगों पर हमें विजय प्रदान कर।" 2|251|अन्ततः अल्लाह की अनुज्ञा से उन्होंने उनको पराजित कर दिया और दाऊद ने जालूत को क़त्ल कर दिया, और अल्लाह ने उसे राज्य और तत्वदर्शिता (हिकमत) प्रदान की, जो कुछ वह (दाऊद) चाहे, उससे उसको अवगत कराया। और यदि अल्लाह मनुष्यों के एक गिरोह को दूसरे गिरोह के द्वारा हटाता न रहता तो धरती की व्यवस्था बिगड़ जाती, किन्तु अल्लाह संसारवालों के लिए उदार अनुग्राही है 2|252|ये अल्लाह की सच्ची आयतें है जो हम तुम्हें (सोद्देश्य) सुना रहे है और निश्चय ही तुम उन लोगों में से हो, जो रसूस बनाकर भेजे गए है 2|253|ये रसूल ऐसे हुए है कि इनमें हमने कुछ को कुछ पर श्रेष्ठता प्रदान की। इनमें कुछ से तो अल्लाह ने बातचीत की और इनमें से कुछ को दर्जों की स्पष्ट से उच्चता प्रदान की। और मरयम के बेटे ईसा को हमने खुली निशानियाँ दी और पवित्र आत्मा से उसकी सहायता की। और यदि अल्लाह चाहता तो वे लोग, जो उनके पश्चात हुए, खुली निशानियाँ पा लेने के बाद परस्पर न लड़ते। किन्तु वे विभेद में पड़ गए तो उनमें से कोई तो ईमान लाया और उनमें से किसी ने इनकार की नीति अपनाई। और यदि अल्लाह चाहता तो वे परस्पर न लड़ते, परन्तु अल्लाह जो चाहता है, करता है 2|254|ऐ ईमान लानेवालो! हमने जो कुछ तुम्हें प्रदान किया है उसमें से ख़र्च करो, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिसमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न कोई मित्रता होगी और न कोई सिफ़ारिश। ज़ालिम वही है, जिन्होंने इनकार की नीति अपनाई है 2|255|अल्लाह कि जिसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं, वह जीवन्त-सत्ता है, सबको सँभालने और क़ायम रखनेवाला है। उसे न ऊँघ लगती है और न निद्रा। उसी का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। कौन है जो उसके यहाँ उसकी अनुमति के बिना सिफ़ारिश कर सके? वह जानता है जो कुछ उनके आगे है और जो कुछ उनके पीछे है। और वे उसके ज्ञान में से किसी चीज़ पर हावी नहीं हो सकते, सिवाय उसके जो उसने चाहा। उसकी कुर्सी (प्रभुता) आकाशों और धरती को व्याप्त है और उनकी सुरक्षा उसके लिए तनिक भी भारी नहीं और वह उच्च, महान है 2|256|धर्म के विषय में कोई ज़बरदस्ती नहीं। सही बात नासमझी की बात से अलग होकर स्पष्ट हो गई है। तो अब जो कोई बढ़े हुए सरकश को ठुकरा दे और अल्लाह पर ईमान लाए, उसने ऐसा मज़बूत सहारा थाम लिया जो कभी टूटनेवाला नहीं। अल्लाह सब कुछ सुनने, जाननेवाला है 2|257|जो लोग ईमान लाते है, अल्लाह उनका रक्षक और सहायक है। वह उन्हें अँधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले जाता है। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया तो उनके संरक्षक बढ़े हुए सरकश है। वे उन्हें प्रकाश से निकालकर अँधेरों की ओर ले जाते है। वही आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है। वे उसी में सदैव रहेंगे 2|258|क्या तुमने उनको नहीं देखा, जिसने इबराहीम से उसके 'रब' के सिलसिले में झगड़ा किया था, इस कारण कि अल्लाह ने उसको राज्य दे रखा था? जब इबराहीम ने कहा, "मेरा 'रब' वह है जो जिलाता और मारता है।" उसने कहा, "मैं भी तो जिलाता और मारता हूँ।" इबराहीम ने कहा, "अच्छा तो अल्लाह सूर्य को पूरब से लाता है, तो तू उसे पश्चिम से ले आ।" इसपर वह अधर्मी चकित रह गया। अल्लाह ज़ालिम लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता 2|259|या उस जैसे (व्यक्ति) को नहीं देखा, जिसका एक ऐसी बस्ती पर से गुज़र हुआ, जो अपनी छतों के बल गिरी हुई थी। उसने कहा, "अल्लाह इसके विनष्ट हो जाने के पश्चात इसे किस प्रकार जीवन प्रदान करेगा?" तो अल्लाह ने उसे सौ वर्ष की मृत्यु दे दी, फिर उसे उठा खड़ा किया। कहा, "तू कितनी अवधि तक इस अवस्था नें रहा।" उसने कहा, "मैं एक या दिन का कुछ हिस्सा रहा।" कहा, "नहीं, बल्कि तू सौ वर्ष रहा है। अब अपने खाने और पीने की चीज़ों को देख ले, उन पर समय का कोई प्रभाव नहीं, और अपने गधे को भी देख, और यह इसलिए कह रहे है ताकि हम तुझे लोगों के लिए एक निशानी बना दें और हड्डियों को देख कि किस प्रकार हम उन्हें उभारते है, फिर, उनपर माँस चढ़ाते है।" तो जब वास्तविकता उस पर प्रकट हो गई तो वह पुकार उठा, " मैं जानता हूँ कि अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" 2|260|और याद करो जब इबराहीम ने कहा, "ऐ मेरे रब! मुझे दिखा दे, तू मुर्दों को कैसे जीवित करेगा?" कहा," क्या तुझे विश्वास नहीं?" उसने कहा,"क्यों नहीं, किन्तु निवेदन इसलिए है कि मेरा दिल संतुष्ट हो जाए।" कहा, "अच्छा, तो चार पक्षी ले, फिर उन्हें अपने साथ भली-भाँति हिला-मिला से, फिर उनमें से प्रत्येक को एक-एक पर्वत पर रख दे, फिर उनको पुकार, वे तेरे पास लपककर आएँगे। और जान ले कि अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" 2|261|जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, उनकी उपमा ऐसी है, जैसे एक दाना हो, जिससे सात बालें निकलें और प्रत्येक बाल में सौ दाने हो। अल्लाह जिसे चाहता है बढ़ोतरी प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, जाननेवाला है 2|262|जो लोग अपने माल अल्लाह के मार्ग में ख़र्च करते है, फिर ख़र्च करके उसका न एहसान जताते है और न दिल दुखाते है, उनका बदला उनके अपने रब के पास है। और न तो उनके लिए कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे 2|263|एक भली बात कहनी और क्षमा से काम लेना उस सदक़े से अच्छा है, जिसके पीछे दुख हो। और अल्लाह अत्यन्कृत निस्पृह (बेनियाज़), सहनशील है 2|264|ऐ ईमानवालो! अपने सदक़ो को एहसान जताकर और दुख देकर उस व्यक्ति की तरह नष्ट न करो जो लोगों को दिखाने के लिए अपना माल ख़र्च करता है और अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान नहीं रखता। तो उसकी हालत उस चट्टान जैसी है जिसपर कुछ मिट्टी पड़ी हुई थी, फिर उस पर ज़ोर की वर्षा हुई और उसे साफ़ चट्टान की दशा में छोड़ गई। ऐसे लोग अपनी कमाई कुछ भी प्राप्त नहीं करते। और अल्लाह इनकार की नीति अपनानेवालों को मार्ग नहीं दिखाता 2|265|और जो लोग अपने माल अल्लाह की प्रसन्नता के संसाधनों की तलब में और अपने दिलों को जमाव प्रदान करने के कारण ख़र्च करते है उनकी हालत उस बाग़़ की तरह है जो किसी अच्छी और उर्वर भूमि पर हो। उस पर घोर वर्षा हुई तो उसमें दुगुने फल आए। फिर यदि घोर वर्षा उस पर नहीं हुई, तो फुहार ही पर्याप्त होगी। तुम जो कुछ भी करते हो अल्लाह उसे देख रहा है 2|266|क्या तुममें से कोई यह चाहेगा कि उसके पास ख़जूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो, जिसके नीचे नहरें बह रही हो, वहाँ उसे हर प्रकार के फल प्राप्त हो और उसका बुढ़ापा आ गया हो और उसके बच्चे अभी कमज़ोर ही हों कि उस बाग़ पर एक आग भरा बगूला आ गया, और वह जलकर रह गया? इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे सामने आयतें खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि सोच-विचार करो 2|267|ऐ ईमान लानेवालो! अपनी कमाई को पाक और अच्छी चीज़ों में से ख़र्च करो और उन चीज़ों में से भी जो हमने धरती से तुम्हारे लिए निकाली है। और देने के लिए उसके ख़राब हिस्से (के देने) का इरादा न करो, जबकि तुम स्वयं उसे कभी न लोगे। यह और बात है कि उसको लेने में देखी-अनदेखी कर जाओ। और जान लो कि अल्लाह निस्पृह, प्रशंसनीय है 2|268|शैतान तुम्हें निर्धनता से डराता है और निर्लज्जता के कामों पर उभारता है, जबकि अल्लाह अपनी क्षमा और उदार कृपा का तुम्हें वचन देता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है 2|269|वह जिसे चाहता है तत्वदर्शिता प्रदान करता है और जिसे तत्वदर्शिता प्राप्त हुई उसे बड़ी दौलत मिल गई। किन्तु चेतते वही है जो बुद्धि और समझवाले है 2|270|और तुमने जो कुछ भी ख़र्च किया और जो कुछ भी नज़र (मन्नत) की हो, निस्सन्देह अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। और अत्याचारियों का कोई सहायक न होगा 2|271|यदि तुम खुले रूप मे सदक़े दो तो यह भी अच्छा है और यदि उनको छिपाकर मुहताजों को दो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है। और यह तुम्हारे कितने ही गुनाहों को मिटा देगा। और अल्लाह को उसकी पूरी ख़बर है, जो कुछ तुम करते हो 2|272|उन्हें मार्ग पर ला देने का दायित्व तुम पर नहीं है, बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहता है मार्ग दिखाता है। और जो कुछ भी माल तुम ख़र्च करोगे, वह तुम्हारे अपने ही भले के लिए होगा और तुम अल्लाह के (बताए हुए) उद्देश्य के अतिरिक्त किसी और उद्देश्य से ख़र्च न करो। और जो माल भी तुम्हें तुम ख़र्च करोगे, वह पूरा-पूरा तुम्हें चुका दिया जाएगा और तुम्हारा हक़ न मारा जाएगा 2|273|यह उन मुहताजों के लिए है जो अल्लाह के मार्ग में घिर गए कि धरती में (जीविकोपार्जन के लिए) कोई दौड़-धूप नहीं कर सकते। उनके स्वाभिमान के कारण अपरिचित व्यक्ति उन्हें धनवान समझता है। तुम उन्हें उनके लक्षणो से पहचान सकते हो। वे लिपटकर लोगों से नहीं माँगते। जो माल भी तुम ख़र्च करोगे, वह अल्लाह को ज्ञात होगा 2|274|जो लोग अपने माल रात-दिन छिपे और खुले ख़र्च करें, उनका बदला तो उनके रब के पास है, और न उन्हें कोई भय है और न वे शोकाकुल होंगे 2|275|और लोग ब्याज खाते है, वे बस इस प्रकार उठते है जिस प्रकार वह क्यक्ति उठता है जिसे शैतान ने छूकर बावला कर दिया हो और यह इसलिए कि उनका कहना है, "व्यापार भी तो ब्याज के सदृश है," जबकि अल्लाह ने व्यापार को वैध और ब्याज को अवैध ठहराया है। अतः जिसको उसके रब की ओर से नसीहत पहुँची और वह बाज़ आ गया, तो जो कुछ पहले ले चुका वह उसी का रहा और मामला उसका अल्लाह के हवाले है। और जिसने फिर यही कर्म किया तो ऐसे ही लोग आग (जहन्नम) में पड़नेवाले है। उसमें वे सदैव रहेंगे 2|276|अल्लाह ब्याज को घटाता और मिटाता है और सदक़ों को बढ़ाता है। और अल्लाह किसी अकृतज्ञ, हक़ मारनेवाले को पसन्द नहीं करता 2|277|निस्संदेह जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और नमाज़ क़ायम की्य और ज़कात दी, उनके लिए उनका बदला उनके रब के पास है, और उन्हें न कोई भय हो और न वे शोकाकुल होंगे 2|278|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और जो कुछ ब्याज बाक़ी रह गया है उसे छोड़ दो, यदि तुम ईमानवाले हो 2|279|फिर यदि तुमने ऐसा न किया तो अल्लाह और उसके रसूल से युद्ध के लिए ख़बरदार हो जाओ। और यदि तौबा कर लो तो अपना मूलधन लेने का तुम्हें अधिकार है। न तुम अन्याय करो और न तुम्हारे साथ अन्याय किया जाए 2|280|और यदि कोई तंगी में हो तो हाथ खुलने तक मुहलत देनी होगी; और सदक़ा कर दो (अर्थात मूलधन भी न लो) तो यह तुम्हारे लिए अधिक उत्तम है, यदि तुम जान सको 2|281|और उस दिन का डर रखो जबकि तुम अल्लाह की ओर लौटोगे, फिर प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने कमाया पूरा-पूरा मिल जाएगा और उनके साथ कदापि कोई अन्याय न होगा 2|282|ऐ ईमान लानेवालो! जब किसी निश्चित अवधि के लिए आपस में ऋण का लेन-देन करो तो उसे लिख लिया करो और चाहिए कि कोई लिखनेवाला तुम्हारे बीच न्यायपूर्वक (दस्तावेज़) लिख दे। और लिखनेवाला लिखने से इनकार न करे; जिस प्रकार अल्लाह ने उसे सिखाया है, उसी प्रकार वह दूसरों के लिए लिखने के काम आए और बोलकर वह लिखाए जिसके ज़िम्मे हक़ की अदायगी हो। और उसे अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखना चाहिए और उसमें कोई कमी न करनी चाहिए। फिर यदि वह व्यक्ति जिसके ज़िम्मे हक़ की अदायगी हो, कम समझ या कमज़ोर हो या वह बोलकर न लिखा सकता हो तो उसके संरक्षक को चाहिए कि न्यायपूर्वक बोलकर लिखा दे। और अपने पुरुषों में से दो गवाहो को गवाह बना लो और यदि दो पुरुष न हों तो एक पुरुष और दो स्त्रियाँ, जिन्हें तुम गवाह के लिए पसन्द करो, गवाह हो जाएँ (दो स्त्रियाँ इसलिए रखी गई है) ताकि यदि एक भूल जाए तो दूसरी उसे याद दिला दे। और गवाहों को जब बुलाया जाए तो आने से इनकार न करें। मामला चाहे छोटा हो या बड़ा एक निर्धारित अवधि तक के लिए है, तो उसे लिखने में सुस्ती से काम न लो। यह अल्लाह की स्पष्ट से अधिक न्यायसंगत बात है और इससे गवाही भी अधिक ठीक रहती है। और इससे अधि क संभावना है कि तुम किसी संदेह में नहीं पड़ोगे। हाँ, यदि कोई सौदा नक़द हो, जिसका लेन-देन तुम आपस में कर रहे हो, तो तुम्हारे उसके न लिखने में तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। और जब आपम में क्रय-विक्रय का मामला करो तो उस समय भी गवाह कर लिया करो, और न किसी लिखनेवाले को हानि पहुँचाए जाए और न किसी गवाह को। और यदि ऐसा करोगे तो यह तुम्हारे लिए अवज्ञा की बात होगी। और अल्लाह का डर रखो। अल्लाह तुम्हें शिक्षा दे रहा है। और अल्लाह हर चीज़ को जानता है 2|283|और यदि तुम किसी सफ़र में हो और किसी लिखनेवाले को न पा सको, तो गिरवी रखकर मामला करो। फिर यदि तुममें से एक-दूसरे पर भरोसा के, तो जिस पर भरोसा किया है उसे चाहिए कि वह यह सच कर दिखाए कि वह विश्वासपात्र है और अल्लाह का, जो उसका रब है, डर रखे। और गवाही को न छिपाओ। जो उसे छिपाता है तो निश्चय ही उसका दिल गुनाहगार है, और तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है 2|284|अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और जो कुछ तुम्हारे मन है, यदि तुम उसे व्यक्त करो या छिपाओं, अल्लाह तुमसे उसका हिसाब लेगा। फिर वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 2|285|रसूल उसपर, जो कुछ उसके रब की ओर से उसकी ओर उतरा, ईमान लाया और ईमानवाले भी, प्रत्येक, अल्लाह पर, उसके फ़रिश्तों पर, उसकी किताबों पर और उसके रसूलों पर ईमान लाया। (और उनका कहना यह है,) "हम उसके रसूलों में से किसी को दूसरे रसूलों से अलग नहीं करते।" और उनका कहना है, "हमने सुना और आज्ञाकारी हुए। हमारे रब! हम तेरी क्षमा के इच्छुक है और तेरी ही ओर लौटना है।" 2|286|अल्लाह किसी जीव पर बस उसकी सामर्थ्य और समाई के अनुसार ही दायित्व का भार डालता है। उसका है जो उसने कमाया और उसी पर उसका वबाल (आपदा) भी है जो उसने किया। "हमारे रब! यदि हम भूलें या चूक जाएँ तो हमें न पकड़ना। हमारे रब! और हम पर ऐसा बोझ न डाल जैसा तूने हमसे पहले के लोगों पर डाला था। हमारे रब! और हमसे वह बोझ न उठवा, जिसकी हमें शक्ति नहीं। और हमें क्षमा कर और हमें ढाँक ले, और हमपर दया कर। तू ही हमारा संरक्षक है, अतएव इनकार करनेवालों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।" 3|1|अलीफ़॰ लाम॰ मीम॰ 3|2|अल्लाह ही पूज्य हैं, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं। वह जीवन्त हैं, सबको सँम्भालने और क़ायम रखनेवाला 3|3|उसने तुमपर हक़ के साथ किताब उतारी जो पहले की (किताबों की) पुष्टि करती हैं, और उसने तौरात और इंजील उतारी 3|4|इससे पहले लोगों के मार्गदर्शन के लिए और उसने कसौटी भी उतारी। निस्संदेह जिन लोगों ने अल्लाह की आयतों का इनकार किया उनके लिए कठोर यातना हैं और अल्लाह प्रभुत्वशाली भी हैं और (बुराई का) बदला लेनेवाला भी 3|5|निस्संदेह अल्लाह से कोई चीज़ न धरती में छिपी हैं और न आकाश में 3|6|वही हैं जो गर्भाशयों में, जैसा चाहता हैं, तुम्हारा रूप देता हैं। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं 3|7|वही हैं जिसने तुमपर अपनी ओर से किताब उतारी, वे सुदृढ़ आयतें हैं जो किताब का मूल और सारगर्भित रूप हैं और दूसरी उपलक्षित, तो जिन लोगों के दिलों में टेढ़ हैं वे फ़ितना (गुमराही) का तलाश और उसके आशय और परिणाम की चाह में उसका अनुसरण करते हैं जो उपलक्षित हैं। जबकि उनका परिणाम बस अल्लाह ही जानता हैं, और वे जो ज्ञान में पक्के हैं, वे कहते हैं, "हम उसपर ईमान लाए, जो हर एक हमारे रब ही की ओर से हैं।" और चेतते तो केवल वही हैं जो बुद्धि और समझ रखते हैं 3|8|हमारे रब! जब तू हमें सीधे मार्ग पर लगा चुका है तो इसके पश्चात हमारे दिलों में टेढ़ न पैदा कर और हमें अपने पास से दयालुता प्रदान कर। निश्चय ही तू बड़ा दाता है 3|9|हमारे रब! तू लोगों को एक दिन इकट्ठा करने वाला है, जिसमें कोई संदेह नही। निस्सन्देह अल्लाह अपने वचन के विरुद्ध जाने वाला नही है 3|10|जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई है अल्लाह के मुकाबले में तो न उसके माल उनके कुछ काम आएँगे और न उनकी संतान ही। और वही हैं जो आग (जहन्नम) का ईधन बनकर रहेंगे 3|11|जैसे फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों का हाल हुआ। उन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया तो अल्लाह ने उन्हें उनके गुनाहों पर पकड़ लिया। और अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है 3|12|इनकार करनेवालों से कह दो, "शीघ्र ही तुम पराभूत होगे और जहन्नम की ओर हाँके जाओगं। और वह क्या ही बुरा ठिकाना है।" 3|13|तुम्हारे लिए उन दोनों गिरोहों में एक निशानी है जो (बद्र की) लड़ाई में एक-दूसरे के मुक़ाबिल हुए। एक गिरोह अल्लाह के मार्ग में लड़ रहा था, जबकि दूसरा विधर्मी था। ये अपनी आँखों देख रहे थे कि वे उनसे दुगने है। अल्लाह अपनी सहायता से जिसे चाहता है, शक्ति प्रदान करता है। दृष्टिवान लोगों के लिए इसमें बड़ी शिक्षा-सामग्री है 3|14|मनुष्यों को चाहत की चीजों से प्रेम शोभायमान प्रतीत होता है कि वे स्त्रिमयाँ, बेटे, सोने-चाँदी के ढेर और निशान लगे (चुने हुए) घोड़े हैं और चौपाए और खेती। यह सब सांसारिक जीवन की सामग्री है और अल्लाह के पास ही अच्छा ठिकाना है 3|15|कहो, "क्या मैं तुम्हें इनसे उत्तम चीज का पता दूँ?" जो लोग अल्लाह का डर रखेंगे उनके लिए उनके रब के पास बाग़ है, जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। वहाँ पाक-साफ़ जोड़े होंगे और अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त होगी। और अल्लाह अपने बन्दों पर नज़र रखता है 3|16|ये वे लोग है जो कहते है, "हमारे रब हम ईमान लाए है। अतः हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमें आग (जहन्नम) की यातना से बचा ले।" 3|17|ये लोग धैर्य से काम लेनेवाले, सत्यवान और अत्यन्त आज्ञाकारी है, ये ((अल्लाह के मार्ग में) खर्च करते और रात की अंतिम घड़ियों में क्षमा की प्रार्थनाएँ करते हैं 3|18|अल्लाह ने गवाही दी कि उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; और फ़रिश्तों ने और उन लोगों ने भी जो न्याय और संतुलन स्थापित करनेवाली एक सत्ता को जानते है। उस प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी के सिवा कोई पूज्य नहीं 3|19|दीन (धर्म) तो अल्लाह की स्पष्ट में इस्लाम ही है। जिन्हें किताब दी गई थी, उन्होंने तो इसमें इसके पश्चात विभेद किया कि ज्ञान उनके पास आ चुका था। ऐसा उन्होंने परस्पर दुराग्रह के कारण किया। जो अल्लाह की आयतों का इनकार करेगा तो अल्लाह भी जल्द हिसाब लेनेवाला है 3|20|अब यदि वे तुमसे झगड़े तो कह दो, "मैंने और मेरे अनुयायियों ने तो अपने आपको अल्लाह के हवाले कर दिया हैं।" और जिन्हें किताब मिली थी और जिनके पास किताब नहीं है, उनसे कहो, "क्या तुम भी इस्लाम को अपनाते हो?" यदि वे इस्लाम को अंगीकार कर लें तो सीधा मार्ग पर गए। और यदि मुँह मोड़े तो तुमपर केवल (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है। और अल्लाह स्वयं बन्दों को देख रहा है 3|21|जो लोग अल्लाह की आयतों का इनकार करें और नबियों को नाहक क़त्ल करे और उन लोगों का क़ल्त करें जो न्याय के पालन करने को कहें, उनको दुखद यातना की मंगल सूचना दे दो 3|22|यही लोग हैं, जिनके कर्म दुनिया और आख़िरत में अकारथ गए और उनका सहायक कोई भी नहीं 3|23|क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्हें ईश-ग्रंथ का एक हिस्सा प्रदान हुआ। उन्हें अल्लाह की किताब की ओर बुलाया जाता है कि वह उनके बीच निर्णय करे, फिर भी उनका एक गिरोह (उसकी) उपेक्षा करते हुए मुँह फेर लेता है? 3|24|यह इसलिए कि वे कहते, "आग हमें नहीं छू सकती। हाँ, कुछ गिने-चुने दिनों (के कष्टों) की बात और है।" उनकी मनघड़ंत बातों ने, जो वे घड़ते रहे हैं, उन्हें धोखे में डाल रखा है 3|25|फिर क्या हाल होगा, जब हम उन्हें उस दिन इकट्ठा करेंगे, जिसके आने में कोई संदेह नहीं और प्रत्येक व्यक्ति को, जो कुछ उसने कमाया होगा, पूरा-पूरा मिल जाएगा; और उनके साथ अन्याय न होगा 3|26|कहो, "ऐ अल्लाह, राज्य के स्वामी! तू जिसे चाहे राज्य दे और जिससे चाहे राज्य छीन ले, और जिसे चाहे इज़्ज़त (प्रभुत्व) प्रदान करे और जिसको चाहे अपमानित कर दे। तेरे ही हाथ में भलाई है। निस्संदेह तुझे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 3|27|"तू रात को दिन में पिरोता है और दिन को रात में पिरोता है। तू निर्जीव से सजीव को निकालता है और सजीव से निर्जीव को निकालता है, बेहिसाब देता है।" 3|28|ईमानवालों को चाहिए कि वे ईमानवालों से हटकर इनकारवालों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाएँ, और जो ऐसा करेगा, उसका अल्लाह से कोई सम्बन्ध नहीं, क्योंकि उससे सम्बद्ध यही बात है कि तुम उनसे बचो, जिस प्रकार वे तुमसे बचते है। और अल्लाह तुम्हें अपने आपसे डराता है, और अल्लाह ही की ओर लौटना है 3|29|कह दो, "यदि तुम अपने दिलों की बात छिपाओ या उसे प्रकट करो, प्रत्येक दशा में अल्लाह उसे जान लेगा। और वह उसे भी जानता है, जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" 3|30|जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी की हुई भलाई और अपनी की हुई बुराई को सामने मौजूद पाएगा, वह कामना करेगा कि काश! उसके और उस दिन के बीच बहुत दूर का फ़ासला होता। और अल्लाह तुम्हें अपना भय दिलाता है, और वह अपने बन्दों के लिए अत्यन्त करुणामय है 3|31|कह दो, "यदि तुम अल्लाह से प्रेम करते हो तो मेरा अनुसरण करो, अल्लाह भी तुमसे प्रेम करेगा और तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर देगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।" 3|32|कह दो, "अल्लाह और रसूल का आज्ञापालन करो।" फिर यदि वे मुँह मोड़े तो अल्लाह भी इनकार करनेवालों से प्रेम नहीं करता 3|33|अल्लाह ने आदम, नूह, इबराहीम की सन्तान और इमरान की सन्तान को सारे संसार की अपेक्षा प्राथमिकता देकर चुना 3|34|एक नस्त के रूप में, उसमें से एक पीढ़ी, दूसरी पीढ़ी से पैदा हुई। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है 3|35|याद करो जब इमरान की स्त्री ने कहा, "मेरे रब! जो बच्चा मेरे पेट में है उसे मैंने हर चीज़ से छुड़ाकर भेट स्वरूप तुझे अर्पित किया। अतः तू उसे मेरी ओर से स्वीकार कर। निस्संदेह तू सब कुछ सुनता, जानता है।" 3|36|फिर जब उसके यहाँ बच्ची पैदा हुई तो उसने कहा, "मेरे रब! मेरे यहाँ तो लड़की पैदा हुई है।" - अल्लाह तो जानता ही था जो कुछ उसके यहाँ पैदा हुआ था। और वह लड़का उस लडकी की तरह नहीं हो सकता - "और मैंने उसका नाम मरयम रखा है और मैं उसे और उसकी सन्तान को तिरस्कृत शैतान (के उपद्रव) से सुरक्षित रखने के लिए तेरी शरण में देती हूँ।" 3|37|अतः उसके रब ने उसका अच्छी स्वीकृति के साथ स्वागत किया और उत्तम रूप में उसे परवान चढ़ाया; और ज़करिया को उसका संरक्षक बनाया। जब कभी ज़करिया उसके पास मेहराब (इबादतगाह) में जाता, तो उसके पास कुछ रोज़ी पाता। उसने कहा, "ऐ मरयम! ये चीज़े तुझे कहाँ से मिलती है?" उसने कहा, "यह अल्लाह के पास से है।" निस्संदेह अल्लाह जिसे चाहता है, बेहिसाब देता है 3|38|वही ज़करिया ने अपने रब को पुकारा, कहा, "मेरे रब! मुझे तू अपने पास से अच्छी सन्तान (अनुयायी) प्रदान कर। तू ही प्रार्थना का सुननेवाला है।" 3|39|तो फ़रिश्तों ने उसे आवाज़ दी, जबकि वह मेहराब में खड़ा नमाज़ पढ़ रहा था, "अल्लाह, तुझे यह्याि की शुभ-सूचना देता है, जो अल्लाह के एक कलिमें की पुष्टि करनेवाला, सरदार, अत्यन्त संयमी और अच्छे लोगो में से एक नबी होगा।" 3|40|उसने कहा, "मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कैसे पैदा होगा, जबकि मुझे बुढापा आ गया है और मेरी पत्ऩी बाँझ है?" कहा, "इसी प्रकार अल्लाह जो चाहता है, करता है।" 3|41|उसने कहा, "मेरे रब! मेरे लिए कोई आदेश निश्चित कर दे।" कहा, "तुम्हारे लिए आदेश यह है कि तुम लोगों से तीन दिन तक संकेत के सिवा कोई बातचीत न करो। अपने रब को बहुत अधिक याद करो और सायंकाल और प्रातः समय उसकी तसबीह (महिमागान) करते रहो।" 3|42|और जब फ़रिश्तों ने कहा, "ऐ मरयम! अल्लाह ने तुझे चुन लिया और तुझे पवित्रता प्रदान की और तुझे संसार की स्त्रियों के मुक़ाबले मं चुन लिया 3|43|"ऐ मरयम! पूरी निष्ठा के साथ अपने रब की आज्ञा का पालन करती रह, और सजदा कर और झुकनेवालों के साथ तू भी झूकती रह।" 3|44|यह परोक्ष की सूचनाओं में से है, जिसकी वह्य हम तुम्हारी ओर कर रहे है। तुम तो उस समय उनके पास नहीं थे, जब वे अपनी क़लमों को फेंक रहे थ कि उनमें कौन मरयम का संरक्षक बने और न उनके समय थे, जब वे आपस में झगड़ रहे थे 3|45|ओर याद करो जब फ़रिश्तों ने कहा, "ऐ मरयम! अल्लाह तुझे अपने एक कलिमे (बात) की शुभ-सूचना देता है, जिसका नाम मसीह, मरयम का बेटा, ईसा होगा। वह दुनिया और आख़िरत मे आबरूवाला होगा और अल्लाह के निकटवर्ती लोगों में से होगा 3|46|वह लोगों से पालने में भी बात करेगा और बड़ी आयु को पहुँचकर भी। और वह नेक व्यक्ति होगा। - 3|47|वह बोली, "मेरे रब! मेरे यहाँ लड़का कहाँ से होगा, जबकि मुझे किसी आदमी ने छुआ तक नहीं?" कहा, "ऐसा ही होगा, अल्लाह जो चाहता है, पैदा करता है। जब वह किसी कार्य का निर्णय करता है तो उसको बस यही कहता है 'हो जा' तो वह हो जाता है 3|48|"और उसको किताब, हिकमत, तौरात और इंजील का भी ज्ञान देगा 3|49|"और उसे इसराईल की संतान की ओर रसूल बनाकर भेजेगा। (वह कहेगा) कि मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशाली लेकर आया हूँ कि मैं तुम्हारे लिए मिट्टी से पक्षी के रूप जैसी आकृति बनाता हूँ, फिर उसमें फूँक मारता हूँ, तो वह अल्लाह के आदेश से उड़ने लगती है। और मैं अल्लाह के आदेश से अंधे और कोढ़ी को अच्छा कर देता हूँ और मुर्दे को जीवित कर देता हूँ। और मैं तुम्हें बता देता हूँ जो कुछ तुम खाते हो और जो कुछ अपने घरों में इकट्ठा करके रखते हो। निस्संदेह इसमें तुम्हारे लिए एक निशानी है, यदि तुम माननेवाले हो 3|50|"और मैं तौरात की, जो मेरे आगे है, पुष्टि करता हूँ और इसलिए आया हूँ कि तुम्हारे लिए कुछ उन चीज़ों को हलाल कर दूँ जो तुम्हारे लिए हराम थी। और मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक निशानी लेकर आया हूँ। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरी आज्ञा का पालन करो 3|51|"निस्संदेह अल्लाह मेरी भी रब है और तुम्हारा रब भी, अतः तुम उसी की बन्दगी करो। यही सीधा मार्ग है।" 3|52|फिर जब ईसा को उनके अविश्वास और इनकार का आभास हुआ तो उसने कहा, "कौन अल्लाह की ओर बढ़ने में मेरा सहायक होता है?" हवारियों (साथियों) ने कहा, "हम अल्लाह के सहायक हैं। हम अल्लाह पर ईमान लाए और गवाह रहिए कि हम मुस्लिम है 3|53|"हमारे रब! तूने जो कुछ उतारा है, हम उसपर ईमान लाए और इस रसूल का अनुसरण स्वीकार किया। अतः तू हमें गवाही देनेवालों में लिख ले।" 3|54|और वे चाल चले तो अल्लाह ने भी उसका तोड़ किया और अल्लाह उत्तम तोड़ करनेवाला है 3|55|जब अल्लाह ने कहा, "ऐ ईसा! मैं तुझे अपने क़ब्जे में ले लूँगा और तुझे अपनी ओर उठा लूँगा और अविश्वासियों (की कुचेष्टाओं) से तुझे पाक कर दूँगा और तेरे अनुयायियों को क़ियामत के दिन तक लोगों के ऊपर रखूँगा, जिन्होंने इनकार किया। फिर मेरी ओर तुम्हें लौटना है। फिर मैं तुम्हारे बीच उन चीज़ों का फ़ैसला कर दूँगा, जिनके विषय में तुम विभेद करते रहे हो 3|56|"तो जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, उन्हें दुनिया और आख़िरत में कड़ी यातना दूँगा। उनका कोई सहायक न होगा।" 3|57|रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें वह उनका पूरा-पूरा बदला देगा। अल्लाह अत्याचारियों से प्रेम नहीं करता 3|58|ये आयतें है और हिकमत (तत्वज्ञान) से परिपूर्ण अनुस्मारक, जो हम तुम्हें सुना रहे हैं 3|59|निस्संदेह अल्लाह की दृष्टि में ईसा की मिसाल आदम जैसी है कि उसे मिट्टी से बनाया, फिर उससे कहा, "हो जा", तो वह हो जाता है 3|60|यह हक़ तुम्हारे रब की ओर से हैं, तो तुम संदेह में न पड़ना 3|61|अब इसके पश्चात कि तुम्हारे पास ज्ञान आ चुका है, कोई तुमसे इस विषय में कुतर्क करे तो कह दो, "आओ, हम अपने बेटों को बुला लें और तुम भी अपने बेटों को बुला लो, और हम अपनी स्त्रियों को बुला लें और तुम भी अपनी स्त्रियों को बुला लो, और हम अपने को और तुम अपने को ले आओ, फिर मिलकर प्रार्थना करें और झूठों पर अल्लाह की लानत भेजे।" 3|62|निस्संदेह यही सच्चा बयान है और अल्लाह के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। और अल्लाह ही प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 3|63|फिर यदि वे लोग मुँह मोड़े तो अल्लाह फ़सादियों को भली-भाँति जानता है 3|64|कहो, "ऐ किताबवालो! आओ एक ऐसी बात की ओर जिसे हमारे और तुम्हारे बीच समान मान्यता प्राप्त है; यह कि हम अल्लाह के अतिरिक्त किसी की बन्दगी न करें और न उसके साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ और न परस्पर हममें से कोई एक-दूसरे को अल्लाह से हटकर रब बनाए।" फिर यदि वे मुँह मोड़े तो कह दो, "गवाह रहो, हम तो मुस्लिम (आज्ञाकारी) है।" 3|65|"ऐ किताबवालो! तुम इबराहीम के विषय में हमसे क्यों झगड़ते हो? जबकि तौरात और इंजील तो उसके पश्चात उतारी गई है, तो क्या तुम समझ से काम नहीं लेते? 3|66|"ये तुम लोग हो कि उसके विषय में वाद-विवाद कर चुके जिसका तुम्हें कुछ ज्ञान था। अब उसके विषय में क्यों वाद-विवाद करते हो, जिसके विषय में तुम्हें कुछ भी ज्ञान नहीं? अल्लाह जानता है, तुम नहीं जानते" 3|67|इबराहीम न यहूदी था और न ईसाई, बल्कि वह तो एक ओर को होकर रहनेवाला मुस्लिम (आज्ञाकारी) था। वह कदापि मुशरिकों में से न था 3|68|निस्संदेह इबराहीम से सबसे अधिक निकटता का सम्बन्ध रखनेवाले वे लोग है जिन्होंने उसका अनुसरण किया, और यह नबी और ईमानवाले लोग। और अल्लाह ईमानवालों को समर्थक एवं सहायक है 3|69|किताबवालों में से एक गिरोह के लोगों की कामना है कि काश! वे तुम्हें पथभ्रष्ट कर सकें, जबकि वे केवल अपने-आपकों पथभ्रष्ट कर रहे है! किन्तु उन्हें इसका एहसास नहीं 3|70|ऐ किताबवालों! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि तुम स्वयं गवाह हो? 3|71|ऐ किताबवालो! सत्य को असत्य के साथ क्यों गड्ड-मड्ड करते और जानते-बूझते हुए सत्य को छिपाते हो? 3|72|किताबवालों में से एक गिरोह कहता है, "ईमानवालो पर जो कुछ उतरा है, उस पर प्रातःकाल ईमान लाओ और संध्या समय उसका इनकार कर दो, ताकि वे फिर जाएँ 3|73|"और तुम अपने धर्म के अनुयायियों के अतिरिक्त किसी पर विश्वास न करो। कह दो, वास्तविक मार्गदर्शन तो अल्लाह का मार्गदर्शन है - कि कहीं जो चीज़ तुम्हें प्राप्त हो जाए, या वे तुम्हारे रब के सामने तुम्हारे ख़िलाफ़ हुज्जत कर सकें।" कह दो, "बढ़-चढ़कर प्रदान करना तो अल्लाह के हाथ में है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। और अल्लाह बड़ी समाईवाला, सब कुछ जाननेवाला है 3|74|"वह जिसे चाहता है अपनी रहमत (दयालुता) के लिए ख़ास कर लेता है। और अल्लाह बड़ी उदारता दर्शानेवाला है।" 3|75|और किताबवालों में कोई तो ऐसा है कि यदि तुम उसके पास धन-दौलच का एक ढेर भी अमानत रख दो तो वह उसे तुम्हें लौटा देगा। और उनमें कोई ऐसा है कि यदि तुम एक दीनार भी उसकी अमानत में रखों, तो जब तक कि तुम उसके सिर पर सवार न हो, वह उसे तुम्हें अदा नहीं करेगा। यह इसलिए कि वे कहते है, "उन लोगों के विषय में जो किताबवाले नहीं हैं हमारी कोई पकड़ नहीं।" और वे जानते-बूझते अल्लाह पर झूठ मढ़ते है 3|76|क्यों नहीं, जो कोई अपनी प्रतिज्ञा पूरी करेगा और डर रखेगा, तो अल्लाह भी डर रखनेवालों से प्रेम करता है 3|77|रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा और अपनी क़समों का थोड़े मूल्य पर सौदा करते हैं, उनका आख़िरत में कोई हिस्सा नहीं। अल्लाह न तो उनसे बात करेगा और न क़ियामत के दिन उनकी ओर देखेगा, और न ही उन्हें निखारेगा। उनके लिए तो दुखद यातना है 3|78|उनमें कुछ लोग ऐसे है जो किताब पढ़ते हुए अपनी ज़बानों का इस प्रकार उलट-फेर करते है कि तुम समझों कि वह किताब ही में से है, जबकि वह किताब में से नहीं होता। और वे कहते है, "यह अल्लाह की ओर से है।" जबकि वह अल्लाह की ओर से नहीं होता। और वे जानते-बूझते झूठ गढ़कर अल्लाह पर थोपते है 3|79|किसी मनुष्य के लिए यह सम्भव न था कि अल्लाह उसे किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) और पैग़म्बरी प्रदान करे और वह लोगों से कहने लगे, "तुम अल्लाह को छोड़कर मेरे उपासक बनो।" बल्कि वह तो यही कहेगा कि, "तुम रबवाले बनो, इसलिए कि तुम किताब की शिक्षा देते हो और इसलिए कि तुम स्वयं भी पढ़ते हो।" 3|80|और न वह तुम्हें इस बात का हुक्म देगा कि तुम फ़रिश्तों और नबियों को अपना रब बना लो। क्या वह तुम्हें अधर्म का हुक्म देगा, जबकि तुम (उसके) आज्ञाकारी हो? 3|81|और याद करो जब अल्लाह ने नबियों के सम्बन्ध में वचन लिया था, "मैंने तुम्हें जो कुछ किताब और हिकमत प्रदान की, इसके पश्चात तुम्हारे पास कोई रसूल उसकी पुष्टि करता हुआ आए जो तुम्हारे पास मौजूद है, तो तुम अवश्य उस पर ईमान लाओगे और निश्चय ही उसकी सहायता करोगे।" कहा, "क्या तुमने इक़रार किया? और इसपर मेरी ओर से डाली हुई जिम्मेदारी को बोझ उठाया?" उन्होंने कहा, "हमने इक़रार किया।" कहा, "अच्छा तो गवाह किया और मैं भी तुम्हारे साथ गवाह हूँ।" 3|82|फिर इसके बाद जो फिर गए, तो ऐसे ही लोग अवज्ञाकारी है 3|83|अब क्या इन लोगों को अल्लाह के दीन (धर्म) के सिवा किसी और दीन की तलब है, हालाँकि आकाशों और धरती में जो कोई भी है, स्वेच्छापूर्वक या विवश होकर उसी के आगे झुका हुआ है। और उसी की ओर सबको लौटना है? 3|84|कहो, "हम तो अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान लाए जो हम पर उतरी है, और जो इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़ और याकूब़ और उनकी सन्तान पर उतरी उसपर भी, और जो मूसा और ईसा और दूसरे नबियो को उनके रब की ओर से प्रदान हुई (उसपर भी हम ईमान रखते है) । हम उनमें से किसी को उस ओर से प्रदान हुई (उसपर भी हम ईमान रखते है) । हम उनमें से किसी को उस सम्बन्ध से अलग नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, और हम उसी के आज्ञाकारी (मुस्लिम) है।" 3|85|जो इस्लाम के अतिरिक्त कोई और दीन (धर्म) तलब करेगा तो उसकी ओर से कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। और आख़िरत में वह घाटा उठानेवालों में से होगा 3|86|अल्लाह उन लोगों को कैसे मार्ग दिखाएगा, जिन्होंने अपने ईमान के पश्चात अधर्म और इनकार की नीति अपनाई, जबकि वे स्वयं इस बात की गवाही दे चुके हैं कि यह रसूल सच्चा है और उनके पास स्पष्ट निशानियाँ भी आ चुकी हैं? अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाया करता 3|87|उन लोगों का बदला यही है कि उनपर अल्लाह और फ़रिश्तों और सारे मनुष्यों की लानत है 3|88|इसी दशा में वे सदैव रहेंगे, न उनकी यातना हल्की होगी और न उन्हें मुहलत ही दी जाएगी 3|89|हाँ, जिन लोगों ने इसके पश्चात तौबा कर ली और अपनी नीति को सुधार लिया तो निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 3|90|रहे वे लोग जिन्होंने अपने ईमान के पश्चात इनकार किया और अपने इनकार में बढ़ते ही गए, उनकी तौबा कदापि स्वीकार न होगी। वास्तव में वही पथभ्रष्ट हैं 3|91|निस्संदेह जिन लोगों ने इनकार किया और इनकार ही की दशा में मरे, तो उनमें किसी से धरती के बराबर सोना भी, यदि उसने प्राण-मुक्ति के लिए दिया हो, कदापि स्वीकार नहीं किया जाएगा। ऐसे लोगों के लिए दुखद यातना है और उनका कोई सहायक न होगा 3|92|तुम नेकी और वफ़ादारी के दर्जे को नहीं पहुँच सकते, जब तक कि उन चीज़ो को (अल्लाह के मार्ग में) ख़र्च न करो, जो तुम्हें प्रिय है। और जो चीज़ भी तुम ख़र्च करोगे, निश्चय ही अल्लाह को उसका ज्ञान होगा 3|93|खाने की सारी चीज़े इसराईल की संतान के लिए हलाल थी, सिवाय उन चीज़ों के जिन्हें तौरात के उतरने से पहले इसराईल ने स्वयं अपने हराम कर लिया था। कहो, "यदि तुम सच्चे हो तो तौरात लाओ और उसे पढ़ो।" 3|94|अब इसके पश्चात भी जो व्यक्ति झूठी बातें अल्लाह से जोड़े, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी है 3|95|कहो, "अल्लाह ने सच कहा है; अतः इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करो, जो हर ओर से कटकर एक का हो गया था और मुशरिकों में से न था 3|96|"निस्ंसदेह इबादत के लिए पहला घर जो 'मानव के लिए' बनाया गया वहीं है जो मक्का में है, बरकतवाला और सर्वथा मार्गदर्शन, संसारवालों के लिए 3|97|"उसमें स्पष्ट निशानियाँ है, वह इबराहीम का स्थल है। और जिसने उसमें प्रवेश किया, वह निश्चिन्त हो गया। लोगों पर अल्लाह का हक़ है कि जिसको वहाँ तक पहुँचने की सामर्थ्य प्राप्त हो, वह इस घर का हज करे, और जिसने इनकार किया तो (इस इनकार से अल्लाह का कुछ नहीं बिगड़ता) अल्लाह तो सारे संसार से निरपेक्ष है।" 3|98|कहो, "ऐ किताबवालों! तुम अल्लाह की आयतों का इनकार क्यों करते हो, जबकि जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह की दृष्टिअ में है?" 3|99|कहो, "ऐ किताबवालो! तुम ईमान लानेवालों को अल्लाह के मार्ग से क्यो रोकते हो, तुम्हें उसमें किसी टेढ़ की तलाश रहती है, जबकि तुम भली-भाँति वास्तविकता से अवगत हो और जो कुछ तुम कर रहे हो, अल्लाह उससे बेख़बर नहीं है।" 3|100|ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुमने उनके किसी गिरोह की बात माल ली, जिन्हें किताब मिली थी, तो वे तुम्हारे ईमान लाने के पश्चात फिर तुम्हें अधर्मी बना देंगे 3|101|अब तुम इनकार कैसे कर सकते हो, जबकि तुम्हें अल्लाह की आयतें पढ़कर सुनाई जा रही है और उसका रसूल तुम्हारे बीच मौजूद है? जो कोई अल्लाह को मज़बूती से पकड़ ले, वह सीधे मार्ग पर आ गया 3|102|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो, जैसाकि उसका डर रखने का हक़ है। और तुम्हारी मृत्यु बस इस दशा में आए कि तुम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो 3|103|और सब मिलकर अल्लाह की रस्सी को मज़बूती से पकड़ लो और विभेद में न पड़ो। और अल्लाह की उस कृपा को याद करो जो तुमपर हुई। जब तुम आपस में एक-दूसरे के शत्रु थे तो उसने तुम्हारे दिलों को परस्पर जोड़ दिया और तुम उसकी कृपा से भाई-भाई बन गए। तुम आग के एक गड्ढे के किनारे खड़े थे, तो अल्लाह ने उससे तुम्हें बचा लिया। इस प्रकार अल्लाह तुम्हारे लिए अपनी आयते खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम मार्ग पा लो 3|104|और तुम्हें एक ऐसे समुदाय का रूप धारण कर लेना चाहिए जो नेकी की ओर बुलाए और भलाई का आदेश दे और बुराई से रोके। यही सफलता प्राप्त करनेवाले लोग है 3|105|तुम उन लोगों की तरह न हो जाना जो विभेद में पड़ गए, और इसके पश्चात कि उनके पास खुली निशानियाँ आ चुकी थी, वे विभेद में पड़ गए। ये वही लोग है, जिनके लिए बड़ी (घोर) यातना है। (यह यातना उस दिन होगी) 3|106|जिस दिन कितने ही चेहरे उज्ज्वल होंगे और कितने ही चेहरे काले पड़ जाएँगे, तो जिनके चेहेर काले पड़ गए होंगे (वे सदा यातना में ग्रस्त रहेंगे। खुली निशानियाँ आने का बाद जिन्होंने विभेद किया) उनसे कहा जाएगा, "क्या तुमने ईमान के पश्चात इनकार की नीति अपनाई? तो लो अब उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो, यातना का मज़ा चखो।" 3|107|रहे वे लोग जिनके चेहरे उज्ज्वल होंगे, वे अल्लाह की दयालुता की छाया में होंगे। वे उसी में सदैव रहेंगे 3|108|ये अल्लाह की आयतें है, जिन्हें हम हक़ के साथ तुम्हें सुना रहे है। अल्लाह संसारवालों पर किसी प्रकार का अत्याचार नहीं करना चाहता 3|109|आकाशों और धरती मे जो कुछ है अल्लाह ही का है, और सारे मामले अल्लाह ही की ओर लौटाए जाते है 3|110|तुम एक उत्तम समुदाय हो, जो लोगों के समक्ष लाया गया है। तुम नेकी का हुक्म देते हो और बुराई से रोकते हो और अल्लाह पर ईमान रखते हो। और यदि किताबवाले भी ईमान लाते तो उनके लिए यह अच्छा होता। उनमें ईमानवाले भी हैं, किन्तु उनमें अधिकतर लोग अवज्ञाकारी ही हैं 3|111|थोड़ा दुख पहुँचाने के अतिरिक्त वे तुम्हारा कुछ भी बिगाड़ नहीं सकते। और यदि वे तुमसे लड़ेंगे, तो तुम्हें पीठ दिखा जाएँगे, फिर उन्हें कोई सहायता भी न मिलेगी 3|112|वे जहाँ कहीं भी पाए गए उनपर ज़िल्लत (अपमान) थोप दी गई। किन्तु अल्लाह की रस्सी थामें या लोगों का रस्सी, तो और बात है। वे ल्लाह के प्रकोप के पात्र हुए और उनपर दशाहीनता थोप दी गई। यह इसलिए कि वे अल्लाह की आयतों का इनकार और नबियों को नाहक़ क़त्ल करते रहे है। और यह इसलिए कि उन्होंने अवज्ञा की और सीमोल्लंघन करते रहे 3|113|ये सब एक जैसे नहीं है। किताबवालों में से कुछ ऐसे लोग भी है जो सीधे मार्ग पर है और रात की घड़ियों में अल्लाह की आयतें पढ़ते है और वे सजदा करते रहनेवाले है 3|114|वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते है और नेकी का हुक्म देते और बुराई से रोकते है और नेक कामों में अग्रसर रहते है, और वे अच्छे लोगों में से है 3|115|जो नेकी भी वे करेंगे, उसकी अवमानना न होगी। अल्लाह का डर रखनेवालो से भली-भाँति परिचित है 3|116|रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया, तो अल्लाह के मुक़ाबले में न उनके माल कुछ काम आ सकेंगे और न उनकी सन्तान ही। वे तो आग में जानेवाले लोग है, उसी में वे सदैव रहेंगे 3|117|इस सांसारिक जीवन के लिए जो कुछ भी वे ख़र्च करते है, उसकी मिसाल उस वायु जैसी है जिसमें पाला हो और वह उन लोगों की खेती पर चल जाए, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार नहीं किया, अपितु वे तो स्वयं अपने ऊपर अत्याचार कर रहे है 3|118|ऐ ईमान लानेवालो! अपनों को छोड़कर दूसरों को अपना अंतरंग मित्र न बनाओ, वे तुम्हें नुक़सान पहुँचाने में कोई कमी नहीं करते। जितनी भी तुम कठिनाई में पड़ो, वही उनको प्रिय है। उनका द्वेष तो उनके मुँह से व्यक्त हो चुका है और जो कुछ उनके सीने छिपाए हुए है, वह तो इससे भी बढ़कर है। यदि तुम बुद्धि से काम लो, तो हमने तुम्हारे लिए निशानियाँ खोलकर बयान कर दी हैं 3|119|ये चो तुम हो जो उनसे प्रेम करते हो और वे तुमसे प्रेम नहीं करते, जबकि तुम समस्त किताबों पर ईमान रखते हो। और वे जब तुमसे मिलते है तो कहने को तो कहते है कि "हम ईमान लाए है।" किन्तु जब वे अलग होते है तो तुमपर क्रोध के मारे दाँतों से उँगलियाँ काटने लगते है। कह दो, "तुम अपने क्रोध में आप मरो। निस्संदेह अल्लाह दिलों के भेद को जानता है।" 3|120|यदि तुम्हारा कोई भला होता है तो उन्हें बुरा लगता है। परन्तु यदि तुम्हें कोई अप्रिय बात पेश आती है तो उससे वे प्रसन्न हो जाते है। यदि तुमने धैर्य से काम लिया और (अल्लाह का) डर रखा, तो उनकी कोई चाल तुम्हें नुक़सान नहीं पहुँचा सकती। जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह ने उसे अपने धेरे में ले रखा है 3|121|याद करो जब तुम सवेरे अपने घर से निकलकर ईमानवालों को युद्ध के मोर्चों पर लगा रहे थे। - अल्लाह तो सब कुछ सुनता, जानता है 3|122|जब तुम्हारे दो गिरोहों ने साहस छोड़ देना चाहा, जबकि अल्लाह उनका संरक्षक मौजूद था - और ईमानवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए 3|123|और बद्र में अल्लाह तुम्हारी सहायता कर भी चुका था, जबकि तुम बहुत कमज़ोर हालत में थे। अतः अल्लाह ही का डर रखो, ताकि तुम कृतज्ञ बनो 3|124|जब तुम ईमानवालों से कह रहे थे, "क्या यह तुम्हारे लिए काफ़ी नही हैं कि तुम्हारा रब तीन हज़ार फ़रिश्ते उतारकर तुम्हारी सहायता करे?" 3|125|हाँ, क्यों नहीं। यदि तुम धैर्य से काम लो और डर रखो, फिर शत्रु सहसा तुमपर चढ़ आएँ, उसी क्षण तुम्हारा रब पाँच हज़ार विध्वंशकारी फ़रिश्तों से तुम्हारी सहायता करेगा 3|126|अल्लाह ने तो इसे तुम्हारे लिए बस एक शुभ-सूचना बनाया और इसलिए कि तुम्हारे दिल सन्तुष्ट हो जाएँ - सहायता तो बस अल्लाह ही के यहाँ से आती है जो अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 3|127|ताकि इनकार करनेवालों के एक हिस्से को काट डाले या उन्हें बुरी पराजित और अपमानित कर दे कि वे असफल होकर लौटें 3|128|तुम्हें इस मामले में कोई अधिकार नहीं - चाहे वह उसकी तौबा क़बूल करे या उन्हें यातना दे, क्योंकि वे अत्याचारी है 3|129|आकाशों और धरती में जो कुछ भी है, अल्लाह ही का है। वह जिसे चाहे क्षमा कर दे और जिसे चाहे यातना दे। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 3|130|ऐ ईमान लानेवालो! बढ़ोत्तरी के ध्येय से ब्याज न खाओ, जो कई गुना अधिक हो सकता है। और अल्लाह का डर रखो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो 3|131|और उस आग से बचो जो इनकार करनेवालों के लिए तैयार है 3|132|और अल्लाह और रसूल के आज्ञाकारी बनो, ताकि तुमपर दया की जाए 3|133|और अपने रब की क्षमा और उस जन्नत की ओर बढ़ो, जिसका विस्तार आकाशों और धरती जैसा है। वह उन लोगों के लिए तैयार है जो डर रखते है 3|134|वे लोग जो ख़ुशहाली और तंगी की प्रत्येक अवस्था में ख़र्च करते रहते है और क्रोध को रोकते है और लोगों को क्षमा करते है - और अल्लाह को भी ऐसे लोग प्रिय है, जो अच्छे से अच्छा कर्म करते है 3|135|और जिनका हाल यह है कि जब वे कोई खुला गुनाह कर बैठते है या अपने आप पर ज़ुल्म करते है तौ तत्काल अल्लाह उन्हें याद आ जाता है और वे अपने गुनाहों की क्षमा चाहने लगते हैं - और अल्लाह के अतिरिक्त कौन है, जो गुनाहों को क्षमा कर सके? और जानते-बूझते वे अपने किए पर अड़े नहीं रहते 3|136|उनका बदला उनके रब की ओर से क्षमादान है और ऐसे बाग़ है जिनके नीचे नहरें बहती होंगी। उनमें वे सदैव रहेंगे। और क्या ही अच्छा बदला है अच्छे कर्म करनेवालों का 3|137|तुमसे पहले (धर्मविरोधियों के साथ अल्लाह की) रीति के कितने ही नमूने गुज़र चुके है, तो तुम धरती में चल-फिरकर देखो कि झुठलानेवालों का परिणाम हुआ है 3|138|यह लोगों के लिए स्पष्ट बयान और डर रखनेवालों के लिए मार्गदर्शन और उपदेश है 3|139|हताश न हो और दुखी न हो, यदि तुम ईमानवाले हो, तो तुम्हीं प्रभावी रहोगे 3|140|यदि तुम्हें आघात पहुँचे तो उन लोगों को भी ऐसा ही आघात पहुँच चुका है। ये युद्ध के दिन हैं, जिन्हें हम लोगों के बीच डालते ही रहते है और ऐसा इसलिए हुआ कि अल्लाह ईमानवालों को जान ले और तुममें से कुछ लोगों को गवाह बनाए - और अत्याचारी अल्लाह को प्रिय नहीं है 3|141|और ताकि अल्लाह ईमानवालों को निखार दे और इनकार करनेवालों को मिटा दे 3|142|क्या तुमने यह समझ रखा है कि जन्नत में यूँ ही प्रवेश करोगे, जबकि अल्लाह ने अभी उन्हें परखा ही नहीं जो तुममें जिहाद (सत्य-मार्ग में जानतोड़ कोशिश) करनेवाले है। - और दृढ़तापूर्वक जमें रहनेवाले है 3|143|और तुम तो मृत्यु की कामनाएँ कर रहे थे, जब तक कि वह तुम्हारे सामने नहीं आई थी। लो, अब तो वह तुम्हारे सामने आ गई और तुमने उसे अपनी आँखों से देख लिया 3|144|मुहम्मद तो बस एक रसूल है। उनसे पहले भी रसूल गुज़र चुके है। तो क्या यदि उनकी मृत्यु हो जाए या उनकी हत्या कर दी जाए तो तुम उल्टे पाँव फिर जाओगे? जो कोई उल्टे पाँव फिरेगा, वह अल्लाह का कुछ नहीं बिगाडेगा। और कृतज्ञ लोगों को अल्लाह बदला देगा 3|145|और अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई व्यक्ति मर नहीं सकता। हर व्यक्ति एक लिखित निश्चित समय का अनुपालन कर रहा है। और जो कोई दुनिया का बदला चाहेगा, उसे हम इस दुनिया में से देंगे, जो आख़िरत का बदला चाहेगा, उसे हम उसमें से देंगे और जो कृतज्ञता दिखलाएँगे, उन्हें तो हम बदला देंगे ही 3|146|कितने ही नबी ऐसे गुज़रे है जिनके साथ होकर बहुत-से ईशभक्तों ने युद्ध किया, तो अल्लाह के मार्ग में जो मुसीबत उन्हें पहुँची उससे वे न तो हताश हुए और न उन्होंने कमज़ोरी दिखाई और न ऐसा हुआ कि वे दबे हो। और अल्लाह दृढ़तापूर्वक जमे रहनेवालों से प्रेम करता है 3|147|उन्होंने कुछ नहीं कहा सिवाय इसके कि "ऐ हमारे रब! तू हमारे गुनाहों को और हमारे अपने मामले में जो ज़्यादती हमसे हो गई हो, उसे क्षमा कर दे और हमारे क़दम जमाए रख, और इनकार करनेवाले लोगों के मुक़ाबले में हमारी सहायता कर।" 3|148|अतः अल्लाह ने उन्हें दुनिया का भी बदला दिया और आख़िरत का अच्छा बदला भी। और सत्कर्मी लोगों से अल्लाह प्रेम करता है 3|149|ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुम उन लोगों के कहने पर चलोगे जिन्होंने इनकार का मार्ग अपनाया है, तो वे तुम्हें उल्टे पाँव फेर ले जाएँगे। फिर तुम घाटे में पड़ जाओगे 3|150|बल्कि अल्लाह ही तुम्हारा संरक्षक है; और वह सबसे अच्छा सहायक है 3|151|हम शीघ्र ही इनकार करनेवालों के दिलों में धाक बिठा देंगे, इसलिए कि उन्होंने ऐसी चीज़ो को अल्लाह का साक्षी ठहराया है जिनसे साथ उसने कोई सनद नहीं उतारी, और उनका ठिकाना आग (जहन्नम) है। और अत्याचारियों का क्या ही बुरा ठिकाना है 3|152|और अल्लाह ने तो तुम्हें अपना वादा सच्चा कर दिखाया, जबकि तुम उसकी अनुज्ञा से उन्हें क़त्ल कर रहे थे। यहाँ तक कि जब तुम स्वयं ढीले पड़ गए और काम में झगड़ा डाल दिया और अवज्ञा की, जबकि अल्लाह ने तुम्हें वह चीज़ दिखा दी थी जिसकी तुम्हें चाह थी। तुममें कुछ लोग दुनिया चाहते थे और कुछ आख़िरत के इच्छुक थे। फिर अल्लाह ने तुम्हें उनके मुक़ाबले से हटा दिया, ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले। फिर भी उसने तुम्हें क्षमा कर दिया, क्योंकि अल्लाह ईमानवालों के लिए बड़ा अनुग्राही है 3|153|जब तुम लोग दूर भागे चले जा रहे थे और किसी को मुड़कर देखते तक न थे और रसूल तुम्हें पुकार रहा था, जबकि वह तुम्हारी दूसरी टुकड़ी के साथ था (जो भागी नहीं), तो अल्लाह ने तुम्हें शोक पर शोक दिया, ताकि तुम्हारे हाथ से कोई चीज़ निकल जाए या तुमपर कोई मुसीबत आए तो तुम शोकाकुल न हो। और जो कुछ भी तुम करते हो, अल्लाह उसकी भली-भाँति ख़बर रखता है 3|154|फिर इस शोक के पश्चात उसने तुमपर एक शान्ति उतारी - एक निद्रा, जो तुममें से कुछ लोगों को घेर रही थी और कुछ लोग ऐसे भी थे जिन्हें अपने प्राणों की चिन्ता थी। वे अल्लाह के विषय में ऐसा ख़याल कर रहे थे, जो सत्य के सर्वथा प्रतिकूल, अज्ञान (काल) का ख़याल था। वे कहते थे, "इन मामलों में क्या हमारा भी कुछ अधिकार है?" कह दो, "मामले तो सबके सब अल्लाह के (हाथ में) हैं।" वे जो कुछ अपने दिलों में छिपाए रखते है, तुमपर ज़ाहिर नहीं करते। कहते है, "यदि इस मामले में हमारा भी कुछ अधिकार होता तो हम यहाँ मारे न जाते।" कह दो, "यदि तुम अपने घरों में भी होते, तो भी जिन लोगों का क़त्ल होना तय था, वे निकलकर अपने अन्तिम शयन-स्थलों कर पहुँचकर रहते।" और यह इसलिए भी था कि जो कुछ तुम्हारे सीनों में है, अल्लाह उसे परख ले और जो कुछ तुम्हारे दिलों में है उसे साफ़ कर दे। और अल्लाह दिलों का हाल भली-भाँति जानता है 3|155|तुममें से जो लोग दोनों गिरोहों की मुठभेड़ के दिन पीठ दिखा गए, उन्हें तो शैतान ही ने उनकी कुछ कमाई (कर्म) का कारण विचलित कर दिया था। और अल्लाह तो उन्हें क्षमा कर चुका है। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमा करनेवाला, सहनशील है 3|156|ऐ ईमान लानेवालो! उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने इनकार किया और अपने भाईयों के विषय में, जबकि वे सफ़र में गए हों या युद्ध में हो (और उनकी वहाँ मृत्यु हो जाए तो) कहते है, "यदि वे हमारे पास होते तो न मरते और न क़त्ल होते।" (ऐसी बातें तो इसलिए होती है) ताकि अल्लाह उनको उनके दिलों में घर करनेवाला पछतावा और सन्ताप बना दे। अल्लाह ही जीवन प्रदान करने और मृत्यु देनेवाला है। और तुम जो कुछ भी कर रहे हो वह अल्लाह की स्पष्ट में है 3|157|और यदि तुम अल्लाह के मार्ग में मारे गए या मर गए, तो अल्लाह का क्षमादान और उसकी दयालुता तो उससे कहीं उत्तम है, जिसके बटोरने में वे लगे हुए है 3|158|हाँ, यदि तुम मर गए या मारे गए, तो प्रत्येक दशा में तुम अल्लाह ही के पास इकट्ठा किए जाओगे 3|159|(तुमने तो अपनी दयालुता से उन्हें क्षमा कर दिया) तो अल्लाह की ओर से ही बड़ी दयालुता है जिसके कारण तुम उनके लिए नर्म रहे हो, यदि कहीं तुम स्वभाव के क्रूर और कठोर हृदय होते तो ये सब तुम्हारे पास से छँट जाते। अतः उन्हें क्षमा कर दो और उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो। और मामलों में उनसे परामर्श कर लिया करो। फिर जब तुम्हारे संकल्प किसी सम्मति पर सुदृढ़ हो जाएँ तो अल्लाह पर भरोसा करो। निस्संदेह अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उसपर भरोसा करते है 3|160|यदि अल्लाह तुम्हारी सहायता करे, तो कोई तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। और यदि वह तुम्हें छोड़ दे, तो फिर कौन हो जो उसके पश्चात तुम्हारी सहायता कर सके। अतः ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा रखना चाहिए 3|161|यह किसी नबी के लिए सम्भब नहीं कि वह दिल में कीना-कपट रखे, और जो कोई कीना-कपट रखेगा तो वह क़ियामत के दिन अपने द्वेष समेत हाज़िर होगा। और प्रत्येक व्यक्ति को उसकी कमाई का पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएँगा और उनपर कुछ भी ज़ुल्म न होगा 3|162|भला क्या जो व्यक्ति अल्लाह की इच्छा पर चले वह उस जैसा हो सकता है जो अल्लाह के प्रकोप का भागी हो चुका हो और जिसका ठिकाना जहन्नम है? और वह क्या ही बुरा ठिकाना है 3|163|अल्लाह के यहाँ उनके विभिन्न दर्जे है और जो कुछ वे कर रहे है, अल्लाह की स्पष्ट में है 3|164|निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों पर बड़ा उपकार किया, जबकि स्वयं उन्हीं में से एक ऐसा रसूल उठाया जो उन्हें आयतें सुनाता है और उन्हें निखारता है, और उन्हें किताब और हिक़मत (तत्वदर्शिता) का शिक्षा देता है, अन्यथा इससे पहले वे लोग खुली गुमराही में पड़े हुए थे 3|165|यह क्या कि जब तुम्हें एक मुसीबत पहुँची, जिसकी दोगुनी तुमने पहुँचाए, तो तुम कहने लगे कि, "यह कहाँ से आ गई?" कह दो, "यह तो तुम्हारी अपनी ओर से है, अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" 3|166|और दोनों गिरोह की मुठभेड़ के दिन जो कुछ तुम्हारे सामने आया वह अल्लाह ही की अनुज्ञा से आया और इसलिए कि वह जान ले कि ईमानवाले कौन है 3|167|और इसलिए कि वह कपटाचारियों को भी जान ले जिनसे कहा गया कि "आओ, अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो या दुश्मनों को हटाओ।" उन्होंने कहा, "यदि हम जानते कि लड़ाई होगी तो हम अवश्य तुम्हारे साथ हो लेते।" उस दिन वे ईमान की अपेक्षा अधर्म के अधिक निकट थे। वे अपने मुँह से वे बातें कहते है, जो उनके दिलों में नहीं होती। और जो कुछ वे छिपाते है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है 3|168|ये वही लोग है जो स्वयं तो बैठे रहे और अपने भाइयों के विषय में कहने लगे, "यदि वे हमारी बात मान लेते तो मारे न जाते।" कह तो, "अच्छा, यदि तुम सच्चे हो, तो अब तुम अपने ऊपर से मृत्यु को टाल देना।" 3|169|तुम उन लोगों को जो अल्लाह के मार्ग में मारे गए है, मुर्दा न समझो, बल्कि वे अपने रब के पास जीवित हैं, रोज़ी पा रहे हैं 3|170|अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से जो कुछ उन्हें प्रदान किया है, वे उसपर बहुत प्रसन्न है और उन लोगों के लिए भी ख़ुश हो रहे है जो उनके पीछे रह गए है, अभी उनसे मिले नहीं है कि उन्हें भी न कोई भय होगा और न वे दुखी होंगे 3|171|वे अल्लाह के अनुग्रह और उसकी उदार कृपा से प्रसन्न हो रहे है और इससे कि अल्लाह ईमानवालों का बदला नष्ट नहीं करता 3|172|जिन लोगों ने अल्लाह और रसूल की पुकार को स्वीकार किया, इसके पश्चात कि उन्हें आघात पहुँच चुका था। इन सत्कर्मी और (अल्लाह का) डर रखनेवालों के लिए बड़ा प्रतिदान है 3|173|ये वही लोग है जिनसे लोगों ने कहा, "तुम्हारे विरुद्ध लोग इकट्ठा हो गए है, अतः उनसे डरो।" तो इस चीज़ ने उनके ईमान को और बढ़ा दिया। और उन्होंने कहा, "हमारे लिए तो बस अल्लाह काफ़ी है और वही सबसे अच्छा कार्य-साधक है।" 3|174|तो वे अल्लाह को ओर से प्राप्त होनेवाली नेमत और उदार कृपा के साथ लौटे। उन्हें कोई तकलीफ़ छू भी नहीं सकी और वे अल्लाह की इच्छा पर चले भी, और अल्लाह बड़ी ही उदार कृपावाला है 3|175|वह तो शैतान है जो अपने मित्रों को डराता है। अतः तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझी से डरो, यदि तुम ईमानवाले हो 3|176|जो लोग अधर्म और इनकार में जल्दी दिखाते है, उनके कारण तुम दुखी न हो। वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। अल्लाह चाहता है कि उनके लिए आख़िरत में कोई हिस्सा न रखे, उनके लिए तो बड़ी यातना है 3|177|जो लोग ईमान की क़ीमत पर इनकार और अधर्म के ग्राहक हुए, वे अल्लाह का कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते, उनके लिए तो दुखद यातना है 3|178|और यह ढ़ील जो हम उन्हें दिए जाते है, इसे अधर्मी लोग अपने लिए अच्छा न समझे। यह ढील तो हम उन्हें सिर्फ़ इसलिए दे रहे है कि वे गुनाहों में और अधिक बढ़ जाएँ, और उनके लिए तो अत्यन्त अपमानजनक यातना है 3|179|अल्लाह ईमानवालों को इस दशा में नहीं रहने देगा, जिसमें तुम हो। यह तो उस समय तक की बात है जबतक कि वह अपवित्र को पवित्र से पृथक नहीं कर देता। और अल्लाह ऐसा नहीं है कि वह तुम्हें परोक्ष की सूचना दे दे। किन्तु अल्लाह इस काम के लिए जिसको चाहता है चुन लेता है, और वे उसके रसूल होते है। अतः अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान लाओ। और यदि तुम ईमान लाओगे और (अल्लाह का) डर रखोगे तो तुमको बड़ा प्रतिदान मिलेगा 3|180|जो लोग उस चीज़ में कृपणता से काम लेते है, जो अल्लाह ने अपनी उदार कृपा से उन्हें प्रदान की है, वे यह न समझे कि यह उनके हित में अच्छा है, बल्कि यह उनके लिए बुरा है। जिस चीज़ में उन्होंने कृपणता से काम लिया होगा, वही आगे कियामत के दिन उनके गले का तौक़ बन जाएगा। और ये आकाश और धरती अंत में अल्लाह ही के लिए रह जाएँगे। तुम जो कुछ भी करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है 3|181|अल्लाह उन लोगों की बात सुन चुका है जिनका कहना है कि "अल्लाह तो निर्धन है और हम धनवान है।" उनकी बात हम लिख लेंगे और नबियों को जो वे नाहक क़त्ल करते रहे है उसे भी। और हम कहेंगे, "लो, (अब) जलने की यातना का मज़ा चखो।" 3|182|यह उसका बदला है जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजा। अल्लाह अपने बन्दों पर तनिक भी ज़ुल्म नहीं करता 3|183|ये वही लोग है जिनका कहना है कि "अल्लाह ने हमें ताकीद की है कि हम किसी रसूल पर ईमान न लाएँ, जबतक कि वह हमारे सामने ऐसी क़ुरबानी न पेश करे जिसे आग खा जाए।" कहो, "तुम्हारे पास मुझसे पहले कितने ही रसूल खुली निशानियाँ लेकर आ चुके है, और वे वह चीज़ भी लाए थे जिसके लिए तुम कह रहे हो। फिर यदि तुम सच्चे हो तो तुमने उन्हें क़त्ल क्यों किया?" 3|184|फिर यदि वे तुम्हें झुठलाते ही रहें, तो तुमसे पहले भी कितने ही रसूल झुठलाए जा चुके है, जो खुली निशानियाँ, 'ज़बूरें' और प्रकाशमान किताब लेकर आए थे 3|185|प्रत्येक जीव मृत्यु का मज़ा चखनेवाला है, और तुम्हें तो क़ियामत के दिन पूरा-पूरा बदला दे दिया जाएगा। अतः जिसे आग (जहन्नम) से हटाकर जन्नत में दाख़िल कर दिया गया, वह सफल रहा। रहा सांसारिक जीवन, तो वह माया-सामग्री के सिवा कुछ भी नहीं 3|186|तुम्हारें माल और तुम्हारे प्राण में तुम्हारी परीक्षा होकर रहेगी और तुम्हें उन लोगों से जिन्हें तुमसे पहले किताब प्रदान की गई थी और उन लोगों से जिन्होंने 'शिर्क' किया, बहुत-सी कष्टप्रद बातें सुननी पड़ेगी। परन्तु यदि तुम जमें रहे और (अल्लाह का) डर रखा, तो यह उन कर्मों में से है जो आवश्यक ठहरा दिया गया है 3|187|याद करो जब अल्लाह ने उन लोगों से, जिन्हें किताब प्रदान की गई थी, वचन लिया था कि "उसे लोगों के सामने भली-भाँति स्पट् करोगे, उसे छिपाओगे नहीं।" किन्तु उन्होंने उसे पीठ पीछे डाल दिया और तुच्छ मूल्य पर उसका सौदा किया। कितना बुरा सौदा है जो ये कर रहे है 3|188|तुम उन्हें कदापि यह न समझना, जो अपने किए पर ख़ुश हो रहे है और जो काम उन्होंने नहीं किए, चाहते है कि उनपर भी उनकी प्रशंसा की जाए - तो तुम उन्हें यह न समझाना कि वे यातना से बच जाएँगे, उनके लिए तो दुखद यातना है 3|189|आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है, और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 3|190|निस्सदेह आकाशों और धरती की रचना में और रात और दिन के आगे पीछे बारी-बारी आने में उन बुद्धिमानों के लिए निशानियाँ है 3|191|जो खड़े, बैठे और अपने पहलुओं पर लेटे अल्लाह को याद करते है और आकाशों और धरती की रचना में सोच-विचार करते है। (वे पुकार उठते है,) "हमारे रब! तूने यह सब व्यर्थ नहीं बनाया है। महान है तू, अतः हमें आग की यातना से बचा ले 3|192|"हमारे रब, तूने जिसे आग में डाला, उसे रुसवा कर दिया। और ऐसे ज़ालिमों का कोई सहायक न होगा 3|193|"हमारे रब! हमने एक पुकारनेवाले को ईमान की ओर बुलाते सुना कि अपने रब पर ईमान लाओ। तो हम ईमान ले आए। हमारे रब! तो अब तू हमारे गुनाहों को क्षमा कर दे और हमारी बुराइयों को हमसे दूर कर दे और हमें नेक और वफ़़ादार लोगों के साथ (दुनिया से) उठा 3|194|"हमारे रब! जिस चीज़ का वादा तूने अपने रसूलों के द्वारा किया वह हमें प्रदान कर और क़ियामत के दिन हमें रुसवा न करना। निस्संदेह तू अपने वादे के विरुद्ध जानेवाला नहीं है।" 3|195|तो उनके रब ने उनकी पुकार सुन ली कि "मैं तुममें से किसी कर्म करनेवाले के कर्म को अकारथ नहीं करूँगा, चाहे वह पुरुष हो या स्त्री। तुम सब आपस में एक-दूसरे से हो। अतः जिन लोगों ने (अल्लाह के मार्ग में) घरबार छोड़ा और अपने घरों से निकाले गए और मेरे मार्ग में सताए गए, और लड़े और मारे गए, मैं उनसे उनकी बुराइयाँ दूर कर दूँगा और उन्हें ऐसे बाग़ों में प्रवेश कराऊँगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी।" यह अल्लाह के पास से उनका बदला होगा और सबसे अच्छा बदला अल्लाह ही के पास है 3|196|बस्तियों में इनकार करनेवालों की चलत-फिरत तुम्हें किसी धोखे में न डाले 3|197|यह तो थोड़ी सुख-सामग्री है फिर तो उनका ठिकाना जहन्नम है, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है 3|198|किन्तु जो लोग अपने रब से डरते रहे उनके लिए ऐसे बाग़ होंगे जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। वे उसमें सदैव रहेंगे। यह अल्लाह की ओर से पहला आतिथ्य-सत्कार होगा और जो कुछ अल्लाह के पास है वह नेक और वफ़ादार लोगों के लिए सबसे अच्छा है 3|199|और किताबवालों में से कुछ ऐसे भी है, जो इस हाल में कि उनके दिल अल्लाह के आगे झुके हुए होते है, अल्लाह पर ईमान रखते है और उस चीज़ पर भी जो तुम्हारी ओर उतारी गई है, और उस चीज़ पर भी जो स्वयं उनकी ओर उतरी। वे अल्लाह की आयतों का 'तुच्छ मूल्य पर सौदा' नहीं करते, उनके लिए उनके रब के पास उनका प्रतिदान है। अल्लाह हिसाब भी जल्द ही कर देगा 3|200|ऐ ईमान लानेवालो! धैर्य से काम लो और (मुक़ाबले में) बढ़-चढ़कर धैर्य दिखाओ और जुटे और डटे रहो और अल्लाह से डरते रहो, ताकि तुम सफल हो सको 4|1|ऐ लोगों! अपने रब का डर रखों, जिसने तुमको एक जीव से पैदा किया और उसी जाति का उसके लिए जोड़ा पैदा किया और उन दोनों से बहुत-से पुरुष और स्त्रियाँ फैला दी। अल्लाह का डर रखो, जिसका वास्ता देकर तुम एक-दूसरे के सामने माँगें रखते हो। और नाते-रिश्तों का भी तुम्हें ख़याल रखना हैं। निश्चय ही अल्लाह तुम्हारी निगरानी कर रहा हैं 4|2|और अनाथों को उनका माल दे दो और बुरी चीज़ को अच्छी चीज़ से न बदलो, और न उनके माल को अपने माल के साथ मिलाकर खा जाओ। यह बहुत बड़ा गुनाह हैं 4|3|और यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम अनाथों (अनाथ लड़कियों) के प्रति न्याय न कर सकोगे तो उनमें से, जो तुम्हें पसन्द हों, दो-दो या तीन-तीन या चार-चार से विवाह कर लो। किन्तु यदि तुम्हें आशंका हो कि तुम उनके साथ एक जैसा व्यवहार न कर सकोंगे, तो फिर एक ही पर बस करो, या उस स्त्री (लौंड़ी) पर जो तुम्हारे क़ब्ज़े में आई हो, उसी पर बस करो। इसमें तुम्हारे न्याय से न हटने की अधिक सम्भावना है 4|4|और स्त्रियों को उनके मह्रा ख़ुशी से अदा करो। हाँ, यदि वे अपनी ख़ुशी से उसमें से तुम्हारे लिए छोड़ दे तो उसे तुम अच्छा और पाक समझकर खाओ 4|5|और अपने माल, जिसे अल्लाह ने तुम्हारे लिए जीवन-यापन का साधन बनाया है, बेसमझ लोगों को न दो। उन्हें उसमें से खिलाते और पहनाते रहो और उनसे भली बात कहो 4|6|और अनाथों को जाँचते रहो, यहाँ तक कि जब वे विवाह की अवस्था को पहुँच जाएँ, तो फिर यदि तुम देखो कि उनमें सूझ-बूझ आ गई है, तो उनके माल उन्हें सौंप दो, और इस भय से कि कहीं वे बड़े न हो जाएँ तुम उनके माल अनुचित रूप से उड़ाकर और जल्दी करके न खाओ। और जो धनवान हो, उसे तो (इस माल से) से बचना ही चाहिए। हाँ, जो निर्धन हो, वह उचित रीति से कुछ खा सकता है। फिर जब उनके माल उन्हें सौंपने लगो, तो उनकी मौजूदगी में गवाह बना लो। हिसाब लेने के लिए अल्लाह काफ़ी है 4|7|पुरुषों का उस माल में एक हिस्सा है जो माँ-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो; और स्त्रियों का भी उस माल में एक हिस्सा है जो माल माँ-बाप और नातेदारों ने छोड़ा हो - चाह वह थोड़ा हो या अधिक हो - यह हिस्सा निश्चित किया हुआ है 4|8|और जब बाँटने के समय नातेदार और अनाथ और मुहताज उपस्थित हो तो उन्हें भी उसमें से (उनका हिस्सा) दे दो और उनसे भली बात करो 4|9|और लोगों को डरना चाहिए कि यदि वे स्वयं अपने पीछे अपने निर्बल बच्चे छोड़ते तो उन्हें उन बच्चों के विषय में कितना भय होता। तो फिर उन्हें अल्लाह से डरना चाहिए और ठीक सीधी बात कहनी चाहिए 4|10|जो लोग अनाथों के माल अन्याय के साथ खाते है, वास्तव में वे अपने पेट आग से भरते है, और वे अवश्य भड़कती हुई आग में पड़ेगे 4|11|अल्लाह तुम्हारी सन्तान के विषय में तुम्हें आदेश देता है कि दो बेटियों के हिस्से के बराबर एक बेटे का हिस्सा होगा; और यदि दो से अधिक बेटियाँ ही हो तो उनका हिस्सा छोड़ी हुई सम्पत्ति का दो तिहाई है। और यदि वह अकेली हो तो उसके लिए आधा है। और यदि मरनेवाले की सन्तान हो जो उसके माँ-बाप में से प्रत्येक का उसके छोड़े हुए माल का छठा हिस्सा है। और यदि वह निस्संतान हो और उसके माँ-बाप ही उसके वारिस हों, तो उसकी माँ का हिस्सा तिहाई होगा। और यदि उसके भाई भी हो, तो उसका माँ का छठा हिस्सा होगा। ये हिस्से, वसीयत जो वह कर जाए पूरी करने या ऋण चुका देने के पश्चात है। तुम्हारे बाप भी है और तुम्हारे बेटे भी। तुम नहीं जानते कि उनमें से लाभ पहुँचाने की दृष्टि से कौन तुमसे अधिक निकट है। यह हिस्सा अल्लाह का निश्चित किया हुआ है। अल्लाह सब कुछ जानता, समझता है 4|12|और तुम्हारी पत्नि यों ने जो कुछ छोड़ा हो, उसमें तुम्हारा आधा है, यदि उनकी सन्तान न हो। लेकिन यदि उनकी सन्तान हो तो वे छोड़े, उसमें तुम्हारा चौथाई होगा, इसके पश्चात कि जो वसीयत वे कर जाएँ वह पूरी कर दी जाए, या जो ऋण (उनपर) हो वह चुका दिया जाए। और जो कुछ तुम छोड़ जाओ, उसमें उनका (पत्ऩियों का) चौथाई हिस्सा होगा, यदि तुम्हारी कोई सन्तान न हो। लेकिन यदि तुम्हारी सन्तान है, तो जो कुछ तुम छोड़ोगे, उसमें से उनका (पत्नियों का) आठवाँ हिस्सा होगा, इसके पश्चात कि जो वसीयत तुमने की हो वह पूरी कर दी जाए, या जो ऋण हो उसे चुका दिया जाए, और यदि किसी पुरुष या स्त्री के न तो कोई सन्तान हो और न उसके माँ-बाप ही जीवित हो और उसके एक भाई या बहन हो तो उन दोनों में से प्रत्येक को छठा हिस्सा होगा। लेकिन यदि वे इससे अधिक हों तो फिर एक तिहाई में वे सब शरीक होंगे, इसके पश्चात कि जो वसीयत उसने की वह पूरी कर दी जाए या जो ऋण (उसपर) हो वह चुका दिया जाए, शर्त यह है कि वह हानिकर न हो। यह अल्लाह की ओर से ताकीदी आदेश है और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त सहनशील है 4|13|ये अल्लाह की निश्चित की हुई सीमाएँ है। जो कोई अल्लाह और उसके रसूल के आदेशों का पालन करेगा, उसे अल्लाह ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेगा जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। उनमें वह सदैव रहेगा और यही बड़ी सफलता है 4|14|परन्तु जो अल्लाह और उसके रसूल की अवज्ञा करेगा और उसकी सीमाओं का उल्लंघन करेगा उसे अल्लाह आग में डालेगा, जिसमें वह सदैव रहेगा। और उसके लिए अपमानजनक यातना है 4|15|और तुम्हारी स्त्रियों में से जो व्यभिचार कर बैठे, उनपर अपने में से चार आदमियों की गवाही लो, फिर यदि वे गवाही दे दें तो उन्हें घरों में बन्द रखो, यहाँ तक कि उनकी मृत्यु आ जाए या अल्लाह उनके लिए कोई रास्ता निकाल दे 4|16|और तुममें से जो दो पुरुष यह कर्म करें, उन्हें प्रताड़ित करो, फिर यदि वे तौबा कर ले और अपने आपको सुधार लें, तो उन्हें छोड़ दो। अल्लाह तौबा क़बूल करनेवाला, दयावान है 4|17|उन्ही लोगों की तौबा क़बूल करना अल्लाह के ज़िम्मे है जो भावनाओं में बह कर नादानी से कोई बुराई कर बैठे, फिर जल्द ही तौबा कर लें, ऐसे ही लोग है जिनकी तौबा अल्लाह क़बूल करता है। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है 4|18|और ऐसे लोगों की तौबा नहीं जो बुरे काम किए चले जाते है, यहाँ तक कि जब उनमें से किसी की मृत्यु का समय आ जाता है तो कहने लगता है, "अब मैं तौबा करता हूँ।" और इसी प्रकार तौबा उनकी भी नहीं है, जो मरते दम तक इनकार करनेवाले ही रहे। ऐसे लोगों के लिए हमने दुखद यातना तैयार कर रखी है 4|19|ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हारे लिए वैध नहीं कि स्त्रियों के माल के ज़बरदस्ती वारिस बन बैठो, और न यह वैध है कि उन्हें इसलिए रोको और तंग करो कि जो कुछ तुमने उन्हें दिया है, उसमें से कुछ ले उड़ो। परन्तु यदि वे खुले रूप में अशिष्ट कर्म कर बैठे तो दूसरी बात है। और उनके साथ भले तरीक़े से रहो-सहो। फिर यदि वे तुम्हें पसन्द न हों, तो सम्भव है कि एक चीज़ तुम्हें पसन्द न हो और अल्लाह उसमें बहुत कुछ भलाई रख दे 4|20|और यदि तुम एक पत्ऩी की जगह दूसरी पत्ऩी लाना चाहो तो, चाहे तुमने उनमें किसी को ढेरों माल दे दिया हो, उसमें से कुछ मत लेना। क्या तुम उसपर झूठा आरोप लगाकर और खुले रूप में हक़ मारकर उसे लोगे? 4|21|और तुम उसे किस तरह ले सकते हो, जबकि तुम एक-दूसरे से मिल चुके हो और वे तुमसे दृढ़ प्रतिज्ञा भी ले चुकी है? 4|22|और उन स्त्रियों से विवाह न करो, जिनसे तुम्हारे बाप विवाह कर चुके हों, परन्तु जो पहले हो चुका सो हो चुका। निस्संदेह यह एक अश्लील और अत्यन्त अप्रिय कर्म है, और बुरी रीति है 4|23|तुम्हारे लिए हराम है तुम्हारी माएँ, बेटियाँ, बहनें, फूफियाँ, मौसियाँ, भतीतियाँ, भाँजिया, और तुम्हारी वे माएँ जिन्होंने तुम्हें दूध पिलाया हो और दूध के रिश्ते से तुम्हारी बहनें और तुम्हारी सासें और तुम्हारी पत्ऩियों की बेटियाँ जिनसे तुम सम्भोग कर चुक हो। परन्तु यदि सम्भोग नहीं किया है तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं - और तुम्हारे उन बेटों की पत्ऩियाँ जो तुमसे पैदा हों और यह भी कि तुम दो बहनों को इकट्ठा करो; जो पहले जो हो चुका सो हो चुका। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 4|24|और विवाहित स्त्रियाँ भी वर्जित है, सिवाय उनके जो तुम्हारी लौंडी हों। यह अल्लाह ने तुम्हारे लिए अनिवार्य कर दिया है। इनके अतिरिक्त शेष स्त्रियाँ तुम्हारे लिए वैध है कि तुम अपने माल के द्वारा उन्हें प्राप्त करो उनकी पाकदामनी की सुरक्षा के लिए, न कि यह काम स्वच्छन्द काम-तृप्ति के लिए हो। फिर उनसे दाम्पत्य जीवन का आनन्द लो तो उसके बदले उनका निश्चित किया हुए हक़ (मह्रि) अदा करो और यदि हक़ निश्चित हो जाने के पश्चात तुम आपम में अपनी प्रसन्नता से कोई समझौता कर लो, तो इसमें तुम्हारे लिए कोई दोष नहीं। निस्संदेह अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है 4|25|और तुममें से जिस किसी की इतनी सामर्थ्य न हो कि पाकदामन, स्वतंत्र, ईमानवाली स्त्रियों से विवाह कर सके, तो तुम्हारी वे ईमानवाली जवान लौडियाँ ही सही जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हो। और अल्लाह तुम्हारे ईमान को भली-भाँति जानता है। तुम सब आपस में एक ही हो, तो उनके मालिकों की अनुमति से तुम उनसे विवाह कर लो और सामान्य नियम के अनुसार उन्हें उनका हक़ भी दो। वे पाकदामनी की सुरक्षा करनेवाली हों, स्वच्छन्द काम-तृप्ति न करनेवाली हों और न वे चोरी-छिपे ग़ैरो से प्रेम करनेवाली हों। फिर जब वे विवाहिता बना ली जाएँ और उसके पश्चात कोई अश्लील कर्म कर बैठें, तो जो दंड सम्मानित स्त्रियों के लिए है, उसका आधा उनके लिए होगा। यह तुममें से उस व्यक्ति के लिए है, जिसे ख़राबी में पड़ जाने का भय हो, और यह कि तुम धैर्य से काम लो तो यह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है 4|26|अल्लाह चाहता है कि तुमपर स्पष्ट कर दे और तुम्हें उन लोगों के तरीक़ों पर चलाए, जो तुमसे पहले हुए है और तुमपर दयादृष्टि करे। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है 4|27|और अल्लाह चाहता है कि जो तुमपर दयादृष्टि करे, किन्तु जो लोग अपनी तुच्छ इच्छाओं का पालन करते है, वे चाहते है कि तुम राह से हटकर बहुत दूर जा पड़ो 4|28|अल्लाह चाहता है कि तुमपर से बोझ हलका कर दे, क्योंकि इनसान निर्बल पैदा किया गया है 4|29|ऐ ईमान लानेवालो! आपस में एक-दूसरे के माल ग़लत तरीक़े से न खाओ - यह और बात है कि तुम्हारी आपस में रज़ामन्दी से कोई सौदा हो - और न अपनों की हत्या करो। निस्संदेह अल्लाह तुमपर बहुत दयावान है 4|30|और जो कोई ज़ुल्म और ज़्यादती से ऐसा करेगा, तो उसे हम जल्द ही आग में झोंक देंगे, और यह अल्लाह के लिए सरल है 4|31|यदि तुम उन बड़े गुनाहों से बचते रहो, जिनसे तुम्हे रोका जा रहा है, तो हम तुम्हारी बुराइयों को तुमसे दूर कर देंगे और तुम्हें प्रतिष्ठित स्थान में प्रवेश कराएँगे 4|32|और उसकी कामना न करो जिसमें अल्लाह ने तुमसे किसी को किसी से उच्च रखा है। पुरुषों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है और स्त्रियों ने जो कुछ कमाया है, उसके अनुसार उनका हिस्सा है। अल्लाह से उसका उदार दान चाहो। निस्संदेह अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है 4|33|और प्रत्येक माल के लिए, जो माँ-बाप और नातेदार छोड़ जाएँ, हमने वासिस ठहरा दिए है और जिन लोगों से अपनी क़समों के द्वारा तुम्हारा पक्का मामला हुआ हो, तो उन्हें भी उनका हिस्सा दो। निस्संदेह हर चीज़ अल्लाह के समक्ष है 4|34|पति पत्नियों संरक्षक और निगराँ है, क्योंकि अल्लाह ने उनमें से कुछ को कुछ के मुक़ाबले में आगे रहा है, और इसलिए भी कि पतियों ने अपने माल ख़र्च किए है, तो नेक पत्ऩियाँ तो आज्ञापालन करनेवाली होती है और गुप्त बातों की रक्षा करती है, क्योंकि अल्लाह ने उनकी रक्षा की है। और जो पत्नियों ऐसी हो जिनकी सरकशी का तुम्हें भय हो, उन्हें समझाओ और बिस्तरों में उन्हें अकेली छोड़ दो और (अति आवश्यक हो तो) उन्हें मारो भी। फिर यदि वे तुम्हारी बात मानने लगे, तो उनके विरुद्ध कोई रास्ता न ढूढ़ो। अल्लाह सबसे उच्च, सबसे बड़ा है 4|35|और यदि तुम्हें पति-पत्नी के बीच बिगाड़ का भय हो, तो एक फ़ैसला करनेवाला पुरुष के लोगों में से और एक फ़ैसला करनेवाला स्त्री के लोगों में से नियुक्त करो, यदि वे दोनों सुधार करना चाहेंगे, तो अल्लाह उनके बीच अनुकूलता पैदा कर देगा। निस्संदेह, अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, ख़बर रखनेवाला है 4|36|अल्लाह की बन्दगी करो और उसके साथ किसी को साझी न बनाओ और अच्छा व्यवहार करो माँ-बाप के साथ, नातेदारों, अनाथों और मुहताजों के साथ, नातेदार पड़ोसियों के साथ और अपरिचित पड़ोसियों के साथ और साथ रहनेवाले व्यक्ति के साथ और मुसाफ़िर के साथ और उनके साथ भी जो तुम्हारे क़ब्ज़े में हों। अल्लाह ऐसे व्यक्ति को पसन्द नहीं करता, जो इतराता और डींगें मारता हो 4|37|वे जो स्वयं कंजूसी करते है और लोगों को भी कंजूसी पर उभारते है और अल्लाह ने अपने उदार दान से जो कुछ उन्हें दे रखा होता है, उसे छिपाते है, जो हमने अकृतज्ञ लोगों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है 4|38|वे जो अपने माल लोगों को दिखाने के लिए ख़र्च करते है, न अल्लाह पर ईमान रखते है, न अन्तिम दिन पर, और जिस किसी का साथी शैतान हुआ, तो वह बहुत ही बुरा साथी है 4|39|उनका बिगड़ जाता, यदि वे अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाते और जो कुछ अल्लाह ने उन्हें दिया है, उसमें से ख़र्च करते है? अल्लाह उन्हें भली-भाँति जानता है 4|40|निस्संदेह अल्लाह रत्ती-भर भी ज़ुल्म नहीं करता और यदि कोई एक नेकी हो तो वह उसे कई गुना बढ़ा देगा और अपनी ओर से बड़ा बदला देगा 4|41|फिर क्या हाल होगा जब हम प्रत्येक समुदाय में से एक गवाह लाएँगे और स्वयं तुम्हें इन लोगों के मुक़ाबले में गवाह बनाकर पेश करेंगे? 4|42|उस दिन वे लोग जिन्होंने इनकार किया होगा और रसूल की अवज्ञा की होगी, यही चाहेंगे कि किसी तरह धरती में समोकर उसे बराबर कर दिया जाए। वे अल्लाह से कोई बात भी न छिपा सकेंगे 4|43|ऐ ईमान लानेवालो! नशे की दशा में नमाज़ में व्यस्त न हो, जब तक कि तुम यह न जानने लगो कि तुम क्या कह रहे हो। और इसी प्रकार नापाकी की दशा में भी (नमाज़ में व्यस्त न हो), जब तक कि तुम स्नान न कर लो, सिवाय इसके कि तुम सफ़र में हो। और यदि तुम बीमार हो या सफ़र में हो, या तुममें से कोई शौच करके आए या तुमने स्त्रियों को हाथ लगाया हो, फिर तुम्हें पानी न मिले, तो पाक मिट्टी से काम लो और उसपर हाथ मारकर अपने चहरे और हाथों पर मलो। निस्संदेह अल्लाह नर्मी से काम लेनेवाला, अत्यन्त क्षमाशील है 4|44|क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें सौभाग्य प्रदान हुआ था अर्थात किताब दी गई थी? वे पथभ्रष्टता के खरीदार बने हुए है और चाहते है कि तुम भी रास्ते से भटक जाओ 4|45|अल्लाह तुम्हारे शत्रुओं को भली-भाँति जानता है। अल्लाह एक संरक्षक के रूप में काफ़ी है और अल्लाह एक सहायक के रूप में भी काफ़ी है 4|46|वे लोग जो यहूदी बन गए, वे शब्दों को उनके स्थानों से दूसरी ओर फेर देते है और कहते हैं, "समि'अना व 'असैना" (हमने सुना, लेकिन हम मानते नही); और "इसम'अ ग़ै-र मुसम'इन" (सुनो हालाँकि तुम सुनने के योग्य नहीं हो और "राइना" (हमारी ओर ध्यान दो) - यह वे अपनी ज़बानों को तोड़-मरोड़कर और दीन पर चोटें करते हुए कहते है। और यदि वे कहते, "समिअ'ना व अ-त'अना" (हमने सुना और माना) और "इसम'अ" (सुनो) और "उनज़ुरना" (हमारी ओर निगाह करो) तो यह उनके लिए अच्छा और अधिक ठीक होता। किन्तु उनपर तो उनके इनकार के कारण अल्लाह की फिटकार पड़ी हुई है। फिर वे ईमान थोड़े ही लाते है 4|47|ऐ लोगों! जिन्हें किताब दी गई, उस चीज को मानो जो हमने उतारी है, जो उसकी पुष्टि में है, जो स्वयं तुम्हारे पास है, इससे पहले कि हम चेहरों की रूपरेखा को मिटाकर रख दें और उन्हें उनके पीछ की ओर फेर दें या उनपर लानत करें, जिस प्रकार हमने सब्तवालों पर लानत की थी। और अल्लाह का आदेश तो लागू होकर ही रहता है 4|48|अल्लाह इसके क्षमा नहीं करेगा कि उसका साझी ठहराया जाए। किन्तु उससे नीचे दर्जे के अपराध को जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा और जिस किसी ने अल्लाह का साझी ठहराया, तो उसने एक बड़ा झूठ घड़ लिया 4|49|क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो अपने को पूर्ण एवं शिष्ट होने का दावा करते हैं? (कोई यूँ ही शिष्ट नहीं हुआ करता) बल्कि अल्लाह ही जिसे चाहता है, पूर्णता एवं शिष्टता प्रदान करता है। और उनके साथ तनिक भी अत्याचार नहीं किया जाता 4|50|देखो तो सही, वे अल्लाह पर कैसा झूठ मढ़ते हैं? खुले गुनाह के लिए तो यही पर्याप्त है 4|51|क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जिन्हें किताब का एक हिस्सा दिय् गया? वे अवास्तविक चीज़ो और ताग़ूत (बढ़ हुए सरकश) को मानते है। और अधर्मियों के विषय में कहते है, "ये ईमानवालों से बढ़कर मार्ग पर है।" 4|52|वही है जिनपर अल्लाह ने लातन की है, और जिसपर अल्लाह लानत कर दे, उसका तुम कोई सहायक कदापि न पाओगे 4|53|या बादशाही में इनका कोई हिस्सा है? फिर तो ये लोगों को फूटी कौड़ी तक भी न देते 4|54|या ये लोगों से इसलिए ईर्ष्या करते है कि अल्लाह ने उन्हें अपने उदार दान से अनुग्रहित कर दिया? हमने तो इबराहीम के लोगों को किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) दी और उन्हें बड़ा राज्य प्रदान किया 4|55|फिर उनमें से कोई उसपर ईमान लाया और उसमें से किसी ने किनारा खीच लिया। और (ऐसे लोगों के लिए) जहन्नम की भड़कती आग ही काफ़ी है 4|56|जिन लोगों ने हमारी आयतों का इनकार किया, उन्हें हम जल्द ही आग में झोंकेंगे। जब भी उनकी खालें पक जाएँगी, तो हम उन्हें दूसरी खालों में बदल दिया करेंगे, ताकि वे यातना का मज़ा चखते ही रहें। निस्संदेह अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 4|57|और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उन्हें हम ऐसे बाग़ो में दाखिल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बह रहीं होगी, जहाँ वे सदैव रहेंगे। उनके लिए वहाँ पाक जोड़े होंगे और हम उन्हें घनी छाँव में दाखिल करेंगे 4|58|अल्लाह तुम्हें आदेश देता है कि अमानतों को उनके हक़दारों तक पहुँचा दिया करो। और जब लोगों के बीच फ़ैसला करो, तो न्यायपूर्वक फ़ैसला करो। अल्लाह तुम्हें कितनी अच्छी नसीहत करता है। निस्सदेह, अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है 4|59|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल का कहना मानो और उनका भी कहना मानो जो तुममें अधिकारी लोग है। फिर यदि तुम्हारे बीच किसी मामले में झगड़ा हो जाए, तो उसे तुम अल्लाह और रसूल की ओर लौटाओ, यदि तुम अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते हो। यदि उत्तम है और परिणाम की स्पष्ट से भी अच्छा है 4|60|क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा, जो दावा तो करते है कि वे उस चीज़ पर ईमान रखते हैं, जो तुम्हारी ओर उतारी गई है और तुमसे पहले उतारी गई है। और चाहते है कि अपना मामला ताग़ूत के पास ले जाकर फ़ैसला कराएँ, जबकि उन्हें हुक्म दिया गया है कि वे उसका इनकार करें? परन्तु शैतान तो उन्हें भटकाकर बहुत दूर डाल देना चाहता है 4|61|और जब उनसे कहा जाता है कि आओ उस चीज़ की ओर जो अल्लाह ने उतारी है और आओ रसूल की ओरस तो तुम मुनाफ़िको (कपटाचारियों) को देखते हो कि वे तुमसे कतराकर रह जाते है 4|62|फिर कैसी बात होगी कि जब उनकी अपनी करतूतों के कारण उनपर बड़ी मुसीबत आ पडेगी। फिर वे तुम्हारे पास अल्लाह की क़समें खाते हुए आते है कि हम तो केवल भलाई और बनाव चाहते थे? 4|63|ये वे लोग है जिनके दिलों की बात अल्लाह भली-भाँति जानता है; तो तुम उन्हें जाने दो और उन्हें समझओ और उनसे उनके विषय में वह बात कहो जो प्रभावकारी हो 4|64|हमने जो रसूल भी भेजा, इसलिए भेजा कि अल्लाह की अनुमति से उसकी आज्ञा का पालन किया जाए। और यदि यह उस समय, जबकि इन्होंने स्वयं अपने ऊपर ज़ुल्म किया था, तुम्हारे पास आ जाते और अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करता तो निश्चय ही वे अल्लाह को अत्यन्त क्षमाशील और दयावान पाते 4|65|तो तुम्हें तुम्हारे रब की कसम! ये ईमानवाले नहीं हो सकते जब तक कि अपने आपस के झगड़ो में ये तुमसे फ़ैसला न कराएँ। फिर जो फ़ैसला तुम कर दो, उसपर ये अपने दिलों में कोई तंगी न पाएँ और पूरी तरह मान ले 4|66|और यदि कहीं हमने उन्हें आदेश दिया होता कि "अपनों को क़त्ल करो या अपने घरों से निकल जाओ।" तो उनमें से थोड़े ही ऐसा करते। हालाँकि जो नसीहत उन्हें दी जाती है, अगर वे उसे व्यवहार में लाते तो यह बात उनके लिए अच्छी होती और ज़्यादा ज़माव पैदा करनेवाली होती 4|67|और उस समय हम उन्हें अपनी ओर से निश्चय ही बड़ा बदला प्रदान करते 4|68|और उन्हें सीधे मार्ग पर लगा देते 4|69|जो अल्लाह और रसूल की आज्ञा का पालन करता है, तो ऐसे ही लोग उन लोगों के साथ है जिनपर अल्लाह की कृपा स्पष्ट रही है - वे नबी, सिद्दीक़, शहीद और अच्छे लोग है। और वे कितने अच्छे साथी है 4|70|यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है। और काफ़ी है अल्लाह, इस हाल में कि वह भली-भाँति जानता है 4|71|ऐ ईमान लानेवालो! अपने बचाव की साम्रगी (हथियार आदि) सँभालो। फिर या तो अलग-अलग टुकड़ियों में निकलो या इकट्ठे होकर निकलो 4|72|तुमसे से कोई ऐसा भी है जो ढीला पड़ जाता है, फिर यदि तुमपर कोई मुसीबत आए तो कहने लगता है कि अल्लाह ने मुझपर कृपा की कि मैं इन लोगों के साथ न गया 4|73|परन्तु यदि अल्लाह की ओर से तुमपर कोई उदार अनुग्रह हो तो वह इस प्रकार से जैसे तुम्हारे और उनके बीच प्रेम का कोई सम्बन्ध ही नहीं, कहता है, "क्या ही अच्छा होता कि मैं भी उनके साथ होता, तो बड़ी सफलता प्राप्त करता।" 4|74|तो जो लोग आख़िरत (परलोक) के बदले सांसारिक जीवन का सौदा करें, तो उन्हें चाहिए कि अल्लाह के मार्ग में लड़े। जो अल्लाह के मार्ग में लड़ेगी, चाहे वह मारा जाए या विजयी रहे, उसे हम शीघ्र ही बड़ा बदला प्रदान करेंगे 4|75|तुम्हें क्या हुआ है कि अल्लाह के मार्ग में और उन कमज़ोर पुरुषों, औरतों और बच्चों के लिए युद्ध न करो, जो प्रार्थनाएँ करते है कि "हमारे रब! तू हमें इस बस्ती से निकाल, जिसके लोग अत्याचारी है। और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई समर्थक नियुक्त कर और हमारे लिए अपनी ओर से तू कोई सहायक नियुक्त कर।" 4|76|ईमान लानेवाले तो अल्लाह के मार्ग में युद्ध करते है और अधर्मी लोग ताग़ूत (बढ़े हुए सरकश) के मार्ग में युद्ध करते है। अतः तुम शैतान के मित्रों से लड़ो। निश्चय ही, शैतान की चाल बहुत कमज़ोर होती है 4|77|क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिनसे कहा गया था कि अपने हाथ रोके रखो और नमाज़ क़ायम करो और ज़कात दो? फिर जब उन्हें युद्ध का आदेश दिया गया तो क्या देखते है कि उनमें से कुछ लोगों का हाल यह है कि वे लोगों से ऐसा डरने लगे जैसे अल्लाह का डर हो या यह डर उससे भी बढ़कर हो। कहने लगे, "हमारे रब! तूने हमपर युद्ध क्यों अनिवार्य कर दिया? क्यों न थोड़ी मुहलत हमें और दी?" कह दो, "दुनिया की पूँजी बहुत थोड़ी है, जबकि आख़िरत उस व्यक्ति के अधिक अच्छी है जो अल्लाह का डर रखता हो और तुम्हारे साथ तनिक भी अन्याय न किया जाएगा। 4|78|"तुम जहाँ कहीं भी होंगे, मृत्यु तो तुम्हें आकर रहेगी; चाहे तुम मज़बूत बुर्जों (क़िलों) में ही (क्यों न) हो।" यदि उन्हें कोई अच्छी हालत पेश आती है तो कहते है, "यह तो अल्लाह के पास से है।" परन्तु यदि उन्हें कोई बुरी हालत पेश आती है तो कहते है, "यह तुम्हारे कारण है।" कह दो, "हरेक चीज़ अल्लाह के पास से है।" आख़िर इन लोगों को क्या हो गया कि ये ऐसे नहीं लगते कि कोई बात समझ सकें? 4|79|तुम्हें जो भी भलाई प्राप्त" होती है, वह अल्लाह को ओर से है और जो बुरी हालत तुम्हें पेश आ जाती है तो वह तुम्हारे अपने ही कारण पेश आती है। हमने तुम्हें लोगों के लिए रसूल बनाकर भेजा है और (इसपर) अल्लाह का गवाह होना काफ़ी है 4|80|जिसने रसूल की आज्ञा का पालन किया, उसने अल्लाह की आज्ञा का पालन किया और जिसने मुँह मोड़ा तो हमने तुम्हें ऐसे लोगों पर कोई रखवाला बनाकर तो नहीं भेजा है 4|81|और वे दावा तो आज्ञापालन का करते है, परन्तु जब तुम्हारे पास से हटते है तो उनमें एक गिरोह अपने कथन के विपरीत रात में षड्यंत्र करता है । जो कुछ वे षड्यंत्र करते है, अल्लाह उसे लिख रहा है। तो तुम उनसे रुख़ फेर लो और अल्लाह पर भरोसा रखो, और अल्लाह का कार्यसाधक होना काफ़ी है! 4|82|क्या वे क़ुरआन में सोच-विचार नहीं करते? यदि यह अल्लाह के अतिरिक्त किसी और की ओर से होता, तो निश्चय ही वे इसमें बहुत-सी बेमेल बातें पाते 4|83|जब उनके पास निश्चिन्तता या भय की कोई बात पहुचती है तो उसे फैला देते है, हालाँकि अगर वे उसे रसूल और अपने समुदाय के उतरदायी व्यक्तियों तक पहुँचाते तो उसे वे लोग जान लेते जो उनमें उसकी जाँच कर सकते है। और यदि तुमपर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती, तो थोड़े लोगों के सिवा तुम सब शैतान के पीछे चलने लग जाते 4|84|अतः अल्लाह के मार्ग में युद्ध करो - तुमपर तो बस तुम्हारी अपनी ही ज़िम्मेदारी है - और ईमानवालों की कमज़ोरियो को दूर करो और उन्हें (युद्ध के लिए) उभारो। इसकी बहुत सम्भावना है कि अल्लाह इनकार करनेवालों के ज़ोर को रोक लगा दे। अल्लाह बड़ा ज़ोरवाला और कठोर दंड देनेवाला है 4|85|जो कोई अच्छी सिफ़ारिश करेगा, उसे उसके कारण उसका प्रतिदान मिलेगा और जो बुरी सिफ़ारिश करेगा, तो उसके कारँ उसका बोझ उसपर पड़कर रहेगा। अल्लाह को तो हर चीज़ पर क़ाबू हासिल है 4|86|और तुम्हें जब सलामती की कोई दुआ दी जाए, तो तुम सलामती की उससे अच्छी दुआ दो या उसी को लौटा दो। निश्चय ही, अल्लाह हर चीज़ का हिसाब रखता है 4|87|अल्लाह के सिवा कोई इष्ट -पूज्य नहीं। वह तुम्हें क़ियामत के दिन की ओर ले जाकर इकट्ठा करके रहेगा, जिसके आने में कोई संदेह नहीं, और अल्लाह से बढ़कर सच्ची बात और किसकी हो सकती है 4|88|फिर तुम्हें क्या हो गया है कि कपटाचारियों (मुनाफ़िक़ो) के विषय में तुम दो गिरोह हो रहे हो, यद्यपि अल्लाह ने तो उनकी करतूतों के कारण उन्हें उल्टा फेर दिया है? क्या तुम उसे मार्ग पर लाना चाहते हो जिसे अल्लाह ने गुमराह छोड़ दिया है? हालाँकि जिसे अल्लाह मार्ग न दिखाए, उसके लिए तुम कदापि कोई मार्ग नहीं पा सकते 4|89|वे तो चाहते है कि जिस प्रकार वे स्वयं अधर्मी है, उसी प्रकार तुम भी अधर्मी बनकर उन जैसे हो जाओ; तो तुम उनमें से अपने मित्र न बनाओ, जब तक कि वे अल्लाह के मार्ग में घरबार न छोड़े। फिर यदि वे इससे पीठ फेरें तो उन्हें पकड़ो, और उन्हें क़त्ल करो जहाँ कही भी उन्हें पाओ - तो उनमें से किसी को न अपना मित्र बनाना और न सहायक - 4|90|सिवाय उन लोगों के जो ऐसे लोगों से सम्बन्ध रखते हों, जिनसे तुम्हारे और उनकी बीच कोई समझौता हो या वे तुम्हारे पास इस दशा में आएँ कि उनके दिल इससे तंग हो रहे हों कि वे तुमसे लड़े या अपने लोगों से लड़ाई करें। यदि अल्लाह चाहता तो उन्हें तुमपर क़ाबू दे देता। फिर तो वे तुमसे अवश्य लड़ते; तो यदि वे तुमसे अलग रहें और तुमसे न लड़ें और संधि के लिए तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाएँ तो उनके विरुद्ध अल्लाह ने तुम्हारे लिए कोई रास्ता नहीं रखा है 4|91|अब तुम कुछ ऐसे लोगों को भी पाओगे, जो चाहते है कि तुम्हारी ओर से निश्चिन्त होकर रहें और अपने लोगों की ओर से भी निश्चिन्त होकर रहे। परन्तु जब भी वे फ़साद और उपद्रव की ओर फेरे गए तो वे उसी में औधे जो गिरे। तो यदि वे तुमसे अलग-थलग न रहें और तुम्हारी ओर सुलह का हाथ न बढ़ाएँ, और अपने हाथ न रोकें, तो तुम उन्हें पकड़ो और क़त्ल करो, जहाँ कहीं भी तुम उन्हें पाओ। उनके विरुद्ध हमने तुम्हें खुला अधिकार दे रखा है 4|92|किसी ईमानवाले का यह काम नहीं कि वह किसी ईमानवाले का हत्या करे, भूल-चूक की बात और है। और यदि कोई क्यक्ति यदि ग़लती से किसी ईमानवाले की हत्या कर दे, तो एक मोमिन ग़ुलाम को आज़ाद करना होगा और अर्थदंड उस (मारे गए क्यक्ति) के घरवालों को सौंपा जाए। यह और बात है कि वे अपनी ख़ुशी से छोड़ दें। और यदि वह उन लोगों में से हो, जो तुम्हारे शत्रु हों और वह (मारा जानेवाला) स्वयं मोमिन रहा तो एक मोमिन को ग़ुलामी से आज़ाद करना होगा। और यदि वह उन लोगों में से हो कि तुम्हारे और उनके बीच कोई संधि और समझौता हो, तो अर्थदंड उसके घरवालों को सौंपा जाए और एक मोमिन को ग़ुलामी से आज़ाद करना होगा। लेकिन जो (ग़ुलाम) न पाए तो वह निरन्तर दो मास के रोज़े रखे। यह अल्लाह की ओर से निश्चित किया हुआ उसकी तरफ़ पलट आने का तरीक़ा है। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है 4|93|और जो व्यक्ति जान-बूझकर किसी मोमिन की हत्या करे, तो उसका बदला जहन्नम है, जिसमें वह सदा रहेगा; उसपर अल्लाह का प्रकोप और उसकी फिटकार है और उसके लिए अल्लाह ने बड़ी यातना तैयार कर रखी है 4|94|ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम अल्लाह के मार्ग से निकलो तो अच्छी तरह पता लगा लो और जो तुम्हें सलाम करे, उससे यह न कहो कि तुम ईमान नहीं रखते, और इससे तुम्हारा ध्येय यह हो कि सांसारिक जीवन का माल प्राप्त करो। अल्लाह ने तुमपर उपकार किया, जो अच्छी तरह पता लगा लिया करो। जो कुछ तुम करते हो अल्लाह उसकी पूरी ख़बर रखता है 4|95|ईमानवालों में से वे लोग जो बिना किसी कारण के बैठे रहते है और जो अल्लाह के मार्ग में अपने धन और प्राणों के साथ जी-तोड़ कोशिश करते है, दोनों समान नहीं हो सकते। अल्लाह ने बैठे रहनेवालों की अपेक्षा अपने धन और प्राणों से जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का दर्जा बढ़ा रखा है। यद्यपि प्रत्यके के लिए अल्लाह ने अच्छे बदले का वचन दिया है। परन्तु अल्लाह ने जी-तोड़ कोशिश करनेवालों का बड़ा बदला रखा है 4|96|उसकी ओर से दर्जे है और क्षमा और दयालुता है। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 4|97|जो लोग अपने-आप पर अत्याचार करते है, जब फ़रिश्ते उस दशा में उनके प्राण ग्रस्त कर लेते है, तो कहते है, "तुम किस दशा में पड़े रहे?" वे कहते है, "हम धरती में निर्बल और बेबस थे।" फ़रिश्ते कहते है, "क्या अल्लाह की धरती विस्तृत न थी कि तुम उसमें घर-बार छोड़कर कहीं ओर चले जाते?" तो ये वही लोग है जिनका ठिकाना जहन्नम है। - और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है 4|98|सिवाय उन बेबस पुरुषों, स्त्रियों और बच्चों के जिनके बस में कोई उपाय नहीं और न कोई राह पा रहे है; 4|99|तो सम्भव है कि अल्लाह ऐसे लोगों को छोड़ दे; क्योंकि अल्लाह छोड़ देनेवाला और बड़ा क्षमाशील है 4|100|जो कोई अल्लाह के मार्ग में घरबार छोड़कर निकलेगा, वह धरती में शरण लेने की बहुत जगह और समाई पाएगा, और जो कोई अपने घर में सब कुछ छोड़कर अल्लाह और उसके रसूल की ओर निकले और उसकी मृत्यु हो जाए, तो उसका प्रतिदान अल्लाह के ज़िम्मे हो गया। अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है 4|101|और जब तुम धरती में यात्रा करो, तो इसमें तुमपर कोई गुनाह नहीं कि नमाज़ को कुछ संक्षिप्त कर दो; यदि तुम्हें इस बात का भय हो कि विधर्मी लोग तुम्हें सताएँगे और कष्ट पहुँचाएँगे। निश्चय ही विधर्मी लोग तुम्हारे खुले शत्रु है 4|102|और जब तुम उनके बीच हो और (लड़ाई की दशा में) उन्हें नमाज़ पढ़ाने के लिए खड़े हो, जो चाहिए कि उनमें से एक गिरोह के लोग तुम्हारे साथ खड़े हो जाएँ और अपने हथियार साथ लिए रहें, और फिर जब वे सजदा कर लें तो उन्हें चाहिए कि वे हटकर तुम्हारे पीछे हो जाएँ और दूसरे गिरोंह के लोग, जिन्होंने अभी नमाज़ नही पढ़ी, आएँ और तुम्हारे साथ नमाज़ पढ़े, और उन्हें भी चाहिए कि वे भी अपने बचाव के सामान और हथियार लिए रहें। विधर्मी चाहते ही है कि वे भी अपने हथियारों और सामान से असावधान हो जाओ तो वे तुम पर एक साथ टूट पड़े। यदि वर्षा के कारण तुम्हें तकलीफ़ होती हो या तुम बीमार हो, तो तुम्हारे लिए कोई गुनाह नहीं कि अपने हथियार रख दो, फिर भी अपनी सुरक्षा का सामान लिए रहो। अल्लाह ने विधर्मियों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है 4|103|फिर जब तुम नमाज़ अदा कर चुको तो खड़े, बैठे या लेटे अल्लाह को याद करते रहो। फिर जब तुम्हें इतमीनान हो जाए तो विधिवत रूप से नमाज़ पढ़ो। निस्संदेह ईमानवालों पर समय की पाबन्दी के साथ नमाज़ पढना अनिवार्य है 4|104|और उन लोगों का पीछा करने में सुस्ती न दिखाओ। यदि तुम्हें दुख पहुँचता है; तो उन्हें भी दुख पहुँचता है, जिस तरह तुमको दुख पहुँचता है। और तुम अल्लाह से उस चीज़ की आशा करते हो, जिस चीज़ की वे आशा नहीं करते। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है 4|105|निस्संदेह हमने यह किताब हक़ के साथ उतारी है, ताकि अल्लाह ने जो कुछ तुम्हें दिखाया है उसके अनुसार लोगों के बीच फ़ैसला करो। और तुम विश्वासघाती लोगों को ओर से झगड़नेवाले न बनो 4|106|अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करो। निस्संदेह अल्लाह बहुत क्षमाशील, दयावान है 4|107|और तुम उन लोगों की ओर से न झगड़ो जो स्वयं अपनों के साथ विश्वासघात करते है। अल्लाह को ऐसा व्यक्ति प्रिय नहीं है जो विश्वासघाती, हक़ मारनेवाला हो 4|108|वे लोगों से तो छिपते है, परन्तु अल्लाह से नहीं छिपते। वह तो (उस समय भी) उनके साथ होता है, जब वे रातों में उस बात की गुप्त-मंत्रणा करते है जो उनकी इच्छा के विरुद्ध होती है। जो कुछ वे करते है, वह अल्लाह (के ज्ञान) से आच्छदित है 4|109|हाँ, ये तुम ही हो, जिन्होंने सांसारिक जीवन में उनको ओर से झगड़ लिया, परन्तु क़ियामत के दिन उनकी ओर से अल्लाह से कौन झगड़ेगा या कौन उनका वकील होगा? 4|110|और जो कोई बुरा कर्म कर बैठे या अपने-आप पर अत्याचार करे, फिर अल्लाह से क्षमा की प्रार्थना करे, तो अल्लाह को बड़ा क्षमाशील, दयावान पाएगा 4|111|और जो व्यक्ति गुनाह कमाए, तो वह अपने ही लिए कमाता है। अल्लाह तो सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है 4|112|और जो व्यक्ति कोई ग़लती या गुनाह की कमाई करे, फिर उसे किसी निर्दोष पर थोप दे, तो उसने एक बड़े लांछन और खुले गुनाह का बोझ अपने ऊपर ले लिया 4|113|यदि तुमपर अल्लाह का उदार अनुग्रह और उसकी दयालुता न होती तो उनमें से कुछ लोग तो यह निश्चय कर ही चुके थे कि तुम्हें राह से भटका दें, हालाँकि वे अपने आप ही को पथभ्रष्टि कर रहे है, और तुम्हें वे कोई हानि नहीं पहुँचा सकते। अल्लाह ने तुमपर किताब और हिकमत (तत्वदर्शिता) उतारी है और उसने तुम्हें वह कुछ सिखाया है जो तुम जानते न थे। अल्लाह का तुमपर बहुत बड़ा अनुग्रह है 4|114|उनकी अधिकतर काना-फूसियों में कोई भलाई नहीं होती। हाँ, जो व्यक्ति सदक़ा देने या भलाई करने या लोगों के बीच सुधार के लिए कुछ कहे, तो उसकी बात और है। और जो कोई यह काम अल्लाह की प्रसन्नता प्राप्त करने के लिए करेगा, उसे हम निश्चय ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेंगे 4|115|और जो क्यक्ति, इसके पश्चात भी मार्गदर्शन खुलकर उसके सामने आ गया है, रसूल का विरोध करेगा और ईमानवालों के मार्ग के अतिरिक्त किसी और मार्ग पर चलेगा तो उसे हम उसी पर चलने देंगे, जिसको उसने अपनाया होगा और उसे जहन्नम में झोंक देंगे, और वह बहुत ही बुरा ठिकाना है 4|116|निस्संदेह अल्लाह इस चीज़ को क्षमा नहीं करेगा कि उसके साथ किसी को शामिल किया जाए। हाँ, इससे नीचे दर्जे के अपराध को, जिसके लिए चाहेगा, क्षमा कर देगा। जो अल्लाह के साथ किसी को साझी ठहराता है, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा 4|117|वे अल्लाह से हटकर बस कुछ देवियों को पुकारते है। और वे तो बस सरकश शैतान को पुकारते है; 4|118|जिसपर अल्लाह की फिटकार है। उसने कहा था, "मैं तेरे बन्दों में से एख निश्चित हिस्सा लेकर रहूँगा 4|119|"और उन्हें अवश्य ही भटकाऊँगा और उन्हें कामनाओं में उलझाऊँगा, और उन्हें हुक्म दूँगा तो वे चौपायों के कान फाड़ेगे, और उन्हें मैं सुझाव दूँगा तो वे अल्लाह की संरचना में परिवर्तन करेंगे।" और जिसने अल्लाह से हटकर शैतान को अपना संरक्षक और मित्र बनाया, वह खुले घाटे में पड़ गया 4|120|वह उनसे वादा करता है और उन्हें कामनाओं में उलझाए रखता है, हालाँकि शैतान उनसे जो कुछ वादा करता है वह एक धोके के सिवा कुछ भी नहीं होता 4|121|वही लोग है जिनका ठिकाना जहन्नम है और वे उससे अलग होने की कोई जगह न पाएँगे 4|122|रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उन्हें हम जल्द ही ऐसे बाग़ों में दाख़िल करेंगे, जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जहाँ वे सदैव रहेंगे। अल्लाह का वादा सच्चा है, और अल्लाह से बढ़कर बात का सच्चा कौन हो सकता है? 4|123|बात न तुम्हारी कामनाओं की है और न किताबवालों की कामनाओं की। जो भी बुराई करेगा उसे उसका फल मिलेगा और वह अल्लाह से हटकर न तो कोई मित्र पाएगा और न ही सहायक 4|124|किन्तु जो अच्छे कर्म करेगा, चाहे पुरुष हो या स्त्री, यदि वह ईमानवाला है तो ऐसे लोग जन्नत में दाख़िल होंगे। और उनका हक़ रत्ती भर भी मारा नहीं जाएगा 4|125|और दीन (धर्म) की स्पष्ट से उस व्यक्ति से अच्छा कौन हो सकता है, जिसने अपने आपको अल्लाह के आगे झुका दिया और इबराहीम के तरीक़े का अनुसरण करे, जो सबसे कटकर एक का हो गया था? अल्लाह ने इबराहीम को अपना घनिष्ठ मित्र बनाया था 4|126|जो कुछ आकाशों में और जो कुछ धरती में है, वह अल्लाह ही का है और अल्लाह हर चीज़ को घेरे हुए है 4|127|लोग तुमसे स्त्रियों के विषय में पूछते है, कहो, "अल्लाह तुम्हें उनके विषय में हुक्म देता है और जो आयतें तुमको इस किताब में पढ़कर सुनाई जाती है, वे उन स्त्रियों के, अनाथों के विषय में भी है, जिनके हक़ तुम अदा नहीं करते। और चाहते हो कि तुम उनके साथ विवाह कर लो और कमज़ोर यतीम बच्चों के बारे में भी यही आदेश है। और इस विषय में भी कि तुम अनाथों के विषय में इनसाफ़ पर क़ायम रहो। जो भलाई भी तुम करोगे तो निश्चय ही, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता होगा।" 4|128|यदि किसी स्त्री को अपने पति की और से दुर्व्यवहार या बेरुख़ी का भय हो, तो इसमें उनके लिए कोई दोष नहीं कि वे दोनों आपस में मेल-मिलाप की कोई राह निकाल ले। और मेल-मिलाव अच्छी चीज़ है। और मन तो लोभ एवं कृपणता के लिए उद्यत रहता है। परन्तु यदि तुम अच्छा व्यवहार करो और (अल्लाह का) भय रखो, तो अल्लाह को निश्चय ही जो कुछ तुम करोगे उसकी खबर रहेगी 4|129|और चाहे तुम कितना ही चाहो, तुममें इसकी सामर्थ्य नहीं हो सकती कि औरतों के बीच पूर्ण रूप से न्याय कर सको। तो ऐसा भी न करो कि किसी से पूर्णरूप से फिर जाओ, जिसके परिणामस्वरूप वह ऐसी हो जाए, जैसे उसका पति खो गया हो। परन्तु यदि तुम अपना व्यवहार ठीक रखो और (अल्लाह से) डरते रहो, तो निस्संदेह अल्लाह भी बड़ा क्षमाशील, दयावान है 4|130|और यदि दोनों अलग ही हो जाएँ तो अल्लाह अपनी समाई से एक को दूसरे से बेपररवाह कर देगा। अल्लाह बड़ी समाईवाला, तत्वदर्शी है 4|131|आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का है। तुमसे पहले जिन्हें किताब दी गई थी, उन्हें और तुम्हें भी हमने ताकीद की है कि "अल्लाह का डर रखो।" यदि तुम इनकार करते हो, तो इससे क्या होने का? आकाशों और धरती में जो कुछ है, सब अल्लाह ही का रहेगा। अल्लाह तो निस्पृह, प्रशंसनीय है 4|132|हाँ, आकाशों और धरती में जो कुछ है, अल्लाह ही का है और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है 4|133|ऐ लोगों! यदि वह चाहे तो तुम्हें हटा दे और तुम्हारी जगह दूसरों को ले आए। अल्लाह को इसकी पूरी सामर्थ्य है 4|134|जो कोई दुनिया का बदला चाहता है, तो अल्लाह के पास दुनिया का बदला भी है और आख़िरत का भी। अल्लाह सब कुछ सुनता, देखता है 4|135|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह के लिए गवाही देते हुए इनसाफ़ पर मज़बूती के साथ जमे रहो, चाहे वह स्वयं तुम्हारे अपने या माँ-बाप और नातेदारों के विरुद्ध ही क्यों न हो। कोई धनवान हो या निर्धन (जिसके विरुद्ध तुम्हें गवाही देनी पड़े) अल्लाह को उनसे (तुमसे कहीं बढ़कर) निकटता का सम्बन्ध है, तो तुम अपनी इच्छा के अनुपालन में न्याय से न हटो, क्योंकि यदि तुम हेर-फेर करोगे या कतराओगे, तो जो कुछ तुम करते हो अल्लाह को उसकी ख़बर रहेगी 4|136|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल पर और उस किताब पर जो उसने अपने रसूल पर उतारी है और उस किताब पर भी, जिसको वह इसके पहले उतार चुका है। और जिस किसी ने भी अल्लाह और उसके फ़रिश्तों और उसकी किताबों और उसके रसूलों और अन्तिम दिन का इनकार किया, तो वह भटककर बहुत दूर जा पड़ा 4|137|रहे वे लोग जो ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर ईमान लाए, फिर इनकार किया; फिर इनकार की दशा में बढते चले गए तो अल्लाह उन्हें कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें राह दिखाएगा 4|138|मुनाफ़िको (कपटाचारियों) को मंगल-सूचना दे दो कि उनके लिए दुखद यातना है; 4|139|जो ईमानवालों को छोड़कर इनकार करनेवालों को अपना मित्र बनाते है। क्या उन्हें उनके पास प्रतिष्ठा की तलाश है? प्रतिष्ठा तो सारी की सारी अल्लाह ही के लिए है 4|140|वह 'किताब' में तुमपर यह हुक्म उतार चुका है कि जब तुम सुनो कि अल्लाह की आयतों का इनकार किया जा रहा है और उसका उपहास किया जा रहा है, तो जब तब वे किसी दूसरी बात में न लगा जाएँ, उनके साथ न बैठो, अन्यथा तुम भी उन्हीं के जैसे होगे; निश्चय ही अल्लाह कपटाचारियों और इनकार करनेवालों - सबको जहन्नम में एकत्र करनेवाला है 4|141|जो तुम्हारे मामले में प्रतीक्षा करते है, यदि अल्लाह की ओर से तुम्हारी विजय़ हुई तो कहते है, "क्या हम तुम्हार साथ न थे?" और यदि विधर्मियों के हाथ कुछ लगा तो कहते है, "क्या हमने तुम्हें घेर नहीं लिया था और ईमानवालों से बचाया नहीं?" अतः अल्लाह क़ियामत के दिन तुम्हारे बीच फ़ैसला कर देगा, और अल्लाह विधर्मियों को ईमानवालों के मुक़ाबले में कोई राह नहीं देगा 4|142|कपटाचारी अल्लाह के साथ धोखबाज़ी कर रहे है, हालाँकि उसी ने उन्हें धोखे में डाल रखा है। जब वे नमाज़ के लिए खड़े होते है तो कसमसाते हुए, लोगों को दिखाने के लिए खड़े होते है। और अल्लाह को थोड़े ही याद करते है 4|143|इसी के बीच डाँवाडोल हो रहे है, न इन (ईमानवालों) की तरफ़ के है, न इन (इनकार करनेवालों) की तरफ़ के। जिसे अल्लाह भटका दे, उसके लिए तो तुम कोई राह नहीं पा सकते 4|144|ऐ ईमान लानेवालो! ईमानवालों से हटकर इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। क्या तुम चाहते हो कि अल्लाह का स्पष्टा तर्क अपने विरुद्ध जुटाओ? 4|145|निस्संदेह कपटाचारी आग (जहन्नम) के सबसे निचले खंड में होंगे, और तुम कदापि उनका कोई सहायक न पाओगे 4|146|उन लोगों की बात और है जिन्होंने तौबा कर ली और अपने को सुधार लिया और अल्लाह को मज़बूती से पकड़ लिया और अपने दीन (धर्म) में अल्लाह ही के हो रहे। ऐसे लोग ईमानवालों के साथ है और अल्लाह ईमानवालों को शीघ्र ही बड़ा प्रतिदान प्रदान करेगा 4|147|अल्लाह को तुम्हें यातना देकर क्या करना है, यदि तुम कृतज्ञता दिखलाओ और ईमान लाओ? अल्लाह गुणग्राहक, सब कुछ जाननेवाला है 4|148|अल्लाह बुरी बात खुल्लम-खुल्ला कहने को पसन्द नहीं करता, मगर उसकी बात और है जिसपर ज़ुल्म किया गया हो। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है 4|149|यदि तुम खुले रूप में नेकी और भलाई करो या उसे छिपाओ या किसी बुराई को क्षमा कर दो, तो अल्लाह भी क्षमा करनेवाला, सामर्थ्यवान है 4|150|जो लोग अल्लाह और उसके रसूलों का इनकार करते है और चाहते है कि अल्लाह और उसके रसूलों के बीच विच्छेद करें, और कहते है कि "हम कुछ को मानते है और कुछ को नहीं मानते" और इस तरह वे चाहते है कि बीच की कोई राह अपनाएँ; 4|151|वही लोग पक्के इनकार करनेवाले है और हमने इनकार करनेवालों के लिए अपमानजनक यातना तैयार कर रखी है 4|152|रहे वे लोग जो अल्लाह और उसके रसूलों पर ईमान रखते है और उनमें से किसी को उस सम्बन्ध में पृथक नहीं करते जो उनके बीच पाया जाता है, ऐसे लोगों को अल्लाह शीघ्र ही उनके प्रतिदान प्रदान करेगा। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 4|153|किताबवालों की तुमसे माँग है कि तुम उनपर आकाश से कोई किताब उतार लाओ, तो वे तो मूसा से इससे भी बड़ी माँग कर चुके है। उन्होंने कहा था, "हमें अल्लाह को प्रत्यक्ष दिखा दो," तो उनके इस अपराध पर बिजली की कड़क ने उन्हें आ दबोचा। फिर वे बछड़े को अपना उपास्य बना बैठे, हालाँकि उनके पास खुली-खुली निशानियाँ आ चुकी थी। फिर हमने उसे भी क्षमा कर दिया और मूसा का स्पष्टा बल एवं प्रभाव प्रदान किया 4|154|और उन लोगों से वचन लेने के साथ (तूर) पहाड़ को उनपर उठा दिया और उनसे कहा, "दरवाज़े में सजदा करते हुए प्रवेश करो।" और उनसे कहा, "सब्त (सामूहिक इबादत का दिन) के विषय में ज़्यादती न करना।" और हमने उनसे बहुत-ही दृढ़ वचन लिया था 4|155|फिर उनके अपने वचन भंग करने और अल्लाह की आयतों का इनकार करने के कारण और नबियों को नाहक़ क़त्ल करने और उनके यह कहने के कारण कि "हमारे हृदय आवरणों में सुरक्षित है" - नहीं, बल्कि वास्तव में उनके इनकार के कारण अल्लाह ने उनके दिलों पर ठप्पा लगा दिया है। तो ये ईमान थोड़े ही लाते है 4|156|और उनके इनकार के कारण और मरयम के ख़िलाफ ऐसी बात करने पर जो एक बड़ा लांछन था - 4|157|और उनके इस कथन के कारण कि हमने मरयम के बेटे ईसा मसीह, अल्लाह के रसूल, को क़त्ल कर डाला - हालाँकि न तो इन्होंने उसे क़त्ल किया और न उसे सूली पर चढाया, बल्कि मामला उनके लिए संदिग्ध हो गया। और जो लोग इसमें विभेद कर रहे है, निश्चय ही वे इस मामले में सन्देह में थे। अटकल पर चलने के अतिरिक्त उनके पास कोई ज्ञान न था। निश्चय ही उन्होंने उसे (ईसा को) क़त्ल नहीं किया, 4|158|बल्कि उसे अल्लाह ने अपनी ओर उठा लिया। और अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 4|159|किताबवालों में से कोई ऐसा न होगा, जो उसकी मृत्यु से पहले उसपर ईमान न ले आए। वह क़ियामत के दिन उनपर गवाह होगा 4|160|सारांश यह कि यहूदियों के अत्याचार के कारण हमने बहुत-सी अच्छी पाक चीज़े उनपर हराम कर दी, जो उनके लिए हलाल थी और उनके प्रायः अल्लाह के मार्ग से रोकने के कारण; 4|161|और उनके ब्याज लेने के कारण, जबकि उन्हें इससे रोका गया था। और उनके अवैध रूप से लोगों के माल खाने के कारण ऐसा किया गया और हमने उनमें से जिन लोगों ने इनकार किया उनके लिए दुखद यातना तैयार कर रखी है 4|162|परन्तु उनमें से जो लोग ज्ञान में पक्के है और ईमानवाले हैं, वे उस पर ईमान रखते है जो तुम्हारी ओर उतारा गया है और जो तुमसे पहले उतारा गया था, और जो विशेष रूप से नमाज़ क़ायम करते है, ज़कात देते और अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान रखते है। यही लोग है जिन्हें हम शीघ्र ही बड़ी प्रतिदान प्रदान करेंगे 4|163|हमने तुम्हारी ओर उसी प्रकार वह्यड की है जिस प्रकार नूह और उसके बाद के नबियों की ओर वह्यु की। और हमने इबराहीम, इसमाईल, इसहाक़ और याक़ूब और उसकी सन्तान और ईसा और अय्यूब और यूनुस और हारून और सुलैमान की ओर भी वह्यक की। और हमने दाउद को ज़बूर प्रदान किया 4|164|और कितने ही रसूल हुए जिनका वृतान्त पहले हम तुमसे बयान कर चुके है और कितने ही ऐसे रसूल हुए जिनका वृतान्त हमने तुमसे बयान नहीं किया। और मूसा से अल्लाह ने बातचीत की, जिस प्रकार बातचीत की जाती है 4|165|रसूल शुभ समाचार देनेवाले और सचेत करनेवाले बनाकर भेजे गए है, ताकि रसूलों के पश्चात लोगों के पास अल्लाह के मुक़ाबले में (अपने निर्दोष होने का) कोई तर्क न रहे। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 4|166|परन्तु अल्लाह गवाही देता है कि उसके द्वारा जो उसने तुम्हारी ओर उतारा है कि उसे उसने अपने ज्ञान के साथ उतारा है और फ़रिश्ते भी गवाही देते है, यद्यपि अल्लाह का गवाह होना ही काफ़ी है 4|167|निश्चय ही, जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका, वे भटककर बहुत दूर जा पड़े 4|168|जिन लोगों ने इनकार किया और ज़ुल्म पर उतर आए, उन्हें अल्लाह कदापि क्षमा नहीं करेगा और न उन्हें कोई मार्ग दिखाएगा 4|169|सिवाय जहन्नम के मार्ग के, जिसमें वे सदैव पड़े रहेंगे। और यह अल्लाह के लिए बहुत-ही सहज बात है 4|170|ऐ लोगों! रसूल तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से सत्य लेकर आ गया है। अतः तुम उस भलाई को मानो जो तुम्हारे लिए जुटाई गई। और यदि तुम इनकार करते हो तो आकाशों और धरती में जो कुछ है, वह अल्लाह ही का है। और अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, तत्वदर्शी है 4|171|ऐ किताबवालों! अपने धर्म में हद से आगे न बढ़ो और अल्लाह से जोड़कर सत्य के अतिरिक्त कोई बात न कहो। मरयम का बेटा मसीह-ईसा इसके अतिरिक्त कुछ नहीं कि अल्लाह का रसूल है और उसका एक 'कलिमा' है, जिसे उसने मरमय की ओर भेजा था। और उसकी ओर से एक रूह है। तो तुम अल्लाह पर और उसके रसूलों पर ईमान लाओ और "तीन" न कहो - बाज़ आ जाओ! यह तुम्हारे लिए अच्छा है - अल्लाह तो केवल अकेला पूज्य है। यह उसकी महानता के प्रतिकूल है कि उसका कोई बेटा हो। आकाशों और धरती में जो कुछ है, उसी का है। और अल्लाह कार्यसाधक की हैसियत से काफ़ी है 4|172|मसीह ने कदापि अपने लिए बुरा नहीं समझा कि वह अल्लाह का बन्दा हो और न निकटवर्ती फ़रिश्तों ने ही (इसे बुरा समझा) । और जो कोई अल्लाह की बन्दगी को अपने लिए बुरा समझेगा और घमंड करेगा, तो वह (अल्लाह) उन सभी लोगों को अपने पास इकट्ठा करके रहेगा 4|173|अतः जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, जो अल्लाह उन्हें उनका पूरा-पूरा बदला देगा और अपने उदार अनुग्रह से उन्हें और अधिक प्रदान करेगा। और जिन लोगों ने बन्दगी को बुरा समझा और घमंड किया, तो उन्हें वह दुखद यातना देगा। और वे अल्लाह से बच सकने के लिए न अपना कोई निकट का समर्थक पाएँगे और न ही कोई सहायक 4|174|ऐ लोगों! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से खुला प्रमाण आ चुका है और हमने तुम्हारी ओर एक स्पष्ट प्रकाश उतारा है 4|175|तो रहे वे लोग जो अल्लाह पर ईमान लाए और उसे मज़बूती के साथ पकड़े रहे, उन्हें तो शीघ्र ही अपनी दयालुता और अपने उदार अनुग्रह के क्षेत्र में दाख़िल करेगा और उन्हें अपनी ओर का सीधा मार्ग दिया देगा 4|176|वे तुमसे आदेश मालूम करना चाहते है। कह दो, "अल्लाह तुम्हें ऐसे व्यक्ति के विषय में, जिसका कोई वारिस न हो, आदेश देता है - यदि किसी पुरुष की मृत्यु हो जाए जिसकी कोई सन्तान न हो, परन्तु उसकी एक बहन हो, तो जो कुछ उसने छोड़ा है उसका आधा हिस्सा उस बहन का होगा। और भाई बहन का वारिस होगा, यदि उस (बहन) की कोई सन्तान न हो। और यदि (वारिस) दो बहनें हो, तो जो कुछ उसने छोड़ा है, उसमें से उनके लिए दो-तिहाई होगा। और यदि कई भाई-बहन (वारिस) हो तो एक पुरुष को हिस्सा दो स्त्रियों के बराबर होगा।" अल्लाह तुम्हारे लिए आदेशों को स्पष्ट करता है, ताकि तुम न भटको। और अल्लाह को हर चीज का पूरा ज्ञान है 5|1|ऐ ईमान लानेवालो! प्रतिबन्धों (प्रतिज्ञाओं, समझौतों आदि) का पूर्ण रूप से पालन करो। तुम्हारे लिए चौपायों की जाति के जानवर हलाल हैं सिवाय उनके जो तुम्हें बताए जा रहें हैं; लेकिन जब तुम इहराम की दशा में हो तो शिकार को हलाल न समझना। निस्संदेह अल्लाह जो चाहते है, आदेश देता है 5|2|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह की निशानियों का अनादर न करो; न आदर के महीनों का, न क़ुरबानी के जानवरों का और न जानवरों का जिनका गरदनों में पट्टे पड़े हो और न उन लोगों का जो अपने रब के अनुग्रह और उसकी प्रसन्नता की चाह में प्रतिष्ठित गृह (काबा) को जाते हो। और जब इहराम की दशा से बाहर हो जाओ तो शिकार करो। और ऐसा न हो कि एक गिरोह की शत्रुता, जिसने तुम्हारे लिए प्रतिष्ठित घर का रास्ता बन्द कर दिया था, तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम ज़्यादती करने लगो। हक़ अदा करने और ईश-भय के काम में तुम एक-दूसरे का सहयोग करो और हक़ मारने और ज़्यादती के काम में एक-दूसरे का सहयोग न करो। अल्लाह का डर रखो; निश्चय ही अल्लाह बड़ा कठोर दंड देनेवाला है 5|3|तुम्हारे लिए हराम हुआ मुर्दार रक्त, सूअर का मांस और वह जानवर जिसपर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो और वह जो घुटकर या चोट खाकर या ऊँचाई से गिरकर या सींग लगने से मरा हो या जिसे किसी हिंसक पशु ने फाड़ खाया हो - सिवाय उसके जिसे तुमने ज़बह कर लिया हो - और वह किसी थान पर ज़बह कियी गया हो। और यह भी (तुम्हारे लिए हराम हैं) कि तीरो के द्वारा किस्मत मालूम करो। यह आज्ञा का उल्लंघन है - आज इनकार करनेवाले तुम्हारे धर्म की ओर से निराश हो चुके हैं तो तुम उनसे न डरो, बल्कि मुझसे डरो। आज मैंने तुम्हारे धर्म को पूर्ण कर दिया और तुमपर अपनी नेमत पूरी कर दी और मैंने तुम्हारे धर्म के रूप में इस्लाम को पसन्द किया - तो जो कोई भूख से विवश हो जाए, परन्तु गुनाह की ओर उसका झुकाव न हो, तो निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 5|4|वे तुमसे पूछते है कि "उनके लिए क्या हलाल है?" कह दो, "तुम्हारे लिए सारी अच्छी स्वच्छ चीज़ें हलाल है और जिन शिकारी जानवरों को तुमने सधे हुए शिकारी जानवर के रूप में सधा रखा हो - जिनको जैस अल्लाह ने तुम्हें सिखाया हैं, सिखाते हो - वे जिस शिकार को तुम्हारे लिए पकड़े रखे, उसको खाओ और उसपर अल्लाह का नाम लो। और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह जल्द हिसाब लेनेवाला है।" 5|5|आज तुम्हारे लिए अच्छी स्वच्छ चीज़ें हलाल कर दी गई और जिन्हें किताब दी गई उनका भोजन भी तुम्हारे लिए हलाल है और तुम्हारा भोजन उनके लिए हलाल है और शरीफ़ और स्वतंत्र ईमानवाली स्त्रियाँ भी जो तुमसे पहले के किताबवालों में से हो, जबकि तुम उनका हक़ (मेहर) देकर उन्हें निकाह में लाओ। न तो यह काम स्वछन्द कामतृप्ति के लिए हो और न चोरी-छिपे याराना करने को। और जिस किसी ने ईमान से इनकार किया, उसका सारा किया-धरा अकारथ गया और वह आख़िरत में भी घाटे में रहेगा 5|6|ऐ ईमान लेनेवालो! जब तुम नमाज़ के लिए उठो तो अपने चहरों को और हाथों को कुहनियों तक धो लिया करो और अपने सिरों पर हाथ फेर लो और अपने पैरों को भी टखनों तक धो लो। और यदि नापाक हो तो अच्छी तरह पाक हो जाओ। परन्तु यदि बीमार हो या सफ़र में हो या तुममें से कोई शौच करके आया हो या तुमने स्त्रियों को हाथ लगया हो, फिर पानी न मिले तो पाक मिट्टी से काम लो। उसपर हाथ मारकर अपने मुँह और हाथों पर फेर लो। अल्लाह तुम्हें किसी तंगी में नहीं डालना चाहता। अपितु वह चाहता हैं कि तुम्हें पवित्र करे और अपनी नेमत तुमपर पूरी कर दे, ताकि तुम कृतज्ञ बनो 5|7|और अल्लाह के उस अनुग्रह को याद करो जो उसने तुमपर किया हैं और उस प्रतिज्ञा को भी जो उसने तुमसे की है, जबकि तुमने कहा था - "हमने सुना और माना।" अल्लाह जो कुछ सीनों (दिलों) में है, उसे भी जानता हैं 5|8|ऐ ईमान लेनेवालो! अल्लाह के लिए खूब उठनेवाले, इनसाफ़ की निगरानी करनेवाले बनो और ऐसा न हो कि किसी गिरोह की शत्रुता तुम्हें इस बात पर उभार दे कि तुम इनसाफ़ करना छोड़ दो। इनसाफ़ करो, यही धर्मपरायणता से अधिक निकट है। अल्लाह का डर रखो, निश्चय ही जो कुछ तुम करते हो, अल्लाह को उसकी ख़बर हैं 5|9|जो लोग ईमान लाए और उन्होंन अच्छे कर्म किए उनसे अल्लाह का वादा है कि उनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है 5|10|रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वही भड़कती आग में पड़नेवाले है 5|11|ऐ ईमान लेनेवालो! अल्लाह के उस अनुग्रह को याद करो जो उसने तुमपर किया है, जबकि कुछ लोगों ने तुम्हारी ओर हाथ बढ़ाने का निश्चय कर लिया था तो उसने उनके हाथ तुमसे रोक दिए। अल्लाह का डर रखो, और ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए 5|12|अल्लाह ने इसराईल की सन्तान से वचन लिया था और हमने उनमें से बारह सरदार नियुक्त किए थे। और अल्लाह ने कहा, "मैं तुम्हारे साथ हूँ, यदि तुमने नमाज़ क़ायम रखी, ज़कात देते रहे, मेरे रसूलों पर ईमान लाए और उनकी सहायता की और अल्लाह को अच्छा ऋण दिया तो मैं अवश्य तुम्हारी बुराइयाँ तुमसे दूर कर दूँगा और तुम्हें निश्चय ही ऐसे बाग़ों में दाख़िल करूँगा, जिनके नीचे नहरें बह रही होगी। फिर इसके पश्चात तुमनें से जिनसे इनकार किया, तो वास्तव में वह ठीक और सही रास्ते से भटक गया।" 5|13|फिर उनके बार-बार अपने वचन को भंग कर देने के कारण हमने उनपर लानत की और उनके हृदय कठोर कर दिए। वे शब्दों को उनके स्थान से फेरकर कुछ का कुछ कर देते है और जिनके द्वारा उन्हें याद दिलाया गया था, उसका एक बड़ा भाग वे भुला बैठे। और तुम्हें उनके किसी न किसी विश्वासघात का बराबर पता चलता रहेगा। उनमें ऐसा न करनेवाले थोड़े लोग है, तो तुम उन्हें क्षमा कर दो और उन्हें छोड़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय है जो उत्तमकर्मी है 5|14|और हमने उन लोगों से भी दृढ़ वचन लिया था, जिन्होंने कहा था कि हम नसारा (ईसाई) हैं, किन्तु जो कुछ उन्हें जिसके द्वारा याद कराया गया था उसका एक बड़ा भाग भुला बैठे। फिर हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष की आग भड़का दी, और अल्लाह जल्द उन्हें बता देगा, जो कुछ वे बनाते रहे थे 5|15|ऐ किताबवालों! हमारा रसूल तुम्हारे पास आ गया है। किताब की जो बातें तुम छिपाते थे, उसमें से बहुत-सी बातें वह तुम्हारे सामने खोल रहा है और बहुत-सी बातों को छोड़ देता है। तुम्हारे पास अल्लाह की ओर से प्रकाश और एक स्पष्ट किताब आ गई है, 5|16|जिसके द्वारा अल्लाह उस व्यक्ति को जो उसकी प्रसन्नता का अनुगामी है, सलामती की राहें दिखा रहा है और अपनी अनुज्ञा से ऐसे लोगों को अँधेरों से निकालकर उजाले की ओर ला रहा है और उन्हें सीधे मार्ग पर चला रहा है 5|17|निश्चय ही उन लोगों ने इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह तो वही मरयम का बेटा मसीह है।" कहो, "अल्लाह के आगे किसका कुछ बस चल सकता है, यदि वह मरयम का पुत्र मसीह को और उसकी माँ (मरयम) को और समस्त धरतीवालो को विनष्ट करना चाहे? और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आकाशों और धरती की ओर जो कुछ उनके मध्य है उसकी भी। वह जो चाहता है पैदा करता है। और अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" 5|18|यहूदी और ईसाई कहते है, "हम तो अल्लाह के बेटे और उसके चहेते है।" कहो, "फिर वह तुम्हें तुम्हारे गुनाहों पर दंड क्यों देता है? बात यह नहीं है, बल्कि तुम भी उसके पैदा किए हुए प्राणियों में से एक मनुष्य हो। वह जिसे चाहे क्षमा करे और जिसे चाहे दंड दे।" और अल्लाह ही के लिए है बादशाही आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके बीच है वह भी, और जाना भी उसी की ओर है 5|19|ऐ किताबवालो! हमारा रसूल ऐसे समय तुम्हारे पास आया है और तुम्हारे लिए (हमारा आदेश) खोल-खोलकर बयान करता है, जबकि रसूलों के आने का सिलसिला एक मुद्दत से बन्द था, ताकि तुम यह न कह सको कि "हमारे पास कोई शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला नहीं आया।" तो देखो! अब तुम्हारे पास शुभ-समाचार देनेवाला और सचेत करनेवाला आ गया है। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 5|20|और याद करो जब मूसा ने अपनी क़ौम के लोगों से कहा था, "ऐ लोगों! अल्लाह की उस नेमत को याद करो जो उसने तुम्हें प्रदान की है। उसनें तुममें नबी पैदा किए और तुम्हें शासक बनाया और तुमको वह कुछ दिया जो संसार में किसी को नहीं दिया था 5|21|"ऐ मेरे लोगो! इस पवित्र भूमि में प्रवेश करो, जो अल्लाह ने तुम्हारे लिए लिख दी है। और पीछे न हटो, अन्यथा, घाटे में पड़ जाओगे।" 5|22|उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! उसमें तो बड़े शक्तिशाली लोग रहते है। हम तो वहाँ कदापि नहीं जा सकते, जब तक कि वे वहाँ से निकल नहीं जाते। हाँ, यदि वे वहाँ से निकल जाएँ, तो हम अवश्य प्रविष्ट हो जाएँगे।" 5|23|उन डरनेवालों में से ही दो व्यक्ति ऐसे भी थे जिनपर अल्लाह का अनुग्रह था। उन्होंने कहा, "उन लोगों के मुक़ाबले में दरवाज़े से प्रविष्ट हो जाओ। जब तुम उसमें प्रविष्टि हो जाओगे, तो तुम ही प्रभावी होगे। अल्लाह पर भरोसा रखो, यदि तुम ईमानवाले हो।" 5|24|उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! जब तक वे लोग वहाँ है, हम तो कदापि नहीं जाएँगे। ऐसा ही है तो जाओ तुम और तुम्हारा रब, और दोनों लड़ो। हम तो यहीं बैठे रहेंगे।" 5|25|उसने कहा, "मेरे रब! मेरा स्वयं अपने और अपने भाई के अतिरिक्त किसी पर अधिकार नहीं है। अतः तू हमारे और इन अवज्ञाकारी लोगों के बीच अलगाव पैदा कर दे।" 5|26|कहा, "अच्छा तो अब यह भूमि चालीस वर्ष कर इनके लिए वर्जित है। ये धरती में मारे-मारे फिरेंगे तो तुम इन अवज्ञाकारी लोगों के प्रति शोक न करो" 5|27|और इन्हें आदम के दो बेटों का सच्चा वृतान्त सुना दो। जब दोनों ने क़ुरबानी की, तो उनमें से एक की क़ुरबानी स्वीकृत हुई और दूसरे की स्वीकृत न हुई। उसने कहा, "मै तुझे अवश्य मार डालूँगा।" दूसरे न कहा, "अल्लाह तो उन्हीं की (क़ुरबानी) स्वीकृत करता है, जो डर रखनेवाले है। 5|28|"यदि तू मेरी हत्या करने के लिए मेरी ओर हाथ बढ़ाएगा तो मैं तेरी हत्या करने के लिए तेरी ओर अपना हाथ नहीं बढ़ाऊँगा। मैं तो अल्लाह से डरता हूँ, जो सारे संसार का रब है 5|29|"मैं तो चाहता हूँ कि मेरा गुनाह और अपना गुनाह तू ही अपने सिर ले ले, फिर आग (जहन्नम) में पड़नेवालों में से एक हो जाए, और वही अत्याचारियों का बदला है।" 5|30|अन्ततः उसके जी ने उस अपने भाई की हत्या के लिए उद्यत कर दिया, तो उसने उसकी हत्या कर डाली और घाटे में पड़ गया 5|31|तब अल्लाह ने एक कौआ भेजा जो भूमि कुरेदने लगा, ताकि उसे दिखा दे कि वह अपने भाई के शव को कैसे छिपाए। कहने लगा, "अफ़सोस मुझ पर! क्या मैं इस कौए जैसा भी न हो सका कि अपने भाई का शव छिपा देता?" फिर वह लज्जित हुआ 5|32|इसी कारण हमने इसराईल का सन्तान के लिए लिख दिया था कि जिसने किसी व्यक्ति को किसी के ख़ून का बदला लेने या धरती में फ़साद फैलाने के अतिरिक्त किसी और कारण से मार डाला तो मानो उसने सारे ही इनसानों की हत्या कर डाली। और जिसने उसे जीवन प्रदान किया, उसने मानो सारे इनसानों को जीवन दान किया। उसने पास हमारे रसूल स्पष्टि प्रमाण ला चुके हैं, फिर भी उनमें बहुत-से लोग धरती में ज़्यादतियाँ करनेवाले ही हैं 5|33|जो लोग अल्लाह और उसके रसूल से लड़ते है और धरती के लिए बिगाड़ पैदा करने के लिए दौड़-धूप करते है, उनका बदला तो बस यही है कि बुरी तरह से क़त्ल किए जाए या सूली पर चढ़ाए जाएँ या उनके हाथ-पाँव विपरीत दिशाओं में काट डाले जाएँ या उन्हें देश से निष्कासित कर दिया जाए। यह अपमान और तिरस्कार उनके लिए दुनिया में है और आख़िरत में उनके लिए बड़ी यातना है 5|34|किन्तु जो लोग, इससे पहले कि तुम्हें उनपर अधिकार प्राप्त हो, पलट आएँ (अर्थात तौबा कर लें) तो ऐसी दशा में तुम्हें मालूम होना चाहिए कि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 5|35|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखो और उसका सामीप्य प्राप्त करो और उसके मार्ग में जी-तोड़ संघर्ष करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो 5|36|जिन लोगों ने इनकार किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो सारी धरती में है और उतना ही उसके साथ भी हो कि वह उसे देकर क़ियामत के दिन की यातना से बच जाएँ; तब भी उनकी ओर से यह सब दी जानेवाली वस्तुएँ स्वीकार न की जाएँगी। उनके लिए दुखद यातना ही है 5|37|वे चाहेंगे कि आग (जहन्नम) से निकल जाएँ, परन्तु वे उससे न निकल सकेंगे। उनके लिए चिरस्थायी यातना है 5|38|और चोर चाहे स्त्री हो या पुरुष दोनों के हाथ काट दो। यह उनकी कमाई का बदला है और अल्लाह की ओर से शिक्षाप्रद दंड। अल्लाह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 5|39|फिर जो व्यक्ति अत्याचार करने के बाद पलट आए और अपने को सुधार ले, तो निश्चय ही वह अल्लाह की कृपा का पात्र होगा। निस्संदेह, अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 5|40|क्या तुम नहीं जानते कि अल्लाह ही आकाशों और धरती के राज्य का अधिकारी है? वह जिसे चाहे यातना दे और जिसे चाहे क्षमा कर दे। अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 5|41|ऐ रसूल! जो लोग अधर्म के मार्ग में दौड़ते है, उनके कारण तुम दुखी न होना; वे जिन्होंने अपने मुँह से कहा कि "हम ईमान ले आए," किन्तु उनके दिल ईमान नहीं लाए; और वे जो यहूदी हैं, वे झूठ के लिए कान लगाते हैं और उन दूसरे लोगों की भली-भाँति सुनते है, जो तुम्हारे पास नहीं आए, शब्दों को उनका स्थान निश्चित होने के बाद भी उनके स्थान से हटा देते है। कहते है, "यदि तुम्हें यह (आदेश) मिले, तो इसे स्वीकार करना और यदि न मिले तो बचना।" जिसे अल्लाह ही आपदा में डालना चाहे उसके लिए अल्लाह के यहाँ तुम्हारी कुछ भी नहीं चल सकती। ये वही लोग है जिनके दिलों को अल्लाह ने स्वच्छ करना नहीं चाहा। उनके लिए संसार में भी अपमान और तिरस्कार है और आख़िरत में भी बड़ी यातना है 5|42|वे झूठ के लिए कान लगाते रहनेवाले और बड़े हराम खानेवाले है। अतः यदि वे तुम्हारे पास आएँ, तो या तुम उनके बीच फ़ैसला कर दो या उन्हें टाल जाओ। यदि तुम उन्हें टाल गए तो वे तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। परन्तु यदि फ़ैसला करो तो उनके बीच इनसाफ़ के साथ फ़ैसला करो। निश्चय ही अल्लाह इनसाफ़ करनेवालों से प्रेम करता है 5|43|वे तुमसे फ़ैसला कराएँगे भी कैसे, जबकि उनके पास तौरात है, जिसमें अल्लाह का हुक्म मौजूद है! फिर इसके पश्चात भी वे मुँह मोड़ते है। वे तो ईमान नहीं रखते 5|44|निस्संदेह हमने तौरात उतारी, जिसमें मार्गदर्शन और प्रकाश था। नबी जो आज्ञाकारी थे, उसको यहूदियों के लिए अनिवार्य ठहराते थे कि वे उसका पालन करें और इसी प्रकार अल्लाहवाले और शास्त्रवेत्ता भी। क्योंकि उन्हें अल्लाह की किताब की सुरक्षा का आदेश दिया गया था और वे उसके संरक्षक थे। तो तुम लोगों से न डरो, बल्कि मुझ ही से डरो और मेरी आयतों के बदले थोड़ा मूल्य प्राप्त न करना। जो लोग उस विधान के अनुसार फ़ैसला न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है, तो ऐसे ही लोग विधर्मी है 5|45|और हमने उस (तौरात) में उनके लिए लिख दिया था कि जान जान के बराबर है, आँख आँख के बराहर है, नाक नाक के बराबर है, कान कान के बराबर, दाँत दाँत के बराबर और सब आघातों के लिए इसी तरह बराबर का बदला है। तो जो कोई उसे क्षमा कर दे तो यह उसके लिए प्रायश्चित होगा और जो लोग उस विधान के अनुसार फ़ैसला न करें, जिसे अल्लाह ने उतारा है जो ऐसे लोग अत्याचारी है 5|46|और उनके पीछ उन्हीं के पद-चिन्हों पर हमने मरयम के बेटे ईसा को भेजा जो पहले से उसके सामने मौजूद किताब 'तौरात' की पुष्टि करनेवाला था। और हमने उसे इनजील प्रदान की, जिसमें मार्गदर्शन और प्रकाश था। और वह अपनी पूर्ववर्ती किताब तौरात की पुष्टि करनेवाली थी, और वह डर रखनेवालों के लिए मार्गदर्शन और नसीहत थी 5|47|अतः इनजील वालों को चाहिए कि उस विधान के अनुसार फ़ैसला करें, जो अल्लाह ने उस इनजील में उतारा है। और जो उसके अनुसार फ़ैसला न करें, जो अल्लाह ने उतारा है, तो ऐसे ही लोग उल्लंघनकारी है 5|48|और हमने तुम्हारी ओर यह किताब हक़ के साथ उतारी है, जो उस किताब की पुष्टि करती है जो उसके पहले से मौजूद है और उसकी संरक्षक है। अतः लोगों के बीच तुम मामलों में वही फ़ैसला करना जो अल्लाह ने उतारा है और जो सत्य तुम्हारे पास आ चुका है उसे छोड़कर उनकी इच्छाओं का पालन न करना। हमने तुममें से प्रत्येक के लिए एक ही घाट (शरीअत) और एक ही मार्ग निश्चित किया है। यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक समुदाय बना देता। परन्तु जो कुछ उसने तुम्हें दिया है, उसमें वह तुम्हारी परीक्षा करना चाहता है। अतः भलाई के कामों में एक-दूसरे से आगे बढ़ो। तुम सबको अल्लाह ही की ओर लौटना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जिसमें तुम विभेद करते रहे हो 5|49|और यह कि तुम उनके बीच वही फ़ैसला करो जो अल्लाह ने उतारा है और उनकी इच्छाओं का पालन न करो और उनसे बचते रहो कि कहीं ऐसा न हो कि वे तुम्हें फ़रेब में डालकर जो कुछ अल्लाह ने तुम्हारी ओर उतारा है उसके किसी भाग से वे तुम्हें हटा दें। फिर यदि वे मुँह मोड़े तो जान लो कि अल्लाह ही उनके गुनाहों के कारण उन्हें संकट में डालना चाहता है। निश्चय ही अधिकांश लोग उल्लंघनकारी है 5|50|अब क्या वे अज्ञान का फ़ैसला चाहते है? तो विश्वास करनेवाले लोगों के लिए अल्लाह से अच्छा फ़ैसला करनेवाला कौन हो सकता है? 5|51|ऐ ईमान लानेवालो! तुम यहूदियों और ईसाइयों को अपना मित्र (राज़दार) न बनाओ। वे (तुम्हारे विरुद्ध) परस्पर एक-दूसरे के मित्र है। तुममें से जो कोई उनको अपना मित्र बनाएगा, वह उन्हीं लोगों में से होगा। निस्संदेह अल्लाह अत्याचारियों को मार्ग नहीं दिखाता 5|52|तो तुम देखते हो कि जिन लोगों के दिलों में रोग है, वे उनके यहाँ जाकर उनके बीच दौड़-धूप कर रहे है। वे कहते है, "हमें भय है कि कहीं हम किसी संकट में न ग्रस्त हो जाएँ।" तो सम्भव है कि जल्द ही अल्लाह (तुम्हे) विजय प्रदान करे या उसकी ओर से कोई और बात प्रकट हो। फिर तो ये लोग जो कुछ अपने जी में छिपाए हुए है, उसपर लज्जित होंगे 5|53|उस समय ईमानवाले कहेंगे, "क्या ये वही लोग है जो अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाकर विश्वास दिलाते थे कि हम तुम्हारे साथ है?" इनका किया-धरा सब अकारथ गया और ये घाटे में पड़कर रहे 5|54|ऐ ईमान लानेवालो! तुममें से जो कोई अपने धर्म से फिरेगा तो अल्लाह जल्द ही ऐसे लोगों को लाएगा जिनसे उसे प्रेम होगा और जो उससे प्रेम करेंगे। वे ईमानवालों के प्रति नरम और अविश्वासियों के प्रति कठोर होंगे। अल्लाह की राह में जी-तोड़ कोशिश करेंगे और किसी भर्त्सना करनेवाले की भर्त्सना से न डरेंगे। यह अल्लाह का उदार अनुग्रह है, जिसे चाहता है प्रदान करता है। अल्लाह बड़ी समाईवाला, सर्वज्ञ है 5|55|तुम्हारे मित्र को केवल अल्लाह और उसका रसूल और वे ईमानवाले है; जो विनम्रता के साथ नमाज़ क़ायम करते है और ज़कात देते है 5|56|अब जो कोई अल्लाह और उसके रसूल और ईमानवालों को अपना मित्र बनाए, तो निश्चय ही अल्लाह का गिरोह प्रभावी होकर रहेगा 5|57|ऐ ईमान लानेवालो! तुमसे पहले जिनको किताब दी गई थी, जिन्होंने तुम्हारे धर्म को हँसी-खेल बना लिया है, उन्हें और इनकार करनेवालों को अपना मित्र न बनाओ। और अल्लाह का डर रखों यदि तुम ईमानवाले हो 5|58|जब तुम नमाज़ के लिए पुकारते हो तो वे उसे हँसी और खेल बना लेते है। इसका कारण यह है कि वे बुद्धिहीन लोग है 5|59|कहो, "ऐ किताबवालों! क्या इसके सिवा हमारी कोई और बात तुम्हें बुरी लगती है कि हम अल्लाह और उस चीज़ पर ईमान लाए, जो हमारी ओर उतारी गई, और जो पहले उतारी जा चुकी है? और यह कि तुममें से अधिकांश लोग अवज्ञाकारी है।" 5|60|कहो, "क्या मैं तुम्हें बताऊँ कि अल्लाह के यहाँ परिणाम की स्पष्ट से इससे भी बुरी नीति क्या है? कौन गिरोह है जिसपर अल्लाह की फिटकार पड़ी और जिसपर अल्लाह का प्रकोप हुआ और जिसमें से उसने बन्दर और सूअर बनाए और जिसने बढ़े हुए फ़सादी (ताग़ूत) की बन्दगी की, वे लोग (तुमसे भी) निकृष्ट दर्जे के थे। और वे (तुमसे भी अधिक) सीधे मार्ग से भटके हुए थे।" 5|61|जब वे (यहूदी) तुम लोगों के पास आते है तो कहते है, "हम ईमान ले आए।" हालाँकि वे इनकार के साथ आए थे और उसी के साथ चले गए। अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वे छिपाते है 5|62|तुम देखते हो कि उनमें से बहुतेरे लोग हक़ मारने, ज़्यादती करने और हरामख़ोरी में बड़ी तेज़ी दिखाते है। निश्चय ही बहुत ही बुरा है, जो वे कर रहे है 5|63|उनके सन्त और धर्मज्ञाता उन्हें गुनाह की बात बकने और हराम खाने से क्यों नहीं रोकते? निश्चय ही बहुत बुरा है जो काम वे कर रहे है 5|64|और यहूदी कहते है, "अल्लाह का हाथ बँध गया है।" उन्हीं के हाथ-बँधे है, और फिटकार है उनपर, उस बकबास के कारण जो वे करते है, बल्कि उसके दोनो हाथ तो खुले हुए है। वह जिस तरह चाहता है, ख़र्च करता है। जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर उतारा गया है, उससे अवश्य ही उनके अधिकतर लोगों की सरकशी और इनकार ही में अभिवृद्धि होगी। और हमने उनके बीच क़ियामत तक के लिए शत्रुता और द्वेष डाल दिया है। वे जब भी युद्ध की आग भड़काते है, अल्लाह उसे बुझा देता है। वे धरती में बिगाड़ फैलाने के लिए प्रयास कर रहे है, हालाँकि अल्लाह बिगाड़ फैलानेवालों को पसन्द नहीं करता 5|65|और यदि किताबवाले ईमान लाते और (अल्लाह का) डर रखते तो हम उनकी बुराइयाँ उनसे दूर कर देते और उन्हें नेमत भरी जन्नतों में दाख़िल कर देते 5|66|और यदि वे तौरात और इनजील को और जो कुछ उनके रब की ओर से उनकी ओर उतारा गया है, उसे क़ायम रखते, तो उन्हें अपने ऊपर से भी खाने को मिलता और अपने पाँव के नीचे से भी। उनमें से एक गिरोह सीधे मार्ग पर चलनेवाला भी है, किन्तु उनमें से अधिकतर ऐसे है कि जो भी करते है बुरा होता है 5|67|ऐ रसूल! तुम्हारे रब की ओर से तुम पर जो कुछ उतारा गया है, उसे पहुँचा दो। यदि ऐसा न किया तो तुमने उसका सन्देश नहीं पहुँचाया। अल्लाह तुम्हें लोगों (की बुराइयों) से बचाएगा। निश्चय ही अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को मार्ग नहीं दिखाता 5|68|कह दो, ॅ"ऐ किताबवालो! तुम किसी भी चीज़ पर नहीं हो, जब तक कि तौरात और इनजील को और जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, उसे क़ायम न रखो।" किन्तु (ऐ नबी!) तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर जो कुछ अवतरित हुआ है, वह अवश्य ही उनमें से बहुतों की सरकशी और इनकार में अभिवृद्धि करनेवाला है। अतः तुम इनकार करनेवाले लोगों की दशा पर दुखी न होना 5|69|निस्संदेह वे लोग जो ईमान लाए है और जो यहूदी हुए है और साबई और ईसाई, उनमें से जो कोई भी अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान लाए और अच्छा कर्म करे तो ऐसे लोगों को न तो कोई डर होगा और न वे शोकाकुल होंगे 5|70|हमने इसराईल की सन्तान से दृढ़ वचन लिया और उनकी ओर रसूल भेजे। उनके पास जब भी कोई रसूल वह कुछ लेकर आया जो उन्हें पसन्द न था, तो कितनों को तो उन्होंने झुठलाया और कितनों की हत्या करने लगे 5|71|और उन्होंने समझा कि कोई आपदा न आएगी; इसलिए वे अंधे और बहरे बन गए। फिर अल्लाह ने उनपर दयादृष्टि की, फिर भी उनमें से बहुत-से अंधे और बहरे हो गए। अल्लाह देख रहा है, जो कुछ वे करते है 5|72|निश्चय ही उन्होंने (सत्य का) इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह मरयम का बेटा मसीह ही है।" जब मसीह ने कहा था, "ऐ इसराईल की सन्तान! अल्लाह की बन्दगी करो, जो मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है। जो कोई अल्लाह का साझी ठहराएगा, उसपर तो अल्लाह ने जन्नत हराम कर दी है और उसका ठिकाना आग है। अत्याचारियों को कोई सहायक नहीं।" 5|73|निश्चय ही उन्होंने इनकार किया, जिन्होंने कहा, "अल्लाह तीन में का एक है।" हालाँकि अकेले पूज्य के अतिरिक्त कोई पूज्य नहीं। जो कुछ वे कहते है यदि इससे बाज़ न आएँ तो उनमें से जिन्होंने इनकार किया है, उन्हें दुखद यातना पहुँचकर रहेगी 5|74|फिर क्या वे लोग अल्लाह की ओर नहीं पलटेंगे और उससे क्षमा याचना नहीं करेंगे, जबकि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 5|75|मरयम का बेटा मसीह एक रसूल के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं। उससे पहले भी बहुत-से रसूल गुज़र चुके हैं। उसकी माण अत्यन्त सत्यवती थी। दोनों ही भोजन करते थे। देखो, हम किस प्रकार उनके सामने निशानियाँ स्पष्ट करते है; फिर देखो, ये किस प्रकार उलटे फिरे जा रहे है! 5|76|कह दो, "क्या तुम अल्लाह से हटकर उसकी बन्दगी करते हो जो न तुम्हारी हानि का अधिकारी है, न लाभ का? हालाँकि सुननेवाला, जाननेवाला अल्लाह ही है।" 5|77|कह दो, "ऐ किताबवालो! अपने धर्म में नाहक़ हद से आगे न बढ़ो और उन लोगों की इच्छाओं का पालन न करो, जो इससे पहले स्वयं पथभ्रष्ट हुए और बहुतो को पथभ्रष्ट किया और सीधे मार्ग से भटक गए 5|78|इसराईल की सन्तान में से जिन लोगों ने इनकार किया, उनपर दाऊद और मरयम के बेटे ईसा की ज़बान से फिटकार पड़ी, क्योंकि उन्होंने अवज्ञा की और वे हद से आगे बढ़े जा रहे थे 5|79|जो बुरा काम वे करते थे, उससे वे एक-दूसरे को रोकते न थे। निश्चय ही बहुत ही बुरा था, जो वे कर रहे थे 5|80|तुम उनमें से बहुतेरे लोगों को देखते हो जो इनकार करनेवालो से मित्रता रखते है। निश्चय ही बहुत बुरा है, जो उन्होंने अपने आगे रखा है। अल्लाह का उनपर प्रकोप हुआ और यातना में वे सदैव ग्रस्त रहेंगे 5|81|और यदि वे अल्लाह और नबी पर और उस चीज़ पर ईमान लाते, जो उसकी ओर अवतरित हुईस तो वे उनको मित्र न बनाते। किन्तु उनमें अधिकतर अवज्ञाकारी है 5|82|तुम ईमानवालों का शत्रु सब लोगों से बढ़कर यहूदियों और बहुदेववादियों को पाओगे। और ईमान लानेवालो के लिए मित्रता में सबसे निकट उन लोगों को पाओगे, जिन्होंने कहा कि 'हम नसारा हैं।' यह इस कारण है कि उनमें बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी सन्त पाए जाते हैं। और इस कारण कि वे अहंकार नहीं करते 5|83|जब वे उसे सुनते है जो रसूल पर अवतरित हुआ तो तुम देखते हो कि उनकी आँखे आँसुओ से छलकने लगती है। इसका कारण यह है कि उन्होंने सत्य को पहचान लिया। वे कहते हैं, "हमारे रब! हम ईमान ले आए। अतएव तू हमारा नाम गवाही देनेवालों में लिख ले 5|84|"और हम अल्लाह पर और जो सत्य हमारे पास पहुँचा है उसपर ईमान क्यों न लाएँ, जबकि हमें आशा है कि हमारा रब हमें अच्छे लोगों के साथ (जन्नत में) प्रविष्ट, करेगा।" 5|85|फिर अल्लाह ने उनके इस कथन के कारण उन्हें ऐसे बाग़ प्रदान किए, जिनके नीचे नहरें बहती है, जिनमें वे सदैव रहेंगे। और यही सत्कर्मी लोगो का बदला है 5|86|रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया और हमारी आयतों को झुठलाया, वे भड़कती आग (में पड़ने) वाले है 5|87|ऐ ईमान लानेवालो! जो अच्छी पाक चीज़े अल्लाह ने तुम्हारे लिए हलाल की है, उन्हें हराम न कर लो और हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही अल्लाह को वे लोग प्रिय नहीं है, जो हद से आगे बढ़ते है 5|88|जो कुछ अल्लाह ने हलाल और पाक रोज़ी तुम्हें ही है, उसे खाओ और अल्लाह का डर रखो, जिसपर तुम ईमान लाए हो 5|89|तुम्हारी उन क़समों पर अल्लाह तुम्हें नहीं पकड़ता जो यूँ ही असावधानी से ज़बान से निकल जाती है। परन्तु जो तुमने पक्की क़समें खाई हों, उनपर वह तुम्हें पकड़ेगा। तो इसका प्रायश्चित दस मुहताजों को औसत दर्जें का खाना खिला देना है, जो तुम अपने बाल-बच्चों को खिलाते हो या फिर उन्हें कपड़े पहनाना या एक ग़ुलाम आज़ाद करना होगा। और जिसे इसकी सामर्थ्य न हो, तो उसे तीन दिन के रोज़े रखने होंगे। यह तुम्हारी क़समों का प्रायश्चित है, जबकि तुम क़सम खा बैठो। तुम अपनी क़समों की हिफ़ाजत किया करो। इस प्रकार अल्लाह अपनी आयतें तुम्हारे सामने खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ 5|90|ऐ ईमान लानेवालो! ये शराब और जुआ और देवस्थान और पाँसे तो गन्दे शैतानी काम है। अतः तुम इनसे अलग रहो, ताकि तुम सफल हो 5|91|शैतान तो बस यही चाहता है कि शराब और जुए के द्वारा तुम्हारे बीच शत्रुता और द्वेष पैदा कर दे और तुम्हें अल्लाह की याद से और नमाज़ से रोक दे, तो क्या तुम बाज़ न आओगे? 5|92|अल्लाह की आज्ञा का पालन करो और रसूल की आज्ञा का पालन करो और बचते रहो, किन्तु यदि तुमने मुँह मोड़ा तो जान लो कि हमारे रसूल पर केवल स्पष्ट रूप से (संदेश) पहुँचा देने की ज़िम्मेदारी है 5|93|जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, वे पहले जो कुछ खा-पी चुके उसके लिए उनपर कोई गुनाह नहीं; जबकि वे डर रखें और ईमान पर क़ायम रहें और अच्छे कर्म करें। फिर डर रखें और ईमान लाए, फिर डर रखे और अच्छे से अच्छा कर्म करें। अल्लाह सत्कर्मियों से प्रेम करता है 5|94|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह उस शिकार के द्वारा तुम्हारी अवश्य परीक्षा लेगा जिस तक तुम्हारे हाथ और नेज़े पहुँच सकें, ताकि अल्लाह यह जान ले कि उससे बिन देखे कौन डरता है। फिर इसके पश्चात जिसने ज़्यादती की, उसके लिए दुखद यातना है 5|95|ऐ ईमान लानेवालो! इहराम की हालत में तुम शिकार न मारो। तुम में जो कोई जान-बूझकर उसे मारे, तो उसने जो जानवर मारा हो, चौपायों में से उसी जैसा एक जानवर - जिसका फ़ैसला तुम्हारे दो न्यायप्रिय व्यक्ति कर दें - काबा पहुँचाकर क़ुरबान किया जाए, या प्रायश्चित के रूप में मुहताजों को भोजन कराना होगा या उसके बराबर रोज़े रखने होंगे, ताकि वह अपने किए का मज़ा चख ले। जो पहले हो चुका उसे अल्लाह ने क्षमा कर दिया; परन्तु जिस किसी ने फिर ऐसा किया तो अल्लाह उससे बदला लेगा। अल्लाह प्रभुत्वशाली, बदला लेनेवाला है 5|96|तुम्हारे लिए जल की शिकार और उसका खाना हलाल है कि तुम उससे फ़ायदा उठाओ और मुसाफ़िर भी। किन्तु थलीय शिकार जब तक तुम इहराम में हो, तुमपर हराम है। और अल्लाह से डरते रहो, जिसकी ओर तुम इकट्ठा होगे 5|97|अल्लाह ने आदरणीय घर काबा को लोगों के लिए क़ायम रहने का साधन बनाया और आदरणीय महीनों और क़ुरबानी के जानबरों और उन जानवरों को भी जिनके गले में पट्टे बँधे हो, यह इसलिए कि तुम जान लो कि अल्लाह जानता है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। और यह कि अल्लाह हर चीज़ से अवगत है 5|98|जान लो अल्लाह कठोर दड देनेवाला है और यह कि अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 5|99|रसूल पर (सन्देश) पहुँचा देने के अतिरिक्त और कोई ज़िम्मेदारी नहीं। अल्लाह तो जानता है, जो कुछ तुम प्रकट करते हो और जो कुछ तुम छिपाते हो 5|100|कह दो, "बुरी चीज़ और अच्छी चीज़ समान नहीं होती, चाहे बुरी चीज़ों की बहुतायत तुम्हें प्रिय ही क्यों न लगे।" अतः ऐ बुद्धि और समझवालों! अल्लाह का डर रखो, ताकि तुम सफल हो सको 5|101|ऐ ईमान लानेवालो! ऐसी चीज़ों के विषय में न पूछो कि वे यदि तुम पर स्पष्ट कर दी जाएँ, तो तुम्हें बूरी लगें। यदि तुम उन्हें ऐसे समय में पूछोगे, जबकि क़ुरआन अवतरित हो रहा है, तो वे तुमपर स्पष्ट कर दी जाएँगी। अल्लाह ने उसे क्षमा कर दिया। अल्लाह बहुत क्षमा करनेवाला, सहनशील है 5|102|तुमसे पहले कुछ लोग इस तरह के प्रश्न कर चुके हैं, फिर वे उसके कारण इनकार करनेवाले हो गए 5|103|अल्लाह ने न कोई 'बहीरा' ठहराया है और न 'सायबा' और न 'वसीला' और न 'हाम', परन्तु इनकार करनेवाले अल्लाह पर झूठ का आरोपण करते है और उनमें अधिकतर बुद्धि से काम नहीं लेते 5|104|और जब उनसे कहा जाता है कि उस चीज़ की ओर आओ जो अल्लाह ने अवतरित की है और रसूल की ओर, तो वे कहते है, "हमारे लिए तो वही काफ़ी है, जिस पर हमने अपने बाप-दादा को पाया है।" क्या यद्यपि उनके बापृ-दादा कुछ भी न जानते रहे हों और न सीधे मार्ग पर रहे हो? 5|105|ऐ ईमान लानेवालो! तुमपर अपनी चिन्ता अनिवार्य है, जब तुम रास्ते पर हो, तो जो कोई भटक जाए वह तुम्हारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। अल्लाह की ओर तुम सबको लौटकर जाना है। फिर वह तुम्हें बता देगा, जो कुछ तुम करते रहे होगे 5|106|ऐ ईमान लानेवालों! जब तुममें से किसी की मृत्यु का समय आ जाए तो वसीयत के समय तुममें से दो न्यायप्रिय व्यक्ति गवाह हों, या तुम्हारे ग़ैर लोगों में से दूसरे दो व्यक्ति गवाह बन जाएँ, यह उस समय कि यदि तुम कहीं सफ़र में गए हो और मृत्यु तुमपर आ पहुँचे। यदि तुम्हें कोई सन्देह हो तो नमाज़ के पश्चात उन दोनों को रोक लो, फिर वे दोनों अल्लाह की क़समें खाएँ कि "हम इसके बदले कोई मूल्य स्वीकार करनेवाले नहीं हैं चाहे कोई नातेदार ही क्यों न हो और न हम अल्लाह की गवाही छिपाते है। निस्सन्देह ऐसा किया तो हम गुनाहगार ठहरेंगे।" 5|107|फिर यदि पता चल जाए कि उन दोनों ने हक़ मारकर अपने को गुनाह में डाल लिया है, तो उनकी जगह दूसरे दो व्यक्ति उन लोगों में से खड़े हो जाएँ, जिनका हक़ पिछले दोनों ने मारना चाहा था, फिर वे दोनों अल्लाह की क़समें खाएँ कि "हम दोनों की गवाही उन दोनों की गवाही से अधिक सच्ची है और हमने कोई ज़्यादती नहीं की है। निस्सन्देह हमने ऐसा किया तो अत्याचारियों में से होंगे।" 5|108|इसमें इसकी सम्भावना है कि वे ठीक-ठीक गवाही देंगे या डरेंगे कि उनकी क़समों के पश्चात क़समें ली जाएँगी। अल्लाह का डर रखो और सुनो। अल्लाह अवज्ञाकारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाता 5|109|जिस दिन अल्लाह रसूलों को इकट्ठा करेगा, फिर कहेगा, "तुम्हें क्या जवाब मिला?" वे कहेंगे, "हमें कुछ नहीं मालूम। तू ही छिपी बातों को जानता है।" 5|110|जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! मेरे उस अनुग्रह को याद करो जो तुमपर और तुम्हारी माँ पर हुआ है। जब मैंने पवित्र आत्मा से तुम्हें शक्ति प्रदान की; तुम पालने में भी लोगों से बात करते थे और बड़ी अवस्था को पहुँचकर भी। और याद करो, जबकि मैंने तुम्हें किताब और हिकमत और तौरात और इनजील की शिक्षा दी थी। और याद करो जब तुम मेरे आदेश से मिट्टी से पक्षी का प्रारूपण करते थे; फिर उसमें फूँक मारते थे, तो वह मेरे आदेश से उड़नेवाली बन जाती थी। और तुम मेरे आदेश से मुर्दों को जीवित निकाल खड़ा करते थे। और याद करो जबकि मैंने तुमसे इसराइलियों को रोके रखा, जबकि तुम उनके पास खुली-खुली निशानियाँ लेकर पहुँचे थे, तो उनमें से जो इनकार करनेवाले थे, उन्होंने कहा, यह तो बस खुला जादू है।" 5|111|और याद करो, जब मैंने हबारियों (साथियों और शागिर्दों) के दिल में डाला कि "मुझपर और मेरे रसूल पर ईमान लाओ," तो उन्होंने कहा, "हम ईमान लाए और तुम गवाह रहो कि हम मुस्लिम है।" 5|112|और याद करो जब हवारियों ने कहा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुम्हारा रब आकाश से खाने से भरा भाल उतार सकता है?" कहा, "अल्लाह से डरो, यदि तुम ईमानवाले हो।" 5|113|वे बोले, "हम चाहते हैं कि उनमें से खाएँ और हमारे हृदय सन्तुष्ट हो और हमें मालूम हो जाए कि तूने हमने सच कहा और हम उसपर गवाह रहें।" 5|114|मरयम के बेटे ईसा ने कहा, "ऐ अल्लाह, हमारे रब! हमपर आकाश से खाने से भरा खाल उतार, जो हमारे लिए और हमारे अंगलों और हमारे पिछलों के लिए ख़ुशी का कारण बने और तेरी ओर से एक निशानी हो, और हमें आहार प्रदान कर। तू सबसे अच्छा प्रदान करनेवाला है।" 5|115|अल्लाह ने कहा, "मैं उसे तुमपर उतारूँगा, फिर उसके पश्चात तुममें से जो कोई इनकार करेगा तो मैं अवश्य उसे ऐसी यातना दूँगा जो सम्पूर्ण संसार में किसी को न दूँगा।" 5|116|और याद करो जब अल्लाह कहेगा, "ऐ मरयम के बेटे ईसा! क्या तुमने लोगों से कहा था कि अल्लाह के अतिरिक्त दो और पूज्य मुझ और मेरी माँ को बना लो?" वह कहेगा, "महिमावान है तू! मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं यह बात कहूँ, जिसका मुझे कोई हक़ नहीं है। यदि मैंने यह कहा होता तो तुझे मालूम होता। तू जानता है, जो कुछ मेरे मन में है। परन्तु मैं नहीं जानता जो कुछ तेरे मन में है। निश्चय ही, तू छिपी बातों का भली-भाँति जाननेवाला है 5|117|"मैंने उनसे उसके सिवा और कुछ नहीं कहा, जिसका तूने मुझे आदेश दिया था, यह कि अल्लाह की बन्दगी करो, जो मेरा भी रब है और तुम्हारा भी रब है। और जब तक मैं उनमें रहा उनकी ख़बर रखता था, फिर जब तूने मुझे उठा लिया तो फिर तू ही उनका निरीक्षक था। और तू ही हर चीज़ का साक्षी है 5|118|"यदि तू उन्हें यातना दे तो वे तो तेरे ही बन्दे ही है और यदि तू उन्हें क्षमा कर दे, तो निस्सन्देह तू अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है।" 5|119|अल्लाह कहेगा, "यह वह दिन है कि सच्चों को उनकी सच्चाई लाभ पहुँचाएगी। उनके लिए ऐसे बाग़ है, जिनके नीचे नहेर बह रही होंगी, उनमें वे सदैव रहेंगे। अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। यही सबसे बड़ी सफलता है।" 5|120|आकाशों और धरती और जो कुछ उनके बीच है, सबपर अल्लाह ही की बादशाही है और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 6|1|प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया और अँधरों और उजाले का विधान किया; फिर भी इनकार करनेवाले लोग दूसरों को अपने रब के समकक्ष ठहराते है 6|2|वही है जिसने तुम्हें मिट्टी से पैदा किया, फिर (जीवन की) एक अवधि निश्चित कर दी और उसके यहाँ (क़ियामत की) एक अवधि और निश्चित है; फिर भी तुम संदेह करते हो! 6|3|वही अल्लाह है, आकाशों में भी और धरती में भी। वह तुम्हारी छिपी और तुम्हारी खुली बातों को जानता है, और जो कुछ तुम कमाते हो, वह उससे भी अवगत है 6|4|हाल यह है कि उनके रब की निशानियों में से कोई निशानी भी उनके पास ऐसी नहीं आई, जिससे उन्होंने मुँह न मोड़ लिया हो 6|5|उन्होंने सत्य को झुठला दिया, जबकि वह उनके पास आया। अतः जिस चीज़ को वे हँसी उड़ाते रहे हैं, जल्द ही उसके सम्बन्ध में उन्हें ख़बरे मिल जाएगी 6|6|क्या उन्होंने नहीं देखा कि उनसे पहले कितने ही गिरोहों को हम विनष्ट कर चुके है। उन्हें हमने धरती में ऐसा जमाव प्रदान किया था, जो तुम्हें नहीं प्रदान किया। और उनपर हमने आकाश को ख़ूब बरसता छोड़ दिया और उनके नीचे नहरें बहाई। फिर हमने आकाश को ख़ूब बरसता छोड़ दिया और उनके नीचे नहरें बहाई। फिर हमने उन्हें उनके गुनाहों के कारण विनष्ट़ कर दिया और उनके पश्चात दूसरे गिरोहों को उठाया 6|7|और यदि हम तुम्हारे ऊपर काग़ज़ में लिखी-लिखाई किताब भी उतार देते और उसे लोग अपने हाथों से छू भी लेते तब भी, जिन्होंने इनकार किया है, वे यही कहते, "यह तो बस एक खुला जादू हैं।" 6|8|उनका तो कहना है, "इस (नबी) पर कोई फ़रिश्ता (खुले रूप में) क्यों नहीं उतारा गया?" हालाँकि यदि हम फ़रिश्ता उतारते तो फ़ैसला हो चुका होता। फिर उन्हें कोई मुहल्लत न मिलती 6|9|यह बात भी है कि यदि हम उसे (नबी को) फ़रिश्ता बना देते तो उसे आदमी ही (के रूप का) बनाते। इस प्रकार उन्हें उसी सन्देह में डाल देते, जिस सन्देह में वे इस समय पड़े हुए है 6|10|तुमसे पहले कितने ही रसूलों की हँसी उड़ाई जा चुकी है। अन्ततः जिन लोगों ने उनकी हँसी उड़ाई थी, उन्हें उसी न आ घेरा जिस बात पर वे हँसी उड़ाते थे 6|11|कहो, "धरती में चल-फिरकर देखो कि झुठलानेवालों का क्या परिणाम हुआ!" 6|12|कहो, "आकाशों और धरती में जो कुछ है किसका है?" कह दो, "अल्लाह ही का है।" उसने दयालुता को अपने ऊपर अनिवार्य कर दिया है। निश्चय ही वह तुम्हें क़ियामत के दिन इकट्ठा करेगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। जिन लोगों ने अपने-आपको घाटे में डाला है, वही है जो ईमान नहीं लाते 6|13|हाँ, उसी का है जो भी रात में ठहरता है और दिन में (गतिशील होता है), और वह सब कुछ सुनता, जानता है 6|14|कहो, "क्या मैं आकाशों और धरती को पैदा करनेवाले अल्लाह के सिवा किसी और को संरक्षक बना लूँ? उसका हाल यह है कि वह खिलाता है और स्वयं नहीं खाता।" कहो, "मुझे आदेश हुआ है कि सबसे पहले मैं उसके आगे झुक जाऊँ। और (यह कि) तुम बहुदेववादियों में कदापि सम्मिलित न होना।" 6|15|कहो, "यदि मैं अपने रब की अवज्ञा करूँ, तो उस स्थिति में मुझे एक बड़े (भयानक) दिन की यातना का डर है।" 6|16|उस दिन वह जिसपर से टल गई, उसपर अल्लाह ने दया की, और यही स्पष्ट सफलता है 6|17|और यदि अल्लाह तुम्हें कोई कष्ट पहुँचाए तो उसके अतिरिक्त उसे कोई दूर करनेवाला नहीं है और यदि वह तुम्हें कोई भलाई पहुँचाए तो उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है 6|18|उसे अपने बन्दों पर पूर्ण अधिकार प्राप्त है। और वह तत्वदर्शी, ख़बर रखनेवाला है 6|19|कहो, "किस चीज़ की गवाही सबसे बड़ी है?" कहो, "मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह गवाह है। और यह क़ुरआन मेरी ओर वह्यी (प्रकाशना) किया गया है, ताकि मैं इसके द्वारा तुम्हें सचेत कर दूँ। और जिस किसी को यह अल्लाह के साथ दूसरे पूज्य भी है?" तुम कह दो, "मैं तो इसकी गवाही नहीं देता।" कह दो, "वह तो बस अकेला पूज्य है। और तुम जो उसका साझी ठहराते हो, उससे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं।" 6|20|जिन लोगों को हमने किताब दी है, वे उसे इस प्रकार पहचानते है, जिस प्रकार अपने बेटों को पहचानते है। जिन लोगों ने अपने आपको घाटे में डाला है, वही ईमान नहीं लाते 6|21|और उससे बढ़कर अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर झूठ गढ़े या उसकी आयतों को झुठलाए। निस्सन्देह अत्याचारी कभी सफल नहीं हो सकते 6|22|और उस दिन को याद करो जब हम सबको इकट्ठा करेंगे; फिर बहुदेववादियों से पूछेंगे, "कहाँ है तुम्हारे ठहराए हुए साझीदार, जिनका तुम दावा किया करते थे?" 6|23|फिर उनका कोई फ़िला (उपद्रव) शेष न रहेगा। सिवाय इसके कि वे कहेंगे, "अपने रब अल्लाह की सौगन्ध! हम बहुदेववादी न थे।" 6|24|देखो, कैसा वे अपने विषय में झूठ बोले। और वह गुम होकर रह गया जो वे घड़ा करते थे 6|25|और उनमें कुछ लोग ऐसे है जो तुम्हारी ओर कान लगाते है, हालाँकि हमने तो उनके दिलों पर परदे डाल रखे है कि वे उसे समझ न सकें और उनके कानों में बोझ डाल दिया है। और वे चाहे प्रत्येक निशानी देख लें तब भी उसे मानेंगे नहीं; यहाँ तक कि जब वे तुम्हारे पास आकर तुमसे झगड़ते है, तो अविश्वास की नीति अपनानेवाले कहते है, "यह तो बस पहले को लोगों की गाथाएँ है।" 6|26|और वे उससे दूसरों को रोकते है और स्वयं भी उससे दूर रहते है। वे तो बस अपने आपको ही विनष्ट कर रहे है, किन्तु उन्हें इसका एहसास नहीं 6|27|और यदि तुम उस समय देख सकते, जब वे आग के निकट खड़े किए जाएँगे और कहेंगे, "काश! क्या ही अच्छा होता कि हम फिर लौटा दिए जाएँ (कि माने) और अपने रब की आयतों को न झुठलाएँ और माननेवालों में हो जाएँ।" 6|28|कुछ नहीं, बल्कि जो कुछ वे पहले छिपाया करते थे, वह उनके सामने आ गया। और यदि वे लौटा भी दिए जाएँ, तो फिर वही कुछ करने लगेंगे जिससे उन्हें रोका गया था। निश्चय ही वे झूठे है 6|29|और वे कहते है, "जो कुछ है बस यही हमारा सांसारिक जीवन है; हम कोई फिर उठाए जानेवाले नहीं हैं।" 6|30|और यदि तुम देख सकते जब वे अपने रब के सामने खड़े किेए जाएँगे! वह कहेगा, "क्या यह यर्थाथ नहीं है?" कहेंगे, "क्यों नही, हमारे रब की क़सम!" वह कहेगा, "अच्छा तो उस इनकार के बदले जो तुम करते रहें हो, यातना का मज़ा चखो।" 6|31|वे लोग घाटे में पड़े, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया, यहाँ तक कि जब अचानक उनपर वह घड़ी आ जाएगी तो वे कहेंगे, "हाय! अफ़सोस, उस कोताही पर जो इसके विषय में हमसे हुई।" और हाल यह होगा कि वे अपने बोझ अपनी पीठों पर उठाए होंगे। देखो, कितना बुरा बोझ है जो ये उठाए हुए है! 6|32|सांसारिक जीवन तो एक खेल और तमाशे (ग़फलत) के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है जबकि आख़िरत का घर उन लोगों के लिए अच्छा है, जो डर रखते है। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? 6|33|हमें मालूम है, जो कुछ वे कहते है उससे तुम्हें दुख पहुँचता है। तो वे वास्तव में तुम्हें नहीं झुठलाते, बल्कि उन अत्याचारियो को तो अल्लाह की आयतों से इनकार है 6|34|तुमसे पहले भी बहुत-से रसूल झुठलाए जा चुके है, तो वे अपने झुठलाए जाने और कष्ट पहुँचाए जाने पर धैर्य से काम लेते रहे, यहाँ तक कि उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। कोई नहीं जो अल्लाह की बातों को बदल सके। तुम्हारे पास तो रसूलों की कुछ ख़बरें पहुँच ही चुकी है 6|35|और यदि उनकी विमुखता तुम्हारे लिए असहनीय है, तो यदि तुमसे हो सके कि धरती में कोई सुरंग या आकाश में कोई सीढ़ी ढूँढ़ निकालो और उनके पास कोई निशानी ले आओ, तो (ऐसा कर देखो), यदि अल्लाह चाहता तो उन सबको सीधे मार्ग पर इकट्ठा कर देता। अतः तुम उजड्ड और नादान न बनना 6|36|मानते हो वही लोग है जो सुनते है, रहे मुर्दे, तो अल्लाह उन्हें (क़ियामत के दिन) उठा खड़ा करेगा; फिर वे उसी के ओर पलटेंगे 6|37|वे यह भी कहते है, "उस (नबी) पर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतारी गई?" कह दो, "अल्लाह को तो इसकी सामर्थ्य प्राप्त है कि कोई निशानी उतार दे; परन्तु उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते।" 6|38|धरती में चलने-फिरनेवाला कोई भी प्राणी हो या अपने दो परो से उड़नवाला कोई पक्षी, ये सब तुम्हारी ही तरह के गिरोह है। हमने किताब में कोई भी चीज़ नहीं छोड़ी है। फिर वे अपने रब की ओर इकट्ठे किए जाएँगे 6|39|जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया, वे बहरे और गूँगे है, अँधेरों में पड़े हुए हैं। अल्लाह जिसे चाहे भटकने दे और जिसे चाहे सीधे मार्ग पर लगा दे 6|40|कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुमपर अल्लाह की यातना आ पड़े या वह घड़ी तुम्हारे सामने आ जाए, तो क्या अल्लाह के सिवा किसी और को पुकारोगे? बोलो, यदि तुम सच्चे हो? 6|41|"बल्कि तुम उसी को पुकारते हो - फिर जिसके लिए तुम उसे पुकारते हो, वह चाहता है तो उसे दूर कर देता है - और उन्हें भूल जाते हो जिन्हें साझीदार ठहराते हो।" 6|42|तुमसे पहले कितने ही समुदायों की ओर हमने रसूल भेजे कि उन्हें तंगियों और मुसीबतों में डाला, ताकि वे विनम्र हों 6|43|जब हमारी ओर से उनपर सख्ती आई तो फिर क्यों न विनम्र हुए? परन्तु उनके हृदय तो कठोर हो गए थे और जो कुछ वे करते थे शैतान ने उसे उनके लिए मोहक बना दिया 6|44|फिर जब उसे उन्होंने भुला दिया जो उन्हें याद दिलाई गई थी, तो हमने उनपर हर चीज़ के दरवाज़े खोल दिए; यहाँ तक कि जो कुछ उन्हें मिला था, जब वे उसमें मग्न हो गए तो अचानक हमने उन्हें पकड़ लिया, तो क्या देखते है कि वे बिल्कुल निराश होकर रह गए 6|45|इस प्रकार अत्याचारी लोगों की जड़ काटकर रख दी गई। प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है, जो सारे संसार का रब है 6|46|कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि अल्लाह तुम्हारे सुनने की और तुम्हारी देखने की शक्ति छीन ले और तुम्हारे दिलों पर ठप्पा लगा दे, तो अल्लाह के सिवा कौन पूज्य है जो तुम्हें ये चीज़े लाकर दे?" देखो, किस प्रकार हम तरह-तरह से अपनी निशानियाँ बयान करते है! फिर भी वे किनारा ही खींचते जाते है 6|47|कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुमपर अचानक या प्रत्यक्षतः अल्लाह की यातना आ जाए, तो क्या अत्याचारी लोगों के सिवा कोई और विनष्ट होगा?" 6|48|हम रसूलों को केवल शुभ-सूचना देनेवाले और सचेतकर्ता बनाकर भेजते रहे है। फिर जो ईमान लाए और सुधर जाए, तो ऐसे लोगों के लिए न कोई भय है और न वे कभी दुखी होंगे 6|49|रहे वे लोग, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, उन्हें यातना पहुँचकर रहेगी, क्योंकि वे अवज्ञा करते रहे है 6|50|कह दो, "मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़ज़ाने है, और न मैं परोक्ष का ज्ञान रखता हूँ, और न मैं तुमसे कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ। मैं तो बस उसी का अनुपालन करता हूँ जो मेरी ओर वह्यं की जाती है।" कहो, "क्या अंधा और आँखोंवाला दोनों बराबर हो जाएँगे? क्या तुम सोच-विचार से काम नहीं लेते?" 6|51|और तुम इसके द्वारा उन लोगों को सचेत कर दो, जिन्हें इस बात का भय है कि वे अपने रब के पास इस हाल में इकट्ठा किए जाएँगे कि उसके सिवा न तो उसका कोई समर्थक होगा और न कोई सिफ़ारिश करनेवाला, ताकि वे बचें 6|52|और जो लोग अपने रब को उसकी ख़ुशी की चाह में प्रातः और सायंकाल पुकारते रहते है, ऐसे लोगों को दूर न करना। उनके हिसाब की तुमपर कुछ भी ज़िम्मेदारी नहीं है और न तुम्हारे हिसाब की उनपर कोई ज़िम्मेदारी है कि तुम उन्हें दूर करो और फिर हो जाओ अत्याचारियों में से 6|53|और इसी प्रकार हमने इनमें से एक को दूसरे के द्वारा आज़माइश में डाला, ताकि वे कहें, "क्या यही वे लोग है, जिनपर अल्लाह न हममें से चुनकर एहसान किया है ?" - क्या अल्लाह कृतज्ञ लोगों से भली-भाँति परिचित नहीं है? 6|54|और जब तुम्हारे पास वे लोग आएँ, जो हमारी आयतों को मानते है, तो कहो, "सलाम हो तुमपर! तुम्हारे रब ने दयालुता को अपने ऊपर अनिवार्य कर लिया है कि तुममें से जो कोई नासमझी से कोई बुराई कर बैठे, फिर उसके बाद पलट आए और अपना सुधार कर तो यह है वह बड़ा क्षमाशील, दयावान है।" 6|55|इसी प्रकार हम अपनी आयतें खोल-खोलकर बयान करते है (ताकि तुम हर ज़रूरी बात जान लो) और इसलिए कि अपराधियों का मार्ग स्पष्ट हो जाए 6|56|कह दो, "तुम लोग अल्लाह से हटकर जिन्हें पुकारते हो, उनकी बन्दगी करने से मुझे रोका गया है।" कहो, "मैं तुम्हारी इच्छाओं का अनुपालन नहीं करता, क्योंकि तब तो मैं मार्ग से भटक गया और मार्ग पानेवालों में से न रहा।" 6|57|कह दो, "मैं अपने रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण पर क़ायम हूँ और तुमने उसे झुठला दिया है। जिस चीज़ के लिए तुम जल्दी मचा रहे हो, वह कोई मेरे पास तो नहीं है। निर्णय का सारा अधिकार अल्लाह ही को है, वही सच्ची बात बयान करता है और वही सबसे अच्छा निर्णायक है।" 6|58|कह दो, "जिस चीज़ की तुम्हें जल्दी पड़ी हुई है, यदि कहीं वह चीज़ मेरे पास होती तो मेरे और तुम्हारे बीच कभी का फ़ैसला हो चुका होता। और अल्लाह अत्याचारियों को भली-भाती जानता है।" 6|59|उसी के पास परोक्ष की कुंजियाँ है, जिन्हें उसके सिवा कोई नहीं जानता। जल और थल में जो कुछ है, उसे वह जानता है। और जो पत्ता भी गिरता है, उसे वह निश्चय ही जानता है। और धरती के अँधेरों में कोई दाना हो और कोई भी आर्द्र (गीली) और शुष्क (सूखी) चीज़ हो, निश्चय ही एक स्पष्ट किताब में मौजूद है 6|60|और वही है जो रात को तुम्हें मौत देता है और दिन में जो कुछ तुमने किया उसे जानता है। फिर वह इसलिए तुम्हें उठाता है, ताकि निश्चित अवधि पूरा हो जाए; फिर उसी की ओर तुम्हें लौटना है, फिर वह तुम्हें बता देगा जो कुछ तुम करते रहे हो 6|61|और वही अपने बन्दों पर पूरा-पूरा क़ाबू रखनेवाला है और वह तुमपर निगरानी करनेवाले को नियुक्त करके भेजता है, यहाँ तक कि जब तुममें से किसी की मृत्यु आ जाती है, जो हमारे भेजे हुए कार्यकर्त्ता उसे अपने क़ब्ज़े में कर लेते है और वे कोई कोताही नहीं करते 6|62|फिर सब अल्लाह की ओर, जो उसका वास्तविक स्वामी है, लौट जाएँगे। जान लो, निर्णय का अधिकार उसी को है और वह बहुत जल्द हिसाब लेनेवाला है 6|63|कहो, "कौन है जो थल और जल के अँधेरो से तुम्हे छुटकारा देता है, जिसे तुम गिड़गिड़ाते हुए और चुपके-चुपके पुकारने लगते हो कि यदि हमें इससे बचा लिया तो हम अवश्य की कृतज्ञ हो जाएँगे?" 6|64|कहो, "अल्लाह तुम्हें इनसे और हरके बेचैनी और पीड़ा से छुटकारा देता है, लेकिन फिर तुम उसका साझीदार ठहराने लगते हो।" 6|65|कहो, "वह इसकी सामर्थ्य रखता है कि तुमपर तुम्हारे ऊपर से या तुम्हारे पैरों के नीचे से कोई यातना भेज दे या तुम्हें टोलियों में बाँटकर परस्पर भिड़ा दे और एक को दूसरे की लड़ाई का मज़ा चखाए।" देखो, हम आयतों को कैसे, तरह-तरह से, बयान करते है, ताकि वे समझे 6|66|तुम्हारी क़ौम ने तो उसे झुठला दिया, हालाँकि वह सत्य है। कह दो, मैं "तुमपर कोई संरक्षक नियुक्त नहीं हूँ 6|67|"हर ख़बर का एक निश्चित समय है और शीघ्र ही तुम्हें ज्ञात हो जाएगा।" 6|68|और जब तुम उन लोगों को देखो, जो हमारी आयतों पर नुक्ताचीनी करने में लगे हुए है, तो उनसे मुँह फेर लो, ताकि वे किसी दूसरी बात में लग जाएँ। और यदि कभी शैतान तुम्हें भुलावे में डाल दे, तो याद आ जाने के बाद उन अत्याचारियों के पास न बैठो 6|69|उनके हिसाब के प्रति तो उन लोगो पर कुछ भी ज़िम्मेदारी नहीं, जो डर रखते है। यदि है तो बस याद दिलाने की; ताकि वे डरें 6|70|छोड़ो उन लोगों को, जिन्होंने अपने धर्म को खेल और तमाशा बना लिया है और उन्हें सांसारिक जीवन ने धोखे में डाल रखा है। और इसके द्वारा उन्हें नसीहत करते रहो कि कहीं ऐसा न हो कि कोई अपनी कमाई के कारण तबाही में पड़ जाए। अल्लाह से हटकर कोई भी नहीं, जो उसका समर्थक और सिफ़ारिश करनेवाला हो सके और यदि वह छुटकारा पाने के लिए बदले के रूप में हर सम्भव चीज़ देने लगे, तो भी वह उससे न लिया जाए। ऐसे ही लोग है, जो अपनी कमाई के कारण तबाही में पड गए। उनके लिए पीने को खौलता हुआ पानी है और दुखद यातना भी; क्योंकि वे इनकार करते रहे थे 6|71|कहो, "क्या हम अल्लाह को छोड़कर उसे पुकारने लग जाएँ जो न तो हमें लाभ पहुँचा सके और न हमें हानि पहुँचा सके और हम उलटे पाँव फिर जाएँ, जबकि अल्लाह ने हमें मार्ग पर लगा दिया है? - उस व्यक्ति की तरह जिसे शैतानों ने धरती पर भटका दिया हो और वह हैरान होकर रह गया हो। उसके कुछ साथी हो, जो उसे मार्ग की ओर बुला रहे हो कि हमारे पास चला आ!" कह दो, "मार्गदर्शन केवल अल्लाह का मार्गदर्शन है और हमें इसी बात का आदेश हुआ है कि हम सारे संसार के स्वामी को समर्पित हो जाएँ।" 6|72|और यह कि "नमाज़ क़ायम करो और उसका डर रखो। वही है, जिसके पास तुम इकट्ठे किए जाओगे, 6|73|"और वही है जिसने आकाशों और धरती को हक़ के साथ पैदा किया। और जिस समय वह किसी चीज़ को कहे, 'हो जा', तो वह उसी समय वह हो जाती है। उसकी बात सर्वथा सत्य है और जिस दिन 'सूर' (नरसिंघा) में फूँक मारी जाएगी, राज्य उसी का होगा। वह सभी छिपी और खुली चीज़ का जाननेवाला है, और वही तत्वदर्शी, ख़बर रखनेवाला है।" 6|74|और याद करो, जब इबराहीम ने अपने बाप आज़र से कहा था, "क्या तुम मूर्तियों को पूज्य बनाते हो? मैं तो तुम्हें और तुम्हारी क़ौम को खुली गुमराही में पड़ा देख रहा हूँ।" 6|75|और इस प्रकार हम इबराहीम को आकाशों और धरती का राज्य दिखाने लगे (ताकि उसके ज्ञान का विस्तार हो) और इसलिए कि उसे विश्वास हो 6|76|अतएवः जब रात उसपर छा गई, तो उसने एक तारा देखा। उसने कहा, "इसे मेरा रब ठहराते हो!" फिर जब वह छिप गया तो बोला, "छिप जानेवालों से मैं प्रेम नहीं करता।" 6|77|फिर जब उसने चाँद को चमकता हुआ देखा, तो कहा, "इसको मेरा रब ठहराते हो!" फिर जब वह छिप गया, तो कहा, "यदि मेरा रब मुझे मार्ग न दिखाता तो मैं भी पथभ्रष्ट! लोगों में सम्मिलित हो जाता।" 6|78|फिर जब उसने सूर्य को चमकता हुआ देखा, तो कहा, "इसे मेरा रब ठहराते हो! यह तो बहुत बड़ा है।" फिर जब वह भी छिप गया, तो कहा, "ऐ मेरी क़ौन के लोगो! मैं विरक्त हूँ उनसे जिनको तुम साझी ठहराते हो 6|79|"मैंने तो एकाग्र होकर अपना मुख उसकी ओर कर लिया है, जिसने आकाशों और धरती को पैदा किया। और मैं साझी ठहरानेवालों में से नहीं।" 6|80|उसकी क़ौम के लोग उससे झगड़ने लगे। उसने कहा, "क्या तुम मुझसे अल्लाह के विषय में झगड़ते हो? जबकि उसने मुझे मार्ग दिखा दिया है। मैं उनसे नहीं डरता, जिन्हें तुम उसका सहभागी ठहराते हो, बल्कि मेरा रब जो कुछ चाहता है वही पूरा होकर रहता है। प्रत्येक वस्तु मेरे रब की ज्ञान-परिधि के भीतर है। फिर क्या तुम चेतोगे नहीं? 6|81|"और मैं तुम्हारे ठहराए हुए साझीदारो से कैसे डरूँ, जबकि तुम इस बात से नहीं डरते कि तुमने उसे अल्लाह का सहभागी उस चीज़ को ठहराया है, जिसका उसने तुमपर कोई प्रमाण अवतरित नहीं किया? अब दोनों फ़रीकों में से कौन अधिक निश्चिन्त रहने का अधिकारी है? बताओ यदि तुम जानते हो 6|82|"जो लोग ईमान लाए और अपने ईमान में किसी (शिर्क) ज़ुल्म की मिलावट नहीं की, वही लोग है जो भय मुक्त है और वही सीधे मार्ग पर हैं।" 6|83|यह है हमारा वह तर्क जो हमने इबराहीम को उसकी अपनी क़ौम के मुक़ाबले में प्रदान किया था। हम जिसे चाहते है दर्जों (श्रेणियों) में ऊँचा कर देते हैं। निस्संदेह तुम्हारा रब तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है 6|84|और हमने उसे (इबराहीम को) इसहाक़ और याक़ूब दिए; हर एक को मार्ग दिखाया - और नूह को हमने इससे पहले मार्ग दिखाया था, और उसकी सन्तान में दाऊद, सुलैमान, अय्यूब, यूसुफ़, मूसा और हारून को भी - और इस प्रकार हम शुभ-सुन्दर कर्म करनेवालों को बदला देते है - 6|85|और ज़करिया, यह्या , ईसा और इलयास को भी (मार्ग दिखलाया) । इनमें का हर एक योग्य और नेक था 6|86|और इसमाईल, अलयसअ, यूनुस और लूत को भी। इनमें से हर एक को हमने संसार के मुक़ाबले में श्रेष्ठता प्रदान की 6|87|और उनके बाप-दादा और उनकी सन्तान और उनके भाई-बन्धुओं में भी कितने ही लोगों को (मार्ग दिखाया) । और हमने उन्हें चुन लिया और उन्हें सीधे मार्ग की ओर चलाया 6|88|यह अल्लाह का मार्गदर्शन है, जिसके द्वारा वह अपने बन्दों में से जिसको चाहता है मार्ग दिखाता है, और यदि उन लोगों ने कहीं अल्लाह का साझी ठहराया होता, तो उनका सब किया-धरा अकारथ हो जाता 6|89|वे ऐसे लोग है जिन्हें हमने किताब और निर्णय-शक्ति और पैग़म्बरी प्रदान की थी (उसी प्रकार हमने मुहम्मद को भी किताब, निर्णय-शक्ति और पैग़म्बरी दी है) । फिर यदि ये लोग इसे मारने से इनकार करें, तो अब हमने इसको ऐसे लोगों को सौंपा है जो इसका इनकार नहीं करते 6|90|वे (पिछले पैग़म्बर) ऐसे लोग थे, जिन्हें अल्लाह ने मार्ग दिखाया था, तो तुम उन्हीं के मार्ग का अनुसरण करो। कह दो, "मैं तुमसे उसका कोई प्रतिदान नहीं माँगता। वह तो सम्पूर्ण संसार के लिए बस एक प्रबोध है।" 6|91|उन्होंने अल्लाह की क़द्र न जानी, जैसी उसकी क़द्र जाननी चाहिए थी, जबकि उन्होंने कहा, "अल्लाह ने किसी मनुष्य पर कुछ अवतरित ही नहीं किया है।" कहो, "फिर यह किताब किसने अवतरित की, जो मूसा लोगों के लिए प्रकाश और मार्गदर्शन के रूप में लाया था, जिसे तुम पन्ना-पन्ना करके रखते हो? उन्हें दिखाते भी हो, परन्तु बहुत-सा छिपा जाते हो। और तुम्हें वह ज्ञान दिया गया, जिसे न तुम जानते थे और न तुम्हारे बाप-दादा ही।" कह दो, "अल्लाह ही ने," फिर उन्हें छोड़ो कि वे अपनी नुक्ताचीनियों से खेलते रहें 6|92|यह किताब है जिसे हमने उतारा है; बरकतवाली है; अपने से पहले की पुष्टि में है (ताकि तुम शुभ-सूचना दो) और ताकि तुम केन्द्रीय बस्ती (मक्का) और उसके चतुर्दिक बसनेवाले लोगों को सचेत करो और जो लोग आख़िरत पर ईमान रखते है, वे इसपर भी ईमान लाते है। और वे अपनी नमाज़ की रक्षा करते है 6|93|और उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा, जो अल्लाह पर मिथ्यारोपण करे या यह कहे कि "मेरी ओर प्रकाशना (वह्य,) की गई है," हालाँकि उसकी ओर भी प्रकाशना न की गई हो। और वह व्यक्ति से (बढ़कर अत्याचारी कौन होगा) जो यह कहे कि "मैं भी ऐसी चीज़ उतार दूँगा, जैसी अल्लाह ने उतारी है।" और यदि तुम देख सकते, तुम अत्याचारी मृत्यु-यातनाओं में होते है और फ़रिश्ते अपने हाथ बढ़ा रहे होते है कि "निकालो अपने प्राण! आज तुम्हें अपमानजनक यातना दी जाएगी, क्योंकि तुम अल्लाह के प्रति झूठ बका करते थे और उसकी आयतों के मुक़ाबले में अकड़ते थे।" 6|94|और निश्चय ही तुम उसी प्रकार एक-एक करके हमारे पास आ गए, जिस प्रकार हमने तुम्हें पहली बार पैदा किया था। और जो कुछ हमने तुम्हें दे रखा था, उसे अपने पीछे छोड़ आए और हम तुम्हारे साथ तुम्हारे उन सिफ़ारिशियों को भी नहीं देख रहे हैं, जिनके विषय में तुम दावे से कहते थे, "वे तुम्हारे मामले में शरीक है।" तुम्हारे पारस्परिक सम्बन्ध टूट चुके है और वे सब तुमसे गुम होकर रह गए, जो दावे तुम किया करते थे 6|95|निश्चय ही अल्लाह दाने और गुठली को फाड़ निकालता है, सजीव को निर्जीव से निकालता है और निर्जीव को सजीव से निकालनेवाला है। वही अल्लाह है - फिर तुम कहाँ औंधे हुए जाते हो? - 6|96|पौ फाड़ता है, और उसी ने रात को आराम के लिए बनाया और सूर्य और चन्द्रमा को (समय के) हिसाब का साधन ठहराया। यह बड़े शक्तिमान, सर्वज्ञ का ठहराया हुआ परिणाम है 6|97|और वही है जिसने तुम्हारे लिए तारे बनाए, ताकि तुम उनके द्वारा स्थल और समुद्र के अंधकारों में मार्ग पा सको। जो लोग जानना चाहे उनके लिए हमने निशानियाँ खोल-खोलकर बयान कर दी है 6|98|और वही तो है, जिसने तुम्हें अकेली जान पैदा किया। अतः एक अवधि तक ठहरना है और फिर सौंप देना है। उन लोगों के लिए, जो समझे हमने निशानियाँ खोल-खोलकर बयान कर दी है 6|99|और वही है जिसने आकाश से पानी बरसाया, फिर हमने उसके द्वारा हर प्रकार की वनस्पति उगाई; फिर उससे हमने हरी-भरी पत्तियाँ निकाली और तने विकसित किए, जिससे हम तले-ऊपर चढे हुए दान निकालते है - और खजूर के गाभे से झुके पड़ते गुच्छे भी - और अंगूर, ज़ैतून और अनार के बाग़ लगाए, जो एक-दूसरे से भिन्न भी होते है। उसके फल को देखा, जब वह फलता है और उसके पकने को भी देखो! निस्संदेह ईमान लानेवाले लोगों को लिए इनमें बड़ी निशानियाँ है 6|100|और लोगों ने जिन्नों को अल्लाह का साझी ठहरा रखा है; हालाँकि उन्हें उसी ने पैदा किया है। और बेजाने-बूझे उनके लिए बेटे और बेटियाँ घड़ ली है। यह उसकी महिमा के प्रतिकूल है! यह उन बातों से उच्च है, जो वे बयान करते है! 6|101|वह आकाशों और धरती का सर्वप्रथम पैदा करनेवाला है। उसका कोई बेटा कैसे हो सकता है, जबकि उसकी पत्नी ही नहीं? और उसी ने हर चीज़ को पैदा किया है और उसे हर चीज़ का ज्ञान है 6|102|वही अल्लाह तुम्हारा रब; उसके सिवा कोई पूज्य नहीं; हर चीज़ का स्रष्टा है; अतः तुम उसी की बन्दगी करो। वही हर चीज़ का ज़िम्मेदार है 6|103|निगाहें उसे नहीं पा सकतीं, बल्कि वही निगाहों को पा लेता है। वह अत्यन्त सूक्ष्म (एवं सूक्ष्मदर्शी) ख़बर रखनेवाला है 6|104|तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से आँख खोल देनेवाले प्रमाण आ चुके है; तो जिस किसी ने देखा, अपना ही भला किया और जो अंधा बना रहा, तो वह अपने ही को हानि पहुँचाएगा। और मैं तुमपर कोई नियुक्त रखवाला नहीं हूँ 6|105|और इसी प्रकार हम अपनी आयतें विभिन्न ढंग से बयान करते है (कि वे सुने) और इसलिए कि वे कह लें, "(ऐ मुहम्मद!) तुमनेकहीं से पढ़-पढ़ा लिया है।" और इसलिए भी कि हम उनके लिए जो जानना चाहें, सत्य को स्पष्ट कर दें 6|106|तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी तरफ़ जो वह्यो की गई है, उसी का अनुसरण किए जाओ, उसके सिवा कोई पूज्य नहीं और बहुदेववादियों (की कुनीति) पर ध्यान न दो 6|107|यदि अल्लाह चाहता तो वे (उसका) साझी न ठहराते। तुम्हें हमने उनपर कोई नियुक्त संरक्षक तो नहीं बनाया है और न तुम उनके कोई ज़िम्मेदार ही हो 6|108|अल्लाह के सिवा जिन्हें ये पुकारते है, तुम उनके प्रति अपशब्द का प्रयोग न करो। ऐसा न हो कि वे हद से आगे बढ़कर अज्ञान वश अल्लाह के प्रति अपशब्द का प्रयोग करने लगें। इसी प्रकार हमने हर गिरोह के लिए उसके कर्म को सुहावना बना दिया है। फिर उन्हें अपने रब की ही ओर लौटना है। उस समय वह उन्हें बता देगा. जो कुछ वे करते रहे होंगे 6|109|वे लोग तो अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाते है कि यदि उनके पास कोई निशानी आ जाए, तो उसपर वे अवश्य ईमान लाएँगे। कह दो, "निशानियाँ तो अल्लाह ही के पास है।" और तुम्हें क्या पता कि जब वे आ जाएँगी तो भी वे ईमान नहीं लाएँगे 6|110|और हम उनके दिलों और निगाहों को फेर देंगे, जिस प्रकार वे पहली बार ईमान नहीं लाए थे। और हम उन्हें छोड़ देंगे कि वे अपनी सरकशी में भटकते रहें 6|111|यदि हम उनकी ओर फ़रिश्ते भी उतार देते और मुर्दें भी उनसे बातें करने लगते और प्रत्येक चीज़ उनके सामने लाकर इकट्ठा कर देते, तो भी वे ईमान न लाते, बल्कि अल्लाह ही का चाहा क्रियान्वित है। परन्तु उनमें से अधिकतर लोग अज्ञानता से काम लेते है 6|112|और इसी प्रकार हमने मनुष्यों और जिन्नों में से शैतानों को प्रत्येक नबी का शत्रु बनाया, जो चिकनी-चुपड़ी बात एक-दूसरे के मन में डालकर धोखा देते थे - यदि तुम्हारा रब चाहता तो वे ऐसा न कर सकते। अब छोड़ो उन्हें और उनके मिथ्यारोपण को। - 6|113|और ताकि जो लोग परलोक को नहीं मानते, उनके दिल उसकी ओर झुकें और ताकि वे उसे पसन्द कर लें, और ताकि जो कमाई उन्हें करनी है कर लें 6|114|अब क्या मैं अल्लाह के सिवा कोई और निर्णायक ढूढूँ? हालाँकि वही है जिसने तुम्हारी ओर किताब अवतरित की है, जिसमें बातें खोल-खोलकर बता दी गई है और जिन लोगों को हमने किताब प्रदान की थी, वे भी जानते है कि यह तुम्हारे रब की ओर से हक़ के साथ अवतरित हुई है, तो तुम कदापि सन्देह में न पड़ना 6|115|तुम्हारे रब की बात सच्चाई और इनसाफ़ के साथ पूरी हुई, कोई नहीं जो उसकी बातों को बदल सकें, और वह सुनता, जानता है 6|116|और धरती में अधिकतर लोग ऐसे है, यदि तुम उनके कहने पर चले तो वे अल्लाह के मार्ग से तुम्हें भटका देंगे। वे तो केवल अटकल के पीछे चलते है और वे निरे अटकल ही दौड़ाते है 6|117|निस्संदेह तुम्हारा रब उसे भली-भाँति जानता है, जो उसके मार्ग से भटकता और वह उन्हें भी जानता है, जो सीधे मार्ग पर है 6|118|अतः जिसपर अल्लाह का नाम लिया गया हो, उसे खाओ; यदि तुम उसकी आयतों को मानते हो 6|119|और क्या आपत्ति है कि तुम उसे न खाओ, जिसपर अल्लाह का नाम लिया गया हो, बल्कि जो कुछ चीज़े उसने तुम्हारे लिए हराम कर दी है, उनको उसने विस्तारपूर्वक तुम्हे बता दिया है। यह और बात है कि उसके लिए कभी तुम्हें विवश होना पड़े। परन्तु अधिकतर लोग तो ज्ञान के बिना केवल अपनी इच्छाओं (ग़लत विचारों) के द्वारा पथभ्रष्टो करते रहते है। निस्सन्देह तुम्हारा रब मर्यादाहीन लोगों को भली-भाँति जानता है 6|120|छोड़ो खुले गुनाह को भी और छिपे को भी। निश्चय ही गुनाह कमानेवालों को उसका बदला दिया जाएगा, जिस कमाई में वे लगे रहे होंगे 6|121|और उसे न खाओं जिसपर अल्लाह का नाम न लिया गया हो। निश्चय ही वह तो आज्ञा का उल्लंघन है। शैतान तो अपने मित्रों के दिलों में डालते है कि वे तुमसे झगड़े। यदि तुमने उनकी बात मान ली तो निश्चय ही तुम बहुदेववादी होगे 6|122|क्या वह व्यक्ति जो पहले मुर्दा था, फिर उसे हमने जीवित किया और उसके लिए एक प्रकाश उपलब्ध किया जिसको लिए हुए वह लोगों के बीच चलता-फिरता है, उस व्यक्ति को तरह हो सकता है जो अँधेरों में पड़ा हुआ हो, उससे कदापि निकलनेवाला न हो? ऐसे ही इनकार करनेवालों के कर्म उनके लिए सुहाबने बनाए गए है 6|123|और इसी प्रकार हमने प्रत्येक बस्ती में उसके बड़े-बड़े अपराधियों को लगा दिया है कि ले वहाँ चालें चले। वे अपने ही विरुद्ध चालें चलते है, किन्तु उन्हें इसका एहसास नहीं 6|124|और जब उनके पास कोई आयत (निशानी) आता है, तो वे कहते है, "हम कदापि नहीं मानेंगे, जब तक कि वैसी ही चीज़ हमें न दी जाए जो अल्लाह के रसूलों को दी गई हैं।" अल्लाह भली-भाँति उस (के औचित्य) को जानता है, जिसमें वह अपनी पैग़म्बरी रखता है। अपराधियों को शीघ्र ही अल्लाह के यहाँ बड़े अपमान और कठोर यातना का सामना करना पड़ेगा, उस चाल के कारण जो वे चलते रहे है 6|125|अतः (वास्तविकता यह है कि) जिसे अल्लाह सीधे मार्ग पर लाना चाहता है, उसका सीना इस्लाम के लिए खोल देता है। और जिसे गुमराही में पड़ा रहने देता चाहता है, उसके सीने को तंग और भिंचा हुआ कर देता है; मानो वह आकाश में चढ़ रहा है। इस तरह अल्लाह उन लोगों पर गन्दगी डाल देता है, जो ईमान नहीं लाते 6|126|और यह तुम्हारे रब का रास्ता है, बिल्कुल सीधा। हमने निशानियाँ, ध्यान देनेवालों के लिए खोल-खोलकर बयान कर दी है 6|127|उनके लिए उनके रब के यहाँ सलामती का घर है और वह उनका संरक्षक मित्र है, उन कामों के कारण जो वे करते रहे है 6|128|और उस दिन को याद करो, जब वह उन सबको घेरकर इकट्ठा करेगा, (कहेगा), "ऐ जिन्नों के गिरोह! तुमने तो मनुष्यों पर ख़ूब हाथ साफ किया।" और मनुष्यों में से जो उनके साथी रहे होंगे, कहेंग, "ऐ हमारे रब! हमने आपस में एक-दूसरे से लाभ उठाया और अपने उस नियत समय को पहुँच गए, जो तूने हमारे लिए ठहराया था।" वह कहेगा, "आग (नरक) तुम्हारा ठिकाना है, उसमें तुम्हें सदैव रहना है।" अल्लाह का चाहा ही क्रियान्वित है। निश्चय ही तुम्हारा रब तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है 6|129|इसी प्रकार हम अत्याचारियों को एक-दूसरे के लिए (नरक का) साथी बना देंगे, उस कमाई के कारण जो वे करते रहे थे 6|130|"ऐ जिन्नों और मनुष्यों के गिरोह! क्या तुम्हारे पास तुम्हीं में से रसूल नहीं आए थे, जो तुम्हें मेरी आयतें सुनाते और इस दिन के पेश आने से तुम्हें डराते थे?" वे कहेंगे, "क्यों नहीं! (रसूल तो आए थे) हम स्वयं अपने विरुद्ध गवाह है।" उन्हें तो सांसारिक जीवन ने धोखे में रखा। मगर अब वे स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देने लगे कि वे इनकार करनेवाले थे 6|131|यह जान लो कि तुम्हारा रब ज़ुल्म करके बस्तियों को विनष्ट करनेवाला न था, जबकि उनके निवासी बेसुध रहे हों 6|132|सभी के दर्जें उनके कर्मों के अनुसार है। और जो कुछ वे करते है, उससे तुम्हारा रब अनभिज्ञ नहीं है 6|133|तुम्हारा रब निस्पृह, दयावान है। यदि वह चाहे तो तुम्हें (दुनिया से) ले जाए और तुम्हारे स्थान पर जिसको चाहे तुम्हारे बाद ले आए, जिस प्रकार उसने तुम्हें कुछ और लोगों की सन्तति से उठाया है 6|134|जिस चीज़ का तुमसे वादा किया जाता है, उसे अवश्य आना है और तुममें उसे मात करने की सामर्थ्य नहीं 6|135|कह दो, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम अपनी जगह कर्म करते रहो, मैं भी अपनी जगह कर्मशील हूँ। शीघ्र ही तुम्हें मालूम हो जाएगा कि घर (लोक-परलोक) का परिणाम किसके हित में होता है। निश्चय ही अत्याचारी सफल नहीं होते।" 6|136|उन्होंने अल्लाह के लिए स्वयं उसी की पैदा की हुई खेती और चौपायों में से एक भाग निश्चित किया है और अपने ख़याल से कहते है, "यह किस्सा अल्लाह का है और यह हमारे ठहराए हुए साझीदारों का है।" फिर जो उनके साझीदारों का (हिस्सा) है, वह अल्लाह को नहीं पहुँचता, परन्तु जो अल्लाह का है, वह उनके साझीदारों को पहुँच जाता है। कितना बुरा है, जो फ़ैसला वे करते है! 6|137|इसी प्रकार बहुत-से बहुदेववादियों के लिए उनके लिए साझीदारों ने उनकी अपनी सन्तान की हत्या को सुहाना बना दिया है, ताकि उन्हें विनष्ट कर दें और उनके लिए उनके धर्म को संदिग्ध बना दें। यदि अल्लाह चाहता तो वे ऐसा न करते; तो छोड़ दो उन्हें और उनके झूठ घड़ने को 6|138|और वे कहते है, "ये जानवर और खेती वर्जित और सुरक्षित है। इन्हें तो केवल वही खा सकता है, जिसे हम चाहें।" - ऐसा वे स्वयं अपने ख़याल से कहते है - और कुछ चौपाए ऐसे है, जिनकी पीठों को (सवारी के लिए) हराम ठहरा लिया है और कुछ जानवर ऐसे है जिनपर अल्लाह का नाम नहीं लेते। यह यह उन्होंने अल्लाह पर झूठ घड़ा है, और वह शीघ्र ही उन्हें उनके झूठ घड़ने का बदला देगा 6|139|और वे कहते है, "जो कुछ इन जानवरों के पेट में है वह बिल्कुल हमारे पुरुषों ही के लिए है और वह हमारी पत्नियों के लिए वर्जित है। परन्तु यदि वह मुर्दा हो, तो वे सब उसमें शरीक है।" शीघ्र ही वह उन्हें उनके ऐसा कहने का बदला देगा। निस्संदेह वह तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है 6|140|वे लोग कुछ जाने-बूझे बिना घाटे में रहे, जिन्होंने मूर्खता के कारण अपनी सन्तान की हत्या की और जो कुछ अल्लाह ने उन्हें प्रदान किया था, उसे अल्लाह पर झूठ घड़कर हराम ठहरा दिया। वास्तव में वे भटक गए और वे सीधा मार्ग पानेवाले न हुए 6|141|और वही है जिसने बाग़ पैदा किए; कुछ जालियों पर चढ़ाए जाते है और कुछ नहीं चढ़ाए जाते और खजूर और खेती भी जिनकी पैदावार विभिन्न प्रकार की होती है, और ज़ैतून और अनार जो एक-दूसरे से मिलते-जुलते भी है और नहीं भी मिलते है। जब वह फल दे, तो उसका फल खाओ और उसका हक़ अदा करो जो उस (फ़सल) की कटाई के दिन वाजिब होता है। और हद से आगे न बढ़ो, क्योंकि वह हद से आगे बढ़नेवालों को पसन्द नहीं करता 6|142|और चौपायों में से कुछ बोझ उठानेवाले बड़े और कुछ छोटे जानवर पैदा किए। अल्लाह ने जो कुछ तुम्हें दिया है, उसमें से खाओ और शैतान के क़दमों पर न चलो। निश्चय ही वह तुम्हारा खुला हुआ शत्रु है 6|143|आठ नर-मादा पैदा किए - दो भेड़ की जाति से और दो बकरी की जाति से - कहो, "क्या उसने दोनों नर हराम किए है या दोनों मादा को? या उसको जो इन दोनों मादा के पेट में हो? किसी ज्ञान के आधार पर मुझे बताओ, यदि तुम सच्चे हो।" 6|144|और दो ऊँट की जाति से और दो गाय की जाति से, कहो, "क्या उसने दोनों नर हराम किए है या दोनों मादा को? या उसको जो इन दोनों मादा के पेट में हो? या, तुम उपस्थित थे, जब अल्लाह ने तुम्हें इसका आदेश दिया था? फिर उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो लोगों को पथभ्रष्ट करने के लिए अज्ञानता-पूर्वक अल्लाह पर झूठ घड़े? निश्चय ही, अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाता।" 6|145|कह दो, "जो कुछ मेरी ओर प्रकाशना की गई है, उसमें तो मैं नहीं पाता कि किसी खानेवाले पर उसका कोई खाना हराम किया गया हो, सिवाय इसके लिए वह मुरदार हो, यह बहता हुआ रक्त हो या ,सुअर का मांस हो - कि वह निश्चय ही नापाक है - या वह चीज़ जो मर्यादा से हटी हुई हो, जिसपर अल्लाह के अतिरिक्त किसी और का नाम लिया गया हो। इसपर भी जो बहुत विवश और लाचार हो जाए; परन्तु वह अवज्ञाकारी न हो और न हद से आगे बढ़नेवाला हो, तो निश्चय ही तुम्हारा रब अत्यन्त क्षमाशील, दयाबान है।" 6|146|और उन लोगों के लिए जो यहूदी हुए हमने नाख़ूनवाला जानवर हराम किया और गाय और बकरी में से इन दोनों की चरबियाँ उनके लिए हराम कर दी थीं, सिवाय उस (चर्बी) के जो उन दोनों की पीठों या आँखों से लगी हुई या हड़्डी से मिली हुई हो। यह बात ध्यान में रखो। हमने उन्हें उनकी सरकशी का बदला दिया था और निश्चय ही हम सच्चे है 6|147|फिर यदि वे तुम्हें झुठलाएँ तो कह दो, "तुम्हारा रब व्यापक दयालुतावाला है और अपराधियों से उसकी यातना नहीं फिरती।" 6|148|बहुदेववादी कहेंगे, "यदि अल्लाह चाहता तो न हम साझीदार ठहराते और न हमारे पूर्वज ही; और न हम किसी चीज़ को (बिना अल्लाह के आदेश के) हराम ठहराते।" ऐसे ही उनसे पहले के लोगों ने भी झुठलाया था, यहाँ तक की उन्हें हमारी यातना का मज़ा चखना पड़ा। कहो, "क्या तुम्हारे पास कोई ज्ञान है कि उसे हमारे पास पेश करो? तुम लोग केवल गुमान पर चलते हो और निरे अटकल से काम लेते हो।" 6|149|कह दो, "पूर्ण तर्क तो अल्लाह ही का है। अतः यदि वह चाहता तो तुम सबको सीधा मार्ग दिखा देता।" 6|150|कह दो, "अपने उन गवाहों को लाओ, जो इसकी गवाही दें कि अल्लाह ने इसे हराम किया है।" फिर यदि वे गवाही दें तो तुम उनके साथ गवाही न देना, औऱ उन लोगों की इच्छाओं का अनुसरण न करना जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया और जो आख़िरत को नहीं मानते और (जिनका) हाल यह है कि वे दूसरो को अपने रब के समकक्ष ठहराते है 6|151|कह दो, "आओ, मैं तुम्हें सुनाऊँ कि तुम्हारे रब ने तुम्हारे ऊपर क्या पाबन्दियाँ लगाई है: यह कि किसी चीज़ को उसका साझीदार न ठहराओ और माँ-बाप के साथ सद्व्य वहार करो और निर्धनता के कारण अपनी सन्तान की हत्या न करो; हम तुम्हें भी रोज़ी देते है और उन्हें भी। और अश्लील बातों के निकट न जाओ, चाहे वे खुली हुई हों या छिपी हुई हो। और किसी जीव की, जिसे अल्लाह ने आदरणीय ठहराया है, हत्या न करो। यह और बात है कि हक़ के लिए ऐसा करना पड़े। ये बाते है, जिनकी ताकीद उसने तुम्हें की है, शायद कि तुम बुद्धि से काम लो। 6|152|"और अनाथ के धन को हाथ न लगाओ, किन्तु ऐसे तरीक़े से जो उत्तम हो, यहाँ तक कि वह अपनी युवावस्था को पहुँच जाए। और इनसाफ़ के साथ पूरा-पूरा नापो और तौलो। हम किसी व्यक्ति पर उसी काम की ज़िम्मेदारी का बोझ डालते हैं जो उसकी सामर्थ्य में हो। और जब बात कहो, तो न्याय की कहो, चाहे मामला अपने नातेदार ही का क्यों न हो, और अल्लाह की प्रतिज्ञा को पूरा करो। ये बातें हैं, जिनकी उसने तुम्हें ताकीद की है। आशा है तुम ध्यान रखोगे 6|153|और यह कि यही मेरा सीधा मार्ग है, तो तुम इसी पर चलो और दूसरे मार्गों पर न चलो कि वे तुम्हें उसके मार्ग से हटाकर इधर-उधर कर देंगे। यह वह बात है जिसकी उसने तुम्हें ताकीद की है, ताकि तुम (पथभ्रष्ट ता से) बचो 6|154|फिर (देखो) हमने मूसा को किताब दी थी, (धर्म को) पूर्णता प्रदान करने के लिए, जिसे उसने उत्तम रीति से ग्रहण किया था; और हर चीज़ को स्पष्ट‍ रूप से बयान करने, मार्गदर्शन देने और दया करने के लिए, ताकि वे लोग अपने रब से मिलने पर ईमान लाएँ 6|155|और यह किताब भी हमने उतारी है, जो बरकतवाली है; तो तुम इसका अनुसरण करो और डर रखो, ताकि तुमपर दया की जाए, 6|156|कि कहीं ऐसा न हो कि तुम कहने लगो, "किताब तो केवल हमसे पहले के दो गिरोहों पर उतारी गई थी और हमें तो उनके पढ़ने-पढ़ाने की ख़बर तक न थी।" 6|157|या यह कहने लगो, "यदि हमपर किताब उतारी गई होती तो हम उनसे बढकर सीधे मार्ग पर होते।" तो अब तुम्हारे पास रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण, मार्गदर्शन और दयालुता आ चुकी है। अब उससे बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह की आयतों को झुठलाए और दूसरों को उनसे फेरे? जो लोग हमारी आयतों से रोकते हैं, उन्हें हम इस रोकने के कारण जल्द बुरी यातना देंगे 6|158|क्या ये लोग केवल इसी की प्रतीक्षा कर रहे है कि उनके पास फ़रिश्ते आ जाएँ या स्वयं तुम्हारा रब की कोई निशानी आ जाएगी, फिर किसी ऐसे व्यक्ति को उसका ईमान कुछ लाभ न पहुँचाएगा जो पहले ईमान न लाया हो या जिसने अपने ईमान में कोई भलाई न कमाई हो। कह दो, ?"तुम भी प्रतीक्षा करो, हम भी प्रतीक्षा करते है।" 6|159|जिन लोगों ने अपने धर्म के टुकड़े-टुकड़े कर दिए और स्वयं गिरोहों में बँट गए, तुम्हारा उनसे कोई सम्बन्ध नहीं। उनका मामला तो बस अल्लाह के हवाले है। फिर वह उन्हें बता देगा जो कुछ वे किया करते थे 6|160|जो कोई अच्छा चरित्र लेकर आएगा उसे उसका दस गुना बदला मिलेगा और जो व्यक्ति बुरा चरित्र लेकर आएगा, उसे उसका बस उतना ही बदला मिलेगा, उनके साथ कोई अन्याय न होगा 6|161|कहो, "मेरे रब ने मुझे सीधा मार्ग दिखा दिया है, बिल्कुल ठीक धर्म, इबराहीम के पंथ की ओर जो सबसे कटकर एक (अल्लाह) का हो गया था और वह बहुदेववादियों में से न था।" 6|162|कहो, "मेरी नमाज़ और मेरी क़ुरबानी और मेरा जीना और मेरा मरना सब अल्लाह के लिए है, जो सारे संसार का रब है 6|163|"उसका कोई साझी नहीं है। मुझे तो इसी का आदेश मिला है और सबसे पहला मुस्लिम (आज्ञाकारी) मैं हूँ।" 6|164|कहो, "क्या मैं अल्लाह से भिन्न कोई और रब ढूढूँ, जबकि हर चीज़ का रब वही है!" और यह कि प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ कमाता है, उसका फल वही भोगेगा; कोई बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। फिर तुम्हें अपने रब की ओर लौटकर जाना है। उस समय वह तुम्हें बता देगा, जिसमें परस्पर तुम्हारा मतभेद और झगड़ा था 6|165|वही है जिसने तुम्हें धरती में धरती में ख़लीफ़ा (अधिकारी, उत्ताराधिकारी) बनाया और तुममें से कुछ लोगों के दर्जे कुछ लोगों की अपेक्षा ऊँचे रखे, ताकि जो कुछ उसने तुमको दिया है उसमें वह तम्हारी ले। निस्संदेह तुम्हारा रब जल्द सज़ा देनेवाला है। और निश्चय ही वही बड़ा क्षमाशील, दयावान है 7|1|अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰ साद॰ 7|2|यह एक किताब है, जो तुम्हारी ओर उतारी गई है - अतः इससे तुम्हारे सीने में कोई तंगी न हो - ताकि तुम इसके द्वारा सचेत करो और यह ईमानवालों के लिए एक प्रबोधन है; 7|3|जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, उस पर चलो और उसे छोड़कर दूसरे संरक्षक मित्रों का अनुसरण न करो। तुम लोग नसीहत थोड़े ही मानते हो 7|4|कितनी ही बस्तियाँ थीं, जिन्हें हमने विनष्टम कर दिया। उनपर हमारी यातना रात को सोते समय आ पहुँची या (दिन-दहाड़) आई, जबकि वे दोपहर में विश्राम कर रहे थे 7|5|जब उनपर यातना आ गई तो इसके सिवा उनके मुँह से कुछ न निकला कि वे पुकार उठे, "वास्तव में हम अत्याचारी थे।" 7|6|अतः हम उन लोगों से अवश्य पूछेंगे, जिनके पास रसूल भेजे गए थे, और हम रसूलों से भी अवश्य पूछेंगे 7|7|फिर हम पूरे ज्ञान के साथ उनके सामने सब बयान कर देंगे। हम कही ग़ायब नहीं थे 7|8|और बिल्कुल पक्का-सच्चा वज़न उसी दिन होगा। अतः जिनके कर्म वज़न में भारी होंगे, वही सफलता प्राप्त करेंगे 7|9|और वे लोग जिनके कर्म वज़न में हलके होंगे, तो वही वे लोग हैं, जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला, क्योंकि वे हमारी आयतों का इनकार औऱ अपने ऊपर अत्याचार करते रहे 7|10|और हमने धरती में तुम्हें अधिकार दिया और उसमें तुम्हारे लिए जीवन-सामग्री रखी। तुम कृतज्ञता थोड़े ही दिखाते हो 7|11|हमने तुम्हें पैदा करने का निश्चय किया; फिर तुम्हारा रूप बनाया; फिर हमने फ़रिश्तों से कहो, "आदम को सजदा करो।" तो उन्होंने सजदा किया, सिवाय इबलीस के। वह (इबलीस) सदजा करनेवालों में से न हुआ 7|12|कहा, "तुझे किसने सजका करने से रोका, जबकि मैंने तुझे आदेश दिया था?" बोला, "मैं उससे अच्छा हूँ। तूने मुझे अग्नि से बनाया और उसे मिट्टी से बनाया।" 7|13|कहा, "उतर जा यहाँ से! तुझे कोई हक़ नहीं है कि यहाँ घमंड करे, तो अब निकल जा; निश्चय ही तू अपमानित है।" 7|14|बोला, "मुझे एक दिन तक मुहल्लत दे, जबकि लोग उठाए जाएँगे।" 7|15|कहा, "निस्संदेह तुझे मुहल्लत है।" 7|16|बोला, "अच्छा, इस कारण कि तूने मुझे गुमराही में डाला है, मैं भी तेरे सीधे मार्ग पर उनके लिए घात में अवश्य बैठूँगा 7|17|"फिर उनके आगे और उनके पीछे और उनके दाएँ और उनके बाएँ से उनके पास आऊँगा। और तू उनमें अधिकतर को कृतज्ञ न पाएगा।" 7|18|कहा, "निकल जा यहाँ से! निन्दित ठुकराया हुआ। उनमें से जिस किसी ने भी तेरा अनुसरण किया, मैं अवश्य तुम सबसे जहन्नम को भर दूँगा।" 7|19|और "ऐ आदम! तुम और तुम्हारी पत्नी दोनों जन्नत में रहो-बसो, फिर जहाँ से चाहो खाओ, लेकिन इस वृक्ष के निकट न जाना, अन्यथा अत्याचारियों में से हो जाओगे।" 7|20|फिर शैतान ने दोनों को बहकाया, ताकि उनकी शर्मगाहों को, जो उन दोनों से छिपी थीं, उन दोनों के सामने खोल दे। और उसने (इबलीस ने) कहा, "तुम्हारे रब ने तुम दोनों को जो इस वृक्ष से रोका है, तो केवल इसलिए कि ऐसा न हो कि तुम कहीं फ़रिश्ते हो जाओ या कही ऐसा न हो कि तुम्हें अमरता प्राप्त हो जाए।" 7|21|और उसने उन दोनों के आगे क़समें खाई कि "निश्चय ही मैं तुम दोनों का हितैषी हूँ।" 7|22|इस प्रकार धोखा देकर उसने उन दोनों को झुका लिया। अन्ततः जब उन्होंने उस वृक्ष का स्वाद लिया, तो उनकी शर्मगाहे एक-दूसरे के सामने खुल गए और वे अपने ऊपर बाग़ के पत्ते जोड़-जोड़कर रखने लगे। तब उनके रब ने उन्हें पुकारा, "क्या मैंने तुम दोनों को इस वृक्ष से रोका नहीं था और तुमसे कहा नहीं था कि शैतान तुम्हारा खुला शत्रु है?" 7|23|दोनों बोले, "हमारे रब! हमने अपने आप पर अत्याचार किया। अब यदि तूने हमें क्षमा न किया और हम पर दया न दर्शाई, फिर तो हम घाटा उठानेवालों में से होंगे।" 7|24|कहा, "उतर जाओ! तुम परस्पर एक-दूसरे के शत्रु हो और एक अवधि कर तुम्हारे लिए धरती में ठिकाना और जीवन-सामग्री है।" 7|25|कहा, "वहीं तुम्हें जीना और वहीं तुम्हें मरना है और उसी में से तुमको निकाला जाएगा।" 7|26|ऐ आदम की सन्तान! हमने तुम्हारे लिए वस्त्र उतारा है कि तुम्हारी शर्मगाहों को छुपाए और रक्षा और शोभा का साधन हो। और धर्मपरायणता का वस्त्र - वह तो सबसे उत्तम है, यह अल्लाह की निशानियों में से है, ताकि वे ध्यान दें 7|27|ऐ आदम की सन्तान! कहीं शैतान तुम्हें बहकावे में न डाल दे, जिस प्रकार उसने तुम्हारे माँ-बाप को जन्नत से निकलवा दिया था; उनके वस्त्र उनपर से उतरवा दिए थे, ताकि उनकी शर्मगाहें एक-दूसरे के सामने खोल दे। निस्सदेह वह और उसका गिरोह उस स्थान से तुम्हें देखता है, जहाँ से तुम उन्हें नहीं देखते। हमने तो शैतानों को उन लोगों का मित्र बना दिया है, जो ईमान नहीं रखते 7|28|और उनका हाल यह है कि जब वे लोग कोई अश्लील कर्म करते है तो कहते है कि "हमने अपने बाप-दादा को इसी तरीक़े पर पाया है और अल्लाह ही ने हमें इसका आदेश दिया है।" कह दो, "अल्लाह कभी अश्लील बातों का आदेश नहीं दिया करता। क्या अल्लाह पर थोपकर ऐसी बात कहते हो, जिसका तुम्हें ज्ञान नहीं?" 7|29|कह दो, "मेरे रब ने तो न्याय का आदेश दिया है और यह कि इबादत के प्रत्येक अवसर पर अपना रुख़ ठीक रखो और निरे उसी के भक्त एवं आज्ञाकारी बनकर उसे पुकारो। जैसे उसने तुम्हें पहली बार पैदा किया, वैसे ही तुम फिर पैदा होगे।" 7|30|एक गिरोह को उसने मार्ग दिखाया। परन्तु दूसरा गिरोह ऐसा है, जिसके लोगों पर गुमराही चिपककर रह गई। निश्चय ही उन्होंने अल्लाह को छोड़कर शैतानों को अपने मित्र बनाए और समझते यह है कि वे सीधे मार्ग पर हैं 7|31|ऐ आदम की सन्तान! इबादत के प्रत्येक अवसर पर शोभा धारण करो; खाओ और पियो, परन्तु हद से आगे न बढ़ो। निश्चय ही, वह हद से आगे बदनेवालों को पसन्द नहीं करता 7|32|कहो, "अल्लाह की उस शोभा को जिसे उसने अपने बन्दों के लिए उत्पन्न किया है औऱ आजीविका की पवित्र, अच्छी चीज़ो को किसने हराम कर दिया?" कह दो, "यह सांसारिक जीवन में भी ईमानवालों के लिए हैं; क़ियामत के दिन तो ये केवल उन्हीं के लिए होंगी। इसी प्रकार हम आयतों को उन लोगों के लिए सविस्तार बयान करते है, जो जानना चाहे।" 7|33|कह दो, "मेरे रब ने केवल अश्लील कर्मों को हराम किया है - जो उनमें से प्रकट हो उन्हें भी और जो छिपे हो उन्हें भी - और हक़ मारना, नाहक़ ज़्यादती और इस बात को कि तुम अल्लाह का साझीदार ठहराओ, जिसके लिए उसने कोई प्रमाण नहीं उतारा और इस बात को भी कि तुम अल्लाह पर थोपकर ऐसी बात कहो जिसका तुम्हें ज्ञान न हो।" 7|34|प्रत्येक समुदाय के लिए एक नियत अवधि है। फिर जब उसका नियत समय आ जाता है, तो एक घड़ी भर न पीछे हट सकते है और न आगे बढ़ सकते है 7|35|ऐ आदम की सन्तान! यदि तुम्हारे पास तुम्हीं में से कोई रसूल आएँ; तुम्हें मेरी आयतें सुनाएँ, तो जिसने डर रखा और सुधार कर लिया तो ऐसे लोगों के लिए न कोई भय होगा और न वे शोकाकुल होंगे 7|36|रहे वे लोग जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया और उनके मुक़ाबले में अकड़ दिखाई; वही आगवाले हैं, जिसमें वे सदैव रहेंगे 7|37|अब उससे बढ़कर अत्याचारी कौन है, जिसने अल्लाह पर मिथ्यारोपण किया या उसकी आयतों को झुठलाया? ऐसे लोगों को उनके लिए लिखा हुआ हिस्सा पहुँचता रहेगा, यहाँ तक कि जब हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनके प्राण ग्रस्त करने के लिए उनके पास आएँगे तो कहेंगे, "कहाँ हैं, वे जिन्हें तुम अल्लाह को छोड़कर पुकारते थे?" कहेंगे, "वे तो हमसे गुम हो गए।" और वे स्वयं अपने विरुद्ध गवाही देंगे कि वास्तव में वे इनकार करनेवाले थे 7|38|वह कहेगा, "जिन्न और इनसान के जो गिरोह तुमसे पहले गुज़रे हैं, उन्हीं के साथ सम्मिलित होकर तुम भी आग में प्रवेश करो।" जब भी कोई जमाअत प्रवेश करेगी, तो वह अपनी बहन पर लानत करेगी, यहाँ तक कि जब सब उसमें रल-मिल जाएँगे तो उनमें से बाद में आनेवाले अपने से पहलेवाले के विषय में कहेंगे, "हमारे रब! हमें इन्हीं लोगों ने गुमराह किया था; तो तू इन्हें आग की दोहरी यातना दे।" वह कहेगा, "हरेक के लिए दोहरी ही है। किन्तु तुम नहीं जानते।" 7|39|और उनमें से पहले आनेवाले अपने से बाद में आनेवालों से कहेंगे, "फिर हमारे मुक़ावाले में तुम्हें कोई श्रेष्ठता प्राप्त नहीं, तो जैसी कुछ कमाई तुम करते रहे हो, उसके बदले में तुम यातना का मज़ा चखो!" 7|40|जिन लोगों ने हमारी आयतों को झुठलाया और उनके मुक़ाबले में अकड़ दिखाई, उनके लिए आकाश के द्वार नहीं खोले जाएँगे और न वे जन्नत में प्रवेश करेंग जब तक कि ऊँट सुई के नाके में से न गुज़र जाए। हम अपराधियों को ऐसा ही बदला देते है 7|41|उनके लिए बिछौना जहन्नम का होगा और ओढ़ना भी उसी का। अत्याचारियों को हम ऐसा ही बदला देते है 7|42|इसके विपरित जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए - हम किसी पर उसकी सामर्थ्य से बढ़कर बोझ नहीं डालते - वही लोग जन्नतवाले है। वे उसमें सदैव रहेंगे 7|43|उनके सीनों में एक-दूसरे के प्रति जो रंजिश होगी, उसे हम दूर कर देंगे; उनके नीचें नहरें बह रही होंगी और वे कहेंगे, "प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने इसकी ओर हमारा मार्गदर्शन किया। और यदि अल्लाह हमारा मार्गदर्शन न करतो तो हम कदापि मार्ग नहीं पा सकते थे। हमारे रब के रसूल निस्संदेह सत्य लेकर आए थे।" और उन्हें आवाज़ दी जाएगी, "यह जन्नत है, जिसके तुम वारिस बनाए गए। उन कर्मों के बदले में जो तुम करते रहे थे।" 7|44|जन्नतवाले आगवालों को पुकारेंगे, "हमसे हमारे रब ने जो वादा किया था, उसे हमने सच पाया। तो क्या तुमसे तुम्हारे रब ने जो वादा कर रखा था, तुमने भी उसे सच पाया?" वे कहेंगे, "हाँ।" इतने में एक पुकारनेवाला उनके बीच पुकारेगा, "अल्लाह की फिटकार है अत्याचारियों पर।" 7|45|जो अल्लाह के मार्ग से रोकते और उसे टेढ़ा करना चाहते है और जो आख़िरत का इनकार करते है, 7|46|और इन दोनों के मध्य एक ओट होगी। और ऊँचाइयों पर कुछ लोग होंगे जो प्रत्येक को उसके लक्षणों से पहचानते होंगे, और जन्नतवालों से पुकारकर कहेंगे, "तुम पर सलाम है।" वे अभी जन्नत में प्रविष्ट तो नहीं हुए होंगे, यद्यपि वे आस लगाए होंगे 7|47|और जब उनकी निगाहें आगवालों की ओर फिरेंगी, तो कहेंगे, "हमारे रब, हमें अत्याचारी लोगों में न सम्मिलित न करना।" 7|48|और ये ऊँचाइयोंवाले कुछ ऐसे लोगों से, जिन्हें ये उनके लक्षणों से पहचानते हैं, कहेंगे, "तुम्हारे जत्थे तो तुम्हारे कुछ काम न आए और न तुम्हारा अकड़ते रहना ही। 7|49|"क्या ये वही हैं ना, जिनके विषय में तुम क़समें खाते थे कि अल्लाह उनपर अपनी दया-दृष्टि न करेगा।" "जन्नत में प्रवेश करो, तुम्हारे लिए न कोई भय है और न तुम्हें कोई शोक होगा।" 7|50|आगवाले जन्नतवालों को पुकारेंगे कि ,"थोड़ा पानी हमपर बहा दो, या उन चीज़ों में से कुछ दे दो जो अल्लाह ने तुम्हें दी हैं।" वे कहेंगे, "अल्लाह ने तो ये दोनों चीज़ें इनकार करनेवालों के लिए वर्जित कर दी है।" 7|51|उनके लिए जिन्होंने अपना धर्म खेल-तमाशा ठहराया और जिन्हें सांसारिक जीवन ने धोखे में डाल दिया, तो आज हम भी उन्हें भुला देंगे, जिस प्रकार वे अपने इस दिन की मुलाक़ात को भूले रहे और हमारी आयतों का इनकार करते रहे 7|52|और निश्चय ही हम उनके पास एक ऐसी किताब ले आए है, जिसे हमने ज्ञान के आधार पर विस्तृत किया है, जो ईमान लानेवालों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता है 7|53|क्या वे लोग केवल इसी की प्रतीक्षा में है कि उसकी वास्तविकता और परिणाम प्रकट हो जाए? जिस दिन उसकी वास्तविकता सामने आ जाएगी, तो वे लोग इससे पहले उसे भूले हुए थे, बोल उठेंगे, "वास्तव में, हमारे रब के रसूल सत्य लेकर आए थे। तो क्या हमारे कुछ सिफ़ारिशी है, जो हमारी सिफ़ारिश कर दें या हमें वापस भेज दिया जाए कि जो कुछ हम करते थे उससे भिन्न कर्म करें?" उन्होंने अपने आपको घाटे में डाल दिया और जो कुछ वे झूठ घढ़ते थे, वे सब उनसे गुम होकर रह गए 7|54|निस्संदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है, जिसने आकाशों और धरती को छह दिनों में पैदा किया - फिर राजसिंहासन पर विराजमान हुआ। वह रात को दिन पर ढाँकता है जो तेज़ी से उसका पीछा करने में सक्रिय है। और सूर्य, चन्द्रमा और तारे भी बनाए, इस प्रकार कि वे उसके आदेश से काम में लगे हुए है। सावधान रहो, उसी की सृष्टि है और उसी का आदेश है। अल्लाह सारे संसार का रब, बड़ी बरकतवाला है 7|55|अपने रब को गिड़गिड़ाकर और चुपके-चुपके पुकारो। निश्चय ही वह हद से आगे बढ़नेवालों को पसन्द नहीं करता 7|56|और धरती में उसके सुधार के पश्चात बिगाड़ न पैदा करो। भय और आशा के साथ उसे पुकारो। निश्चय ही, अल्लाह की दयालुता सत्कर्मी लोगों के निकट है 7|57|और वही है जो अपनी दयालुता से पहले शुभ सूचना देने को हवाएँ भेजता है, यहाँ तक कि जब वे बोझल बादल को उठा लेती है तो हम उसे किसी निर्जीव भूमि की ओर चला देते है, फिर उससे पानी बरसाते है, फिर उससे हर तरह के फल निकालते है। इसी प्रकार हम मुर्दों को मृत अवस्था से निकालेगे - ताकि तुम्हें ध्यान हो 7|58|और अच्छी भूमि के पेड़-पौधे उसके रब के आदेश से निकलते है और जो भूमि ख़राब हो गई है तो उससे निकम्मी पैदावार के अतिरिक्त कुछ नहीं निकलता। इसी प्रकार हम निशानियों को उन लोगों के लिए तरह-तरह से बयान करते है, जो कृतज्ञता दिखानेवाले है 7|59|हमने नूह को उसकी क़ौम के लोगों की ओर भेजा, तो उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके अतिरिक्त तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। मैं तुम्हारे लिए एक बड़े दिन का यातना से डरता हूँ।" 7|60|उसकी क़ौम के सरदारों ने कहा, "हम तो तुम्हें खुली गुमराही में पड़ा देख रहे है।" 7|61|उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगों! किसी गुमराही का मुझसे सम्बन्ध नहीं, बल्कि मैं सारे संसार के रब का एक रसूल हूँ। - 7|62|"अपने रब के सन्देश पहुँचता हूँ और तुम्हारा हित चाहता हूँ, और मैं अल्लाह की ओर से वह कुछ जानता हूँ, जो तुम नहीं जानते।" 7|63|क्या (तुमने मुझे झूठा समझा) और तुम्हें इस पार आश्चर्य हुआ कि तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक आदमी के द्वारा तुम्हारे रब की नसीहत आई? ताकि वह तुम्हें सचेत कर दे और ताकि तुम डर रखने लगो और शायद कि तुमपर दया की जाए 7|64|किन्तु उन्होंने झुठला दिया। अन्ततः हमने उसे और उन लोगों को जो उसके साथ एक नौका में थे, बचा लिया और जिन लोगों ने हमारी आयतों को ग़लत समझा, उन्हें हमने डूबो दिया। निश्चय ही वे अन्धे लोग थे 7|65|और आद की ओर उनके भाई हूद को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो, उसके अतिरिक्त तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। तो क्या (इसे सोचकर) तुम डरते नहीं?" 7|66|उसकी क़ौम के इनकार करनेवाले सरदारों ने कहा, "वास्तव में, हम तो देखते है कि तुम बुद्धिहीनता में ग्रस्त हो और हम तो तुम्हें झूठा समझते है।" 7|67|उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं बुद्धिहीनता में कदापि ग्रस्त नहीं हूँ। परन्तु मैं सारे संसार के रब का रसूल हूँ।- 7|68|"तुम्हें अपने रब के संदेश पहुँचता हूँ और मैं तुम्हारा विश्वस्त हितैषी हूँ 7|69|"क्या (तुमने मुझे झूठा समझा) और तुम्हें इसपर आश्चर्य हुआ कि तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक आदमी के द्वारा तुम्हारे रब की नसीहत आई, ताकि वह तुम्हें सचेत करे? और याद करो, जब उसने नूह की क़ौम के पश्चात तुम्हें उसका उत्तराधिकारी बनाया और शारीरिक दृष्टि से भी तुम्हें अधिक विशालता प्रदान की। अतः अल्लाह की सामर्थ्य के चमत्कारो को याद करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो।" 7|70|वे बोले, "क्या तुम हमारे पास इसलिए आए हो कि अकेले अल्लाह की हम बन्दगी करें और जिनको हमारे बाप-दादा पूजते रहे है, उन्हें छोड़ दें? अच्छा, तो जिसकी तुम हमें धमकी देते हो, उसे हमपर ले आओ, यदि तुम सच्चे हो।" 7|71|उसने कहा, "तुम पर तो तुम्हारे रब की ओर से नापाकी थोप दी गई है और प्रकोप टूट पड़ा है। क्या तुम मुझसे उन नामों के लिए झगड़ते हो जो तुमने और तुम्हारे बाप-दादा ने रख छोड़े है, जिनके लिए अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा? अच्छा, तो तुम भी प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करता हूँ।" 7|72|फिर हमने अपनी दयालुता से उसको और जो लोग उसके साथ थे उन्हें बचा लिया और उन लोगों की जड़ काट दी, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया था और ईमानवाले न थे 7|73|और समूद की ओर उनके भाई सालेह को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके अतिरिक्त तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण आ चुका है। यह अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी है। अतः इसे छोड़ दो कि अल्लाह की धरती में खाए। और तकलीफ़ पहुँचाने के लिए इसे हाथ न लगाना, अन्यथा तुम्हें एक दुखद यातना आ लेगी।- 7|74|और याद करो जब अल्लाह ने आद के पश्चात तुम्हें उसका उत्तराधिकारी बनाया और धरती में तुम्हें ठिकाना प्रदान किया। तुम उसके समतल मैदानों में महल बनाते हो और पहाड़ो को काट-छाँट कर भवनों का रूप देते हो। अतः अल्लाह की सामर्थ्य के चमत्कारों को याद करो और धरती में बिगाड़ पैदा करते न फिरो।" 7|75|उसकी क़ौम के सरदार, जो बड़े बने हुए थे, उन कमज़ोर लोगों से, जो उनमें ईमान लाए थे, कहने लगे, "क्या तुम जानते हो कि सालेह अपने रब का भेजा हुआ (पैग़म्बर) है?" उन्होंने कहा, "निस्संदेह जिस चीज़ के साथ वह भेजा गया है, हम उसपर ईमान रखते है।" 7|76|उन घमंड करनेवालों ने कहा, "जिस चीज़ पर तुम ईमान लाए हो, हम तो उसको नहीं मानते।" 7|77|फिर उन्होंने उस ऊँटनी की कूचें काट दीं और अपने रब के आदेश की अवहेलना की और बोले, "ऐ सालेह! हमें तू जिस चीज़ की धमकी देता है, उसे हमपर ले आ, यदि तू वास्तव में रसूलों में से है।" 7|78|अन्ततः एक हिला मारनेवाली आपदा ने उन्हें आ लिया और वे अपने घरों में आँधे पड़े रह गए 7|79|फिर वह यह कहता हुआ उनके यहाँ से फिरा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगों! मैं तो तुम्हें अपने रब का संदेश पहुँचा चुका और मैंने तुम्हारा हित चाहा। परन्तु तुम्हें अपने हितैषी पसन्द ही नहीं आते।" 7|80|और हमने लूत को भेजा। जब उसने अपनी क़ौम से कहा, "क्या तुम वह प्रत्यक्ष अश्लील कर्म करते हो, जिसे दुनिया में तुमसे पहले किसी ने नहीं किया?" 7|81|तुम स्त्रियों को छोड़कर मर्दों से कामेच्छा पूरी करते हो, बल्कि तुम नितान्त मर्यादाहीन लोग हो 7|82|उसकी क़ौम के लोगों का उत्तर इसके अतिरिक्त और कुछ न था कि वे बोले, "निकालो, उन लोगों को अपनी बस्ती से। ये ऐसे लोग है जो बड़े पाक-साफ़ है!" 7|83|फिर हमने उसे और उसके लोगों को छुटकारा दिया, सिवाय उसकी स्त्री के कि वह पीछे रह जानेवालों में से थी 7|84|और हमने उनपर एक बरसात बरसाई, तो देखो अपराधियों का कैसा परिणाम हुआ 7|85|और मदयनवालों की ओर हमने उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगों! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके अतिरिक्त तुम्हारा कोई पूज्य नहीं। तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से एक स्पष्ट प्रमाण आ चुका है। तो तुम नाप और तौल पूरी-पूरी करो, और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो, और धरती में उसकी सुधार के पश्चात बिगाड़ पैदा न करो। यही तुम्हारे लिए अच्छा है, यदि तुम ईमानवाले हो 7|86|"और प्रत्येक मार्ग पर इसलिए न बैठो कि धमकियाँ दो और उस व्यक्ति को अल्लाह के मार्ग से रोकने लगो जो उसपर ईमान रखता हो और न उस मार्ग को टेढ़ा करने में लग जाओ। याद करो, वह समय जब तुम थोड़े थे, फिर उसने तुम्हें अधिक कर दिया। और देखो, बिगाड़ पैदा करनेवालो का कैसा परिणाम हुआ 7|87|"और यदि तुममें एक गिरोह ऐसा है, जो उसपर ईमान लाया है, जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ और एक गिरोह ऐसा है, जो उसपर ईमान लाया है, जिसके साथ मैं भेजा गया हूँ और एक गिरोह ईमान नहीं लाया, तो धैर्य से काम लो, यहाँ तक कि अल्लाह हमारे बीच फ़ैसला कर दे। और वह सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है।" 7|88|उनकी क़ौम के सरदारों ने, जो घमंड में पड़े थे, कहा, "ऐ शुऐब! हम तुझे और तेरे साथ उन लोगों को, जो ईमान लाए है, अपनी बस्ती से निकालकर रहेंगे। या फिर तुम हमारे पन्थ में लौट आओ।" उसने कहा, "क्या (तुम यही चाहोगे) यद्यपि यह हमें अप्रिय हो जब भी? 7|89|"हम अल्लाह पर झूठ घड़नेवाले ठहरेंगे, यदि तुम्हारे पन्थ में लौट आएँ, इसके बाद कि अल्लाह ने हमें उससे छुटकारा दे दिया है। यह हमसे तो होने का नहीं कि हम उसमें पलट कर जाएँ, बल्कि हमारे रब अल्लाह की इच्छा ही क्रियान्वित है। ज्ञान की स्पष्ट से हमारा रब हर चीज़ को अपने घेरे में लिए हुए है। हमने अल्लाह ही पर भरोसा किया है। हमारे रब, हमारे और हमारी क़ौम के बीच निश्चित अटल फ़ैसला कर दे। और तू सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है।" 7|90|और क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, बोले, "यदि तुम शुऐब के अनुयायी बने तो तुम घाटे में पड़ जाओगे।" 7|91|अन्ततः एक दहला देनेवाली आपदा ने उन्हें आ लिया। फिर वे अपने घर में औंधे पड़े रह गए, 7|92|शुऐब को झुठलानेवाले, मानो कभी वहाँ बसे ही न थे। शुऐब को झुठलानेवाले ही घाटे में रहे 7|93|तब वह उनके यहाँ से यह कहता हुआ फिरा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैंने अपने रब के सन्देश तुम्हें पहुँचा दिए और मैंने तुम्हारा हित चाहा। अब मैं इनकार करनेवाले लोगो पर कैसे अफ़सोस करूँ!" 7|94|हमने जिस बस्ती में भी कभी कोई नबी भेजा, तो वहाँ के लोगों को तंगी और मुसीबत में डाला, ताकि वे (हमारे सामने) गिड़गि़ड़ाए 7|95|फिर हमने बदहाली को ख़ुशहाली में बदल दिया, यहाँ तक कि वे ख़ूब फले-फूले और कहने लगे, "ये दुख और सुख तो हमारे बाप-दादा को भी पहुँचे हैं।" अनततः जब वे बेखबर थे, हमने अचानक उन्हें पकड़ लिया 7|96|यदि बस्तियों के लोग ईमान लाते और डर रखते तो अवश्य ही हम उनपर आकाश और धरती की बरकतें खोल देते, परन्तु उन्होंने तो झुठलाया। तो जो कुछ कमाई वे करते थे, उसके बदले में हमने उन्हें पकड़ लिया 7|97|फिर क्या बस्तियों के लोगों को इस और से निश्चिन्त रहने का अवसर मिल सका कि रात में उनपर हमारी यातना आ जाए, जबकि वे सोए हुए हो? 7|98|और क्या बस्तियों के लोगो को इस ओर से निश्चिन्त रहने का अवसर मिल सका कि दिन चढ़े उनपर हमारी यातना आ जाए, जबकि वे खेल रहे हों? 7|99|आख़िर क्या वे अल्लाह की चाल से निश्चिन्त हो गए थे? तो (समझ लो उन्हें टोटे में पड़ना ही था, क्योंकि) अल्लाह की चाल से तो वही लोग निश्चित होते है, जो टोटे में पड़नेवाले होते है 7|100|क्या जो धरती के, उसके पूर्ववासियों के पश्चात उत्तराधिकारी हुए है, उनपर यह तथ्य प्रकट न हुआ कि यदि हम चाहें तो उनके गुनाहों पर उन्हें आ पकड़े? हम तो उनके दिलों पर मुहर लगा रहे हैं, क्योंकि वे कुछ भी नहीं सुनते 7|101|ये है वे बस्तियाँ जिनके कुछ वृत्तान्त हम तुमको सुना रहे है। उनके पास उनके रसूल खुली-खुली निशानियाँ लेकर आए परन्तु वे ऐसे न हुए कि ईमान लाते। इसका कारण यह था कि वे पहले से झुठलाते रहे थे। इसी प्रकार अल्लाह इनकार करनेवालों के दिलों पर मुहर लगा देता है 7|102|हमने उनके अधिकतर लोगो में प्रतिज्ञा का निर्वाह न पाया, बल्कि उनके बहुतों को हमने उल्लंघनकारी ही पाया 7|103|फिर उनके पश्चात हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा, परन्तु उन्होंने इनकार और स्वयं पर अत्याचार किया। तो देखो, इन बिगाड़ पैदा करनेवालों का कैसा परिणाम हुआ! 7|104|मूसा ने कहा, "ऐ फ़िरऔन! मैं सारे संसार के रब का रसूल हूँ 7|105|"मैं इसका अधिकारी हूँ कि अल्लाह से सम्बद्ध करके सत्य के अतिरिक्त कोई बात न कहूँ। मैं तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से स्पष्ट प्रमाण लेकर आ गया हूँ। अतः तुम इसराईल की सन्तान को मेरे साथ जाने दो।" 7|106|बोला, "यदि तुम कोई निशानी लेकर आए हो तो उसे पेश करो, यदि तुम सच्चे हो।" 7|107|तब उसने अपनी लाठी डाल दी। क्या देखते है कि वह प्रत्यक्ष अजगर है 7|108|और उसने अपना हाथ निकाला, तो क्या देखते है कि वह सब देखनेवालों के सामने चमक रहा है 7|109|फ़िरऔन की क़ौम के सरदार कहने लगे, "अरे, यह तो बडा कुशल जादूगर है! 7|110|"तुम्हें तुम्हारी धरती से निकाल देना चाहता है। तो अब क्या कहते हो?" 7|111|उन्होंने कहा, "इसे और इसके भाई को प्रतीक्षा में रखो और नगरों में हरकारे भेज दो, 7|112|"कि वे हर कुशल जादूगर को तुम्हारे पास ले आएँ।" 7|113|अतएव जादूगर फ़िरऔन के पास आ गए। कहने लगे, "यदि हम विजयी हुए तो अवश्य ही हमें बड़ा बदला मिलेगा?" 7|114|उसने कहा, "हाँ, और बेशक तुम (मेरे) क़रीबियों में से हो जाओगे।" 7|115|उन्होंने कहा, "ऐ मूसा! या तुम डालो या फिर हम डालते हैं?" 7|116|उसने कहा, "तुम ही डालो।" फिर उन्होंने डाला तो लोगो की आँखों पर जादू कर दिया और उन्हें भयभीत कर दिया। उन्होंने एक बहुत बड़े जादू का प्रदर्शन किया 7|117|हमने मूसा की ओर प्रकाशना कि कि "अपनी लाठी डाल दे।" फिर क्या देखते है कि वह उनके रचें हुए स्वांग को निगलती जा रही है 7|118|इस प्रकार सत्य प्रकट हो गया और जो कुछ वे कर रहे थे, मिथ्या होकर रहा 7|119|अतः वे पराभूत हो गए और अपमानित होकर रहे 7|120|और जादूगर सहसा सजदे में गिर पड़े 7|121|बोले, "हम सारे संसार के रब पर ईमान ले आए; 7|122|"मूसा और हारून के रब पर।" 7|123|फ़िरऔन बोला, "इससे पहले कि मैं तुम्हें अनुमति दूँ, तं उसपर ईमान ले आए! यह तो एक चाल है, जो तुम लोग नगर में चले हो, ताकि उसके निवासियों को उससे निकाल दो। अच्छा, तो अब तुम्हें जल्द की मालूम हुआ जाता है! 7|124|"मैं तुम्हारे हाथ और तुम्हारे पाँव विपरीत दिशाओं से काट दूँगा; फिर तुम सबको सूली पर चढ़ाकर रहूँगा।" 7|125|उन्होंने कहा, "हम तो अपने रब ही की और लौटेंगे 7|126|"और तू केबल इस क्रोध से हमें कष्ट पहुँचाने के लिए पीछे पड़ गया है कि हम अपने रब की निशानियों पर ईमान ले आए। हमारे रब! हमपर धैर्य उड़ेल दे और हमें इस दशा में उठा कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) हो।" 7|127|फ़िरऔन की क़ौम के सरदार कहने लगे, "क्या तुम मूसा और उसकी क़ौम को ऐसे ही छोड़ दोगे कि वे ज़मीन में बिगाड़ पैदा करें और वे तुम्हें और तुम्हारे उपास्यों को छोड़ बैठे?" उसने कहा, "हम उनके बेटों को बुरी तरह क़त्ल करेंगे और उनकी स्त्रियों को जीवित रखेंगे। निश्चय ही हमें उनपर पूर्ण अधिकार प्राप्त है।" 7|128|मूसा ने अपनी क़ौम से कहा, "अल्लाह से सम्बद्ध होकर सहायता प्राप्त करो और धैर्य से काम लो। धरती अल्लाह की है। वह अपने बन्दों में से जिसे चाहता है, उसका वारिस बना देता है। और अंतिम परिणाम तो डर रखनेवालों ही के लिए है।" 7|129|उन्होंने कहा, "तुम्हारे आने से पहले भी हम सताए गए और तुम्हारे आने के बाद भी।" उसने कहा, "निकट है कि तुम्हारा रब तुम्हारे शत्रुओं को विनष्ट कर दे और तुम्हें धरती में ख़लीफ़ा बनाए, फिर यह देखे कि तुम कैसे कर्म करते हो।" 7|130|और हमने फ़िरऔनियों को कई वर्ष तक अकाल और पैदावार की कमी में ग्रस्त रखा कि वे चेतें 7|131|फिर जब उन्हें अच्छी हालत पेश आती है तो कहते है, "यह तो है ही हमारे लिए।" और उन्हें बुरी हालत पेश आए तो वे उसे मूसा और उसके साथियों की नहूसत (अशकुन) ठहराएँ। सुन लो, उसकी नहूसत तो अल्लाह ही के पास है, परन्तु उनमें से अधिकतर लोग जानते नहीं 7|132|वे बोले, "तू हमपर जादू करने के लिए चाहे कोई भी निशानी हमारे पास ले आए, हम तुझपर ईमान लानेवाले नहीं।" 7|133|अन्ततः हमने उनपर तूफ़ान और टिड्डियों और छोटे कीड़े और मेंढक और रक्त, कितनी ही निशानियाँ अलग-अलग भेजी, किन्तु वे घमंड ही करते रहे। वे थे ही अपराधी लोग 7|134|जब कभी उनपर यातना आ पड़ती, कहते है, "ऐ मूसा, हमारे लिए अपने रब से प्रार्थना करो, उस प्रतिज्ञा के आधार पर जो उसने तुमसे कर रखी है। तुमने यदि हमपर से यह यातना हटा दी, तो हम अवश्य ही तुमपर ईमान ले आएँगे और इसराईल की सन्तान को तुम्हारे साथ जाने देंगे।" 7|135|किन्तु जब हम उनपर से यातना को एक नियत समय के लिए जिस तक वे पहुँचनेवाले ही थे, हटा लेते तो क्या देखते कि वे वचन-भंग करने लग गए 7|136|फिर हमने उनसे बदला लिया और उन्हें गहरे पानी में डूबो दिया, क्योंकि उन्होंने हमारी निशानियों को ग़लत समझा और उनसे ग़ाफिल हो गए 7|137|और जो लोग कमज़ोर पाए जाते थे, उन्हें हमने उस भू-भाग के पूरब के हिस्सों और पश्चिम के हिस्सों का उत्तराधिकारी बना दिया, जिसे हमने बरकत दी थी। और तुम्हारे रब का अच्छा वादा इसराईल की सन्तान के हक़ में पूरा हुआ, क्योंकि उन्होंने धैर्य से काम लिया और फ़िरऔन और उसकी क़ौम का वह सब कुछ हमने विनष्ट कर दिया, जिसे वे बनाते और ऊँचा उठाते थे 7|138|और इसराईल की सन्तान को हमने सागर से पार करा दिया, फिर वे ऐसे लोगों को पास पहुँचे जो अपनी कुछ मूर्तियों से लगे बैठे थे। कहने लगे, "ऐ मूसा! हमारे लिए भी कोई ऐसा उपास्य ठहरा दे, जैसे इनके उपास्य है।" उसने कहा, "निश्चय ही तुम बड़े ही अज्ञानी लोग हो 7|139|“निश्चय ही वह लोग लगे हुए है, बरबाद होकर रहेगा। और जो कुछ ये कर रहे है सर्वथा व्यर्थ है।" 7|140|उसने कहा, "क्या मैं अल्लाह के सिवा तुम्हारे लिए कोई और उपास्य ढूढूँ, हालाँकि उसी ने सारे संसारवालों पर तुम्हें श्रेष्ठता प्रदान की?" 7|141|और याद करो जब हमने तुम्हें फ़िरऔन के लोगों से छुटकारा दिया जो तुम्हें बुरी यातना में ग्रस्त रखते थे। तुम्हारे बेटों को मार डालते और तुम्हारी स्त्रियों को जीवित रहने देते थे। और वह (छुटकारा दिलाना) तुम्हारे रब की ओर से बड़ा अनुग्रह है 7|142|और हमने मूसा से तीस रातों का वादा ठहराया, फिर हमने दस और बढ़ाकर उसे पूरा किया। इसी प्रकार उसके रब की ठहराई हुई अवधि चालीस रातों में पूरी हुई और मूसा ने अपने भाई हारून से कहा, "मेरे पीछे तुम मेरी क़ौम में मेरा प्रतिनिधित्व करना और सुधारना और बिगाड़ पैदा करनेवालों के मार्ग पर न चलना।" 7|143|अब मूसा हमारे निश्चित किए हुए समय पर पहुँचा और उसके रब ने उससे बातें की, तो वह करने लगा, "मेरे रब! मुझे देखने की शक्ति प्रदान कर कि मैं तुझे देखूँ।" कहा, "तू मुझे कदापि न देख सकेगा। हाँ, पहाड़ की ओर देख। यदि वह अपने स्थान पर स्थिर पर स्थिर रह जाए तो फिर तू मुझे देख लेगा।" अतएव जब उसका रब पहाड़ पर प्रकट हुआ तो उसे चकनाचूर कर दिया और मूसा मूर्छित होकर गिर पड़ा। फिर जब होश में आया तो कहा, "महिमा है तेरी! मैं तेरे समझ तौबा करता हूँ और सबसे पहला ईमान लानेवाला मैं हूँ।" 7|144|उसने कहा, "ऐ मूसा! मैंने दूसरे लोगों के मुक़ाबले में तुझे चुनकर अपने संदेशों और अपनी वाणी से तुझे उपकृत किया। अतः जो कुछ मैं तुझे दूँ उसे ले और कृतज्ञता दिखा।" 7|145|और हमने उसके लिए तख़्तियों पर उपदेश के रूप में हर चीज़ और हर चीज़ का विस्तृत वर्णन लिख दिया। अतः उनको मज़बूती से पकड़। उनमें उत्तम बातें है। अपनी क़ौम के लोगों को हुक्म दे कि वे उनको अपनाएँ। मैं शीघ्र ही तुम्हें अवज्ञाकारियों का घर दिखाऊँगा 7|146|जो लोग धरती में नाहक़ बड़े बनते है, मैं अपनी निशानियों की ओर से उन्हें फेर दूँगा। यदि वे प्रत्येक निशानी देख ले तब भी वे उस पर ईमान नहीं लाएँगे। यदि वे सीधा मार्ग देख लें तो भी वे उसे अपना मार्ग नहीं बनाएँगे। लेकिन यदि वे पथभ्रष्ट का मार्ग देख लें तो उसे अपना मार्ग ठहरा लेंगे। यह इसलिए की उन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया और उनसे ग़ाफ़िल रहे 7|147|जिन लोगों ने हमारी आयतों को और आख़िरत के मिलन को झूठा जाना, उनका तो सारा किया-धरा उनकी जान को लागू हुआ। जो कुछ वे करते रहे क्या उसके सिवा वे किसी और चीज़ का बदला पाएँगे? 7|148|और मूसा के पीछे उसकी क़ौम ने अपने ज़ेवरों से अपने लिए एक बछड़ा बना दिया, जिसमें से बैल की-सी आवाज़ निकलती थी। क्या उन्होंने देखा नहीं कि वह न तो उनसे बातें करता है और न उन्हें कोई राह दिखाता है? उन्होंने उसे अपना उपास्य बना लिया, औऱ वे बड़े अत्याचारी थे 7|149|और जब (चेताबनी से) उन्हें पश्चाताप हुआ और उन्होंने देख लिया कि वास्तव में वे भटक गए हैं तो कहने लगे, "यदि हमारे रब ने हमपर दया न की और उसने हमें क्षमा न किया तो हम घाटे में पड़ जाएँगे!" 7|150|और जब मूसा क्रोध और दुख से भरा हुआ अपनी क़ौम की ओर लौटा तो उसने कहा, "तुम लोगों ने मेरे पीछे मेरी जगह बुरा किया। क्या तुम अपने रब के हुक्म से पहले ही जल्दी कर बैठे?" फिर उसने तख़्तियाँ डाल दी और अपने भाई का सिर पकड़कर उसे अपनी ओर खींचने लगा। वह बोला, "ऐ मेरी माँ के बेटे! लोगों ने मुझे कमज़ोर समझ लिया और निकट था कि मुझे मार डालते। अतः शत्रुओं को मुझपर हुलसने का अवसर न दे और अत्याचारी लोगों में मुझे सम्मिलित न कर।" 7|151|उसने कहा, "मेरे रब! मुझे और मेरे भाई को क्षमा कर दे और हमें अपनी दयालुता में दाख़िल कर ले। तू तो सबसे बढ़कर दयावान हैं।" 7|152|जिन लोगों ने बछड़े को अपना उपास्य बनाया, वे अपने रब की ओर से प्रकोप और सांसारिक जीवन में अपमान से ग्रस्त होकर रहेंगे; और झूठ घड़नेवालों को हम ऐसा ही बदला देते है 7|153|रहे वे लोग जिन्होंने बुरे कर्म किए फिर उसके पश्चात तौबा कर ली और ईमान ले आए, तो इसके बाद तो तुम्हारा रब बड़ा ही क्षमाशील, दयाशील है 7|154|और जब मूसा का क्रोध शान्त हुआ तो उसने तख़्तियों को उठा लिया। उनके लेख में उन लोगों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता थी जो अपने रब से डरते है 7|155|मूसा ने अपनी क़ौम के सत्तर आदमियों को हमारे नियत किए हुए समय के लिए चुना। फिर जब उन लोगों को एक भूकम्प ने आ पकड़ा तो उसने कहा, "मेर रब! यदि तू चाहता तो पहले ही इनको और मुझको विनष्ट़ कर देता। जो कुछ हमारे नादानों ने किया है, क्या उसके कारण तू हमें विनष्ट करेगा? यह तो बस तेरी ओर से एक परीक्षा है। इसके द्वारा तू जिसको चाहे पथभ्रष्ट कर दे और जिसे चाहे मार्ग दिखा दे। तू ही हमारा संरक्षक है। अतः तू हमें क्षमा कर दे और हम पर दया कर, और तू ही सबसे बढ़कर क्षमा करनेवाला है 7|156|"और हमारे लिए इस संसार में भलाई लिख दे और आख़िरत में भी। हम तेरी ही ओर उन्मुख हुए।" उसने कहा, "अपनी यातना में मैं तो उसी को ग्रस्त करता हूँ, जिसे चाहता हूँ, किन्तु मेरी दयालुता से हर चीज़ आच्छादित है। उसे तो मैं उन लोगों के हक़ में लिखूँगा जो डर रखते और ज़कात देते है और जो हमारी आयतों पर ईमान लाते है 7|157|"(तो आज इस दयालुता के अधिकारी वे लोग है) जो उस रसूल, उम्मी नबी का अनुसरण करते है, जिसे वे अपने यहाँ तौरात और इंजील में लिखा पाते है। और जो उन्हें भलाई का हुक्म देता और बुराई से रोकता है। उनके लिए अच्छी-स्वच्छ चीज़ों का हलाल और बुरी-अस्वच्छ चीज़ों का हराम ठहराता है और उनपर से उनके वह बोझ उतारता है, जो अब तक उनपर लदे हुए थे और उन बन्धनों को खोलता है, जिनमें वे जकड़े हुए थे। अतः जो लोग उसपर ईमान लाए, उसका सम्मान किया और उसकी सहायता की और उस प्रकाश के अनुगत हुए, जो उसके साथ अवतरित हुआ है, वही सफलता प्राप्त करनेवाले है।" 7|158|कहो, "ऐ लोगो! मैं तुम सबकी ओर उस अल्लाह का रसूल हूँ, जो आकाशों और धरती के राज्य का स्वामी है उसके सिवा कोई पूज्य नहीं, वही जीवन प्रदान करता और वही मृत्यु देता है। अतः जीवन प्रदान करता और वही मृत्यु देता है। अतः अल्लाह और उसके रसूल, उस उम्मी नबी, पर ईमान लाओ जो स्वयं अल्लाह पर और उसके शब्दों (वाणी) पर ईमान रखता है और उनका अनुसरण करो, ताकि तुम मार्ग पा लो।" 7|159|मूसा की क़ौम में से एक गिरोह ऐसे लोगों का भी हुआ जो हक़ के अनुसार मार्ग दिखाते और उसी के अनुसार न्याय करते 7|160|और हमने उन्हें बारह ख़ानदानों में विभक्त करके अलग-अलग समुदाय बना दिया। जब उसकी क़ौम के लोगों ने पानी माँगा तो हमने मूसा की ओर प्रकाशना की, "अपनी लाठी अमुक चट्टान पर मारो।" अतएव उससे बारह स्रोत फूट निकले और हर गिरोह ने अपना-अपना घाट मालूम कर लिया। और हमने उनपर बादल की छाया की और उन पर 'मन्न' और 'सलवा' उतारा, "हमनें तुम्हें जो अच्छी-स्वच्छ चीज़े प्रदान की है, उन्हें खाओ।" उन्होंने हम पर कोई ज़ुल्म नहीं किया, बल्कि वास्तव में वे स्वयं अपने ऊपर ही ज़ुल्म करते रहे 7|161|याद करो जब उनसे कहा गया, "इस बस्ती में रहो-बसो और इसमें जहाँ से चाहो खाओ और कहो - हित्ततुन। और द्वार में सजदा करते हुए प्रवेश करो। हम तुम्हारी ख़ताओं को क्षमा कर देंगे और हम सुकर्मी लोगों को अधिक भी देंगे।" 7|162|किन्तु उनमें से जो अत्याचारी थे उन्होंने, जो कुछ उनसे कहा गया था, उसको उससे भिन्न बात से बदल दिया। अतः जो अत्याचार वे कर रहे थे, उसके कारण हमने आकाश से उनपर यातना भेजी 7|163|उनसे उस बस्ती के विषय में पूछो जो सागर-तट पर थी। जब वे सब्त के मामले में सीमा का उल्लंघन करते थे, जब उनके सब्त के दिन उनकी मछलियाँ खुले तौर पर पानी के ऊपर आ जाती थी और जो दिन उनके सब्त का न होता तो वे उनके पास न आती थी। इस प्रकार उनके अवज्ञाकारी होने के कारण हम उनको परीक्षा में डाल रहे थे 7|164|और जब उनके एक गिरोह ने कहा, "तुम ऐसे लोगों को क्यों नसीहत किए जा रहे हो, जिन्हें अल्लाह विनष्ट करनेवाला है या जिन्हें वह कठोर यातना देनेवाला है?" उन्होंने कहा, "तुम्हारे रब के समक्ष अपने को निरपराध सिद्ध करने के लिए, और कदाचित वे (अवज्ञा से) बचें।" 7|165|फिर जब वे उसे भूल गए जो नसीहत उन्हें दी गई थी तो हमने उन लोगों को बचा लिया, जो बुराई से रोकते थे और अत्याचारियों को उनकी अवज्ञा के कारण कठोर यातना में पकड़ लिया 7|166|फिर जब वे सरकशी के साथ वही कुछ करते रहे, जिससे उन्हें रोका गया था तो हमने उनसे कहा, "बन्दर हो जाओ, अपमानित और तिरस्कृत!" 7|167|और याद करो जब तुम्हारे रब ने ख़बर कर दी थी कि वह क़ियामत के दिन तक उनके विरुद्ध ऐसे लोगों को उठाता रहेगा, जो उन्हें बुरी यातना देंगे। निश्चय ही तुम्हारा रब जल्द सज़ा देता है और वह बड़ा क्षमाशील, दावान भी है 7|168|और हमने उन्हें टुकड़े-टुकड़े करके धरती में अनेक गिरोहों में बिखेर दिया। कुछ उनमें से नेक है और कुछ उनमें इससे भिन्न हैं, और हमने उन्हें अच्छी और बुरी परिस्थितियों में डालकर उनकी परीक्षा ली, कदाचित वे पलट आएँ 7|169|फिर उनके पीछ ऐसे अयोग्य लोगों ने उनकी जगह ली, जो किताब के उत्ताराधिकारी होकर इसी तुच्छ संसार का सामान समेटते है और कहते है, "हमें अवश्य क्षमा कर दिया जाएगा।" और यदि इस जैसा और सामान भी उनके पास आ जाए तो वे उसे भी ले लेंगे। क्या उनसे किताब का यह वचन नहीं लिया गया था कि वे अल्लाह पर थोपकर हक़ के सिवा कोई और बात न कहें। और जो उसमें है उसे वे स्वयं पढ़ भी चुके है। और आख़िरत का घर तो उन लोगों के लिए उत्तम है, जो डर रखते है। तो क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? 7|170|और जो लोग किताब को मज़बूती से थामते है और जिन्होंने नमाज़ क़ायम कर रखी है, तो काम को ठीक रखनेवालों के प्रतिदान को हम कभी अकारथ नहीं करते 7|171|और याद करो जब हमने पर्वत को हिलाया, जो उनके ऊपर था। मानो वह कोई छत्र हो और वे समझे कि बस वह उनपर गिरा ही चाहता है, "थामो मज़बूती से, जो कुछ हमने दिया है। और जो कुछ उसमें है उसे याद रखो, ताकि तुम बच सको।" 7|172|और याद करो जब तुम्हारे रब ने आदम की सन्तान से (अर्थात उनकी पीठों से) उनकी सन्तति निकाली और उन्हें स्वयं उनके ऊपर गवाह बनाया कि "क्या मैं तुम्हारा रब नहीं हूँ?" बोले, "क्यों नहीं, हम गवाह है।" ऐसा इसलिए किया कि तुम क़ियामत के दिन कहीं यह न कहने लगो कि "हमें तो इसकी ख़बर ही न थी।" 7|173|या कहो कि "(अल्लाह के साथ) साझी तो पहले हमारे बाप-दादा ने किया। हम तो उसके पश्चात उनकी सन्तति में हुए है। तो क्या तू हमें उसपर विनष्ट करेगा जो कुछ मिथ्याचारियों ने किया है?" 7|174|इस प्रकार स्थिति के अनुकूल आयतें प्रस्तुत करते है। और शायद कि वे पलट आएँ 7|175|और उन्हें उस व्यक्ति का हाल सुनाओ जिसे हमने अपनी आयतें प्रदान की किन्तु वह उनसे निकल भागा। फिर शैतान ने उसे अपने पीछे लगा लिया। अन्ततः वह पथभ्रष्ट और विनष्ट होकर रहा 7|176|यदि हम चाहते तो इन आयतों के द्वारा उसे उच्चता प्रदान करते, किन्तु वह तो धरती के साथ लग गया और अपनी इच्छा के पीछे चला। अतः उसकी मिसाल कुत्ते जैसी है कि यदि तुम उसपर आक्षेप करो तब भी वह ज़बान लटकाए रहे या यदि तुम उसे छोड़ दो तब भी वह ज़बान लटकाए ही रहे। यही मिसाल उन लोगों की है, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, तो तुम वृत्तान्त सुनाते रहो, कदाचित वे सोच-विचार कर सकें 7|177|बुरे है मिसाल की दृष्टि से वे लोग, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया और वे स्वयं अपने ही ऊपर अत्याचार करते रहे 7|178|जिसे अल्लाह मार्ग दिखाए वही सीधा मार्ग पानेवाला है और जिसे वह मार्ग से वंचित रखे, तो ऐसे ही लोग घाटे में पड़नेवाले हैं 7|179|निश्चय ही हमने बहुत-से जिन्नों और मनुष्यों को जहन्नम ही के लिए फैला रखा है। उनके पास दिल है जिनसे वे समझते नहीं, उनके पास आँखें है जिनसे वे देखते नहीं; उनके पास कान है जिनसे वे सुनते नहीं। वे पशुओं की तरह है, बल्कि वे उनसे भी अधिक पथभ्रष्ट है। वही लोग है जो ग़फ़लत में पड़े हुए है 7|180|अच्छे नाम अल्लाह ही के है। तो तुम उन्हीं के द्वारा उसे पुकारो और उन लोगों को छोड़ो जो उसके नामों के सम्बन्ध में कुटिलता ग्रहण करते है। जो कुछ वे करते है, उसका बदला वे पाकर रहेंगे 7|181|हमारे पैदा किए प्राणियों में कुछ लोग ऐसे भी है जो हक़ के अनुसार मार्ग दिखाते और उसी के अनुसार न्याय करते है 7|182|रहे वे लोग जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया, हम उन्हें क्रमशः तबाही की ओर ले जाएँगे, ऐसे तरीक़े से जिसे वे जानते नहीं 7|183|मैं तो उन्हें ढील दिए जा रहा हूँ। निश्चय ही मेरी चाल अत्यन्त सुदृढ़ है 7|184|क्या उन लोगों ने विचार नहीं किया? उनके साथी को कोई उन्माद नहीं। वह तो बस एक साफ़-साफ़ सचेत करनेवाला है 7|185|या क्या उन्होंने आकाशों और धरती के राज्य पर और जो चीज़ भी अल्लाह ने पैदा की है उसपर दृष्टि नहीं डाली, और इस बात पर कि कदाचित उनकी अवधि निकट आ लगी हो? फिर आख़िर इसके बाद अब कौन-सी बात हो सकती है, जिसपर वे ईमान लाएँगे? 7|186|जिसे अल्लाह मार्ग से वंचित रखे उसके लिए कोई मार्गदर्शक नहीं। वह तो तो उन्हें उनकी सरकशी ही में भटकता हुआ छोड़ रहा है 7|187|तुमसे उस घड़ी (क़ियामत) के विषय में पूछते है कि वह कब आएगी? कह दो, "उसका ज्ञान मेरे रब ही के पास है। अतः वही उसे उसके समय पर प्रकट करेगा। वह आकाशों और धरती में बोझिल हो गई है - बस अचानक ही वह तुमपर आ जाएगी।" वे तुमसे पूछते है मानो तुम उसके विषय में भली-भाँति जानते हो। कह दो, "उसका ज्ञान तो बस अल्लाह ही के पास है - किन्तु अधिकांश लोग नहीं जानते।" 7|188|कहो, "मैं अपने लिए न तो लाभ का अधिकार रखता हूँ और न हानि का,बल्कि अल्लाह ही की इच्छा क्रियान्वित है। यदि मुझे परोक्ष (ग़ैब) का ज्ञान होता तो बहुत-सी भलाई समेट लेता और मुझे कभी कोई हानि न पहुँचती। मैं तो बस सचेत करनेवाला हूँ, उन लोगों के लिए जो ईमान लाएँ।" 7|189|वही है जिसने तुम्हें अकेली जान पैदा किया और उसी की जाति से उसका जोड़ा बनाया, ताकि उसकी ओर प्रवृत्त होकर शान्ति और चैन प्राप्त करे। फिर जब उसने उसको ढाँक लिया तो उसने एक हल्का-सा बोझ उठा लिया; फिर वह उसे लिए हुए चलती-फिरती रही, फिर जब वह बोझिल हो गई तो दोनों ने अल्लाह - अपने रब को पुकारा, "यदि तूने हमें भला-चंगा बच्चा दिया, तो निश्चय ही हम तेरे कृतज्ञ होंगे।" 7|190|किन्तु उसने जब उन्हें भला-चंगा (बच्चा) प्रदान किया तो जो उन्हें प्रदान किया उसमें वे दोनों उसका (अल्लाह का) साझी ठहराने लगे। किन्तु अल्लाह तो उच्च है उससे, जो साझी वे ठहराते है 7|191|क्या वे उसको साझी ठहराते है जो कोई चीज़ भी पैदा नहीं करता, बल्कि ऐसे उनके ठहराए हुए साझीदार तो स्वयं पैदा किए जाते हैं 7|192|और वे न तो उनकी सहायता करने की सामर्थ्य रखते है और न स्वयं अपनी ही सहायता कर सकते है? 7|193|यदि तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुलाओ तो वे तुम्हारे पीछे न आएँगे। तुम्हारे लिए बराबर है - उन्हें पुकारो या तुम चुप रहो 7|194|तुम अल्लाह को छोड़कर जिन्हें पुकारते हो वे तो तुम्हारे ही जैसे बन्दे है, अतः पुकार लो उनको, यदि तुम सच्चे हो, तो उन्हें चाहिए कि वे तुम्हें उत्तर दे! 7|195|क्या उनके पाँव हैं जिनसे वे चलते हों या उनके हाथ हैं जिनसे वे पकड़ते हों या उनके पास आँखें हीं जिनसे वे देखते हों या उनके कान हैं जिनसे वे सुनते हों? कहों, "तुम अपने ठहराए हु सहभागियों को बुला लो, फिर मेरे विरुद्ध चालें न चलो, इस प्रकार कि मुझे मुहलत न दो 7|196|निश्चय ही मेरा संरक्षक मित्र अल्लाह है, जिसने यह किताब उतारी और वह अच्छे लोगों का संरक्षण करता है 7|197|रहे वे जिन्हें तुम उसको छोड़कर पुकारते हो, वे तो तुम्हारी, सहायता करने की सामर्थ्य रखते है और न स्वयं अपनी ही सहायता कर सकते है 7|198|और यदि तुम उन्हें सीधे मार्ग की ओर बुलाओ तो वे न सुनेंगे। वे तुम्हें ऐसे दीख पड़ते हैं जैसे वे तुम्हारी ओर ताक रहे हैं, हालाँकि वे कुछ भी नहीं देखते 7|199|क्षमा की नीति अपनाओ और भलाई का हुक्म देते रहो और अज्ञानियों से किनारा खींचो 7|200|और यदि शैतान तुम्हें उकसाए तो अल्लाह की शरण माँगो। निश्चय ही, वह सब कुछ सुनता जानता है 7|201|जो डर रखते हैं, उन्हें जब शैतान की ओर से कोई ख़याल छू जाता है, तो वे चौंक उठते हैं। फिर वे साफ़ देखने लगते हैं 7|202|और उन (शैतानों) के भाई उन्हें गुमराही में खींचे लिए जाते हैं, फिर वे कोई कमी नहीं करते 7|203|और जब तुम उनके सामने कोई निशानी नहीं लाते तो वे कहते हैं, "तुम स्वयं कोई निशानी क्यों न छाँट लाए?" कह दो, "मैं तो केवल उसी का अनुसरण करता हूँ जो मेरे रब की ओर से प्रकाशना की जाती है। यह तुम्हारे रब की ओर से अन्तर्दृष्टियों का प्रकाश-पुंज है, और ईमान लानेवालों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता है।" 7|204|जब क़ुरआन पढ़ा जाए तो उसे ध्यानपूर्वक सुनो और चुप रहो, ताकि तुमपर दया की जाए 7|205|अपने रब को अपने मन में प्रातः और संध्या के समयों में विनम्रतापूर्वक, डरते हुए और हल्की आवाज़ के साथ याद किया करो। और उन लोगों में से न हो जाओ जो ग़फ़लत में पड़े हुए है 7|206|निस्संदेह जो तुम्हारे रब के पास है, वे उसकी बन्दगी के मुक़ाबले में अहंकार की नीति नहीं अपनाते; वे तो उसकी तसबीह (महिमागान) करते है और उसी को सजदा करते है 8|1|वे तुमसे ग़नीमतों के विषय में पूछते है। कहो, "ग़नीमतें अल्लाह और रसूल की है। अतः अल्लाह का डर रखों और आपस के सम्बन्धों को ठीक रखो। और, अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा का पालन करो, यदि तुम ईमानवाले हो 8|2|ईमानवाले तो वही लोग है जिनके दिल उस समय काँप उठे जबकि अल्लाह को याद किया जाए। और जब उनके सामने उसकी आयतें पढ़ी जाएँ तो वे उनके ईमान को और अधिक बढ़ा दें और वे अपने रब पर भरोसा रखते हों 8|3|ये वे लोग हैं जो नमाज़ क़ायम करते है और जो कुछ हमने दिया है उसमें से ख़र्च करते हैं 8|4|वही लोग वास्तव में ईमानवाले है। उनके लिेए रब के पास बड़े दर्जे है और क्षमा और सम्मानित उत्तम आजीविका भी 8|5|(यह बिल्कुल वैसी ही परिस्थित है) जैसे तुम्हारे ने तुम्हें तुम्हारे घर से एक उद्देश्य के साथ निकाला, किन्तु ईमानवालों में से एक गिरोह को यह अप्रिय लगा था 8|6|वे सत्य के विषय में उसके स्पष्ट हो जाने के पश्चात तुमसे झगड़ रहे थे। मानो वे आँखों देखी मृत्यु की ओर हाँके जा रहे हों 8|7|और याद करो जब अल्लाह तुमसे वादा कर रहा था कि दो गिरोहों में से एक तुम्हारे हाथ आएगा और तुम चाहते थे कि तुम्हें वह हाथ आए, जो निःशस्त्र था, हालाँकि अल्लाह चाहता था कि अपने वचनों से सत्य को सत्य कर दिखाए और इनकार करनेवालों की जड़ काट दे 8|8|ताकि सत्य को सत्य कर दिखाए और असत्य को असत्य, चाहे अपराधियों को कितना ही अप्रिय लगे 8|9|याद करो जब तुम अपने रब से फ़रियाद कर रहे थे, तो उसने तुम्हारी पुकार सुन ली। (उसने कहा,) "मैं एक हजार फ़रिश्तों से तुम्हारी मदद करूँगा जो तुम्हारे साथी होंगे।" 8|10|अल्लाह ने यह केवल इसलिए किया कि यह एक शुभ-सूचना हो और ताकि इससे तुम्हारे हृदय संतुष्ट हो जाएँ। सहायता अल्लाह ही के यहाँ से होती है। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 8|11|यह करो जबकि वह अपनी ओर से चैन प्रदान कर तुम्हें ऊँघ से ढँक रहा था और वह आकाश से तुमपर पानी बरसा रहा था, ताकि उसके द्वारा तुम्हें अच्छी तरह पाक करे और शैतान की गन्दगी तुमसे दूर करे और तुम्हारे दिलों को मज़बूत करे और उसके द्वारा तुम्हारे क़दमों को जमा दे 8|12|याद करो जब तुम्हारा रब फ़रिश्तों की ओर प्रकाशना (वह्य्) कर रहा था कि "मैं तुम्हारे साथ हूँ। अतः तुम ईमानवालों को जमाए रखो। मैं इनकार करनेवालों के दिलों में रोब डाले देता हूँ। तो तुम उनकी गरदनें मारो और उनके पोर-पोर पर चोट लगाओ!" 8|13|यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल का विरोध किया। और जो कोई अल्लाह और उसके रसूल का विरोध करे (उसे कठोर यातना मिलकर रहेगी) क्योंकि अल्लाह कड़ी यातना देनेवाला है 8|14|यह तो तुम चखो! और यह कि इनकार करनेवालों के लिए आग की यातना है 8|15|ऐ ईमान लानेवालो! जब एक सेना के रूप में तुम्हारा इनकार करनेवालों से मुक़ाबला हो तो पीठ न फेरो 8|16|जिस किसी ने भी उस दिन उनसे अपनी पीठ फेरी - यह और बात है कि युद्ध-चाल के रूप में या दूसरी टुकड़ी से मिलने के लिए ऐसा करे - तो वह अल्लाह के प्रकोप का भागी हुआ और उसका ठिकाना जहन्नम है, और क्या ही बुरा जगह है वह पहुँचने की! 8|17|तुमने उसे क़त्ल नहीं किया बल्कि अल्लाह ही ने उन्हें क़त्ल किया और जब तुमने (उनकी ओर मिट्टी और कंकड़) फेंक, तो तुमने नहीं फेंका बल्कि अल्लाह ने फेंका (कि अल्लाह अपनी गुण-गरिमा दिखाए) और ताकि अपनी ओर से ईमानवालों के गुण प्रकट करे। निस्संदेह अल्लाह सुनता, जानता है 8|18|यह तो हुआ, और यह (जान लो) कि अल्लाह इनकार करनेवालों की चाल को कमज़ोर कर देनेवाला है 8|19|यदि तुम फ़ैसला चाहते हो तो फ़ैसला तुम्हारे सामने आ चुका और यदि बाज़ आ जाओ तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है। लेकिन यदि तुमने पलटकर फिर वही हरकत की तो हम भी पलटेंगे और तुम्हारा जत्था, चाहे वह कितना ही अधिक हो, तुम्हारे कुछ काम न आ सकेगा। और यह कि अल्लाह मोमिनों के साथ होता है 8|20|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करो और उससे मुँह न फेरो जबकि तुम सुन रहे हो 8|21|और उन लोगों की तरह न हो जाना जिन्होंने कहा था, "हमने सुना" हालाँकि वे सुनते नहीं 8|22|अल्लाह की स्पष्ट में तो निकृष्ट पशु वे बहरे-गूँगे लोग है, जो बुद्धि से काम नहीं लेते 8|23|यदि अल्लाह जानता कि उनमें कुछ भी भलाई है, तो वह उन्हें अवश्य सुनने का सौभाग्य प्रदान करता। और यदि वह उन्हें सुना देता तो भी वे कतराते हुए मुँह फेर लेते 8|24|ऐ ईमान लानेवाले! अल्लाह और रसूल की बात मानो, जब वह तुम्हें उस चीज़ की ओर बुलाए जो तुम्हें जीवन प्रदान करनेवाली है, और जान रखो कि अल्लाह आदमी और उसके दिल के बीच आड़े आ जाता है और यह कि वही है जिसकी ओर (पलटकर) तुम एकत्र होगे 8|25|बचो उस फ़ितने से जो अपनी लपेट में विशेष रूप से केवल अत्याचारियों को ही नहीं लेगा, जान लो अल्लाह कठोर दंड देनेवाला है 8|26|और याद करो जब तुम थोड़े थे, धरती में निर्बल थे, डरे-सहमे रहते कि लोग कहीं तु्म्हें उचक न ले जाएँ, फिर उसने तुम्हें ठिकाना दिया और अपनी सहायता से तुम्हें शक्ति प्रदान की और अच्छी-स्वच्छ चीज़ों की तुम्हें रोजी दी, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ 8|27|ऐ ईमान लानेवालो! जानते-बुझते तुम अल्लाह और उसके रसूल के साथ विश्वासघात न करना और न अपनी अमानतों में ख़ियानत करना 8|28|और जान रखो कि तुम्हारे माल और तुम्हारी संतान परीक्षा-सामग्री हैं और यह कि अल्लाह के पास बड़ा प्रतिदान है 8|29|ऐ ईमान लानेवालो! यदि तुम अल्लाह का डर रखोगे तो वह तुम्हें एक विशिष्टता प्रदान करेगा और तुमसे तुम्हारी बुराइयाँ दूर करेगा और तुम्हे क्षमा करेगा। अल्लाह बड़ा अनुग्राहक है 8|30|और याद करो जब इनकार करनेवाले तुम्हारे साथ चालें चल रहे थे कि तम्हें क़ैद रखें या तुम्हे क़त्ल कर दें या तुम्हे निकाल बाहर करे। वे अपनी चालें चल रहे थे और अल्लाह भी अपनी चाल चल रहा था। अल्लाह सबसे अच्छी चाल चलता है 8|31|जब उनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती है, तो वे कहते है, "हम सुन चुके। यदि हम चाहें तो ऐसी बातें हम भी बना लें; ये तो बस पहले के लोगों की कहानियाँ हैं।" 8|32|और याद करो जब उन्होंने कहा, "ऐ अल्लाह! यदि यही तेरे यहाँ से सत्य हो तो हमपर आकाश से पत्थर बरसा दे, या हम पर कोई दुखद यातना ही ले आ 8|33|और अल्लाह ऐसा नहीं कि तुम उनके बीच उपस्थित हो और वह उन्हें यातना देने लग जाए, और न अल्लाह ऐसा है कि वे क्षमा-याचना कर रहे हो और वह उन्हें यातना से ग्रस्त कर दे 8|34|किन्तु अब क्या है उनके पास कि अल्लाह उन्हें यातना न दे, जबकि वे 'मस्जिदे हराम' (काबा) से रोकते है, हालाँकि वे उसके कोई व्यवस्थापक नहीं? उसके व्यवस्थापक तो केवल डर रखनेवाले ही है, परन्तु उनके अधिकतर लोग जानते नहीं 8|35|उनकी नमाज़़ इस घर (काबा) के पास सीटियाँ बजाने और तालियाँ पीटने के अलावा कुछ भी नहीं होती। तो अब यातना का मज़ा चखो, उस इनकार के बदले में जो तुम करते रहे हो 8|36|निश्चय ही इनकार करनेवाले अपने माल अल्लाह के मार्ग से रोकने के लिए ख़र्च करते रहेंगे, फिर यही उनके लिए पश्चाताप बनेगा। फिर वे पराभूत होंगे और इनकार करनेवाले जहन्नम की ओर समेट लाए जाएँगे 8|37|ताकि अल्लाह नापाक को पाक से छाँटकर अलग करे और नापाकों को आपस में एक-दूसरे पर रखकर ढेर बनाए, फिर उसे जहन्नम में डाल दे। यही लोग घाटे में पड़नेवाले है 8|38|उन इनकार करनेवालो से कह दो कि वे यदि बाज़ आ जाएँ तो जो कुछ हो चुका, उसे क्षमा कर दिया जाएगा, किन्तु यदि वे फिर भी वहीं करेंगे तो पूर्ववर्ती लोगों के सिलसिले में जो रीति अपनाई गई वह सामने से गुज़र चुकी है 8|39|उनसे युद्ध करो, यहाँ तक कि फ़ितना बाक़ी न रहे और दीन (धर्म) पूरा का पूरा अल्लाह ही के लिए हो जाए। फिर यदि वे बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह उनके कर्म को देख रहा है 8|40|किन्तु यदि वे मुँह मोड़े तो जान रखो कि अल्लाह संरक्षक है। क्या ही अच्छा संरक्षक है वह, और क्या ही अच्छा सहायक! 8|41|और तुम्हें मालूम हो कि जो कुछ ग़नीमत के रूप में माल तुमने प्राप्त किया है, उसका पाँचवा भाग अल्लाग का, रसूल का, नातेदारों का, अनाथों का, मुहताजों और मुसाफ़िरों का है। यदि तुम अल्लाह पर और उस चीज़ पर ईमान रखते हो, जो हमने अपने बन्दे पर फ़ैसले के दिन उतारी, जिस दिन दोनों सेनाओं में मुठभेड़ हूई, और अल्लाह को हर चीज़ की पूर्ण सामर्थ्य प्राप्त है 8|42|याद करो जब तुम घाटी के निकटवर्ती छोर पर थे और वे घाटी के दूरस्थ छोर पर थे और क़ाफ़िला तुमसे नीचे की ओर था। यदि तुम परस्पर समय निश्चित किए होते तो अनिवार्यतः तुम निश्चित समय पर न पहुँचते। किन्तु जो कुछ हुआ वह इसलिए कि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे, जिसका पूरा होना निश्चित था, ताकि जिसे विनष्ट होना हो, वह स्पष्ट प्रमाण देखकर ही विनष्ट हो और जिसे जीवित रहना हो वह स्पष्ट़ प्रमाण देखकर जीवित रहे। निस्संदेह अल्लाह भली-भाँति जानता, सुनता है 8|43|और याद करो जब अल्लाह उनको तुम्हारे स्वप्न में थोड़ा करके तुम्हें दिखा रहा था और यदि वह उन्हें ज़्यादा करके तुम्हें दिखा देता तो अवश्य ही तुम हिम्मत हार बैठते और असल मामले में झगड़ने लग जाते, किन्तु अल्लाह ने इससे बचा लिया। निश्चय ही वह तो जो कुछ दिलों में होता है उसे भी जानता है 8|44|याद करो जब तुम्हारी परस्पर मुठभेड़ हुई तो वह तुम्हारी निगाहों में उन्हें कम करके और तुम्हें उनकी निगाहों में कम करके दिखा रहा था, ताकि अल्लाह उस बात का फ़ैसला कर दे जिसका होना निश्चित था। और सारे मामले अल्लाह ही की ओर पलटते है 8|45|ऐ ईमान लानेवालो! जब तुम्हारा किसी गिरोह से मुक़ाबला हो जाए तो जमे रहो और अल्लाह को ज़्यादा याद करो, ताकि तुम्हें सफलता प्राप्त हो 8|46|और अल्लाह और उसके रसूल की आज्ञा मानो और आपस में न झगड़ो, अन्यथा हिम्मत हार बैठोगे और तुम्हारी हवा उखड़ जाएगी। और धैर्य से काम लो। निश्चय ही, अल्लाह धैर्यवानों के साथ है 8|47|और उन लोगों की तरह न हो जाना जो अपने घरों से इतराते और लोगों को दिखाते निकले थे और वे अल्लाह के मार्ग से रोकते है, हालाँकि जो कुछ वे करते है, अल्लाह उसे अपने घेरे में लिए हुए है 8|48|और याद करो जब शैतान ने उनके कर्म उनके लिए सुन्दर बना दिए और कहा, "आज लोगों में से कोई भी तुमपर प्रभावी नहीं हो सकता। मैं तुम्हारे साथ हूँ।" किन्तु जब दोनों गिरोह आमने-सामने हुए तो वह उलटे पाँव फिर गया और कहने लगा, "मेरा तुमसे कोई सम्बन्ध नहीं। मैं वह कुछ देख रहा हूँ, जो तुम्हें नहीं दिखाई देता। मैं अल्लाह से डरता हूँ, और अल्लाह कठोर यातना देनेवाला है।" 8|49|याद करो जब कपटाचारी और वे लोग जिनके दिलों में रोग है, कह रहे थे, "इन लोगों को तो इनके धर्म ने धोखे में डाल रखा है।" हालाँकि जो अल्लाह पर भरोसा रखता है, तो निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 8|50|क्या ही अच्छा होता कि तुम देखते जब फ़रिश्ते इनकार करनेवालों के प्राण ग्रस्त करते हैं! वे उनके चहरों और उनकी पीठों पर मारते जाते हैं कि "लो अब जलने की यातना मज़ा चखो।" (तो उनकी दुर्दशा का अन्दाजा कर सकते) 8|51|यह तो उसी का बदला है जो तुम्हारे हाथों ने आगे भेजा और यह कि अल्लाह अपने बन्दों पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता 8|52|इनके साथ वैसा ही मामला पेश आया जैसा फ़िरऔन के लोगों और उनसे पहले के लोगों के साथ पेश आया। उन्होंने अल्लाह की आयतों का इनकार किया तो अल्लाह ने उनके गुनाहों के कारण उन्हें पकड़ लिया। निस्संदेह अल्लाह शक्तिशाली, कठोर यातना देनेवाला है 8|53|यह इसलिए हुआ कि अल्लाह उस उदार अनुग्रह (नेमत) को, जो उसने किसी क़ौम पर किया हो, बदलनेवाला नहीं हैं, जब तक कि लोग उस चीज़ को न बदल डालें, जिसका सम्बन्ध स्वयं उनसे है। और यह कि अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है 8|54|जैसे फ़िरऔनियों और उनसे पहले के लोगों का हाल हुआ। उन्होंने अपने रब की आयतों को झुठलाया तो हमने उन्हें उनके गुनाहों के बदले में विनष्ट कर दिया और फ़िरऔनियों को डूबो दिया। ये सभी अत्याचारी थे 8|55|निश्चय ही, सबसे बुरे प्राणी अल्लाह की स्पष्ट में वे लोग है, जिन्होंने इनकार किया। फिर वे ईमान नहीं लाते 8|56|जिनसे तुमने वचन लिया वे फिर हर बार अपने वचन को भंग कर देते है और वे डर नहीं रखते 8|57|अतः यदि युद्ध में तुम उनपर क़ाबू पाओ, तो उनके साथ इस तरह पेश आओ कि उनके पीछेवाले भी भाग खड़े हों, ताकि वे शिक्षा ग्रहण करें 8|58|और यदि तुम्हें किसी क़ौम से विश्वासघात की आशंका हो, तो तुम भी उसी प्रकार ऐसे लोगों के साथ हुई संधि को खुल्लम-खुल्ला उनके आगे फेंक दो। निश्चय ही अल्लाह को विश्वासघात करनेवाले प्रिय नहीं 8|59|इनकार करनेवाले यह न समझे कि वे आगे निकल गए। वे क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते 8|60|और जो भी तुमसे हो सके, उनके लिए बल और बँधे घोड़े तैयार रखो, ताकि इसके द्वारा अल्लाह के शत्रुओं और अपने शत्रुओं और इनके अतिरिक्त उन दूसरे लोगों को भी भयभीत कर दो जिन्हें तुम नहीं जानते। अल्लाह उनको जानता है और अल्लाह के मार्ग में तुम जो कुछ भी ख़र्च करोगे, वह तुम्हें पूरा-पूरा चुका दिया जाएगा और तुम्हारे साथ कदापि अन्याय न होगा 8|61|और यदि वे संधि और सलामती की ओर झुकें तो तुम भी इसके लिए झुक जाओ और अल्लाह पर भरोसा रखो। निस्संदेह, वह सब कुछ सुनता, जानता है 8|62|और यदि वे यह चाहें कि तुम्हें धोखा दें तो तुम्हारे लिए अल्लाह काफ़ी है। वही तो है जिसने तुम्हें अपनी सहायता से और मोमिनों के द्वारा शक्ति प्रदान की 8|63|और उनके दिल आपस में एक-दूसरे से जोड़ दिए। यदि तुम धरती में जो कुछ है, सब खर्च कर डालते तो भी उनके दिलों को परस्पर जोड़ न सकते, किन्तु अल्लाह ने उन्हें परस्पर जोड़ दिया। निश्चय ही वह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 8|64|ऐ नबी! तुम्हारे लिए अल्लाह और तुम्हारे ईमानवाले अनुयायी ही काफ़ी है 8|65|ऐ नबी! मोमिनों को जिहाद पर उभारो। यदि तुम्हारे बीस आदमी जमे होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी होंगे और यदि तुमसे से ऐसे सौ होंगे तो वे इनकार करनेवालों में से एक हज़ार पर प्रभावी होंगे, क्योंकि वे नासमझ लोग है 8|66|अब अल्लाह ने तुम्हारे बोझ हल्का कर दिया और उसे मालूम हुआ कि तुममें कुछ कमज़ोरी है। तो यदि तुम्हारे सौ आदमी जमे रहनेवाले होंगे, तो वे दो सौ पर प्रभावी रहेंगे और यदि तुममें से ऐसे हजार होंगे तो अल्लाह के हुक्म से वे दो हज़ार पर प्रभावी रहेंगे। अल्लाह तो उन्ही लोगों के साथ है जो जमे रहते है 8|67|किसी नबी के लिए यह उचित नहीं कि उसके पास क़ैदी हो यहाँ तक की वह धरती में रक्तपात करे। तुम लोग संसार की सामग्री चाहते हो, जबकि अल्लाह आख़िरत चाहता है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 8|68|यदि अल्लाह का लिखा पहले से मौजूद न होता, तो जो कुछ नीति तुमने अपनाई है उसपर तुम्हें कोई बड़ी यातना आ लेती 8|69|अतः जो कुछ ग़नीमत का माल तुमने प्राप्त किया है, उसे वैध-पवित्र समझकर खाओ और अल्लाह का डर रखो। निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है 8|70|ऐ नबी! जो क़ैदी तुम्हारे क़ब्जें में है, उनसे कह दो, "यदि अल्लाह ने यह जान लिया कि तुम्हारे दिलों में कुछ भलाई है तो वह तुम्हें उससे कहीं उत्तम प्रदान करेगा, जो तुम से छिन गया है और तुम्हें क्षमा कर देगा। और अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।" 8|71|किन्तुम यदि वे तुम्हारे साथ विश्वासघात करना चाहेंगे, तो इससे पहले वे अल्लाह के साथ विश्वासघात कर चुके है। तो उसने तुम्हें उनपर अधिकार दे दिया। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, बड़ा तत्वदर्शी है 8|72|जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की, वही लोग परस्पर एक-दूसरे के संरक्षक मित्र है। रहे वे लोग जो ईमान लाए, किन्तु उन्होंने हिजरत नहीं की, उनसे तुम्हारा संरक्षण और मित्रता का कोई सम्बन्ध नहीं है, जब तक कि वे हिजरत न करें, किन्तु यदि वे धर्म के मामले में तुमसे सहायता माँगे तो तुमपर अनिवार्य है कि सहायता करो, सिवाय इसके कि सहायता किसी ऐसी क़ौम के मुक़ाबले में हो जिससे तुम्हारी कोई संधि हो। तुम जो कुछ करते हो अल्लाह उसे देखता है 8|73|जो इनकार करनेवाले लोग है, वे आपस में एक-दूसरे के मित्र और सहायक है। यदि तुम ऐसा नहीं करोगे तो धरती में फ़ितना और बड़ा फ़साद फैलेगा 8|74|और जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में जिहाद किया और जिन लोगों ने उन्हें शरण दी और सहायता की वही सच्चे मोमिन हैं। उनके क्षमा और सम्मानित - उत्तम आजीविका है 8|75|और जो लोग बाद में ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और तुम्हारे साथ मिलकर जिहाद किया तो ऐसे लोग भी तुम में ही से हैं। किन्तु अल्लाह की किताब मे ख़ून के रिश्तेदार एक-दूसरे के ज़्यादा हक़दार है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ का ज्ञान है 9|1|मुशरिकों (बहुदेववादियों) से जिनसे तुमने संधि की थी, विरक्ति (की उद्घॊषणा) है अल्लाह और उसके रसूल की ओर से 9|2|"अतः इस धरती में चार महीने और चल-फिर लो और यह बात जान लो कि अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते और यह कि अल्लाह इनकार करनेवालों को अपमानित करता है।" 9|3|सार्वजनिक उद्घॊषणा है अल्लाह और उसके रसूल की ओर से, बड़े हज के दिन लोगों के लिए, कि "अल्लाह मुशरिकों के प्रति जिम्मेदार से बरी है और उसका रसूल भी। अब यदि तुम तौबा कर लो, तो यह तुम्हारे ही लिए अच्छा है, किन्तु यदि तुम मुह मोड़ते हो, तो जान लो कि तुम अल्लाह के क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते।" और इनकार करनेवालों के लिए एक दुखद यातना की शुभ-सूचना दे दो 9|4|सिवाय उन मुशरिकों के जिनसे तुमने संधि-समझौते किए, फिर उन्होंने तुम्हारे साथ अपने वचन को पूर्ण करने में कोई कमी नही की और न तुम्हारे विरुद्ध किसी की सहायता ही की, तो उनके साथ उनकी संधि को उन लोगों के निर्धारित समय तक पूरा करो। निश्चय ही अल्लाह को डर रखनेवाले प्रिय है 9|5|फिर, जब हराम (प्रतिष्ठित) महीने बीत जाएँ तो मुशरिकों को जहाँ कहीं पाओ क़त्ल करो, उन्हें पकड़ो और उन्हें घेरो और हर घात की जगह उनकी ताक में बैठो। फिर यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो उनका मार्ग छोड़ दो, निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 9|6|और यदि मुशरिकों में से कोई तुमसे शरण माँगे, तो तुम उसे शरण दे दो, यहाँ तक कि वह अल्लाह की वाणी सुन ले। फिर उसे उसके सुरक्षित स्थान पर पहुँचा दो, क्योंकि वे ऐसे लोग हैं, जिन्हें ज्ञान नहीं 9|7|इन मुशरिकों को किसी संधि की कोई ज़िम्मेदारी अल्लाह और उसके रसूल पर कैसे बाक़ी रह सकती है? - उन लोगों का मामला इससे अलग है, जिनसे तुमने मस्जिदे हराम (काबा) के पास संधि की थी, तो जब तक वे तुम्हारे साथ सीधे रहें, तब तक तुम भी उनके साथ सीधे रहो। निश्चय ही अल्लाह को डर रखनेवाले प्रिय है। - 9|8|कैसे बाक़ी रह सकती है? जबकि उनका हाल यह है कि यदि वे तुम्हें दबा पाएँ तो वे न तुम्हारे विषय में किसी नाते-रिश्ते का ख़याल रखें औऱ न किसी अभिवचन का। वे अपने मुँह ही से तुम्हें राज़ी करते है, किन्तु उनके दिल इनकार करते रहते है और उनमें अधिकतर अवज्ञाकारी है 9|9|उन्होंने अल्लाह की आयतों के बदले थोड़ा-सा मूल्य स्वीकार किया और इस प्रकार वे उसका मार्ग अपनाने से रूक गए। निश्चय ही बहुत बुरा है, जो कुछ वे कर रहे हैं 9|10|किसी मोमिन के बारे में न तो नाते-रिश्ते का ख़याल रखते है और न किसी अभिवचन का। वही लोग है जिन्होंने सीमा का उल्लंघन किया 9|11|अतः यदि वे तौबा कर लें और नमाज़ क़ायम करें और ज़कात दें तो वे धर्म के भाई हैं। और हम उन लोगों के लिए आयतें खोल-खोलकर बयान करते हैं, जो जानना चाहें 9|12|और यदि अपने अभिवचन के पश्चात वे अपनी क़समॊं कॊ तॊड़ डालॆं और तुम्हारॆ दीन (धर्म) पर चॊटें करनॆ लगॆं, तॊ फिर कुफ़्र (अधर्म) कॆ सरदारों सॆ युद्ध करॊ, उनकी क़समॆं कुछ नहीं, ताकि वॆ बाज़ आ जाऐं। 9|13|क्या तुम ऐसॆ लॊगॊं सॆ नहीं लड़ॊगॆ जिन्हॊंनॆ अपनी क़समों को तोड़ डालीं और रसूल को निकाल देना चाहा और वही हैं जिन्होंने तुमसे छेड़ में पहल की? क्या तुम उनसे डरते हो? यदि तुम मोमिन हो तो इसका ज़्यादा हक़दार अल्लाह है कि तुम उससे डरो 9|14|उनसे लड़ो। अल्लाह तुम्हारे हाथों से उन्हें यातना देगा और उन्हें अपमानित करेगा और उनके मुक़ाबले में वह तुम्हारी सहायता करेगा। और ईमानवाले लोगों के दिलों का दुखमोचन करेगा; 9|15|उनके दिलों का क्रोध मिटाएगा, अल्लाह जिसे चाहेगा, उसपर दया-दृष्टि डालेगा। अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है 9|16|क्या तुमने यह समझ रखा है कि तुम ऐसे ही छोड़ दिए जाओगे, हालाँकि अल्लाह ने अभी उन लोगों को छाँटा ही नहीं, जिन्होंने तुममें से जिहाद किया और अल्लाह और उसके रसूल और मोमिनों को छोड़कर किसी को घनिष्ठ मित्र नहीं बनाया? तुम जो कुछ भी करते हो, अल्लाह उसकी ख़बर रखता है 9|17|यह मुशरिकों का काम नहीं कि वे अल्लाह की मस्जिदों को आबाद करें और उसके प्रबंधक हों, जबकि वे स्वयं अपने विरुद्ध कुफ़्र की गवाही दे रहे है। उन लोगों का सारा किया-धरा अकारथ गया और वे आग में सदैव रहेंगे 9|18|अल्लाह की मस्जिदों का प्रबंधक और उसे आबाद करनेवाला वही हो सकता है जो अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान लाया, नमाज़ क़ायम की और ज़कात दी और अल्लाह के सिवा किसी से न डरा। अतः ऐसे ही लोग, आशा है कि सीधा मार्ग पानेवाले होंगे 9|19|क्या तुमने हाजियों को पानी पिलाने और मस्जिदे हराम (काबा) के प्रबंध को उस क्यक्ति के काम के बराबर ठहरा लिया है, जो अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान लाया और उसने अल्लाह के मार्ग में संघर्ष किया?अल्लाह की दृष्टि में वे बराबर नहीं। और अल्लाह अत्याचारी लोगों को मार्ग नहीं दिखाता 9|20|जो लोग ईमान लाए और उन्होंने हिजरत की और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों से जिहाद किया, अल्लाह के यहाँ दर्जे में वे बहुत बड़े है और वही सफल है 9|21|उन्हें उनका रब अपना दयालुता और प्रसन्नता और ऐसे बाग़ों की शुभ-सूचना देता है, जिनमें उनके लिए स्थायी सुख-सामग्री है 9|22|उनमें वे सदैव रहेंगे। निस्संदेह अल्लाह के पास बड़ा बदला है 9|23|ऐ ईमान लानेवालो! अपने बाप और अपने भाइयों को अपने मित्र न बनाओ यदि ईमान के मुक़ाबले में कुफ़्र उन्हें प्रिय हो। तुममें से जो कोई उन्हें अपना मित्र बनाएगा, तो ऐसे ही लोग अत्याचारी होंगे 9|24|कह दो, "यदि तुम्हारे बाप, तुम्हारे बेटे, तुम्हारे भाई, तुम्हारी पत्नि यों और तुम्हारे रिश्ते-नातेवाले और माल, जो तुमने कमाए है और कारोबार जिसके मन्दा पड़ जाने का तुम्हें भय है और घर जिन्हें तुम पसन्द करते हो, तुम्हे अल्लाह और उसके रसूल और उसके मार्ग में जिहाद करने से अधिक प्रिय है तो प्रतीक्षा करो, यहाँ तक कि अल्लाह अपना फ़ैसला ले आए। औऱ अल्लाह अवज्ञाकारियों को मार्ग नहीं दिखाता।" 9|25|अल्लाह बहुत-से अवसरों पर तुम्हारी सहायता कर चुका है और हुनैन (की लड़ाई) के दिन भी, जब तुम अपनी अधिकता पर फूल गए, तो वह तुम्हारे कुछ काम न आई और धरती अपनी विशालता के बावजूद तुम पर तंग हो गई। फिर तुम पीठ फेरकर भाग खड़े हुए 9|26|अन्ततः अल्लाह ने अपने रसूल पर और मोमिनों पर अपनी सकीनत (प्रशान्ति) उतारी और ऐसी सेनाएँ उतारी जिनको तुमने नहीं देखा। और इनकार करनेवालों को यातना दी, और यही इनकार करनेवालों का बदला है 9|27|फिर इसके बाद अल्लाह जिसको चाहता है उसे तौबा नसीब करता है। अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 9|28|ऐ ईमान लानेवालो! मुशरिक तो बस अपवित्र ही है। अतः इस वर्ष के पश्चात वे मस्जिदे हराम के पास न आएँ। और यदि तुम्हें निर्धनता का भय हो तो आगे यदि अल्लाह चाहेगा तो तुम्हें अपने अनुग्रह से समृद्ध कर देगा। निश्चय ही अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है 9|29|वे किताबवाले जो न अल्लाह पर ईमान रखते है और न अन्तिम दिन पर और न अल्लाह और उसके रसूल के हराम ठहराए हुए को हराम ठहराते है और न सत्यधर्म का अनुपालन करते है, उनसे लड़ो, यहाँ तक कि वे सत्ता से विलग होकर और छोटे (अधीनस्थ) बनकर जिज़्या देने लगे 9|30|यहूदी करते है, "उज़ैर अल्लाह का बेटा है।" और ईसाई कहते है, "मसीह अल्लाह का बेटा है।" ये उनकी अपने मुँह की बातें हैं। ये उन लोगों की-सी बातें कर रहे है जो इससे पहले इनकार कर चुके है। अल्लाह की मार इन पर! ये कहाँ से औधे हुए जा रहे हैं! 9|31|उन्होंने अल्लाह से हटकर अपने धर्मज्ञाताओं और संसार-त्यागी संतों और मरयम के बेटे ईसा को अपने रब बना लिए है - हालाँकि उन्हें इसके सिवा और कोई आदेश नहीं दिया गया था कि अकेले इष्टि-पूज्य की वे बन्दगी करें, जिसक सिवा कोई और पूज्य नहीं। उसकी महिमा के प्रतिकूल है वह शिर्क जो ये लोग करते है। - 9|32|चाहते है कि अल्लाह के प्रकाश को अपने मुँह से बुझा दें, किन्तु अल्लाह अपने प्रकाश को पूर्ण किए बिना नहीं रहेगा, चाहे इनकार करनेवालों को अप्रिय ही लगे 9|33|वही है जिसने अपने रसूल को मार्गदर्शन और सत्यधर्म के साथ भेजा ताकि उसे तमाम दीन (धर्म) पर प्रभावी कर दे, चाहे मुशरिकों को बुरा लगे 9|34|ऐ ईमान लानेवालो! अवश्य ही बहुत-से धर्मज्ञाता और संसार-त्यागी संत ऐसे है जो लोगो को माल नाहक़ खाते है और अल्लाह के मार्ग से रोकते है, और जो लोग सोना और चाँदी एकत्र करके रखते है और उन्हें अल्लाह के मार्ग में ख़र्च नहीं करते, उन्हें दुखद यातना की शुभ-सूचना दे दो 9|35|जिस दिन उनको जहन्नम की आग में तपाया जाएगा फिर उससे उनके ललाटो और उनके पहलुओ और उनकी पीठों को दाग़ा जाएगा (और कहा जाएगा), "यहीं है जो तुमने अपने लिए संचय किया, तो जो कुछ तुम संचित करते रहे हो, उसका मज़ा चखो!" 9|36|निस्संदेह महीनों की संख्या - अल्लाह के अध्यादेश में उस दिन से जब उसने आकाशों और धरती को पैदा किया - अल्लाह की दृष्टि में बारह महीने है। उनमें चार आदर के है, यही सीधा दीन (धर्म) है। अतः तुम उन (महीनों) में अपने ऊपर अत्याचार न करो। और मुशरिकों से तुम सबके सब लड़ो, जिस प्रकार वे सब मिलकर तुमसे लड़ते है। और जान लो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है 9|37|(आदर के महीनों का) हटाना तो बस कुफ़्र में एक बृद्धि है, जिससे इनकार करनेवाले गुमराही में पड़ते है। किसी वर्ष वे उसे हलाल (वैध) ठहरा लेते है और किसी वर्ष उसको हराम ठहरा लेते है, ताकि अल्लाह के आदृत (महीनों) की संख्या पूरी कर लें, और इस प्रकार अल्लाह के हराम किए हुए को वैध ठहरा ले। उनके अपने बुरे कर्म उनके लिए सुहाने हो गए है और अल्लाह इनकार करनेवाले लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता 9|38|ऐ ईमान लानेवालो! तुम्हें क्या हो गया है कि जब तुमसे कहा जाता है, "अल्लाह के मार्ग में निकलो" तो तुम धरती पर ढहे जाते हो? क्या तुम आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन पर राज़ी हो गए? सांसारिक जीवन की सुख-सामग्री तो आख़िरत के हिसाब में है कुछ थोड़ी ही! 9|39|यदि तुम निकालोगे तो वह तुम्हें दुखद यातना देगा और वह तुम्हारी जगह दूसरे गिरोह को ले आएगा और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे। और अल्लाह हर चीज़ की सामर्थ्य रखता है 9|40|यदि तुम उसकी सहायता न भी करो तो अल्लाह उसकी सहायता उस समय कर चुका है जब इनकार करनेवालों ने उसे इस स्थिति में निकाला कि वह केवल दो में का दूसरा था, जब वे दोनों गुफ़ा में थे। जबकि वह अपने साथी से कह रहा था, "शोकाकुल न हो। अवश्यमेव अल्लाह हमारे साथ है।" फिर अल्लाह ने उसपर अपनी ओर से सकीनत (प्रशान्ति) उतारी और उसकी सहायता ऐसी सेनाओं से की जिन्हें तुम देख न सके और इनकार करनेवालों का बोल नीचा कर दिया, बोल तो अल्लाह ही का ऊँचा रहता है। अल्लाह अत्यन्त प्रभुत्वशील, तत्वदर्शी है 9|41|हलके और बोझिल निकल पड़ो और अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करो! यही तुम्हारे लिए उत्तम है, यदि तुम जानो 9|42|यदि निकट (भविष्य में) ही कुछ मिलनेवाला होता और सफ़र भी हलका होता तो वे अवश्य तुम्हारे पीछे चल पड़ते, किन्तु मार्ग की दूरी उन्हें कठिन और बहुत दीर्घ प्रतीत हुई। अब वे अल्लाह की क़समें खाएँगे कि, "यदि हममें इसकी सामर्थ्य होती तो हम अवश्य तुम्हारे साथ निकलते।" वे अपने आपको तबाही में डाल रहे है और अल्लाह भली-भाँति जानता है कि निश्चय ही वे झूठे है 9|43|अल्लाह ने तुम्हे क्षमा कर दिया! तुमने उन्हें क्यों अनुमति दे दी, यहाँ तक कि जो लोग सच्चे है वे तुम्हारे सामने प्रकट हो जाते और झूठों को भी तुम जान लेते? 9|44|जो लोग अल्लाह और अंतिम दिन पर ईमान रखते है, वे तुमसे कभी यह नहीं चाहेंगे कि उन्हें अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करने से माफ़ रखा जाए। और अल्लाह डर रखनेवालों को भली-भाँति जानता है 9|45|तुमसे छुट्टी तो बस वही लोग माँगते है जो अल्लाह और अन्तिम दिन पर ईमान नहीं रखते, और जिनके दिल सन्देह में पड़े है, तो वे अपने सन्देह ही में डाँवाडोल हो रहे है 9|46|यदि वे निकलने का इरादा करते तो इसके लिए कुछ सामग्री जुटाते, किन्तु अल्लाह ने उनके उठने को नापसन्द किया तो उसने उन्हें रोक दिया। उनके कह दिया गया, "बैठनेवालों के साथ बैठ रहो।" 9|47|यदि वे तुम्हारे साथ निकलते भी तो तुम्हारे अन्दर ख़राबी के सिवा किसी और चीज़ की अभिवृद्धि नहीं करते। और वे तुम्हारे बीच उपद्रव मचाने के लिए दौड़-धूप करते और तुममें उनकी सुननेवाले है। और अल्लाह अत्याचारियों को भली-भाँति जानता है 9|48|उन्होंने तो इससे पहले भी उपद्रव मचाना चाहा था और वे तुम्हारे विरुद्ध घटनाओं और मामलों के उलटने-पलटने में लगे रहे, यहाँ तक कि हक़ आ गया और अल्लाह को आदेश प्रकट होकर रहा, यद्यपि उन्हें अप्रिय ही लगता रहा 9|49|उनमें कोई है, जो कहता है, "मुझे इजाज़त दे दीजिए, मुझे फ़ितने में न डालिए।" जान लो कि वे फ़ितने में तो पड़ ही चुके है और निश्चय ही जहन्नम भी इनकार करनेवालों को घेर रही है 9|50|यदि तुम्हें कोई अच्छी हालत पेश आती है, तो उन्हें बुरा लगता है औऱ यदि तुम पर कोई मुसीबत आ जाती है, तो वे कहते है, "हमने तो अपना काम पहले ही सँभाल लिया था।" और वे ख़ुश होते हुए पलटते है 9|51|कह दो, "हमें कुछ भी पेश नहीं आ सकता सिवाय उसके जो अल्लाह ने लिख दिया है। वही हमारा स्वामी है। और ईमानवालों को अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।" 9|52|कहो, "तुम हमारे लिए दो भलाईयों में से किसी एक भलाई के सिवा किसकी प्रतीक्षा कर सकते है? जबकि हमें तुम्हारे हक़ में इसी की प्रतिक्षा है कि अल्लाह अपनी ओर से तुम्हें कोई यातना देता है या हमारे हाथों दिलाता है। अच्छा तो तुम भी प्रतीक्षा करो, हम भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा कर रहे है।" 9|53|कह दो, "तुम चाहे स्वेच्छापूर्वक ख़र्च करो या अनिच्छापूर्वक, तुमसे कुछ भी स्वीकार न किया जाएगा। निस्संदेह तुम अवज्ञाकारी लोग हो।" 9|54|उनके ख़र्च के स्वीकृत होने में इसके अतिरिक्त और कोई चीज़ बाधक नहीं कि उन्होंने अल्लाह औऱ उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया। नमाज़ को आते है तो बस हारे जी आते है और ख़र्च करते है, तो अनिच्छापूर्वक ही 9|55|अतः उनके माल तुम्हें मोहित न करें और न उनकी सन्तान ही। अल्लाह तो बस यह चाहता है कि उनके द्वारा उन्हें सांसारिक जीवन में यातना दे और उनके प्राण इस दशा में निकलें कि वे इनकार करनेवाले ही रहे 9|56|वे अल्लाह की क़समें खाते है कि वे तुम्हीं में से है, हालाँकि वे तुममें से नहीं है, बल्कि वे ऐसे लोग है जो त्रस्त रहते है 9|57|यदि वे कोई शरण पा लें या कोई गुफा या घुस बैठने की जगह, तो अवश्य ही वे बगटुट उसकी ओर उल्टे भाग जाएँ 9|58|और उनमें से कुछ लोग सदक़ो के विषय में तुम पर चोटे करते है। किन्तु यदि उन्हें उसमें से दे दिया जाए तो प्रसन्न हो जाएँ और यदि उन्हें उसमें से न दिया गया तो क्या देखोगे कि वे क्रोधित होने लगते है 9|59|यदि अल्लाह और उसके रसूल ने जो कुछ उन्हें दिया था, उसपर वे राज़ी रहते औऱ कहते कि "हमारे लिए अल्लाह काफ़ी है। अल्लाह हमें जल्द ही अपने अनुग्रह से देगा और उसका रसूल भी। हम तो अल्लाह ही की ओऱ उन्मुख है।" (तो यह उनके लिए अच्छा होता) 9|60|सदक़े तो बस ग़रीबों, मुहताजों और उन लोगों के लिए है, जो काम पर नियुक्त हों और उनके लिए जिनके दिलों को आकृष्ट करना औऱ परचाना अभीष्ट हो और गर्दनों को छुड़ाने और क़र्ज़दारों और तावान भरनेवालों की सहायता करने में, अल्लाह के मार्ग में, मुसाफ़िरों की सहायता करने में लगाने के लिए है। यह अल्लाह की ओर से ठहराया हुआ हुक्म है। अल्लाह सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है 9|61|और उनमें कुछ लोग ऐसे हैं, जो नबी को दुख देते है और कहते है, "वह तो निरा कान है!" कह दो, "वह सर्वथा कान तुम्हारी भलाई के लिए है। वह अल्लाह पर ईमान रखता है और ईमानवालों पर भी विश्वास करता है। और उन लोगों के लिए सर्वथा दयालुता है जो तुममें से ईमान लाए है। रहे वे लोग जो अल्लाह के रसूल को दुख देते है, उनके लिए दुखद यातना है।" 9|62|वे तुम लोगों के सामने अल्लाह की क़समें खाते है, ताकि तुम्हें राज़ी कर लें, हालाँकि यदि वे मोमिन है तो अल्लाह और उसका रसूल इसके ज़्यादा हक़दार है कि उनको राज़ी करें 9|63|क्या उन्हें मालूम नहीं कि जो अल्लाह औऱ उसके रसूल का विरोध करता है, उसके लिए जहन्नम की आग है जिसमें वह सदैव रहेगा। यह बहुत बड़ी रुसवाई है 9|64|मुनाफ़िक़ (कपटाचारी) डर रहे है कि कहीं उनके बारे में कोई ऐसी सूरा न अवतरित हो जाए जो वह सब कुछ उनपर खोल दे, जो उनके दिलों में है। कह दो, "मज़ाक़ उड़ा लो, अल्लाह तो उसे प्रकट करके रहेगा, जिसका तुम्हें डर है।" 9|65|और यदि उनसे पूछो तो कह देंगे, "हम तो केवल बातें और हँसी-खेल कर रहे थे।" कहो, "क्या अल्लाह, उसकी आयतों और उसके रसूल के साथ हँसी-मज़ाक़ करते थे? 9|66|"बहाने न बनाओ, तुमने अपने ईमान के पश्चात इनकार किया। यदि हम तुम्हारे कुछ लोगों को क्षमा भी कर दें तो भी कुछ लोगों को यातना देकर ही रहेंगे, क्योंकि वे अपराधी हैं।" 9|67|मुनाफ़िक़ पुरुष और मुनाफ़िक़ स्त्रियाँ सब एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। वे बुराई का हुक्म देते है और भलाई से रोकते है और हाथों को बन्द किए रहते है। वे अल्लाह को भूल बैठे तो उसने भी उन्हें भुला दिया। निश्चय ही मुनाफ़िक़ अवज्ञाकारी हैं 9|68|अल्लाह ने मुनाफ़िक़ पुरुषों और मुनाफ़िक़ स्त्रियों और इनकार करनेवालों से जहन्नम की आग का वादा किया है, जिसमें वे सदैव ही रहेंगे। वही उनके लिए काफ़ी है और अल्लाह ने उनपर लानत की, और उनके लिए स्थाई यातना है 9|69|उन लोगों की तरह, जो तुमसे पहले गुज़र चुके हैं, वे शक्ति में तुमसे बढ़-बढ़कर थे और माल और औलाद में भी बढ़े हुए थे। फिर उन्होंने अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा और तुमने भी अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा, जिस प्रकार कि तुमसे पहले के लोगों ने अपने हिस्से का मज़ा उठाना चाहा, और जिस वाद-विवाद में तुम पड़े थे तुम भी वाद-विवाद में पड़ गए। ये वही लोग है जिनका किया-धरा दुनिया और आख़िरत में अकारथ गया, और वही घाटे में है 9|70|क्या उन्हें उन लोगों का वृतान्त नहीं पहुँचा जो उनसे पहले गुज़रे - नूह के लोगो का, आद और समूद का, और इबराहीम की क़ौम का और मदयनवालों का और उन बस्तियों का जिन्हें उलट दिया गया? उसके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे, फिर अल्लाह ऐसा न था कि वह उनपर अत्याचार करता, किन्तु वे स्वयं अपने-आप पर अत्याचार कर रहे थे 9|71|रहे मोमिन मर्द औऱ मोमिन औरतें, वे सब परस्पर एक-दूसरे के मित्र है। भलाई का हुक्म देते है और बुराई से रोकते है। नमाज़ क़ायम करते हैं, ज़कात देते है और अल्लाह और उसके रसूल का आज्ञापालन करते हैं। ये वे लोग है, जिनकर शीघ्र ही अल्लाह दया करेगा। निस्सन्देह प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 9|72|मोमिन मर्दों और मोमिन औरतों से अल्लाह ने ऐसे बाग़ों का वादा किया है जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी, जिनमें वे सदैव रहेंगे और सदाबहार बाग़ों में पवित्र निवास गृहों का (भी वादा है) और, अल्लाह की प्रसन्नता और रज़ामन्दी का; जो सबसे बढ़कर है। यही सबसे बड़ी सफलता है 9|73|ऐ नबी! इनकार करनेवालों और मुनाफ़िक़ों से जिहाद करो और उनके साथ सख़्ती से पेश आओ। अन्ततः उनका ठिकाना जहन्नम है और वह जा पहुँचने की बहुत बुरी जगह है! 9|74|वे अल्लाह की क़समें खाते है कि उन्होंने नहीं कहा, हालाँकि उन्होंने अवश्य ही कुफ़्र की बात कही है और अपने इस्लाम स्वीकार करने के पश्चात इनकार किया, और वह चाहा जो वे न पा सके। उनके प्रतिशोध का कारण तो यह है कि अल्लाह और उसके रसूल ने अपने अनुग्रह से उन्हें समृद्ध कर दिया। अब यदि वे तौबा कर लें तो उन्हीं के लिए अच्छा है और यदि उन्होंने मुँह मोड़ा तो अल्लाह उन्हें दुनिया और आख़िरत में दुखद यातना देगा और धरती में उनका न कोई मित्र होगा और न सहायक 9|75|और उनमें से कुछ लोग ऐसे भी है जिन्होने अल्लाह को वचन दिया था कि "यदि उसने हमें अपने अनुग्रह से दिया तो हम अवश्य दान करेंगे और नेक होकर रहेंगे।" 9|76|किन्तु जब अल्लाह ने उन्हें अपने अनुग्रह से दिया तो वे उसमें कंजूसी करने लगे और पहलू बचाकर फिर गए 9|77|फिर परिणाम यह हुआ कि उसने उनके दिलों में उस दिन तक के लिए कपटाचार डाल दिया, जब वे उससे मिलेंगे, इसलिए कि उन्होंने अल्लाह से जो प्रतिज्ञा की थी उसे भंग कर दिया और इसलिए भी कि वे झूठ बोलते रहे 9|78|क्या उन्हें खबर नहीं कि अल्लाह उनका भेद और उनकी कानाफुसियों को अच्छी तरह जानता है और यह कि अल्लाह परोक्ष की सारी बातों को भली-भाँति जानता है 9|79|जो लोग स्वेच्छापूर्वक देनेवाले मोमिनों पर उनके सदक़ो (दान) के विषय में चोटें करते है और उन लोगों का उपहास करते है, जिनके पास इसके सिवा कुछ नहीं जो वे मशक़्क़त उठाकर देते है, उन (उपहास करनेवालों) का उपहास अल्लाह ने किया और उनके लिए दुखद यातना है 9|80|तुम उनके लिए क्षमा की प्रार्थना करो या उनके लिए क्षमा की प्रार्थना न करो। यदि तुम उनके लिए सत्तर बार भी क्षमा की प्रार्थना करोगे, तो भी अल्लाह उन्हें क्षमा नहीं करेगा, यह इसलिए कि उन्होंने अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और अल्लाह अवज्ञाकारियों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता 9|81|पीछे रह जानेवाले अल्लाह के रसूल के पीछे अपने बैठ रहने पर प्रसन्न हुए। उन्हें यह नापसन्द हुआ कि अल्लाह के मार्ग में अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद करें। और उन्होंने कहा, "इस गर्मी में न निकलो।" कह दो, "जहन्नम की आग इससे कहीं अधिक गर्म है," यदि वे समझ पाते (तो ऐसा न कहते) 9|82|अब चाहिए कि जो कुछ वे कमाते रहे है, उसके बदले में हँसे कम और रोएँ अधिक 9|83|अव यदि अल्लाह तुम्हें उनके किसी गिरोह की ओर रुजू कर दे और भविष्य में वे तुमसे साथ निकलने की अनुमति चाहें तो कह देना, "तुम मेरे साथ कभी भी नहीं निकल सकते और न मेरे साथ होकर किसी शत्रु से लड़ सकते हो। तुम पहली बार बैठ रहने पर ही राज़ी हुए, तो अब पीछे रहनेवालों के साथ बैठे रहो।" 9|84|औऱ उनमें से जिस किसी व्यक्ति की मृत्यु हो उसकी जनाज़े की नमाज़ कभी न पढ़ना और न कभी उसकी क़ब्र पर खड़े होना। उन्होंने तो अल्लाह और उसके रसूल के साथ कुफ़्र किया और मरे इस दशा में कि अवज्ञाकारी थे 9|85|और उनके माल और उनकी औलाद तुम्हें मोहित न करें। अल्लाह तो बस यह चाहता है कि उनके द्वारा उन्हें संसार में यातना दे और उनके प्राण इस दशा में निकलें कि वे काफ़िर हों 9|86|और जब कोई सूरा उतरती है कि "अल्लाह पर ईमान लाओ और उसके रसूल के साथ होकर जिहाद करो।" तो उनके सामर्थ्यवान लोग तुमसे छुट्टी माँगने लगते है और कहते है कि "हमें छोड़ दो कि हम बैठनेवालों के साथ रह जाएँ।" 9|87|वे इसी पर राज़ी हुए कि पीछे रह जानेवाली स्त्रियों के साथ रह जाएँ और उनके दिलों पर तो मुहर लग गई है, अतः वे समझते नहीं 9|88|किन्तु, रसूल और उसके ईमानवाले साथियों ने अपने मालों और अपनी जानों के साथ जिहाद किया, और वही लोग है जिनके लिए भलाइयाँ है और वही लोग है जो सफल है 9|89|अल्लाह ने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार कर रखे हैं, जिनके नीचे नहरें बह रह हैं, वे उनमें सदैव रहेंगे। यही बड़ी सफलता है 9|90|बहाने करनेवाले बद्दूल भी आए कि उन्हें (बैठे रहने की) छुट्टी मिल जाए। और जो अल्लाह और उसके रसूल से झूठ बोले वे भी बैठे रहे। उनमें से जिन्होंने इनकार किया उन्हें शीघ्र ही एक दुखद यातना पहुँचकर रहेगी 9|91|न तो कमज़ोरों के लिए कोई दोष की बात है और न बीमारों के लिए और न उन लोगों के लिए जिन्हें ख़र्च करने के लिए कुछ प्राप्त नहीं, जबकि वे अल्लाह और उसके रसूल के प्रति निष्ठावान हों। उत्तमकारों पर इलज़ाम की कोई गुंजाइश नहीं है। अल्लाह तो बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है 9|92|और न उन लोगों पर आक्षेप करने की कोई गुंजाइश है जिनका हाल यह है कि जब वे तुम्हारे पास आते है, कि तुम उनके लिए सवारी का प्रबन्ध कर दो, तुम कहते हो, "मुझे ऐसा कुछ प्राप्त नहीं जिसपर तुम्हें सवार करूँ।" वे इस दशा में लौटते है कि इस ग़म में उनकी आँखे आँसू बहा रही होती है कि वे अपने पास ख़र्च करने को कुछ नहीं पाते 9|93|इल्ज़ाम तो बस उनपर है जो धनवान होते हुए तुमसे छुट्टी माँगते है। वे इसपर राज़ी हुए कि पीछे डाले गए लोगों के साथ रह जाएँ। अल्लाह ने तो उनके दिलों पर मुहर लगा दी है, इसलिए वे जानते नहीं 9|94|जब तुम पलटकर उनके पास पहुँचोगे तो वे तुम्हारे सामने बहाने करेंगे। तुम कह देना, "बहाने न बनाओ। हम तु्म्हारी बात कदापि नहीं मानेंगे। हमें अल्लाह ने तुम्हारे वृत्तांत बता दिए है। अभी अल्लाह और उसका रसूल तुम्हारे काम को देखेगा, फिर तुम उसकी ओर लौटोगे, जो छिपे और खुले का ज्ञान रखता है। फिर जो कुछ तुम करते रहे हो वह तुम्हे बता देगा।" 9|95|जब तुम पलटकर उनके पास जाओगे तो वे तुम्हारे सामने अल्लाह की क़समें खाएँगे, ताकि तुम उन्हें उनकी हालत पर छोड़ दो। तो तुम उन्हें छोड़ ही दो। निश्चय ही वे गन्दगी है और उनका ठिकाना जहन्नम है। जो कुछ वे कमाते रहे है, यह उसी का बदला है 9|96|वे तुम्हारे सामने क़समें खाएँगे ताकि तुम उनसे राज़ी हो जाओ, किन्तु यदि तुम उनसे राज़ी भी हो गए तो अल्लाह ऐसे लोगो से कदापि राज़ी न होगा, जो अवज्ञाकारी है 9|97|वे बद्दूग इनकार और कपटाचार में बहुत-ही बढ़े हुए है। और इसी के ज़्यादा योग्य है कि उनकी सीमाओं से अनभिज्ञ रहें, जिसे अल्लाह ने अपने रसूल पर अवतरित किया है। अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है 9|98|और कुछ बद्दूज ऐसे है कि वे जो कुछ ख़र्च करते है, उसे तावान समझते है और तुम्हारे हक़ मं बुरी गर्दिशों (बुरे दिन) की प्रतीक्षा में हैं, बुरी गर्दिश में तो वही है। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है 9|99|और बद्दु,ओं में ऐसे भी लोग है जो अल्लाह और अन्तिम दिन को मानते है और जो कुछ ख़र्च करते है, उसे अल्लाह के यहाँ निकटताओं का और रसूल की दुआओं को प्राप्त करने का साधन बनाते है। हाँ! निस्संदेह वह उनके हक़ में निकटता ही है। अल्लाह उन्हें शीघ्र ही अपनी दयालुता में दाख़िल करेगा। निश्चय ही अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 9|100|सबसे पहले आगे बढ़नेवाले मुहाजिर और अनसार और जिन्होंने भली प्रकार उनका अनुसरण किया, अल्लाह उनसे राज़ी हुआ और वे उससे राज़ी हुए। और उसने उनके लिए ऐसे बाग़ तैयार कर रखे है, जिनके नीचे नहरें बह रही है, वे उनमें सदैव रहेंगे। यही बड़ी सफलता है 9|101|और तुम्हारे आस-पास के बद्दुनओं में और मदीनावालों में कुछ ऐसे कपटाचारी है जो कपट-नीति पर जमें हुए है। उनको तुम नहीं जानते, हम उन्हें भली-भाँति जानते है। शीघ्र ही हम उन्हें दो बार यातना देंगे। फिर वे एक बड़ी यातना की ओर लौटाए जाएँगे 9|102|और दूसरे कुछ लोग है जिन्होंने अपने गुनाहों का इक़रार किया। उन्होंने मिले-जुले कर्म किए, कुछ अच्छे और कुछ बुरे। आशा है कि अल्लाह की कृपा-स्पष्ट उनपर हो। निस्संदेह अल्लाह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है 9|103|तुम उनके माल में से दान लेकर उन्हें शुद्ध करो और उनके द्वारा उन (की आत्मा) को विकसित करो और उनके लिए दुआ करो। निस्संदेह तुम्हारी दुआ उनके लिए सर्वथा परितोष है। अल्लाह सब कुछ सुनता, जानता है 9|104|क्या वे जानते नहीं कि अल्लाह ही अपने बन्दों की तौबा क़बूल करता है और सदक़े लेता है और यह कि अल्लाह ही तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है 9|105|कह दो, "कर्म किए जाओ। अभी अल्लाह और उसका रसूल और ईमानवाले तुम्हारे कर्म को देखेंगे। फिर तुम उसकी ओर पलटोगे, जो छिपे और खुले को जानता है। फिर जो कुछ तम करते रहे हो, वह सब तुम्हें बता देगा।" 9|106|और कुछ दूसरे लोग भी है जिनका मामला अल्लाह का हुक्म आने तक स्थगित है, चाहे वह उन्हें यातना दे या उनकी तौबा क़बूल करे। अल्लाह सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है 9|107|और कुछ ऐसे लोग भी हैं , जिन्होंने मस्जिद बनाई इसलिए कि नुक़सान पहुँचाएँ और कुफ़्र करें और इसलिए कि ईमानवालों के बीच फूट डाले और उस व्यक्ति के घात लगाने का ठिकाना बनाएँ, जो इससे पहले अल्लाह और उसके रसूल से लड़ चुका है। वे निश्चय ही क़समें खाएँगे कि "हमने तो बस अच्छा ही चाहा था।" किन्तु अल्लाह गवाही देता है कि वे बिलकुल झूठे है 9|108|तुम कभी भी उसमें खड़े न होना। वह मस्जिद जिसकी आधारशिला पहले दिन ही से ईशपरायणता पर रखी गई है, वह इसकी ज़्यादा हक़दार है कि तुम उसमें खड़े हो। उसमें ऐसे लोग पाए जाते हैं, जो अच्छी तरह स्वच्छ रहना पसन्द करते है, और अल्लाह भी पाक-साफ़ रहनेवालों को पसन्द करता है 9|109|फिर क्या वह अच्छा है जिसने अपने भवन की आधारशिला अल्लाह के भय और उसकी ख़ुशी पर रखी है या वह, जिसने अपने भवन की आधारशिला किसी खाई के खोखले कगार पर रखी, जो गिरने को है। फिर वह उसे लेकर जहन्नम की आग में जा गिरा? अल्लाह तो अत्याचारी लोगों को सीधा मार्ग नहीं दिखाता 9|110|उनका यह भवन जो उन्होंने बनाया है, सदैव उनके दिलों में खटक बनकर रहेगा। हाँ, यदि उनके दिल ही टुकड़े-टुकड़े हो जाएँ तो दूसरी बात है। अल्लाह तो सब कुछ जाननेवाला, अत्यन्त तत्वदर्शी है 9|111|निस्संदेह अल्लाह ने ईमानवालों से उनके प्राण और उनके माल इसके बदले में खरीद लिए है कि उनके लिए जन्नत है। वे अल्लाह के मार्ग में लड़ते है, तो वे मारते भी है और मारे भी जाते है। यह उनके ज़िम्मे तौरात, इनजील और क़ुरआन में (किया गया) एक पक्का वादा है। और अल्लाह से बढ़कर अपने वादे को पूरा करनेवाला हो भी कौन सकता है? अतः अपने उस सौदे पर खु़शियाँ मनाओ, जो सौदा तुमने उससे किया है। और यही सबसे बड़ी सफलता है 9|112|वे ऐसे हैं, जो तौबा करते हैं, बन्दगी करते है, स्तुति करते हैं, (अल्लाह के मार्ग में) भ्रमण करते हैं, (अल्लाह के आगे) झुकते है, सजदा करते है, भलाई का हुक्म देते है और बुराई से रोकते हैं और अल्लाह की निर्धारित सीमाओं की रक्षा करते हैं -और इन ईमानवालों को शुभ-सूचना दे दो 9|113|नबी और ईमान लानेवालों के लिए उचित नहीं कि वे बहुदेववादियों के लिए क्षमा की प्रार्थना करें, यद्यपि वे उसके नातेदार ही क्यों न हो, जबकि उनपर यह बात खुल चुकी है कि वे भड़कती आगवाले हैं 9|114|इबराहीम ने अपने बाप के लिए जो क्षमा की प्रार्थना की थी, वह तो केवल एक वादे के कारण की थी, जो वादा वह उससे कर चुका था। फिर जब उसपर यह बात खुल गई कि वह अल्लाह का शत्रु है तो वह उससे विरक्त हो गया। वास्तव में, इबराहीम बड़ा ही कोमल हृदय, अत्यन्त सहनशील था 9|115|अल्लाह ऐसा नहीं कि लोगों को पथभ्रष्ट ठहराए, जबकि वह उनको राह पर ला चुका हो, जब तक कि उन्हें साफ़-साफ़ वे बातें बता न दे, जिनसे उन्हें बचना है। निस्संदेह अल्लाह हर चीज़ को भली-भाँति जानता है 9|116|आकाशों और धरती का राज्य अल्लाह ही का है, वही जिलाता है और मारता है। अल्लाह से हटकर न तुम्हारा कोई मित्र है और न सहायक 9|117|अल्लाह नबी पर मेहरबान हो गया और मुहाजिरों और अनसार पर भी, जिन्होंने तंगी की घड़ी में उसका साथ दिया, इसके पश्चात कि उनमें से एक गिरोह के दिल कुटिलता की ओर झुक गए थे। फिर उसने उनपर दया-दृष्टि दर्शाई। निस्संदेह, वह उनके लिए अत्यन्त करुणामय, दयावान है 9|118|और उन तीनों पर भी जो पीछे छोड़ दिए गए थे, यहाँ तक कि जब धरती विशाल होते हुए भी उनपर तंग हो गई और उनके प्राण उनपर दुभर हो गए और उन्होंने समझा कि अल्लाह से बचने के लिए कोई शरण नहीं मिल सकती है तो उसी के यहाँ। फिर उसने उनपर कृपा-दृष्टि की ताकि वे पलट आएँ। निस्संदेह अल्लाह ही तौबा क़बूल करनेवाला, अत्यन्त दयावान है 9|119|ऐ ईमान लानेवालो! अल्लाह का डर रखों और सच्चे लोगों के साथ हो जाओ 9|120|मदीनावालों और उसके आसपास के बद्दूहओं को ऐसा नहीं चाहिए था कि अल्लाह के रसूल को छोड़कर पीछे रह जाएँ और न यह कि उसकी जान के मुक़ाबले में उन्हें अपनी जान अधिक प्रिय हो, क्योंकि वह अल्लाह के मार्ग में प्यास या थकान या भूख की कोई भी तकलीफ़ उठाएँ या किसी ऐसी जगह क़दम रखें, जिससे काफ़िरों का क्रोध भड़के या जो चरका भी वे शत्रु को लगाएँ, उसपर उनके हक में अनिवार्यतः एक सुकर्म लिख लिया जाता है। निस्संदेह अल्लाह उत्तमकार का कर्मफल अकारथ नहीं जाने देता 9|121|और वे थो़ड़ा या ज़्यादा जो कुछ भी ख़र्च करें या (अल्लाह के मार्ग में) कोई घाटी पार करें, उनके हक़ में अनिवार्यतः लिख लिया जाता है, ताकि अल्लाह उन्हें उनके अच्छे कर्मों का बदला प्रदान करे 9|122|यह तो नहीं कि ईमानवाले सब के सब निकल खड़े हों, फिर ऐसा क्यों नहीं हुआ कि उनके हर गिरोह में से कुछ लोग निकलते, ताकि वे धर्म में समझ प्राप्ति करते और ताकि वे अपने लोगों को सचेत करते, जब वे उनकी ओर लौटते, ताकि वे (बुरे कर्मों से) बचते? 9|123|ऐ ईमान लानेवालो! उन इनकार करनेवालों से लड़ो जो तुम्हारे निकट है और चाहिए कि वे तुममें सख़्ती पाएँ, और जान रखो कि अल्लाह डर रखनेवालों के साथ है 9|124|जब भी कोई सूरा अवतरित की गई, तो उनमें से कुछ लोग कहते है, "इसने तुममें से किसके ईमान को बढ़ाया?" हाँ, जो लोग ईमान लाए है इसने उनके ईमान को बढ़ाया है। और वे आनन्द मना रहे है 9|125|रहे वे लोग जिनके दिलों में रोग है, उनकी गन्दगी में अभिवृद्धि करते हुए उसने उन्हें उनकी अपनी गन्दगी में और आगे बढ़ा दिया। और वे मरे तो इनकार की दशा ही में 9|126|क्या वे देखते नहीं कि प्रत्येक वर्ष वॆ एक या दो बार आज़माईश में डाले जाते है ? फिर भी न तो वे तौबा करते हैं और न चेतते। 9|127|और जब कोई सूरा अवतरित होती है, तो वे परस्पर एक-दूसरे को देखने लगते है कि "तुम्हें कोई देख तो नहीं रहा है।" फिर पलट जाते है। अल्लाह ने उनके दिल फेर दिए, क्योंकि वे ऐसे लोग है जो समझते नहीं है 9|128|तुम्हारे पास तुम्हीं में से एक रसूल आ गया है। तुम्हारा मुश्किल में पड़ना उसके लिए असह्य है। वह तुम्हारे लिए लालयित है। वह मोमिनों के प्रति अत्यन्त करुणामय, दयावान है 9|129|अब यदि वे मुँह मोड़े तो कह दो, "मेरे लिए अल्लाह काफ़ी है, उसके अतिरिक्त कोई पूज्य-प्रभु नहीं! उसी पर मैंने भऱोसा किया और वही बड़े सिंहासन का प्रभु है।" 10|1|अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। ये तत्वदर्शितायुक्त किताब की आयतें हैं 10|2|क्या लोगों को इस बात पर आश्चर्य हो रहा है कि हमने उन्ही में से एक आदमी की ओर प्रकाशना की कि लोगों को सचेत कर दो और जो लोग मान लें, उनको शुभ समाचार दे दो कि उनके लिए रब के पास शाश्वत सच्चा उन्नत स्थान है? इनकार करनेवाले कहने लगे, "निस्संदेह यह एक खुला जादूगर है।" 10|3|निस्संदेह तुम्हारा रब वही अल्लाह है, जिसने आकाशों और धरती को छः दिनों में पैदा किया, फिर सिंहासन पर विराजमान होकर व्यवस्था चला रहा है। उसकी अनुज्ञा के बिना कोई सिफ़ारिश करनेवाला भी नहीं है। वह अल्लाह है तुम्हारा रब। अतः उसी की बन्दगी करो। तो क्या तुम ध्यान न दोगे? 10|4|उसी की ओर तुम सबको लौटना है। यह अल्लाह का पक्का वादा है। निस्संदेह वही पहली बार पैदा करता है। फिर दोबारा पैदा करेगा, ताकि जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उन्हें न्यायपूर्वक बदला दे। रहे वे लोग जिन्होंने इनकार किया उनके लिए खौलता पेय और दुखद यातना है, उस इनकार के बदले में जो वे करते रहे 10|5|वही है जिसने सूर्य को सर्वथा दीप्ति और चन्द्रमा का प्रकाश बनाया औऱ उनके लिए मंज़िलें निश्चित की, ताकि तुम वर्षों की गिनती और हिसाब मालूम कर लिया करो। अल्लाह ने यह सब कुछ सोद्देश्य ही पैदा किया है। वह अपनी निशानियों को उन लोगों के लिए खोल-खोलकर बयान करता है, जो जानना चाहें 10|6|निस्संदेह रात और दिन के उलट-फेर में और जो कुछ अल्लाह ने आकाशों और धरती में पैदा किया उसमें डर रखनेवाले लोगों के लिए निशानियाँ है 10|7|रहे वे लोग जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते और सांसारिक जीवन ही पर निहाल हो गए है और उसी पर संतुष्ट हो बैठे, और जो हमारी निशानियों की ओर से असावधान है; 10|8|ऐसे लोगों का ठिकाना आग है, उसके बदले में जो वे कमाते रहे 10|9|रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए, उनका रब उनके ईमान के कारण उनका मार्गदर्शन करेगा। उनके नेमत भरी जन्नतों में नहरें बह रही होगी 10|10|वहाँ उनकी पुकार यह होगी कि "महिमा है तेरी, ऐ अल्लाह!" और उनका पारस्परिक अभिवादन "सलाम" होगा। और उनकी पुकार का अन्त इसपर होगा कि "प्रशंसा अल्लाह ही के लिए है जो सारे संसार का रब है।" 10|11|यदि अल्लाह लोगों के लिए उनके जल्दी मचाने के कारण भलाई की जगह बुराई को शीघ्र घटित कर दे तो उनकी ओर उनकी अवधि पूरी कर दी जाए, किन्तु हम उन लोगों को जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते उनकी अपनी सरकशी में भटकने के लिए छोड़ देते है 10|12|मनुष्य को जब कोई तकलीफ़ पहुँचती है, वह लेटे या बैठे या खड़े हमको पुकारने लग जाता है। किन्तु जब हम उसकी तकलीफ़ उससे दूर कर देते है तो वह इस तरह चल देता है मानो कभी कोई तकलीफ़ पहुँचने पर उसने हमें पुकारा ही न था। इसी प्रकार मर्यादाहीन लोगों के लिए जो कुछ वे कर रहे है सुहावना बना दिया गया है 10|13|तुमसे पहले कितनी ही नस्लों को, जब उन्होंने अत्याचार किया, हम विनष्ट कर चुके है, हालाँकि उनके रसूल उनके पास खुली निशानियाँ लेकर आए थे। किन्तु वे ऐसे न थे कि उन्हें मानते। अपराधी लोगों को हम इसी प्रकार बदला दिया करते है 10|14|फिर उनके पश्चात हमने धरती में उनकी जगह तुम्हें रखा, ताकि हम देखें कि तुम कैसे कर्म करते हो 10|15|और जब उनके सामने हमारी खुली हुई आयतें पढ़ी जाती है तो वे लोग, जो हमसे मिलने की आशा नहीं रखते, कहते है, "इसके सिवा कोई और क़ुरआन ले आओ या इसमें कुछ परिवर्तन करो।" कह दो, "मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं अपनी ओर से इसमें कोई परिवर्तन करूँ। मैं तो बस उसका अनुपालन करता हूँ, जो प्रकाशना मेरी ओर अवतरित की जाती है। यदि मैं अपने प्रभु की अवज्ञा करँस तो इसमें मुझे एक बड़े दिन की यातना का भय है।" 10|16|कह दो, "यदि अल्लाह चाहता तो मैं तुम्हें यह पढ़कर न सुनाता और न वह तुम्हें इससे अवगत कराता। आख़िर इससे पहले मैं तुम्हारे बीच जीवन की पूरी अवधि व्यतीत कर चुका हूँ। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते?" 10|17|फिर उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़े या उसकी आयतों को झुठलाए? निस्संदेह अपराधी कभी सफल नहीं होते 10|18|वे लोग अल्लाह से हटकर उनको पूजते हैं, जो न उनका कुछ बिगाड़ सकें और न उनका कुछ भला कर सकें। और वे कहते है, "ये अल्लाह के यहाँ हमारे सिफ़ारिशी है।" कह दो, "क्या तुम अल्लाह को उसकी ख़बर देनेवाले? हो, जिसका अस्तित्व न उसे आकाशों में ज्ञात है न धरती में" महिमावान है वह और उसकी उच्चता के प्रतिकूल है वह शिर्क, जो वे कर रहे है 10|19|सारे मनुष्य एक ही समुदाय थे। वे तो स्वयं अलग-अलग हो रहे। और यदि तेरे रब की ओर से पहले ही एक बात निश्चित न हो गई होती, तो उनके बीच का फ़ैसला कर दिया जाता जिसमें वे मतभेद कर रहे हैं 10|20|वे कहते है, "उस पर उनके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतरी?" तो कह दो, "परोक्ष तो अल्लाह ही से सम्बन्ध रखता है। अच्छा, प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करता हूँ।" 10|21|जब हम लोगों को उनके किसी तकलीफ़ में पड़ने के पश्चात दयालुता का रसास्वादन कराते है तो वे हमारी आयतों के विषय में चालबाज़ियाँ करने लग जाते है। कह दो, "अल्लाह की चाल ज़्यादा तेज़ है।" निस्संदेह, जो चालबाजियाँ तुम कर रहे हो, हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) उनको लिखते जा रहे है 10|22|वही है जो तुम्हें थल और जल में चलाता है, यहाँ तक कि जब तुम नौका में होते हो और वह लोगो को लिए हुए अच्छी अनुकूल वायु के सहारे चलती है और वे उससे हर्षित होते है कि अकस्मात उनपर प्रचंड वायु का झोंका आता है, हर ओर से लहरें उनपर चली आती है और वे समझ लेते है कि बस अब वे घिर गए, उस समय वे अल्लाह ही को, निरी उसी पर आस्था रखकर पुकारने लगते है, "यदि तूने हमें इससे बचा लिया तो हम अवश्य आभारी होंगे।" 10|23|फिर जब वह उनको बचा लेता है, तो क्या देखते है कि वे नाहक़ धरती में सरकशी करने लग जाते है। ऐ लोगों! तुम्हारी सरकशी तुम्हारे अपने ही विरुद्ध है। सांसारिक जीवन का सुख ले लो। फिर तुम्हें हमारी ही ओर लौटकर आना है। फिर हम तुम्हें बता देंगे जो कुछ तुम करते रहे होगे 10|24|सांसारिक जीवन की उपमा तो बस ऐसी है जैसे हमने आकाश से पानी बरसाया, तो उसके कारण धरती से उगनेवाली चीज़े, जिनको मनुष्य और चौपाये सभी खाते है, घनी हो गई, यहाँ तक कि धरती ने अपना शृंगार कर लिया और सँवर गई और उसके मालिक समझने लगे कि उन्हें उसपर पूरा अधिकार प्राप्त है कि रात या दिन में हमारा आदेश आ पहुँचा। फिर हमने उसे कटी फ़सल की तरह कर दिया, मानो कल वहाँ कोई आबादी ही न थी। इसी तरह हम उन लोगों के लिए खोल-खोलकर निशानियाँ बयान करते है, जो सोच-विचार से काम लेना चाहें 10|25|और अल्लाह तुम्हें सलामती के घर की ओर बुलाता है, और जिसे चाहता है सीधी राह चलाता है; 10|26|अच्छे से अच्छा कर्म करनेवालों के लिए अच्छा बदला है और इसके अतिरिक्त और भी। और उनके चहरों पर न तो कलौस छाएगी और न ज़िल्लत। वही जन्नतवाले है; वे उसमें सदैव रहेंगे 10|27|रहे वे लोग जिन्होंने बुराइयाँ कमाई, तो एक बुराई का बदला भी उसी जैसा होगा; और ज़िल्लत उनपर छा रही होगी। उन्हें अल्लाह से बचानेवाला कोई न होगा। उनके चहरों पर मानो अँधेरी रात के टुकड़े ओढ़ा दिए गए हों। वही आगवाले हैं, उन्हें उसमें सदैव रहना है 10|28|और जिस दिन हम उन सबको इकट्ठा करेंगे, फिर उन लोगों से, जिन्होंने शिर्क किया होगा, कहेंगे, "अपनी जगह ठहरे रहो तुम भी और तुम्हारे साझीदार भी।" फिर हम उनके बीच अलगाव पैदा कर देंगे, और उनके ठहराए हुए साझीदार कहेंगे, "तुम हमारी तो हमारी बन्दगी नहीं करते थे 10|29|"हमारे और तुम्हारे बीच अल्लाह ही एक गवाह काफ़ी है। हमें तो तुम्हारी बन्दगी की ख़बर तक न थी।" 10|30|वहाँ प्रत्येक व्यक्ति अपने पहले के किए हुए कर्मों को स्वयं जाँच लेगा और वह अल्लाह, अपने वास्तविक स्वामी की ओर फिरेंगे और जो कुछ झूठ वे घड़ते रहे थे, वह सब उनसे गुम होकर रह जाएगा 10|31|कहो, "तुम्हें आकाश और धरती से रोज़ी कौन देता है, या ये कान और आँखें किसके अधिकार में है और कौन जीवन्त को निर्जीव से निकालता है और निर्जीव को जीवन्त से निकालता है और कौन यह सारा इन्तिज़ाम चला रहा है?" इसपर वे बोल पड़ेगे, "अल्लाह!" तो कहो, "फिर आख़िर तुम क्यों नहीं डर रखते?" 10|32|फिर यही अल्लाह तो है तुम्हारा वास्तविक रब। फिर आख़िर सत्य के पश्चात पथभ्रष्टता के अतिरिक्त और क्या रह जाता है? फिर तुम कहाँ से फिरे जाते हो? 10|33|इसी तरह अवज्ञाकारी लोगों के प्रति तुम्हारे रब की बात सच्ची होकर रही कि वे मानेंगे नहीं 10|34|कहो, "क्या तुम्हारे ठहराए हुए साझीदारों में कोई है जो सृष्टि का आरम्भ भी करता हो, फिर उसकी पुनरावृत्ति भी करे?" कहो, "अल्लाह ही सृष्टि का आरम्भ करता है और वही उसकी पुनरावृति भी; आख़िर तुम कहाँ औधे हुए जाते हो?" 10|35|कहो, "क्या तुम्हारे ठहराए साझीदारों में कोई है जो सत्य की ओर मार्गदर्शन करे?" कहो, "अल्लाह ही सत्य के मार्ग पर चलाता है। फिर जो सत्य की ओर मार्गदर्शन करता हो, वह इसका ज़्यादा हक़दार है कि उसका अनुसरण किया जाए या वह जो स्वयं ही मार्ग न पाए जब तक कि उसे मार्ग न दिखाया जाए? फिर यह तुम्हें क्या हो गया है, तुम कैसे फ़ैसले कर रहे हो?" 10|36|और उनमें से अधिकतर तो बस अटकल पर चलते है। निश्चय ही अटकल सत्य को कुछ भी दूर नहीं कर सकती। वे जो कुछ कर रहे हैं अल्लाह उसको भली-भाँति जानता है 10|37|यह क़ुरआन ऐसा नहीं है कि अल्लाह से हटकर घड लिया जाए, बल्कि यह तो जिसके समझ है, उसकी पुष्टि में है और किताब का विस्तार है, जिसमें किसी संदेह की गुंजाइश नहीं। यह सारे संसार के रब की ओर से है 10|38|(क्या उन्हें कोई खटक है) या वे कहते है, "इस व्यक्ति (पैग़म्बर) ने उसे स्वयं ही घड़ लिया है?" कहो, "यदि तुम सच्चे हो, तो इस जैसी एक सुरा ले आओ और अल्लाह से हटकर उसे बुला लो, जिसपर तुम्हारा बस चले।" 10|39|बल्कि बात यह है कि जिस चीज़ के ज्ञान पर वे हावी न हो सके, उसे उन्होंने झुठला दिया और अभी उसका परिणाम उनके सामने नहीं आया। इसी प्रकार उन लोगों ने भी झुठलाया था, जो इनसे पहले थे। फिर देख लो उन अत्याचारियों का कैसा परिणाम हुआ! 10|40|उनमें कुछ लोग उसपर ईमान रखनेवाले है और उनमें कुछ लोग उसपर ईमान लानेवाले नहीं है। और तुम्हारा रब बिगाड़ पैदा करनेवालों को भली-भाँति जानता है 10|41|और यदि वे तुझे झुठलाएँ तो कह दो, "मेरा कर्म मेरे लिए है और तुम्हारा कर्म तुम्हारे लिए। जो कुछ मैं करता हूँ उसकी ज़िम्मेदारी से तुम बरी हो और जो कुछ तुम करते हो उसकी ज़िम्मेदारी से मैं बरी हूँ।" 10|42|और उनमें बहुत-से ऐसे लोग है जो तेरी ओर कान लगाते है। किन्तु क्या तू बहरों को सुनाएगा, चाहे वे समझ न रखते हों? 10|43|और कुछ उनमें ऐसे हैं, जो तेरी ओर ताकते हैं, किन्तु क्या तू अंधों का मार्ग दिखाएगा, चाहे उन्हें कुछ सूझता न हो? 10|44|अल्लाह तो लोगों पर तनिक भी अत्याचार नहीं करता, किन्तु लोग स्वयं ही अपने ऊपर अत्याचार करते है 10|45|जिस दिन वह उनको इकट्ठा करेगा तो ऐसा जान पड़ेगा जैसे वे दिन की एक घड़ी भर ठहरे थे। वे परस्पर एक-दूसरे को पहचानेंगे। वे लोग घाटे में पड़ गए, जिन्होंने अल्लाह से मिलने को झुठलाया और वे मार्ग न पा सके 10|46|जिस चीज़ का हम उनसे वादा करते है उसमें से कुछ चाहे तुझे दिखा दें या हम तुझे (इससे पहले) उठा लें, उन्हें तो हमारी ओर लौटकर आना ही है। फिर जो कुछ वे कर रहे है उसपर अल्लाह गवाह है 10|47|प्रत्येक समुदाय के लिए एक रसूल है। फिर जब उनके पास उनका रसूल आ जाता है तो उनके बीच न्यायपूर्वक फ़ैसला कर दिया जाता है। उनपर कुछ भी अत्याचार नहीं किया जाता 10|48|वे कहते है, "यदि तुम सच्चे हो तो यह वादा कब पूरा होगा?" 10|49|कहो, "मुझे अपने लिए न तो किसी हानि का अधिकार प्राप्त है और न लाभ का, बल्कि अल्लाह जो चाहता है वही होता है। हर समुदाय के लिए एक नियत समय है, जब उनका नियत समय आ जाता है तो वे न घड़ी भर पीछे हट सकते है और न आगे बढ़ सकते है।" 10|50|कहो, "क्या तुमने यह भी सोचा कि यदि तुमपर उसकी यातना रातों रात या दिन को आ जाए तो (क्या तुम उसे टाल सकोगे?) वह आख़िर कौन-सी चीज़ होगी जिसके लिए अपराधियों को जल्दी पड़ी हुई है? 10|51|क्या फिर जब वह घटित हो जाएगी तब तुम उसे मानोगे? - क्या अब! इसी के लिए तो तुम जल्दी मचा रहे थे!" 10|52|"फिर अत्याचारी लोगों से कहा जाएगा, "स्थायी यातना का मज़ा चख़ो! जो कुछ तुम कमाते रहे हो, उसके सिवा तुम्हें और क्या बदला दिया जा सकता है?" 10|53|वे तुम से चाहते है कि उन्हें ख़बर दो कि "क्या वह वास्तव में सत्य है?" कह दो, "हाँ, मेरे रब की क़सम! वह बिल्कुल सत्य है और तुम क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले नहीं हो।" 10|54|यदि प्रत्येक अत्याचारी व्यक्ति के पास वह सब कुछ हो जो धरती में है, तो वह अर्थदंड के रूप में उसे दे डाले। जब वे यातना को देखेंगे तो मन ही मन में पछताएँगे। उनके बीच न्यायपूर्वक फ़ैसला कर दिया जाएगा और उनपर कोई अत्याचार न होगा 10|55|सुन लो, जो कुछ आकाशों और धरती में है, अल्लाह ही का है। जान लो, निस्संदेह अल्लाह का वादा सच्चा है, किन्तु उनमें अधिकतर लोग जानते नहीं 10|56|वही जिलाता है और मारता है और उसी की ओर तुम लौटाए जा रहे हो 10|57|ऐ लोगो! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से उपदेश औऱ जो कुछ सीनों में (रोग) है, उसके लिए रोगमुक्ति और मोमिनों के लिए मार्गदर्शन और दयालुता आ चुकी है 10|58|कह दो, "यह अल्लाह के अनुग्रह और उसकी दया से है, अतः इस पर प्रसन्न होना चाहिए। यह उन सब चीज़ों से उत्तम है, जिनको वे इकट्ठा करने में लगे हुए है।" 10|59|कह दो, "क्या तुम लोगों ने यह भी देखा कि जो रोज़ी अल्लाह ने तुम्हारे लिए उतारी है उसमें से तुमने स्वयं ही कुछ को हराम और हलाल ठहरा लिया?" कहो, "क्या अल्लाह ने तुम्हें इसकी अनुमति दी है या तुम अल्लाह पर झूठ घड़कर थोप रहे हो?" 10|60|जो लोग झूठ घड़कर उसे अल्लाह पर थोंपते है, उन्होंने क़ियामत के दिन के विषय में क्या समझ रखा है? अल्लाह तो लोगों के लिए बड़ा अनुग्रहवाला है, किन्तु उनमें अधिकतर कृतज्ञता नहीं दिखलाते 10|61|तुम जिस दशा में भी होते हो और क़ुरआन से जो कुछ भी पढ़ते हो और तुम लोग जो काम भी करते हो हम तुम्हें देख रहे होते है, जब तुम उसमें लगे होते हो। और तुम्हारे रब से कण भर भी कोई चीज़ छिपी नहीं है, न धरती में न आकाश में और न उससे छोटी और न बड़ी कोई त चीज़ ऐसी है जो एक स्पष्ट किताब में मौजूद न हो 10|62|सुन लो, अल्लाह के मित्रों को न तो कोई डर है और न वे शोकाकुल ही होंगे 10|63|ये वे लोग है जो ईमान लाए और डर कर रहे 10|64|उनके लिए सांसारिक जीवन में भी शुभ-सूचना है और आख़िरत में भी - अल्लाह के शब्द बदलते नहीं - यही बड़ी सफलता है 10|65|उनकी बात तुम्हें दुखी न करे, सारा प्रभुत्व अल्लाह ही के लिए है, वह सुनता, जानता है 10|66|जान रखो! जो कोई भी आकाशों में है और जो कोई धरती में है, अल्लाह ही का है। जो लोग अल्लाह को छोड़कर दूसरे साझीदारों को पुकारते है, वे आखिर किसका अनुसरण करते है? वे तो केवल अटकल पर चलते है और वे निरे अटकले दौड़ाते है 10|67|वही है जिसने तुम्हारे लिए रात बनाई ताकि तुम उसमें चैन पाओ और दिन को प्रकाशमान बनाया (ताकि तुम उसमें दौड़-धूप कर सको); निस्संदेह इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है, जो सुनते है 10|68|वे कहते है, "अल्लाह औलाद रखता है।" महान और उच्च है वह! वह निरपेक्ष है, आकाशों और धरती में जो कुछ है उसी का है। तुम्हारे पास इसका कोई प्रमाण नहीं। क्या तुम अल्लाह से जोड़कर वह बाते कहते हो, जिसका तुम्हे ज्ञान नही? 10|69|कह दो, "जो लोग अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़ते है, वे सफल नहीं होते।" 10|70|यह तो सांसारिक सुख है। फिर हमारी ओर ही उन्हें लौटना है, फिर जो इनकार वे करते रहे होगे उसके बदले में हम उन्हें कठोर यातना का मज़ा चखाएँगे 10|71|उन्हें नूह का वृत्तान्त सुनाओ। जब उसने अपनी क़ौम से कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदि मेरा खड़ा होना और अल्लाह की आयतों के द्वारा नसीहत करना तुम्हें भारी हो गया है तो मेरा भरोसा अल्लाह पर है। तु अपना मामला ठहरा लो और अपने ठहराए हुए साझीदारों को भी साथ ले लो, फिर तुम्हारा मामला तुम पर कुछ संदिग्ध न रहे; फिर मेरे साथ जो कुछ करना है, कर डालों और मुझे मुहलत न दो।" 10|72|फिर यदि तुम मुँह फेरोगे तो मैंने तुमसे कोई बदला नहीं माँगा। मेरा बदला (पारिश्रामिक) बस अल्लाह के ज़िम्मे है, और आदेश मुझे मुस्लिम (आज्ञाकारी) होने का हुआ है 10|73|किन्तु उन्होंने झूठला दिया, तो हमने उसे और उन लोगों को, जो उनके साथ नौका में थे, बचा लिया और उन्हें उतराधिकारी बनाया, और उन लोगो को डूबो दिया, जिन्होंने हमारी आयतों को झुठलाया था। अतः देख लो, जिन्हें सचेत किया गया था उनका क्या परिणाम हुआ! 10|74|फिर उसके बाद कितने ही रसूल हमने उनकी क़ौम की ओर भेजे और वे उनके पास स्पष्ट निशानियां लेकर आए, किन्तु वे ऐसे न थे कि जिसको पहले झुठला चुके हॊं, उसे मानते। इसी तरह अतिक्रमणकारियों कॆ दिलों पर हम मुहर लगा देते हैं 10|75|फिर उनके बाद हमने मूसा और हारून को अपनी आयतों के साथ फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा। किन्तु उन्होंने घमंड किया, वे थे ही अपराधी लोग 10|76|अतः जब हमारी ओर से सत्य उनके सामने आया तो वे कहने लगे, "यह तो खुला जादू है।" 10|77|मूसा ने कहा, "क्या तुम सत्य के विषय में ऐसा कहते हो, जबकि यह तुम्हारे सामने आ गया है? क्या यह कोई जादू है? जादूगर तो सफल नहीं हुआ करते।" 10|78|उन्होंने कहा, "क्या तू हमारे पास इसलिए आया है कि हमें उस चीज़ से फेर दे जिसपर हमने अपना बाप-दादा का पाया है और धरती में तुम दोनों की बड़ाई स्थापित हो जाए? हम तो तुम्हें माननेवाले नहीं।" 10|79|फ़िरऔन ने कहा, "हर कुशल जादूगर को मेरे पास लाओ।" 10|80|फिर जब जादूगर आ गए तो मूसा ने उनसे कहा, "जो कुछ तुम डालते हो, डालो।" 10|81|फिर जब उन्होंने डाला तो मूसा ने कहा, "तुम जो कुछ लाए हो, जादू है। अल्लाह अभी उसे मटियामेट किए देता है। निस्संदेह अल्लाह बिगाड़ पैदा करनेवालों के कर्म को फलीभूत नहीं होने देता 10|82|"अल्लाह अपने शब्दों से सत्य को सत्य कर दिखाता है, चाहे अपराधी नापसन्द ही करें।" 10|83|फिर मूसा की बात उसकी क़ौम की संतति में से बस कुछ ही लोगों ने मानी; फ़िरऔन और उनके सरदारों के भय से कि कहीं उन्हें किसी फ़ितने में न डाल दें। फ़िरऔन था भी धरती में बहुत सिर उठाए हुए, औऱ निश्चय ही वह हद से आगे बढ़ गया था 10|84|मूसा ने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदि तुम अल्लाह पर ईमान रखते हो तो उसपर भरोसा करो, यदि तुम आज्ञाकारी हो।" 10|85|इसपर वे बोले, "हमने अल्लाह पर भरोसा किया। ऐ हमारे रब! तू हमें अत्याचारी लोगों के हाथों आज़माइश में न डाल 10|86|"और अपनी दयालुता से हमें इनकार करनेवालों से छुटकारा दिया।" 10|87|हमने मूसा और उसके भाई की ओर प्रकाशना की कि "तुम दोनों अपने लोगों के लिए मिस्र में कुछ घर निश्चित कर लो औऱ अपने घरों को क़िबला बना लो। और नमाज़ क़ायम करो और ईमानवालों को शुभसूचना दे दो।" 10|88|मूसा ने कहा, "हमारे रब! तूने फ़िरऔन और उसके सरदारों को सांसारिक जीवन में शोभा-सामग्री और धन दिए है, हमारे रब, इसलिए कि वे तेरे मार्ग से भटकाएँ! हमारे रब, उनके धन नष्ट कर दे और उनके हृदय कठोर कर दे कि वे ईमान न लाएँ, ताकि वे दुखद यातना देख लें।" 10|89|कहा, "तुम दोनों की प्रार्थना स्वीकृत हो चुकी। अतः तुम दोनों जमें रहो और उन लोगों के मार्ग पर कदापि न चलना, जो जानते नहीं।" 10|90|और हमने इसराईलियों को समुद्र पार करा दिया। फिर फ़िरऔन और उसकी सेनाओं ने सरकशी और ज़्यादती के साथ उनका पीछा किया, यहाँ तक कि जब वह डूबने लगा तो पुकार उठा, "मैं ईमान ले आया कि उसके सिव कोई पूज्य-प्रभु नही, जिस पर इसराईल की सन्तान ईमान लाई। अब मैं आज्ञाकारी हूँ।" 10|91|"क्या अब? हालाँकि इससे पहले तुने अवज्ञा की और बिगाड़ पैदा करनेवालों में से था 10|92|"अतः आज हम तेरे शरीर को बचा लेगें, ताकि तू अपने बादवालों के लिए एक निशानी हो जाए। निश्चय ही, बहुत-से लोग हमारी निशानियों के प्रति असावधान ही रहते है।" 10|93|और हमने इसराईल की सन्तान को अच्छा, सम्मानित ठिकाना दिया औ उन्हें अच्छी आजीविका प्रदान की। फिर उन्होंने उस समय विभेद किया, जबकि ज्ञान उनके पास आ चुका था। निश्चय ही तुम्हारा रब क़ियामत के दिन उनके बीच उस चीज़ का फ़ैसला कर देगा, जिसमें वे विभेद करते रहे है 10|94|अतः यदि तुम्हें उस चीज़ के बारे में कोई संदेह हो, जो हमने तुम्हारी ओर अवतरित की है, तो उनसे पूछ लो जो तुमसे पहले से किताब पढ़ रहे है। तुम्हारे पास तो तुम्हारे रब की ओर से सत्य आ चुका। अतः तुम कदापि सन्देह करनेवाले न हो 10|95|और न उन लोगों में सम्मिलित होना जिन्होंन अल्लाह की आयतों को झुठलाया, अन्यथा तुम घाटे में पड़कर रहोगे 10|96|निस्संदेह जिन लोगों के विषय में तुम्हारे रब की बात सच्ची होकर रही वे ईमान नहीं लाएँगे, 10|97|जब तक के वे दुखद यातना न देख लें, चाहे प्रत्येक निशानी उनके पास आ जाए 10|98|फिर ऐसी कोई बस्ती क्यों न हुई कि वह ईमान लाती और उसका ईमान उसके लिए लाभप्रद सिद्ध होता? हाँ, यूनुस की क़ौम के लोग इसके लिए अपवाद है। जब वे ईमान लाए तो हमने सांसारिक जीवन में अपमानजनक यातना को उनपर से टाल दिया और उन्हें एक अवधि तक सुखोपभोग का अवसर प्रदान किया 10|99|यदि तुम्हारा रब चाहता तो धरती में जितने लोग है वे सब के सब ईमान ले आते, फिर क्या तुम लोगों को विवश करोगे कि वे मोमिन हो जाएँ? 10|100|हालाँकि किसी व्यक्ति के लिए यह सम्भव नहीं कि अल्लाह की अनुज्ञा के बिना कोई क्यक्ति ईमान लाए। वह तो उन लोगों पर गन्दगी डाल देता है, जो बुद्धि से काम नहीं लेते 10|101|कहो, "देख लो, आकाशों और धरती में क्या कुछ है!" किन्तु निशानियाँ और चेतावनियाँ उन लोगों के कुछ काम नहीं आती, जो ईमान न लाना चाहें 10|102|अतः वे तो उस तरह के दिन की प्रतीक्षा कर रहे हैं, जिस तरह के दिन वे लोग देख चुके है जो उनसे पहले गुज़रे है। कह दो, "अच्छा, प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा करता हूँ।" 10|103|फिर हम अपने रसूलों और उन लोगों को बचा लेते रहे हैं, जो ईमान ले आए। ऐसी ही हमारी रीति है, हमपर यह हक़ है कि ईमानवालों को बचा लें 10|104|कह दो, "ऐ लोगों! यदि तुम मेरे धर्म के विषय में किसी सन्देह में हो तो मैं तो उनकी बन्दगी नहीं करता जिनकी तुम अल्लाह से हटकर बन्दगी करते हो, बल्कि मैं उस अल्लाह की बन्दगी करता हूँ जो तुम्हें मृत्यु देता है। और मुझे आदेश है कि मैं ईमानवालों में से होऊँ 10|105|और यह कि हर ओर से एकाग्र होकर अपना रुख़ इस धर्म की ओर कर लो और मुशरिक़ों में कदापि सम्मिलित न हो, 10|106|और अल्लाह से हटकर उसे न पुकारो जो न तुम्हें लाभ पहुँचाए और न तुम्हें हानि पहुँचा सके और न तुम्हारा बुरा कर सके, क्योंकि यदि तुमने ऐसा किया तो उस समय तुम अत्याचारी होगे 10|107|यदि अल्लाह तुम्हें किसी तकलीफ़ में डाल दे तो उसके सिवा कोई उसे दूर करनेवाला नहीं। और यदि वह तुम्हारे लिए किसी भलाई का इरादा कर ले तो कोई उसके अनुग्रह को फेरनेवाला भी नहीं। वह इसे अपने बन्दों में से जिस तक चाहता है, पहुँचाता है और वह अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।" 10|108|कह दो, "ऐ लोगों! तुम्हारे पास तुम्हारे रब की ओर से सत्य आ चुका है। अब जो कोई मार्ग पर आएगा, तो वह अपने ही लिए मार्ग पर आएगा, और जो कोई पथभ्रष्ट होगा तो वह अपने ही बुरे के लिए पथभ्रष्टि होगा। मैं तुम्हारे ऊपर कोई हवालेदार तो हूँ नहीं।" 10|109|जो कुछ तुमपर प्रकाशना की जा रही है, उसका अनुसरण करो और धैर्य से काम लो, यहाँ तक कि अल्लाह फ़ैसला कर दे, और वह सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है 11|1|अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह एक किताब है जिसकी आयतें पक्की है, फिर सविस्तार बयान हुई हैं; उसकी ओर से जो अत्यन्त तत्वदर्शी, पूरी ख़बर रखनेवाला है 11|2|कि "तुम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मैं तो उसकी ओर से तुम्हें सचेत करनेवाला और शुभ सूचना देनेवाला हूँ।" 11|3|और यह कि "अपने रब से क्षमा माँगो, फिर उसकी ओर पलट आओ। वह तुम्हें एक निश्चित अवधि तक सुखोपभोग की उत्तम सामग्री प्रदान करेगा। और बढ़-बढ़कर कर्म करनेवालों पर वह तदधिक अपना अनुग्रह करेगा, किन्तु यदि तुम मुँह फेरते हो तो निश्चय ही मुझे तुम्हारे विषय में एक बड़े दिन की यातना का भय है 11|4|तुम्हें अल्लाह ही की ओर पलटना है, और उसे हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्त है।" 11|5|देखो! ये अपने सीनों को मोड़ते है, चाहिए कि उससे छिपें। देखों! जब ये अपने कपड़ों से स्वयं को ढाँकते है, वह जानता है जो कुछ वे छिपाते है और जो कुछ वे प्रकट करते है। निस्संदेह वह सीनों तक की बात को जानता है 11|6|धरती में चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है उसकी रोज़ी अल्लाह के ज़िम्मे है। वह जानता है जहाँ उसे ठहरना है और जहाँ उसे सौपा जाना है। सब कुछ एक स्पष्ट किताब में मौजूद है 11|7|वही है जिसने आकाशों और धरती को छः दिनों में पैदा किया - उसका सिंहासन पानी पर था - ताकि वह तुम्हारी परीक्षा ले कि तुममें कर्म की स्पष्ट से कौन सबसे अच्छा है। और यदि तुम कहो कि "मरने के पश्चात तुम अवश्य उठोगे।" तो जिन्हें इनकार है, वे कहने लगेंगे, "यह तो खुला जादू है।" 11|8|यदि हम एक निश्चित अवधि तक के लिए उनसे यातना को टाले रखें, तो वे कहने लगेंगे, "आख़िर किस चीज़ ने उसे रोक रखा है?" सुन लो! जिन दिन वह उनपर आ जाएगी तो फिर वह उनपर से टाली नहीं जाएगी। और वही चीज़ उन्हें घेर लेगी जिसका वे उपहास करते है 11|9|यदि हम मनुष्य को अपनी दयालुता का रसास्वादन कराकर फिर उसको छीन लॆं, तॊ (वह दयालुता कॆ लिए याचना नहीं करता) निश्चय ही वह निराशावादी, कृतघ्न है 11|10|और यदि हम इसके पश्चात कि उसे तकलीफ़ पहुँची हो, उसे नेमत का रसास्वादन कराते है तो वह कहने लगता है, "मेरे तो सारे दुख दूर हो गए।" वह तो फूला नहीं समाता, डींगे मारने लगता है 11|11|उनकी बात दूसरी है जिन्होंने धैर्य से काम लिया और सत्कर्म किए। वही है जिनके लिए क्षमा और बड़ा प्रतिदान है 11|12|तो शायद तुम उसमें से कुछ छोड़ बैठोगे, जो तुम्हारी ओर प्रकाशना रूप में भेजी जा रही है। और तुम इस बात पर तंगदिल हो रहे हो कि वे कहते है, "उसपर कोई ख़ज़ाना क्यों नहीं उतरा या उसके साथ कोई फ़रिश्ता क्यों नहीं आया?" तुम तो केवल सचेत करनेवाले हो। हर चीज़ अल्लाह ही के हवाले है 11|13|(उन्हें कोई शंका है) या वे कहते है कि "उसने इसे स्वयं घड़ लिया है?" कह दो, "अच्छा, यदि तुम सच्चे हो तो इस जैसी घड़ी हुई दस सूरतें ले आओ और अल्लाह से हटकर जिस किसी को बुला सकते हो बुला लो।" 11|14|फिर यदि वे तुम्हारी बातें न मानें तो जान लो, यह अल्लाह के ज्ञान ही के साथ अवतरित हुआ है। और यह कि उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। तो अब क्या तुम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते हो? 11|15|जो व्यक्ति सांसारिक जीवन और उसकी शोभा का इच्छुक हो तो ऐसे लोगों को उनके कर्मों का पूरा-पूरा बदला हम यहीं दे देते है और इसमें उनका कोई हक़ नहीं मारा जाता 11|16|यही वे लोग है जिनके लिए आख़िरत में आग के सिवा और कुछ भी नहीं। उन्होंने जो कुछ बनाया, वह सब वहाँ उनकी जान को लागू हुआ और उनका सारा किया-धरा मिथ्या होकर रहा 11|17|फिर क्या वह व्यक्ति जो अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर है और स्वयं उसके रूप में भी एक गवाह उसके साथ-साथ रहता है - और इससे पहले मूसा की किताब भी एक मार्गदर्शक और दयालुता के रूप में उपस्थित रही है- (और वह जो प्रकाश एवं मार्गदर्शन से वंचित है, दोनों बराबर हो सकते है) ऐसे ही लोग उसपर ईमान लाते है, किन्तु इन गिरोहों में से जो उसका इनकार करेगा तो उसके लिए जिस जगह का वादा है, वह तो आग है। अतः तुम्हें इसके विषय में कोई सन्देह न हो। यह तुम्हारे रब की ओर से सत्य है, किन्तु अधिकतर लोग मानते नहीं 11|18|उस व्यक्ति से बढ़कर अत्याचारी कौन होगा जो अल्लाह पर थोपकर झूठ घड़े। ऐसे लोग अपने रब के सामने पेश होंगे और गवाही देनेवाले कहेंगे, "यही लोग है जिन्होंने अपने रब पर झूठ घड़ा।" सुन लो! ऐसे अत्याचारियों पर अल्लाह की लानत है 11|19|जो अल्लाह के मार्ग से रोकते है और उसमें टेढ़ पैदा करना चाहते है; और वही आख़िरत का इनकार करते है 11|20|वे धरती में क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते और न अल्लाह से हटकर उनका कोई समर्थक ही है। उन्हें दोहरी यातना दी जाएगी। वे न सुन ही सकते थे और न देख ही सकते थे 11|21|ये वही लोग है जिन्होंने अपने आपको घाटे में डाला और जो कुछ वे घड़ा करते थे, वह सब उनमें गुम होकर रह गया 11|22|निश्चय ही वही आख़िरत में सबसे बढ़कर घाटे में रहेंगे 11|23|रहे वे लोग जो ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए और अपने रब की ओर झूक पड़े वही जन्नतवाले है, उसमें वे सदैव रहेंगे 11|24|दोनों पक्षों की उपमा ऐसी है जैसे एक अन्धा और बहरा हो और एक देखने और सुननेवाला। क्या इन दोनों की दशा समान हो सकती है? तो क्या तुम होश से काम नहीं लेते? 11|25|हमने नूह को उसकी क़ौम की ओर भेजा। (उसने कहा,) "मैं तुम्हें साफ़-साफ़ चेतावनी देता हूँ 11|26|यह कि तुम अल्लाह के सिवा किसी की बन्दगी न करो। मुझे तुम्हारे विषय में एक दुखद दिन की यातना का भय है।" 11|27|इसपर उसकी क़ौम के सरदार, जिन्होंने इनकार किया था, कहने लगे, "हमारी दृष्टि में तो तुम हमारे ही जैसे आदमी हो और हम देखते है कि बस कुछ ऐसे लोग ही तुम्हारे अनुयायी है जो पहली स्पष्ट में हमारे यहाँ के नीच है। हम अपने मुक़ाबले में तुममें कोई बड़ाई नहीं देखते, बल्कि हम तो तुम्हें झूठा समझते है।" 11|28|उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपने पास से दयालुता भी प्रदान की है, फिर वह तुम्हें न सूझे तो क्या हम हठात उसे तुमपर चिपका दें, जबकि वह तुम्हें अप्रिय है? 11|29|और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं इस काम पर कोई धन नहीं माँगता। मेरा पारिश्रमिक तो बस अल्लाह के ज़िम्मे है। मैं ईमान लानेवालो को दूर करनेवाला भी नहीं। उन्हें तो अपने रब से मिलना ही है, किन्तु मैं तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम अज्ञानी लोग हो 11|30|और ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यदि मैं उन्हें धुत्कार दूँ तो अल्लाह के मुक़ाबले में कौन मेरी सहायता कर सकता है? फिर क्या तुम होश से काम नहीं लेते? 11|31|और मैं तुमसे यह नहीं कहता कि मेरे पास अल्लाह के ख़जाने है और न मुझे परोक्ष का ज्ञान है और न मैं यह कहता हूँ कि मैं कोई फ़रिश्ता हूँ और न उन लोगों के विषय में, जो तुम्हारी दृष्टि में तुच्छ है, मैं यह कहता हूँ कि अल्लाह उन्हें कोई भलाई न देगा। जो कुछ उनके जी में है, अल्लाह उसे भली-भाँति जानता है। (यदि मैं ऐसा कहूँ) तब तो मैं अवश्य ही ज़ालिमों में से हूँगा।" 11|32|उन्होंने कहा, "ऐ नूह! तुम हमसे झगड़ चुके और बहुत झगड़ चुके। यदि तुम सच्चे हो तो जिसकी तुम हमें धमकी देते हो, अब उसे हम पर ले ही आओ।" 11|33|उसने कहा, "वह तो अल्लाह ही यदि चाहेगा तो तुमपर लाएगा और तुम क़ाबू से बाहर नहीं जा सकते 11|34|अब जबकि अल्लाह ही ने तुम्हें विनष्ट करने का निश्चय कर लिया हो, तो यदि मैं तुम्हारा भला भी चाहूँ, तो मेरा भला चाहना तुम्हें कुछ भी लाभ नहीं पहुँचा सकता। वही तुम्हारा रब है और उसी की ओर तुम्हें पलटना भी है।" 11|35|(क्या उन्हें कोई खटक है) या वे कहते है, "उसने स्वयं इसे घड़ लिया है?" कह दो, "यदि मैंने इसे घड़ लिया है तो मेरे अपराध का दायित्व मुझपर ही है। और जो अपराध तुम कर रहे हो मैं उसके दायित्व से मुक्त हूँ।" 11|36|नूह की ओर प्रकाशना की गई कि "जो लोग ईमान ला चुके है, उनके सिवा अब तुम्हारी क़ौम में कोई ईमान लानेवाला नहीं। अतः जो कुछ वे कर रहे है उसपर तुम दुखी न हो 11|37|तुम हमारे समक्ष और हमारी प्रकाशना के अनुसार नाव बनाओ और अत्याचारियों के विषय में मुझसे बात न करो। निश्चय ही वे डूबकर रहेंगे।" 11|38|जब नाव बनाने लगता है। उसकी क़ौम के सरदार जब भी उसके पास से गुज़रते तो उसका उपहास करते। उसने कहा, "यदि तुम हमारा उपहास करते हो तो हम भी तुम्हारा उपहास करेंगे, जैसे तुम हमारा उपहास करते हो 11|39|अब शीघ्र ही तुम जान लोगे कि कौन है जिसपर ऐसी यातना आती है, जो उसे अपमानित कर देगी और जिसपर ऐसी स्थाई यातना टूट पड़ती है 11|40|यहाँ तक कि जब हमारा आदेश आ गया और तंदूर उबल पड़ा तो हमने कहा, "हर जाति में से दो-दो के जोड़े चढ़ा लो और अपने घरवालों को भी - सिवाय ऐसे व्यक्ति के जिसके बारे में बात तय पा चुकी है - और जो ईमान लाया हो उसे भी।" किन्तु उसके साथ जो ईमान लाए थे वे थोड़े ही थे 11|41|उसने कहा, "उसमें सवार हो जाओ। अल्लाह के नाम से इसका चलना भी है और इसका ठहरना भी। निस्संदेह मेरा रब अत्यन्त क्षमाशील, दयावान है।" 11|42|और वह (नाव) उन्हें लिए हुए पहाड़ों जैसी ऊँची लहर के बीच चल रही थी। नूह ने अपने बेटे को, जो उससे अलग था, पुकारा, "ऐ मेरे बेटे! हमारे साथ सवार हो जा। तू इनकार करनेवालों के साथ न रह।" 11|43|उसने कहा, "मैं किसी पहाड़ से जा लगूँगा, जो मुझे पानी से बचा लेगा।" कहा, "आज अल्लाह के आदेश (फ़ैसले) से कोई बचानेवाला नहीं है सिवाय उसके जिसपर वह दया करे।" इतने में दोनों के बीच लहर आ पड़ी और डूबनेवालों के साथ वह भी डूब गया 11|44|और कहा गया, "ऐ धरती! अपना पानी निगल जा और ऐ आकाश! तू थम जा।" अतएव पानी तह में बैठ गया और फ़ैसला चुका दिया गया और वह (नाव) जूदी पर्वत पर टिक गई औऱ कह दिया गया, "फिटकार हो अत्याचारी लोगों पर!" 11|45|नूह ने अपने रब को पुकारा और कहा, "मेरे रब! मेरा बेटा मेरे घरवालों में से है और निस्संदेह तेरा वादा सच्चा है और तू सबसे बड़ा हाकिम भी है।" 11|46|कहा, "ऐ नूह! वह तेरे घरवालों में से नहीं, वह तो सर्वथा एक बिगड़ा काम है। अतः जिसका तुझे ज्ञान नहीं, उसके विषय में मुझसे न पूछ, तेरे नादान हो जाने की आशंका से मैं तुझे नसीहत करता हूँ।" 11|47|उसने कहा, "मेरे रब! मैं इससे तेरी पनाह माँगता हूँ कि तुझसे उस चीज़ का सवाल करूँ जिसका मुझे कोई ज्ञान न हो। अब यदि तूने मुझे क्षमा न किया और मुझपर दया न की, तो मैं घाटे में पड़कर रहूँगा।" 11|48|कहा गया, "ऐ नूह! हमारी ओर से सलामती और उन बरकतों के साथ उतर, जो तुझपर और उन गिरोहों पर होगी, जो तेरे साथवालों में से होंगे। कुछ गिरोह ऐसे भी होंगे जिन्हें हम थोड़े दिनों का सुखोपभोग कराएँगे। फिर उन्हें हमारी ओर से दुखद यातना आ पहुँचेगी।" 11|49|ये परोक्ष की ख़बरें हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे है। इससे पहले तो न तुम्हें इनकी ख़बर थी और न तुम्हारी क़ौम को। अतः धैर्य से काम लो। निस्संदेह अन्तिम परिणाम डर रखनेवालो के पक्ष में है 11|50|और 'आद' की ओर उनके भाई 'हूद' को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य प्रभु नहीं। तुमने तो बस झूठ घड़ रखा हैं 11|51|ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मैं इसपर तुमसे कोई पारिश्रमिक नहीं माँगता। मेरा पारिश्रमिक तो बस उसके ज़िम्मे है जिसने मुझे पैदा किया। फिर क्या तुम बुद्धि से काम नहीं लेते? 11|52|ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अपने रब से क्षमा याचना करो, फिर उसकी ओर पलट आओ। वह तुमपर आकाश को ख़ूब बरसता छोड़ेगा और तुममें शक्ति पर शक्ति की अभिवृद्धि करेगा। तुम अपराधी बनकर मुँह न फेरो।" 11|53|उन्होंने कहा, "ऐ हूद! तू हमारे पास कोई स्पष्ट प्रमाण लेकर नहीं आया है। तेरे कहने से हम अपने इष्ट -पूज्यों को नहीं छोड़ सकते और न हम तुझपर ईमान लानेवाले है 11|54|हम तो केवल यही कहते है कि हमारे इष्ट-पूज्यों में से किसी की तुझपर मार पड़ गई है।" उसने कहा, "मैं तो अल्लाह को गवाह बनाता हूँ और तुम भी गवाह रहो कि उनसे मेरा कोई सम्बन्ध नहीं, 11|55|जिनको तुम साझी ठहराकर उसके सिवा पूज्य मानते हो। अतः तुम सब मिलकर मेरे साथ दाँव-घात लगाकर देखो और मुझे मुहलत न दो 11|56|मेरा भरोसा तो अल्लाह, अपने रब और तुम्हारे रब, पर है। चलने-फिरनेवाला जो प्राणी भी है, उसकी चोटी तो उसी के हाथ में है। निस्संदेह मेरा रब सीधे मार्ग पर है 11|57|किन्तु यदि तुम मुँह मोड़ते हो तो जो कुछ देकर मुझे तुम्हारी ओर भेजा गया था, वह तो मैं तुम्हें पहुँचा ही चुका। मेरा रब तुम्हारे स्थान पर दूसरी किसी क़ौम को लाएगा और तुम उसका कुछ न बिगाड़ सकोगे। निस्संदेह मेरा रब हर चीज़ की देख-भाल कर रहा है।" 11|58|और जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने हूद और उसके साथ के ईमान लानेवालों को अपनी दयालुता से बचा लिया। और एक कठोर यातना से हमने उन्हें छुटकारा दिया 11|59|ये आद है, जिन्होंने अपने रब की आयतों का इनकार किया; उसके रसूलों की अवज्ञा की और हर सरकश विरोधी के पीछे चलते रहे 11|60|इस संसार में भी लानत ने उनका पीछा किया और क़ियामत के दिन भी, "सुन लो! निस्संदेह आद ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया। सुनो! विनष्ट हो आद, हूद की क़ौम।" 11|61|समूद को और उसके भाई सालेह को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़़ौम के लोगों! अल्लाह की बन्दगी करो। उसके सिवा तुम्हारा कोई अन्य पूज्य-प्रभु नहीं। उसी ने तुम्हें धरती से पैदा किया और उसमें तुम्हें बसायाय़ अतः उससे क्षमा माँगो; फिर उसकी ओर पलट आओ। निस्संदेह मेरा रब निकट है, प्रार्थनाओं को स्वीकार करनेवाला भी।" 11|62|उन्होंने कहा, "ऐ सालेह! इससे पहले तू हमारे बीच ऐसा व्यक्ति था जिससे बड़ी आशाएँ थीं। क्या तू हमें उनको पूजने से रोकता है जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते रहे है? जिनकी ओर तू हमें बुला रहा है उसके विषय में तो हमें संदेह है जो हमें दुविधा में डाले हुए है।" 11|63|उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगों! क्या तुमने सोचा? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी ओर से दयालुता प्रदान की है, तो यदि मैं उसकी अवज्ञा करूँ तो अल्लाह के मुक़ाबले में कौन मेरी सहायता करेगा? तुम तो और अधिक घाटे में डाल देने के अतिरिक्त मेरे हक़ में और कोई अभिवृद्धि नहीं करोगे 11|64|ऐ मेरी क़ौम के लोगो! यह अल्लाह की ऊँटनी तुम्हारे लिए एक निशानी है। इसे छोड़ दो कि अल्लाह की धरती में खाए और इसे तकलीफ़ देने के लिए हाथ न लगाना अन्यथा समीपस्थ यातना तुम्हें आ लेगी।" 11|65|किन्तु उन्होंने उसकी कूंचे काट डाली। इसपर उसने कहा, "अपने घरों में तीन दिन और मज़े ले लो। यह ऐसा वादा है, जो झूठा सिद्ध न होगा।" 11|66|फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा, तो हमने अपनी दयालुता से सालेह को और उसके साथ के ईमान लानेवालों को बचा लिया, और उस दिन के अपमान से उन्हें सुरक्षित रखा। वास्तव में, तुम्हारा रब बड़ा शक्तिवान, प्रभुत्वशाली है 11|67|और अत्याचार करनेवालों को एक भयंकर चिंघार ने आ लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए, 11|68|मानो वे वहाँ कभी बसे ही न थे। "सुनो! समूद ने अपने रब के साथ कुफ़्र किया। सुन लो! फिटकार हो समूद पर!" 11|69|और हमारे भेजे हुए (फ़रिश्ते) इबराहीम के पास शुभ सूचना लेकर पहुँचे। उन्होंने कहा, "सलाम हो!" उसने भी कहा, "सलाम हो।" फिर उसने कुछ विलम्भ न किया, एक भुना हुआ बछड़ा ले आया 11|70|किन्तु जब देखा कि उनके हाथ उसकी ओर नहीं बढ़ रहे है तो उसने उन्हें अजनबी समझा और दिल में उनसे डरा। वे बोले, "डरो नहीं, हम तो लूत की क़ौम की ओर से भेजे गए है।" 11|71|उसकी स्त्री भी खड़ी थी। वह इसपर हँस पड़ी। फिर हमने उसको इसहाक़ और इसहाक़ के बाद याक़ूब की शुभ सूचना दी 11|72|वह बोली, "हाय मेरा हतभाग्य! क्या मैं बच्चे को जन्म दूँगी, जबकि मैं वृद्धा और ये मेरे पति है बूढें? यह तो बड़ी ही अद्भुपत बात है!" 11|73|वे बोले, "क्या अल्लाह के आदेश पर तुम आश्चर्य करती हो? घरवालो! तुम लोगों पर तो अल्लाह की दयालुता और उसकी बरकतें है। वह निश्चय ही प्रशंसनीय, गौरववाला है।" 11|74|फिर जब इबराहीम की घबराहट दूर हो गई और उसे शुभ सूचना भी मिली तो वह लूत की क़ौम के विषय में हम से झगड़ने लगा 11|75|निस्संदेह इबराहीम बड़ा ही सहनशील, कोमल हृदय, हमारी ओर रुजू (प्रवृत्त) होनेवाला था 11|76|"ऐ ईबराहीम! इसे छोड़ दो। तुम्हारे रब का आदेश आ चुका है और निश्चय ही उनपर न टलनेवाली यातना आनेवाली है।" 11|77|और जब हमारे दूत लूत के पास पहुँचे तो वह उनके कारण अप्रसन्न हुआ और उनके मामले में दिल तंग पाया। कहने लगा, "यह तो बड़ा ही कठिन दिन है।" 11|78|उसकी क़ौम के लोग दौड़ते हुए उसके पास आ पहुँचे। वे पहले से ही दुष्कर्म किया करते थे। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधिवत विवाह के लिए) मौजूड है। ये तुम्हारे लिए अधिक पवित्र है। अतः अल्लाह का डर रखो और मेरे अतिथियों के विषय में मुझे अपमानित न करो। क्या तुममें एक भी अच्छी समझ का आदमी नहीं?" 11|79|उन्होंने कहा, "तुझे तो मालूम है कि तेरी बेटियों से हमें कोई मतलब नहीं। और हम जो चाहते है, उसे तू भली-भाँति जानता है।" 11|80|उसने कहा, "क्या ही अच्छा होता मुझमें तुमसे मुक़ाबले की शक्ति होती या मैं किसी सुदृढ़ आश्रय की शरण ही ले सकता।" 11|81|उन्होंने कहा, "ऐ लूत! हम तुम्हारे रब के भेजे हुए है। वे तुम तक कदापि नहीं पहुँच सकते। अतः तुम रात के किसी हिस्सेमें अपने घरवालों को लेकर निकल जाओ और तुममें से कोई पीछे पलटकर न देखे। हाँ, तुम्हारी स्त्री का मामला और है। उनपर भी वही कुछ बीतनेवाला है, जो उनपर बीतेगा। निर्धारित समय उनके लिए प्रातःकाल का है। तो क्या प्रातःकाल निकट नहीं?" 11|82|फिर जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने उसको तलपट कर दिया और उसपर ककरीले पत्थर ताबड़-तोड़ बरसाए, 11|83|जो तुम्हारे रब के यहाँ चिन्हित थे। और वे अत्याचारियों से कुछ दूर भी नहीं 11|84|मदयन की ओर उनके भाई शुऐब को भेजा। उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! अल्लाह की बन्दही करो, उनके सिवा तुम्हारा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। और नाप और तौल में कमी न करो। मैं तो तुम्हें अच्छी दशा में देख रहा हूँ, किन्तु मुझे तुम्हारे विषय में एक घेर लेनेवाले दिन की यातना का भय है 11|85|ऐ मेरी क़ौम के लोगो! इनसाफ़ के साथ नाप और तौल को पूरा रखो। और लोगों को उनकी चीज़ों में घाटा न दो और धरती में बिगाड़ पैदा करनेवाले बनकर अपने मुँह को कुलषित न करो 11|86|यदि तुम मोमिन हो तो जो अल्लाह के पास शेष रहता है वही तुम्हारे लिए उत्तम है। मैं तुम्हारे ऊपर कोई नियुक्त रखवाला नहीं हूँ।" 11|87|वे बोले, "ऐ शुऐब! क्या तेरी नमाज़ तुझे यही सिखाती है कि उन्हें हम छोड़ दें जिन्हें हमारे बाप-दादा पूजते आए है या यह कि हम अपने माल का उपभोग अपनी इच्छानुसार न करें? बस एक तू ही तो बड़ा सहनशील, समझदार रह गया है!" 11|88|उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम्हारा क्या विचार है? यदि मैं अपने रब के एक स्पष्ट प्रमाण पर हूँ और उसने मुझे अपनी ओर से अच्छी आजीविका भी प्रदान की (तो झुठलाना मेरे लिए कितना हानिकारक होगा!) और मैं नहीं चाहता कि जिन बातों से मैं तुम्हें रोकता हूँ स्वयं स्वयं तुम्हारे विपरीत उनको करने लगूँ। मैं तो अपने बस भर केवल सुधार चाहता हूँ। मेरा काम बनना तो अल्लाह ही की सहायता से सम्भव है। उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की ओर मैं रुजू करता हूँ 11|89|ऐ मेरी क़ौम के लोगो! मेरे प्रति तुम्हारा विरोध कहीं तुम्हें उस अपराध पर न उभारे कि तुमपर वही बीते जो नूह की क़ौम या हूद की क़ौम या सालेह की क़ौम पर बीत चुका है, और लूत की क़ौम तो तुमसे कुछ दूर भी नहीं। 11|90|अपने रब से क्षमा माँगो और फिर उसकी ओर पलट आओ। मेरा रब तो बड़ा दयावन्त, बहुत प्रेम करनेवाला हैं।" 11|91|उन्होंने कहा, "ऐ शुऐब! तेरी बहुत-सी बातों को समझने में तो हम असमर्थ है। और हम तो तुझे देखते है कि तू हमारे मध्य अत्यन्त निर्बल है। यदि तेरे भाई-बन्धु न होते तो हम पत्थर मार-मारकर कभी का तुझे समाप्त कर चुके होते। तू इतने बल-बूतेवाला तो नहीं कि हमपर भारी हो।" 11|92|उसने कहा, "ऐ मेरी क़ौम के लोगो! क्या मेरे भाई-बन्धु तुमपर अल्लाह से भी ज़्यादा भारी है कि तुमने उसे अपने पीछे डाल दिया? तुम जो कुछ भी करते हो निश्चय ही मेरे रब ने उसे अपने घेरे में ले रखा है 11|93|ऐ मेरी क़ौम के लोगो! तुम अपनी जगह कर्म करते रहो, मैं भी कर रहा हूँ। शीघ्र ही तुमको ज्ञात हो जाएगा कि किसपर वह यातना आती है, जो उसे अपमानित करके रहेगी, और कौन है जो झूठा है! प्रतीक्षा करो, मैं भी तुम्हारे साथ प्रतीक्षा कर रहा हूँ।" 11|94|अन्ततः जब हमारा आदेश आ पहुँचा तो हमने अपनी दयालुता से शुऐब और उसके साथ के ईमान लानेवालों को बचा लिया। और अत्याचार करनेवालों को एक प्रचंड चिंघार ने आ लिया और वे अपने घरों में औंधे पड़े रह गए, 11|95|मानो वे वहाँ कभी बसे ही न थे। "सुन लो! फिटकार है मदयनवालों पर, जैसे समूद पर फिटकार हुई!" 11|96|और हमने मूसा को अपनी निशानियाँ और स्पष्ट प्रमाण के साथ 11|97|फ़िरऔन और उसके सरदारों के पास भेजा, किन्तु वे फ़िरऔन ही के कहने पर चले, हालाँकि फ़िरऔन की बात कोई ठीक बात न थी। 11|98|क़ियामत के दिन वह अपनी क़ौम के लोगों के आगे होगा - और उसने उन्हें आग में जा उतारा, और बहुत ही बुरा घाट है वह उतरने का! 11|99|यहाँ भी लानत ने उनका पीछा किया और क़ियामत के दिन भी - बहुत ही बुरा पुरस्कार है यह जो किसी को दिया जाए! 11|100|ये बस्तियों के कुछ वृत्तान्त हैं, जो हम तुम्हें सुना रहे है। इनमें कुछ तो खड़ी है और कुछ की फ़सल कट चुकी है 11|101|हमने उनपर अत्याचार नहीं किया, बल्कि उन्होंने स्वयं अपने आप पर अत्याचार किया। फिर जब तेरे रब का आदेश आ गया तो उसके वे पूज्य, जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारा करते थे, उनके कुछ भी काम न आ सके। उन्होंने विनाश के अतिरिक्त उनके लिए किसी और चीज़ में अभिवृद्धि नहीं की 11|102|तेरे रब की पकड़ ऐसी ही होती है, जब वह किसी ज़ालिम बस्ती को पकड़ता है। निस्संदेह उसकी पकड़ बड़ी दुखद, अत्यन्त कठोर होती है 11|103|निश्चय ही इसमें उस व्यक्ति के लिए एक निशानी है जो आख़िरत की यातना से डरता हो। वह एक ऐसा दिन होगा, जिसमें सारे ही लोग एकत्र किए जाएँगे और वह एक ऐसा दिन होगा, जिसमें सब कुछ आँखों के सामने होगा, 11|104|हम उसे केवल थोड़ी अवधि के लिए ही लग रहे है; 11|105|जिस दिन वह आएगा, तो उसकी अनुमति के बिना कोई व्यक्ति बात तक न कर सकेगा। फिर (मानवों में) कोई तो उनमें अभागा होगा और कोई भाग्यशाली 11|106|तो जो अभागे होंगे, वे आग में होंगे; जहाँ उन्हें आर्तनाद करना और फुँकार मारना है 11|107|वहाँ वे सदैव रहेंगे, जब तक आकाश और धरती स्थिर रहें, बात यह है कि तुम्हारे रब की इच्छा ही चलेगी। तुम्हारा रब जो चाहे करे 11|108|रहे वे जो भाग्यशाली होंगे तो वे जन्नत में होंगे, जहाँ वे सदैव रहेंगे जब तक आकाश और धरती स्थिर रहें। बात यह है कि तुम्हारे रब की इच्छा ही चलेगी। यह एक ऐसा उपहार है, जिसका सिलसिला कभी न टूटेगा 11|109|अतः जिनको ये पूज रहे है, उनके विषय में तुझे कोई संदेह न हो। ये तो बस उसी तरह पूजा किए जा रहे है, जिस तरह इससे पहले इनके बाप-दादा पूजा करते रहे हैं। हम तो इन्हें इनका हिस्सा बिना किसी कमी के पूरा-पूरा देनेवाले हैं 11|110|हम मूसा को भी किताब दे चुके है। फिर उसमें भी विभेद किया गया था। यदि तुम्हारे रब की ओर से एक बात पहले ही निश्चित न कर दी गई होती तो उनके बीच कभी का फ़ैसला कर दिया गया होता। ये उसकी ओर से असमंजस में डाल देनेवाले संदेह में पड़े हुए है 11|111|निश्चय ही समय आने पर एक-एक को, जितने भी है उनको तुम्हारा रब उनका किया पूरा-पूरा देकर रहेगा। वे जो कुछ कर रहे हैं, निस्संदेह उसे उसकी पूरी ख़बर है 11|112|अतः जैसा तुम्हें आदेश हुआ है, जमें रहो और तुम्हारे साथ के तौबा करनेवाले भी जमें रहें, और सीमोल्लंघन न करना। जो कुछ भी तुम करते हो, निश्चय ही वह उसे देख रहा है 11|113|उन लोगों की ओर तनिक भी न झुकना, जिन्होंने अत्याचार की नीति अपनाई हैं, अन्यथा आग तुम्हें आ लिपटेगी - और अल्लाह से हटकर तुम्हारा कोई संरक्षक मित्र नहीं - फिर तुम्हें कोई सहायता भी न मिलेगी 11|114|और नमाज़ क़ायम करो दिन के दोनों सिरों पर और रात के कुछ हिस्से में। निस्संदेह नेकियाँ बुराइयों को दूर कर देती है। यह याद रखनेवालों के लिए एक अनुस्मरण है 11|115|और धैर्य से काम लो, इसलिए कि अल्लाह सुकर्मियों को बदला अकारथ नहीं करता; 11|116|फिर तुमसे पहले जो नस्लें गुज़र चुकी है उनमें ऐसे भले-समझदार क्यों न हुए जो धरती में बिगाड़ से रोकते, उन थोड़े-से लोगों के सिवा जिनको उनमें से हमने बचा लिया। अत्याचारी लोग तो उसी सुख-सामग्री के पीछे पड़े रहे, जिसमें वे रखे गए थे। वे तो थे ही अपराधी 11|117|तुम्हारा रब तो ऐसा नहीं है कि बस्तियों को अकारण विनष्ट कर दे, जबकि वहाँ के निवासी बनाव और सुधार में लगे हों 11|118|और यदि तुम्हारा रब चाहता तो वह सारे मनुष्यों को एक समुदाय बना देता, किन्तु अब तो वे सदैव विभेद करते ही रहेंगे, 11|119|सिवाय उनके जिनपर तुम्हारा रब दया करे और इसी के लिए उसने उन्हें पैदा किया है, और तुम्हारे रब की यह बात पूरी होकर रही कि "मैं जहन्नम को अपराधी जिन्नों और मनुष्यों सबसे भरकर रहूँगा।" 11|120|रसूलों के वृत्तान्तों में से हर वह कथा जो हम तुम्हें सुनाते है उसके द्वारा हम तुम्हारे हृदय को सुदृढ़ करते हैं। और इसमें तुम्हारे पास सत्य आ गया है और मोमिनों के लिए उपदेश और अनुस्मरण भी 11|121|जो लोग ईमान नहीं ला रहे हैं उनसे कह दो, "तुम अपनी जगह कर्म किए जाओ, हम भी कर्म कर रहे है 11|122|तुम भी प्रतीक्षा करो, हम भी प्रतीक्षा कर रहे है।" 11|123|अल्लाह ही का है जो कुछ आकाशों और धरती में छिपा है, और हर मामला उसी की ओर पलटता है। अतः उसी की बन्दगी करो और उसी पर भरोसा रखो। जो कुछ तुम करते हो, उससे तुम्हारा रब बेख़बर नहीं है 12|1|अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। ये स्पष्ट किताब की आयतें हैं 12|2|हमने इसे अरबी क़ुरआन के रूप में उतारा है, ताकि तुम समझो 12|3|इस क़ुरआन की तुम्हारी ओर प्रकाशना करके इसके द्वारा हम तुम्हें एक बहुत ही अच्छा बयान सुनाते है, यद्यपि इससे पहले तुम बेख़बर थे 12|4|जब यूसुफ़ ने अपने बाप से कहा, "ऐ मेरे बाप! मैंने स्वप्न में ग्यारह सितारे देखे और सूर्य और चाँद। मैंने उन्हें देखा कि वे मुझे सजदा कर रहे है।" 12|5|उसने कहा, "ऐ मेरे बेटे! अपना स्वप्न अपने भाइयों को मत बताना, अन्यथा वे तेरे विरुद्ध कोई चाल चलेंगे। शैतान तो मनुष्य का खुला हुआ शत्रु है 12|6|और ऐसा ही होगा, तेरा रब तुझे चुन लेगा और तुझे बातों की तथ्य तक पहुँचना सिखाएगा और अपना अनुग्रह तुझपर और याकूब के घरवालों पर उसी प्रकार पूरा करेगा, जिस प्रकार इससे पहले वह तेरे पूर्वज इबराहीम और इसहाक़ पर पूरा कर चुका है। निस्संदेह तेरा रब सर्वज्ञ, तत्वदर्शी है।" 12|7|निश्चय ही यूसुफ़ और उनके भाइयों में सवाल करनेवालों के लिए निशानियाँ है 12|8|जबकि उन्होंने कहा, "यूसुफ़ और उसका भाई हमारे बाप को हमसे अधिक प्रिय है, हालाँकि हम एक पूरा जत्था है। वासत्व में हमारे बाप स्पष्ट तः बहक गए है 12|9|यूसुफ़ को मार डालो या उसे किसी भूभाग में फेंक आओ, ताकि तुम्हारे बाप का ध्यान केवल तुम्हारी ही ओर हो जाए। इसके पश्चात तुम फिर नेक बन जाना।" 12|10|उनमें से एक बोलनेवाला बोल पड़ा, "यूसुफ़ की हत्या न करो, यदि तुम्हें कुछ करना ही है तो उसे किसी कुएँ की तह में डाल दो। कोई राहगीर उसे उठा लेगा।" 12|11|उन्होंने कहा, "ऐ हमारे बाप! आपको क्या हो गया है कि यूसुफ़ के मामले में आप हमपर भरोसा नहीं करते, हालाँकि हम तो उसके हितैषी है? 12|12|हमारे साथ कल उसे भेज दीजिए कि वह कुछ चर-चुग और खेल ले। उसकी रक्षा के लिए तो हम हैं ही।" 12|13|उसने कहा, यह बात कि तुम उसे ले जाओ, मुझे दुखी कर देती है। कहीं ऐसा न हो कि तुम उसका ध्यान न रख सको और भेड़िया उसे खा जाए।" 12|14|वे बोले, "हमारे एक जत्थे के होते हुए भी यदि उसे भेड़िए ने खा लिया, तब तो निश्चय ही हम सब कुछ गँवा बैठे।" 12|15|फिर जब वे उसे ले गए और सभी इस बात पर सहमत हो गए कि उसे एक कुएँ की गहराई में डाल दें (तो उन्होंने वह किया जो करना चाहते थे), और हमने उसकी ओर प्रकाशना का, "तू उन्हें उनके इस कर्म से अवगत कराएगा और वे जानते न होंगे।" 12|16|कुछ रात बीते वे रोते हुए अपने बाप के पास आए 12|17|कहने लगे, "ऐ मेरे बाप! हम परस्पर दौड़ में मुक़ाबला करते हुए दूर चले गए और यूसफ़ को हमने अपने सामान के साथ छोड़ दिया था कि इतने में भेड़िया उसे खा गया। आप तो हमपर विश्वास करेंगे नहीं, यद्यपि हम सच्चे है।" 12|18|वे उसके कुर्ते पर झूठमूठ का ख़ून लगा लाए थे। उसने कहा, "नहीं, बल्कि तुम्हारे जी ने बहकाकर तुम्हारे लिए एक बात बना दी है। अब धैर्य से काम लेना ही उत्तम है! जो बात तुम बता रहे हो उसमें अल्लाह ही सहायक हो सकता है।" 12|19|एक क़ाफ़िला आया। फिर उसने पनिहारा को भेजा। उसने अपना डोल ज्यों ही डाला तो पुकार उठा, "अरे! कितनी ख़ुशी की बात है। यह तो एक लड़का है।" उन्होंने उसे व्यापार का माल समझकर छुपा लिया। किन्तु जो कुछ वे कर रहे थे, अल्लाह तो उसे जानता ही था 12|20|उन्होंने उसे सस्ते दाम, गिनती के कुछ दिरहमों में बेच दिया, क्योंकि वे उसके मामलें में बेपरवाह थे 12|21|मिस्र के जिस व्यक्ति ने उसे ख़रीदा, उसने अपनी स्त्री से कहा, "इसको अच्छी तरह रखना। बहुत सम्भव है कि यह हमारे काम आए या हम इसे बेटा बना लें।" इस प्रकार हमने उस भूभाग में यूसुफ़ के क़दम जमाने की राह निकाली (ताकि उसे प्रतिष्ठा प्रदान करें) और ताकि मामलों और बातों के परिणाम से हम उसे अवगत कराएँ। अल्लाह तो अपना काम करके रहता है, किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं 12|22|और जब वह अपनी जवानी को पहुँचा तो हमने उसे निर्णय-शक्ति और ज्ञान प्रदान किया। उत्तमकार लोगों को हम इसी प्रकार बदला देते है 12|23|जिस स्त्री के घर में वह रहता था, वह उस पर डोरे डालने लगी। उसने दरवाज़े बन्द कर दिए और कहने लगी, "लो, आ जाओ!" उसने कहा, "अल्लाह की पनाह! मेरे रब ने मुझे अच्छा स्थान दिया है। अत्याचारी कभी सफल नहीं होते।" 12|24|उसने उसका इरादा कर लिया था। यदि वह अपने रब का स्पष्ट॥ प्रमाण न देख लेता तो वह भी उसका इरादा कर लेता। ऐसा इसलिए हुआ ताकि हम बुराई और अश्लीलता को उससे दूर रखें। निस्संदेह वह हमारे चुने हुए बन्दों में से था 12|25|वे दोनों दरवाज़े की ओर झपटे और उस स्त्री ने उसका कुर्ता पीछे से फाड़ डाला। दरवाज़े पर दोनों ने उस स्त्री के पति को उपस्थित पाया। वह बोली, "जो कोई तुम्हारी घरवाली के साथ बुरा इरादा करे, उसका बदला इसके सिवा और क्या होगा कि उसे बन्दी बनाया जाए या फिर कोई दुखद यातना दी जाए?" 12|26|उसने कहा, "यही मुझपर डोरे डाल रही थी।" उस स्त्री के लोगों में से एक गवाह ने गवाही दी, "यदि इसका कुर्ता आगे से फटा है तो यह सच्ची है और यह झूठा है, 12|27|और यदि उसका कुर्ता पीछे से फटा है तो यह झूठी है और यह सच्चा है।" 12|28|फिर जब देखा कि उसका कुर्ता पीछे से फटा है तो उसने कहा, "यह तुम स्त्रियों की चाल है। निश्चय ही तुम्हारी चाल बड़े ग़ज़ब की होती है 12|29|यूसुफ़! इस मामले को जाने दे और स्त्री तू अपने गुनाह की माफ़ी माँग। निस्संदेह ख़ता तेरी ही है।" 12|30|नगर की स्त्रियाँ कहने लगी, "अज़ीज़ की पत्नी अपने नवयुवक ग़ुलाम पर डोरे डालना चाहती है। वह प्रेम-प्रेरणा से उसके मन में घर कर गया है। हम तो उसे देख रहे हैं कि वह खुली ग़लती में पड़ गई है।" 12|31|उसने जब उनकी मक्करी की बातें सुनी तो उन्हें बुला भेजा और उनमें से हरेक के लिए आसन सुसज्जित किया और उनमें से हरेक को एक छुरी दी। उसने (यूसुफ़ से) कहा, "इनके सामने आ जाओ।" फिर जब स्त्रियों ने देखा तो वे उसकी बड़ाई से दंग रह गई। उन्होंने अपने हाथ घायल कर लिए और कहने लगी, "अल्लाह की पनाह! यह कोई मनुष्य नहीं। यह तो कोई प्रतिष्ठित फ़रिश्ता है।‍" 12|32|वह बोली, "यह वही है जिसके विषय में तुम मुझे मलामत कर रही थीं। हाँ, मैंने इसे रिझाना चाहा था, किन्तु यह बचा रहा। और यदि इसने न किया जो मैं इससे कहती तो यह अवश्य क़ैद किया जाएगा और अपमानित होगा।" 12|33|उसने कहा, "ऐ मेरे रब! जिसकी ओर ये सब मुझे बुला रही हैं, उससे अधिक तो मुझे क़ैद ही पसन्द है यदि तूने उनके दाँव-घात को मुझसे न टाला तो मैं उनकी और झुक जाऊँगा और निरे आवेग के वशीभूत हो जाऊँगा।" 12|34|अतः उसने रब ने उसकी सुन ली और उसकी ओर से उन स्त्रियों के दाँव-घात को टाल दिया। निस्संदेह वह सब कुछ सुनता, जानता है 12|35|फिर उन्हें, इसके पश्चात कि वे निशानियाँ देख चुके थे, यह सूझा कि उसे एक अवधि के लिए क़ैद कर दें 12|36|कारागार में दो नव युवकों ने भी उसके साथ प्रवेश किया। उनमें से एक ने कहा, "मैंने स्वप्न देखा है कि मैं शराब निचोड़ रहा हूँ।" दूसरे ने कहा, "मैंने देखा कि मैं अपने सिर पर रोटियाँ उठाए हुए हूँ, जिनको पक्षी खा रहे है। हमें इसका अर्थ बता दीजिए। हमें तो आप बहुत ही नेक नज़र आते है।" 12|37|उसने कहा, "जो भोजन तुम्हें मिला करता है वह तुम्हारे पास नहीं आ पाएगा, उसके तुम्हारे पास आने से पहले ही मैं तुम्हें इसका अर्थ बता दूँगा। यह उन बातों में से है, जो मेरे रब ने मुझे सिखाई है। मैं तो उन लोगों का तरीक़ा छोड़कर, जो अल्लाह को नहीं मानते और जो आख़िरत (परलोक) का इनकार करते हैं, 12|38|अपने पूर्वज इबराहीम, इसहाक़ और याक़ूब का तरीक़ा अपनाया है। इमसे यह नहीं हो सकता कि हम अल्लाह के साथ किसी चीज़ को साझी ठहराएँ। यह हमपर और लोगों पर अल्लाह का अनुग्रह है। किन्तु अधिकतर लोग आभार नहीं प्रकट करते 12|39|ऐ कारागर के मेरे साथियों! क्या अलग-अलग बहुत-से रह अच्छे है या अकेला अल्लाह जिसका प्रभुत्व सबपर है? 12|40|तुम उसके सिवा जिनकी भी बन्दगी करते हो वे तो बस निरे नाम हैं जो तुमने रख छोड़े है और तुम्हारे बाप-दादा ने। उनके लिए अल्लाह ने कोई प्रमाण नहीं उतारा। सत्ता और अधिकार तो बस अल्लाह का है। उसने आदेश दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो। यही सीधा, सच्चा दीन (धर्म) हैं, किन्तु अधिकतर लोग नहीं जानते 12|41|ऐ कारागार के मेरे दोनों साथियों! तुममें से एक तो अपने स्वामी को मद्यपान कराएगा; रहा दूसरा तो उसे सूली पर चढ़ाया जाएगा और पक्षी उसका सिर खाएँगे। फ़ैसला हो चुका उस बात का जिसके विषय में तुम मुझसे पूछ रहे हो।" 12|42|उन दोनों में से जिसके विषय में उसने समझा था कि वह रिहा हो जाएगा, उससे कहा, "अपने स्वामी से मेरी चर्चा करना।" किन्तु शैतान ने अपने स्वामी से उसकी चर्चा करना भुलवा दिया। अतः वह (यूसुफ़) कई वर्ष तक कारागार ही में रहा 12|43|फिर ऐसा हुआ कि सम्राट ने कहा, "मैं एक स्वप्न देखा कि सात मोटी गायों को सात दुबली गायें खा रही है और सात बालें हरी है और दूसरी (सात सूखी) । ऐ सरदारों! यदि तुम स्वप्न का अर्थ बताते हो, तो मुझे मेरे इस स्वप्न के सम्बन्ध में बताओ।" 12|44|उन्होंने कहा, "ये तो सम्भ्रमित स्वप्न है। हम ऐसे स्वप्न का अर्थ नहीं जानते।" 12|45|इतने में दोनों में सो जो रिहा हो गया था और एक अर्से के बाद उसे याद आया तो वह बोला, "मैं इसका अर्थ तुम्हें बताता हूँ। ज़रा मुझे (यूसुफ़ के पास) भेज दीजिए।" 12|46|"यूसुफ़, ऐ सत्यवान! हमें इसका अर्थ बता कि सात मोटी गायें है, जिन्हें सात दुबली गायें खा रही है और सात हरी बालें है और दूसरी (सात) सूखी, ताकि मैं लोगों के पास लौटकर जाऊँ कि वे जान लें।" 12|47|उसने कहा, "सात वर्ष तक तुम व्यवहारतः खेती करते रहोगे। फिर तुम जो फ़सल काटो तो थोड़े हिस्से के सिवा जो तुम्हारे खाने के काम आए शेष को उसकी बाली में रहने देना 12|48|फिर उसके पश्चात सात कठिन वर्ष आएँगे जो वे सब खा जाएँगे जो तुमने उनके लिए पहले से इकट्ठा कर रखा होगा, सिवाय उस थोड़े-से हिस्से के जो तुम सुरक्षित कर लोगे 12|49|फिर उसके पश्चात एक वर्ष ऐसा आएगा, जिसमें वर्षा द्वारा लोगों की फ़रियाद सुन ली जाएगी और उसमें वे रस निचोड़ेगे।" 12|50|सम्राट ने कहा, "उसे मेरे पास ले आओ।" किन्तु जब दूत उसके पास पहुँचा तो उसने कहा, "अपने स्वामी के पास वापस जाओ और उससे पूछो कि उन स्त्रियों का क्या मामला है, जिन्होंने अपने हाथ घायल कर लिए थे। निस्संदेह मेरा रब उनकी मक्कारी को भली-भाँति जानता है।" 12|51|उसने कहा, "तुम स्त्रियों का क्या हाल था, जब तुमने यूसुफ़ को रिझाने की चेष्टा की थी?" उन्होंने कहा, "पाक है अल्लाह! हम उसमें कोई बुराई नहीं जानते है।" अज़ीज़ की स्त्री बोल उठी, "अब तो सत्य प्रकट हो गया है। मैंने ही उसे रिझाना चाहा था। वह तो बिलकुल सच्चा है।" 12|52|"यह इसलिए कि वह जान ले कि मैंने गुप्त॥ रूप से उसके साथ विश्वासघात नहीं किया और यह कि अल्लाह विश्वासघातियों का चाल को चलने नहीं देता 12|53|मैं यह नहीं कहता कि मैं बुरी हूँ - जी तो बुराई पर उभारता ही है - यदि मेरा रब ही दया करे तो बात और है। निश्चय ही मेरा रब बहुत क्षमाशील, दयावान है।" 12|54|सम्राट ने कहा, "उसे मेरे पास ले आओ! मैं उसे अपने लिए ख़ास कर लूँगा।" जब उसने उससे बात-चीक करी तो उसने कहा, "निस्संदेह आज तुम हमारे यहाँ विश्व सनीय अधिकार प्राप्त व्यक्ति हो।" 12|55|उसने कहा, "इस भू-भाग के ख़जानों पर मुझे नियुक्त कर दीजिए। निश्चय ही मैं रक्षक और ज्ञानवान हूँ।" 12|56|इस प्रकार हमने यूसुफ़ को उस भू-भाग में अधिकार प्रदान किया कि वह उसमें जहाँ चाहे अपनी जगह बनाए। हम जिसे चाहते हैं उसे अपनी दया का पात्र बनाते है। उत्तमकारों का बदला हम अकारथ नहीं जाने देते 12|57|और ईमान लानेवालों और डर रखनेवालों के लिए आख़िरत का बदला इससे कहीं उत्तम है 12|58|फिर ऐसा हुआ कि यूसुफ़ के भाई आए और उसके सामने उपस्थित हुए, उसने तो उन्हें पहचान लिया, किन्तु वे उससे अपरिचित रहे 12|59|जब उसने उनके लिए उनका सामान तैयार करा दिया तो कहा, "बाप की ओर सो तुम्हारा भाई है, उसे मेरे पास लाना। क्या देखते नहीं कि मैं पूरी माप से देता हूँ और मैं अच्छा आतिशेय भी हूँ?" 12|60|किन्तु यदि तुम उसे मेरे पास न लाए तो फिर तुम्हारे लिए मेरे यहाँ कोई माप (ग़ल्ला) नहीं और तुम मेरे पास आना भी मत।" 12|61|वे बोले, "हम उसके लिए उसके बाप को राज़ी करने की कोशिश करेंगे और हम यह काम अवश्य करेंगे।" 12|62|उसने अपने सेवकों से कहा, "इनका दिया हुआ माल इनके सामान में रख दो कि जब ये अपने घरवालों की ओर लौटें तो इसे पहचान लें, ताकि ये फिर लौटकर आएँ।" 12|63|फिर जब वे अपने बाप के पास लौटकर गए तो कहा, "ऐ मेरे बाप! (अनाज की) माप हमसे रोक दी गई है। अतः हमारे भाई को हमारे साथ भेज दीजिए, ताकि हम माप भर लाएँ; और हम उसकी रक्षा के लिए तो मौजूद ही हैं।" 12|64|उसने कहा, "क्या मैं उसके मामले में तुमपर वैसा ही भरोसा करूँ जैसा इससे पहले उसके भाई के मामले में तुमपर भरोसा कर चुका हूँ? हाँ, अल्लाह ही सबसे अच्छ रक्षक है और वह सबसे बढ़कर दयावान है।" 12|65|जब उन्होंने अपना सामान खोला, तो उन्होंने अपने माल अपनी ओर वापस किया हुआ पाया। वे बोले, "ऐ मेरे बाप, हमें और क्या चाहिए! यह हमारा माल भी तो हमें लौटा दिया गया है। अब हम अपने घरवालों के लिए खाद्य-सामग्री लाएँगे और अपने भाई की रक्षा भी करेंगे। और एक ऊँट के बोझभर और अधिक लेंगे। इतना माप (ग़ल्ला) मिल जाना तो बिलकुल आसान है।" 12|66|उसने कहा, "मैं उसे तुम्हारे साथ कदापि नहीं भेज सकता। जब तक कि तुम अल्लाह को गवाह बनाकर मुझे पक्का वचन न दो कि तुम उसे मेरे पास अवश्य लाओगे, यह और बात है कि तुम घिर जाओ।" फिर जब उन्होंने उसे अपना वचन दे दिया तो उसने कहा, "हम जो कुछ कर रहे है वह अल्लाह के हवाले है।" 12|67|उसने यह भी कहा, "ऐ मेरे बेटो! एक द्वार से प्रवेश न करना, बल्कि विभिन्न द्वारों से प्रवेश करना यद्यपि मैं अल्लाह के मुक़ाबले में तुम्हारे काम नहीं आ सकता आदेश तो बस अल्लाह ही का चलता है। उसी पर मैंने भरोसा किया और भरोसा करनेवालों को उसी पर भरोसा करना चाहिए।" 12|68|और जब उन्होंने प्रवेश किया जिस तरह से उनके बाप ने उन्हें आदेश दिया था - अल्लाह की ओर से होनेवाली किसी चीज़ को वह उनसे हटा नहीं सकता था। बस याक़ूब के जी की एक इच्छा थी, जो उसने पूरी कर ली। और निस्संदेह वह ज्ञानवान था, क्योंकि हमने उसे ज्ञान प्रदान किया था; किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं - 12|69|और जब उन्होंने यूसुफ़ के यहाँ प्रवेश किया तो उसने अपने भाई को अपने पास जगह दी और कहा, "मैं तेरा भाई हूँ। जो कुछ ये करते रहे हैं, अब तू उसपर दुखी न हो।" 12|70|फिर जब उनका सामान तैयार कर दिया तो अपने भाई के सामान में पानी पीने का प्याला रख दिया। फिर एक पुकारनेवाले ने पुकारकर कहा, "ऐ क़ाफ़िलेवालो! निश्चय ही तुम चोर हो।" 12|71|वे उनकी ओर रुख़ करते हुए बोले, "तुम्हारी क्या चीज़ खो गई है?" 12|72|उन्होंने कहा, "शाही पैमाना हमें नहीं मिल रहा है। जो व्यक्ति उसे ला दे उसको एक ऊँट का बोझभर ग़ल्ला इनाम मिलेगा। मैं इसकी ज़िम्मेदारी लेता हूँ।" 12|73|वे कहने लगे, "अल्लाह की क़सम! तुम लोग जानते ही हो कि हम इस भू-भाग में बिगाड़ पैदा करने नहीं आए है और न हम चोर है।" 12|74|उन्होंने कहा, "यदि तुम झूठे सिद्ध हुए तो फिर उसका दंड क्या है?" 12|75|वे बोले, "उसका दंड यह है कि जिसके सामान में वह मिले वही उसका बदला ठहराया जाए। हम अत्याचारियों को ऐसा ही दंड देते है।" 12|76|फिर उसके भाई की खुरजी से पहले उनकी ख़ुरजियाँ देखनी शुरू की; फिर उसके भाई की ख़ुरजी से उसे बरामद कर लिया। इस प्रकार हमने यूसुफ़ का उपाय किया। वह शाही क़ानून के अनुसार अपने भाई को प्राप्त नहीं कर सकता था। बल्कि अल्लाह ही की इच्छा लागू है। हम जिसको चाहे उसके दर्जे ऊँचे कर दें। और प्रत्येक ज्ञानवान से ऊपर एक ज्ञानवान मौजूद है 12|77|उन्होंने कहा, "यदि यह चोरी करता है तो चोरी तो इससे पहले इसका एक भाई भी कर चुका है।" किन्तु यूसुफ़ ने इसे अपने जी ही में रखा और उनपर प्रकट नहीं किया। उसने कहा, "मक़ाम की दृष्टि से तुम अत्यन्त बुरे हो। जो कुछ तुम बताते हो, अल्लाह को उसका पूरा ज्ञान है।" 12|78|उन्होंने कहा, "ऐ अज़ीज़! इसका बाप बहुत ही बूढ़ा है। इसलिए इसके स्थान पर हममें से किसी को रख लीजिए। हमारी स्पष्ट में तो आप बड़े ही सुकर्मी है।" 12|79|उसने कहा, "इस बात से अल्लाह पनाह में रखे कि जिसके पास हमने अपना माल पाया है, उसे छोड़कर हम किसी दूसरे को रखें। फिर तो हम अत्याचारी ठहगेंगे।" 12|80|तो जब से वे उससे निराश हो गए तो परामर्श करने के लिए अलग जा बैठे। उनमें जो बड़ा था, वह कहने लगा, "क्या तुम जानते नहीं कि तुम्हारा बाप अल्लाह के नाम पर तुमसे वचन ले चुका है और उसको जो इससे पहले यूसुफ़ के मामले में तुमसे क़सूर हो चुका है? मैं तो इस भू-भाग से कदापि टलने का नहीं जब तक कि मेरे बाप मुझे अनुमति न दें या अल्लाह ही मेरे हक़ में कोई फ़ैसला कर दे। और वही सबसे अच्छा फ़ैसला करनेवाला है 12|81|तुम अपने बाप के पास लौटकर जाओ और कहो, "ऐ हमारे बाप! आपके बेटे ने चोरी की है। हमने तो वही कहा जो हमें मालूम हो सका, परोक्ष तो हमारी दृष्टि में था नहीं 12|82|आप उस बस्ती से पूछ लीजिए जहाँ हम थे और उस क़ाफ़िलें से भी जिसके साथ होकर हम आए। निस्संदेह हम बिलकुल सच्चे है।" 12|83|उसने कहा, "नहीं, बल्कि तुम्हारे जी ही ने तुम्हे पट्टी पढ़ाकर एक बात बना दी है। अब धैर्य से काम लेना ही उत्तम है! बहुत सम्भव है कि अल्लाह उन सबको मेरे पास ले आए। वह तो सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है।" 12|84|उसने उनकी ओर से मुख फेर लिया और कहने लगा, "हाय अफ़सोस, यूसुफ़ की जुदाई पर!" और ग़म के मारे उसकी आँखें सफ़ेद पड़ गई और वह घुटा जा रहा था 12|85|उन्होंने कहा, "अल्लाह की क़सम! आप तो यूसुफ़ ही की याद में लगे रहेंगे, यहाँ तक कि घुलकर रहेंगे या प्राण ही त्याग देंगे।" 12|86|उसने कहा, "मैं तो अपनी परेशानी और अपने ग़म की शिकायत अल्लाह ही से करता हूँ और अल्लाह की ओर से जो मैं जानता हूँ, तुम नही जानते 12|87|ऐ मेरे बेटों! जाओ और यूसुफ़ और उसके भाई की टोह लगाओ और अल्लाह की सदयता से निराश न हो। अल्लाह की सदयता से तो केवल कुफ़्र करनेवाले ही निराश होते है।" 12|88|फिर जब वे उसके पास उपस्थित हुए तो कहा, "ऐ अज़ीज़! हमें और हमारे घरवालों को बहुत तकलीफ़ पहुँची हैं और हम कुछ तुच्छ-सी पूँजी लेकर आए है, किन्तु आप हमें पूरी-पूरी माप प्रदान करें। और हमें दान दें। निश्चय ही दान करनेवालों को बदला अल्लाह देता है।" 12|89|उसने कहा, "क्या तुम्हें यह भी मालूम है कि जब तुम आवेग के वशीभूत थे तो यूसुफ़ और उसके भाई के साथ तुमने क्या किया था?" 12|90|वे बोल पड़े, "क्या यूसुफ़ आप ही है?" उसने कहा, "मैं ही यूसुफ़ हूँ और यह मेरा भाई है। अल्लाह ने हमपर उपकार किया है। सच तो यह है कि जो कोई डर रखे और धैर्य से काम ले तो अल्लाह भी उत्तमकारों का बदला अकारथ नहीं करता।" 12|91|उन्होंने कहा, "अल्लाह की क़सम! आपको अल्लाह ने हमारे मुक़ाबले में पसन्द किया और निश्चय ही चूक तो हमसे हुई।" 12|92|उसने कहा, "आज तुमपर कोई आरोप नहीं। अल्लाह तुम्हें क्षमा करे। वह सबसे बढ़कर दयावान है। 12|93|मेरा यह कुर्ता ले जाओ और इसे मेरे बाप के मुख पर डाल दो। उनकी नेत्र-ज्योति लौट आएगी, फिर अपने सब घरवालों को मेरे यहाँ ले आओ।" 12|94|इधर जब क़ाफ़िला चला तो उनके बाप ने कहा, "यदि तुम मुझे बहकी बातें करनेवाला न समझो तो मुझे तो यूसुफ़ की महक आ रही है।" 12|95|वे बोले, "अल्लाह की क़सम! आप तो अभी तक अपनी उसी पुरानी भ्रांति में पड़े हुए है।" 12|96|फिर जब शुभ सूचना देनेवाला आया तो उसने उस (कुर्ते) को उसके मुँह पर डाल दिया और तत्क्षण उसकी नेत्र-ज्योति लौट आई। उसने कहा, "क्या मैंने तुमसे कहा नहीं था कि अल्लाह की ओर से जो मैं जानता हूँ, तुम नहीं जानते।" 12|97|वे बोले, "ऐ मेरे बाप! आप हमारे गुनाहों की क्षमा के लिए प्रार्थना करें। वास्तव में चूक हमसे ही हुई।" 12|98|उसने कहा, "मैं अपने रब से तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगा। वह बहुत क्षमाशील, दयावान है।" 12|99|फिर जब वे यूसुफ़ के पास पहुँचे तो उसने अपने माँ-बाप को ख़ास अपने पास जगह दी औऱ कहा, "तुम सब नगर में प्रवेश करो। अल्लाह ने चाहा तो यह प्रवेश निश्चिन्तता के साथ होगा।" 12|100|उसने अपने माँ-बाप को ऊँची जगह सिंहासन पर बिठाया और सब उसके आगे सजदे मे गिर पड़े। इस अवसर पर उसने कहा, "ऐ मेरे बाप! यह मेरे विगत स्वप्न का साकार रूप है। इसे मेरे रब ने सच बना दिया। और उसने मुझपर उपकार किया जब मुझे क़ैदख़ाने से निकाला और आप भाइयों के बीच फ़साद डलवा दिया था। निस्संदेह मेरा रब जो चाहता है उसके लिए सूक्ष्म उपाय करता है। वास्तव में वही सर्वज्ञ, अत्यन्त तत्वदर्शी है 12|101|मेरे रब! तुने मुझे राज्य प्रदान किया और मुझे घटनाओं और बातों के निष्कर्ष तक पहुँचना सिखाया। आकाश और धरती के पैदा करनेवाले! दुनिया और आख़िरत में तू ही मेरा संरक्षक मित्र है। तू मुझे इस दशा से उठा कि मैं मुस्लिम (आज्ञाकारी) हूँ और मुझे अच्छे लोगों के साथ मिला।" 12|102|ये परोक्ष की ख़बरे हैं जिनकी हम तुम्हारी ओर प्रकाशना कर रहे है। तुम तो उनके पास नहीं थे, जब उन्होंने अपने मामले को पक्का करके षड्यंत्र किया था 12|103|किन्तु चाहे तुम कितना ही चाहो, अधिकतर लोग तो मानेंगे नहीं 12|104|तुम उनसे इसका कोई बदला भी नहीं माँगते। यह तो सारे संसार के लिए बस एक अनुस्मरण है 12|105|आकाशों और धरती में कितनी ही निशानियाँ हैं, जिनपर से वे इस तरह गुज़र जाते है कि उनकी ओर वे ध्यान ही नहीं देते 12|106|इनमें अधिकतर लोग अल्लाह को मानते भी है तो इस तरह कि वे साझी भी ठहराते है 12|107|क्या वे इस बात से निश्चिन्त है कि अल्लाह की कोई यातना उन्हें ढँक ले या सहसा वह घड़ी ही उनपर आ जाए, जबकि वे बिलकुल बेख़बर हों? 12|108|कह दो, "यही मेरा मार्ग है। मैं अल्लाह की ओर बुलाता हूँ। मैं स्वयं भी पूर्ण प्रकाश में हूँ और मेरे अनुयायी भी - महिमावान है अल्लाह! ृृ- और मैं कदापि बहुदेववादी नहीं।" 12|109|तुमसे पहले भी हमने जिनको रसूल बनाकर भेजा, वे सब बस्तियों के रहनेवाले पुरुष ही थे। हम उनकी ओर प्रकाशना करते रहे - फिर क्या वे धरती में चले-फिरे नहीं कि देखते कि उनका कैसा परिणाम हुआ, जो उनसे पहले गुज़रे है? निश्चय ही आख़िरत का घर ही डर रखनेवालों के लिए सर्वोत्तम है। तो क्या तुम समझते नहीं? - 12|110|यहाँ तक कि जब वे रसूल निराश होने लगे और वे समझने लगे कि उनसे झूठ कहा गया था कि सहसा उन्हें हमारी सहायता पहुँच गई। फिर हमने जिसे चाहा बचा लिया। किन्तु अपराधी लोगों पर से तो हमारी यातना टलती ही नहीं 12|111|निश्चय ही उनकी कथाओं में बुद्धि और समझ रखनेवालों के लिए एक शिक्षाप्रद सामग्री है। यह कोई घड़ी हुई बात नहीं है, बल्कि यह अपने से पूर्व की पुष्टि में है, और हर चीज़ का विस्तार और ईमान लानेवाले लोगों के लिए मार्ग-दर्शन और दयालुता है 13|1|अलिफ़॰ लाम॰ मीम॰ रा॰। ये किताब की आयतें है औऱ जो कुछ तुम्हारे रब की ओर से तुम्हारी ओर अवतरित हुआ है, वह सत्य है, किन्तु अधिकतर लोग मान नहीं रहे है 13|2|अल्लाह वह है जिसने आकाशों को बिना सहारे के ऊँचा बनाया जैसा कि तुम उन्हें देखते हो। फिर वह सिंहासन पर आसीन हुआ। उसने सूर्य और चन्द्रमा को काम पर लगाया। हरेक एक नियत समय तक के लिए चला जा रहा है। वह सारे काम का विधान कर रहा है; वह निशानियाँ खोल-खोलकर बयान करता है, ताकि तुम्हें अपने रब से मिलने का विश्वास हो 13|3|और वही है जिसने धरती को फैलाया और उसमें जमे हुए पर्वत और नदियाँ बनाई और हरेक पैदावार की दो-दो क़िस्में बनाई। वही रात से दिन को छिपा देता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो सोच-विचार से काम लेते है 13|4|और धरती में पास-पास भूभाग पाए जाते है जो परस्पर मिले हुए है, और अंगूरों के बाग़ है और खेतियाँ है औऱ खजूर के पेड़ है, इकहरे भी और दोहरे भी। सबको एक ही पानी से सिंचित करता है, फिर भी हम पैदावार और स्वाद में किसी को किसी के मुक़ाबले में बढ़ा देते है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ हैं, जो बुद्धि से काम लेते है 13|5|अब यदि तुम्हें आश्चर्य ही करना है तो आश्चर्य की बात तो उनका यह कहना है कि ,"क्या जब हम मिट्टी हो जाएँगे तो क्या हम नए सिरे से पैदा भी होंगे?" वही हैं जिन्होंने अपने रब के साथ इनकार की नीति अपनाई और वही है, जिनकी गर्दनों मे तौक़ पड़े हुए है और वही आग (में पड़ने) वाले है जिसमें उन्हें सदैव रहना है 13|6|वे भलाई से पहले बुराई के लिए तुमसे जल्दी मचा रहे हैं, हालाँकि उनसे पहले कितनी ही शिक्षाप्रद मिसालें गुज़र चुकी है। किन्तु तुम्हारा रब लोगों को उनके अत्याचार के बावजूद क्षमा कर देता है और वास्तव में तुम्हारा रब दंड देने में भी बहुत कठोर है 13|7|जिन्होंने इनकार किया, वे कहते हैं, "उसपर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं अवतरित हुई?" तुम तो बस एक चेतावनी देनेवाले हो और हर क़ौम के लिए एक मार्गदर्शक हुआ है 13|8|किसी भी स्त्री-जाति को जो भी गर्भ रहता है अल्लाह उसे जान रहा होता है और उसे भी जो गर्भाशय में कमी-बेशी होती है। और उसके यहाँ हरेक चीज़ का एक निश्चित अन्दाज़ा है 13|9|वह परोक्ष और प्रत्यक्ष का ज्ञाता है, महान है, अत्यन्त उच्च है 13|10|तुममें से कोई चुपके से बात करे और जो कोई ज़ोर से और जो कोई रात में छिपता हो और जो दिन में चलता-फिरता दीख पड़ता हो उसके लिए सब बराबर है 13|11|उसके रक्षक (पहरेदार) उसके अपने आगे और पीछे लगे होते हैं जो अल्लाह के आदेश से उसकी रक्षा करते है। किसी क़ौम के लोगों को जो कुछ प्राप्त होता है अल्लाह उसे बदलता नहीं, जब तक कि वे स्वयं अपने आपको न बदल डालें। और जब अल्लाह किसी क़ौम का अनिष्ट चाहता है तो फिर वह उससे टल नहीं सकता, और उससे हटकर उनका कोई समर्थक और संरक्षक भी नहीं 13|12|वही है जो भय और आशा के निमित्त तुम्हें बिजली की चमक दिखाता है और बोझिल बादलों को उठाता है 13|13|बादल की गरज उसका गुणगान करती है और उसके भय से काँपते हुए फ़रिश्ते भी। वही कड़कती बिजलियाँ भेजता है, फिर जिसपर चाहता है उन्हें गिरा देता है, जबकि वे अल्लाह के विषय में झगड़ रहे होते है। निश्चय ही उसकी चाल बड़ी सख़्त है 13|14|उसी के लिए सच्ची पुकार है। उससे हटकर जिनको वे पुकारते है, वे उनकी पुकार का कुछ भी उत्तर नहीं देते। बस यह ऐसा ही होता है जैसे कोई अपने दोनों हाथ पानी की ओर इसलिए फैलाए कि वह उसके मुँह में पहुँच जाए, हालाँकि वह उसतक पहुँचनेवाला नहीं। कुफ़्र करनेवालों की पुकार तो बस भटकने ही के लिए होती है 13|15|आकाशों और धरती में जो भी है स्वेच्छापूर्वक या विवशतापूर्वक अल्लाह ही को सजदा कर रहे है और उनकी परछाइयाँ भी प्रातः और संध्या समय 13|16|कहो, "आकाशों और धरती का रब कौन है?" कहो, "अल्लाह" कह दो, "फिर क्या तुमने उससे हटकर दूसरों को अपना संरक्षक बना रखा है, जिन्हें स्वयं अपने भी किसी लाभ का न अधिकार प्राप्त है और न किसी हानि का?" कहो, "क्या अंधा और आँखोंवाला दोनों बराबर होते है? या बराबर होते हो अँधरे और प्रकाश? या जिनको अल्लाह का सहभागी ठहराया है, उन्होंने भी कुछ पैदा किया है, जैसा कि उसने पैदा किया है, जिसके कारण सृष्टि का मामला इनके लिए गडुमडु हो गया है?" कहो, "हर चीज़ को पैदा करनेवाला अल्लाह है और वह अकेला है, सब पर प्रभावी!" 13|17|उसने आकाश से पानी उतारा तो नदी-नाले अपनी-अपनी समाई के अनुसार बह निकले। फिर पानी के बहाव ने उभरे हुए झाग को उठा लिया और उसमें से भी, जिसे वे ज़ेवर या दूसरे सामान बनाने के लिए आग में तपाते हैं, ऐसा ही झाग उठता है। इस प्रकार अल्लाह सत्य और असत्य की मिसाल बयान करता है। फिर जो झाग है वह तो सूखकर नष्ट हो जाता है और जो कुछ लोगों को लाभ पहुँचानेवाला होता है, वह धरती में ठहर जाता है। इसी प्रकार अल्लाह दृष्टांत प्रस्तुत करता है 13|18|जिन लोगों ने अपने रब का आमंत्रण स्वीकार कर लिया, उनके लिए अच्छा पुरस्कार है। रहे वे लोग जिन्होंने उसे स्वीकार नहीं किया यदि उनके पास वह सब कुछ हो जो धरती में हैं, बल्कि उसके साथ उतना और भी हो तो अपनी मुक्ति के लिए वे सब दे डालें। वही हैं, जिनका बुरा हिसाब होगा। उनका ठिकाना जहन्नम है और वह अत्यन्त बुरा विश्राम-स्थल है 13|19|भला वह व्यक्ति जो जानता है कि जो कुछ तुम पर उतरा है तुम्हारे रब की ओर से सत्य है, कभी उस जैसा हो सकता है जो अंधा है? परन्तु समझते तो वही है जो बुद्धि और समझ रखते है, 13|20|जो अल्लाह के साथ की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करते है औऱ अभिवचन को तोड़ते नहीं, 13|21|और जो ऐसे हैं कि अल्लाह नॆ जिसे जोड़ने का आदेश दिया है उसे जोड़ते हैं और अपनॆ रब से डरते रहते हैं और बुरॆ हिसाब का उन्हॆं डर लगा रहता है 13|22|और जिन लोगों ने अपने रब की प्रसन्नता की चाह में धैर्य से काम लिया और नमाज़ क़ायम की और जो कुछ हमने उन्हें दिया है, उसमें से खुले और छिपे ख़र्च किया, और भलाई के द्वारा बुराई को दूर करते है। वही लोग है जिनके लिए आख़िरत के घर का अच्छा परिणाम है, 13|23|अर्थात सदैव रहने के बाग़ है जिनमें वे प्रवेश करेंगे और उनके बाप-दादा और उनकी पत्नियों और उनकी सन्तानों में से जो नेक होंगे वे भी और हर दरवाज़े से फ़रिश्ते उनके पास पहुँचेंगे 13|24|(वे कहेंगे) "तुमपर सलाम है उसके बदले में जो तुमने धैर्य से काम लिया।" अतः क्या ही अच्छा परिणाम है आख़िरत के घर का! 13|25|रहे वे लोग जो अल्लाह की प्रतिज्ञा को उसे दृढ़ करने के पश्चात तोड़ डालते है और अल्लाह ने जिसे जोड़ने का आदेश दिया है, उसे काटते है और धरती में बिगाड़ पैदा करते है। वहीं है जिनके लिए फिटकार है और जिनके लिए आख़िरत का बुरा घर है 13|26|अल्लाह जिसको चाहता है प्रचुर फैली हुई रोज़ी प्रदान करता है औऱ इसी प्रकार नपी-तुली भी। और वे सांसारिक जीवन में मग्न हैं, हालाँकि सांसारिक जीवन आख़िरत के मुक़ाबले में तो बस अल्प सुख-सामग्री है 13|27|जिन लोगों ने इनकार किया वे कहते है, "उसपर उसके रब की ओर से कोई निशानी क्यों नहीं उतरी?" कहो, "अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट कर देता है। अपनी ओर से वह मार्गदर्शन उसी का करता है जो रुजू होता है।" 13|28|ऐसे ही लोग है जो ईमान लाए और जिनके दिलों को अल्लाह के स्मरण से आराम और चैन मिलता है। सुन लो, अल्लाह के स्मरण से ही दिलों को संतोष प्राप्त हुआ करता है 13|29|जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए उनके लिए सुख-सौभाग्य है और लौटने का अच्छा ठिकाना है 13|30|अतएव हमने तुम्हें एक ऐसे समुदाय में भेजा है जिससे पहले कितने ही समुदाय गुज़र चुके है, ताकि हमने तुम्हारी ओर जो प्रकाशना की है, उसे उनको सुना दो, यद्यपि वे रहमान के साथ इनकार की नीति अपनाए हुए है। कह दो, "वही मेरा रब है। उसके सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की ओर मुझे पलटकर जाना है।" 13|31|और यदि कोई ऐसा क़ुरआन होता जिसके द्वारा पहाड़ चलने लगते या उससे धरती खंड-खंड हो जाती या उसके द्वारा मुर्दे बोलने लगते (तब भी वे लोग ईमान न लाते) । नहीं, बल्कि बात यह है कि सारे काम अल्लाह ही के अधिकार में है। फिर क्या जो लोग ईमान लाए है वे यह जानकर निराश नहीं हुए कि यदि अल्लाह चाहता तो सारे ही मनुष्यों को सीधे मार्ग पर लगा देता? और इनकार करनेवालों पर तो उनकी करतूतों के बदले में कोई न कोई आपदा निरंतर आती ही रहेगी, या उनके घर के निकट ही कहीं उतरती रहेगी, यहाँ तक कि अल्लाह का वादा आ पूरा होगा। निस्संदेह अल्लाह अपने वादे के विरुद्ध नहीं जाता।" 13|32|तुमसे पहले भी कितने ही रसूलों का उपहास किया जा चुका है, किन्तु मैंने इनकार करनेवालों को मुहलत दी। फिर अंततः मैंने उन्हें पकड़ लिया, फिर कैसी रही मेरी सज़ा? 13|33|भला वह (अल्लाह) जो प्रत्येक व्यक्ति के सिर पर, उसकी कमाई पर निगाह रखते हुए खड़ा है (उसके समान कोई दूसरा हो सकता है)? फिर भी लोगों ने अल्लाह के सहभागी-ठहरा रखे है। कहो, "तनिक उनके नाम तो लो! (क्या तुम्हारे पास उनके पक्ष में कोई प्रमाण है?) या ऐसा है कि तुम उसे ऐसी बात की ख़बर दे रहे हो, जिसके अस्तित्व की उसे धरती भर में ख़बर नहीं? या यूँ ही यह एक ऊपरी बात ही बात है?" नहीं, बल्कि इनकार करनेवालों को उनकी मक्कारी ही सुहावनी लगती है और वे मार्ग से रुक गए है। जिसे अल्लाह ही गुमराही में छोड़ दे, उसे कोई मार्ग पर लानेवाला नहीं 13|34|उनके लिए सांसारिक जीवन में भी यातना, तो वह अत्यन्त कठोर है। औऱ कोई भी तो नहीं जो उन्हें अल्लाह से बचानेवाला हो 13|35|डर रखनेवालों के लिए जिस जन्नत का वादा है उसकी शान यह है कि उसके नीचे नहरें बह रही है, उसके फल शाश्वत है और इसी प्रकार उसकी छाया भी। यह परिणाम है उनका जो डर रखते है, जबकि इनकार करनेवालों का परिणाम आग है 13|36|जिन लोगों को हमने किताब प्रदान की है वे उससे, जो तुम्हारी ओर उतारा है, हर्षित होते है और विभिन्न गिरोहों के कुछ लोग ऐसे भी है जो उसकी कुछ बातों का इनकार करते है। कह दो, "मुझे पर बस यह आदेश हुआ है कि मैं अल्लाह की बन्दगी करूँ और उसका सहभागी न ठहराऊँ। मैं उसी की ओर बुलाता हूँ और उसी की ओर मुझे लौटकर जाना है।" 13|37|और इसी प्रकार हमने इस (क़ुरआन) को एक अरबी फ़रमान के रूप में उतारा है। अब यदि तुम उस ज्ञान के पश्चात भी, जो तुम्हारे पास आ चुका है, उनकी इच्छाओं के पीछे चले तो अल्लाह के मुक़ाबले में न तो तुम्हारा कोई सहायक मित्र होगा और न कोई बचानेवाला 13|38|तुमसे पहले भी हम, कितने ही रसूल भेज चुके है और हमने उन्हें पत्नियों और बच्चे भी दिए थे, और किसी रसूल को यह अधिकार नहीं था कि वह अल्लाह की अनुमति के बिना कोई निशानी स्वयं ला लेता। हर चीज़ के एक समय जो अटल लिखित है 13|39|अल्लाह जो कुछ चाहता है मिटा देता है। इसी तरह वह क़ायम भी रखता है। मूल किताब तो स्वयं उसी के पास है 13|40|हम जो वादा उनसे कर रहे है चाहे उसमें से कुछ हम तुम्हें दिखा दें, या तुम्हें उठा लें। तुम्हारा दायित्व तो बस सन्देश का पहुँचा देना ही है, हिसाब लेना तो हमारे ज़िम्मे है 13|41|क्या उन्होंने देखा नहीं कि हम धरती पर चले आ रहे है, उसे उसके किनारों से घटाते हुए? अल्लाह ही फ़ैसला करता है। कोई नहीं जो उसके फ़ैसले को पीछे डाल सके। वह हिसाब भी जल्द लेता है 13|42|उनसे पहले जो लोग गुज़रे है, वे भी चालें चल चुके है, किन्तु वास्तविक चाल तो पूरी की पूरी अल्लाह ही के हाथ में है। प्रत्येक व्यक्ति जो कमाई कर रहा है उसे वह जानता है। इनकार करनेवालों को शीघ्र ही ज्ञात हो जाएगा कि परलोक-गृह के शुभ परिणाम के अधिकारी कौन है 13|43|जिन लोगों ने इनकार की नीति अपनाई, वे कहते है, "तुम कोई रसूल नहीं हो।" कह दो, "मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह की और जिस किसी के पास किताब का ज्ञान है उसकी, गवाही काफ़ी है।" 14|1|अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह एक किताब है जिसे हमने तुम्हारी ओर अवतरित की है, ताकि तुम मनुष्यों को अँधेरों से निकालकर प्रकाश की ओर ले आओ, उनके रब की अनुमति से प्रभुत्वशाली, प्रशंस्य सत्ता, उस अल्लाह के मार्ग की ओर 14|2|जिसका वह सब है जो कुछ आकाशों में है और जो कुछ धरती में है। इनकार करनेवालों के लिए तो एक कठोर यातना के कारण बड़ी तबाही है 14|3|जो आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन को प्राथमिकता देते है और अल्लाह के मार्ग से रोकते है और उसमें टेढ़ पैदा करना चाहते है, वही परले दरजे की गुमराही में पड़े है 14|4|हमने जो रसूल भी भेजा, उसकी अपनी क़ौम की भाषा के साथ ही भेजा, ताकि वह उनके लिए अच्छी तरह खोलकर बयान कर दे। फिर अल्लाह जिसे चाहता है पथभ्रष्ट रहने देता है और जिसे चाहता है सीधे मार्ग पर लगा देता है। वह है भी प्रभुत्वशाली, अत्यन्त तत्वदर्शी 14|5|हमने मूसा को अपनी निशानियों के साथ भेजा था कि "अपनी क़ौम के लोगों को अँधेरों से प्रकाश की ओर निकाल ला और उन्हें अल्लाह के दिवस याद दिला।" निश्चय ही इसमें प्रत्येक धैर्यवान, कृतज्ञ व्यक्ति के लिए कितनी ही निशानियाँ है 14|6|जब मूसा ने अपनी क़ौम के लोगों से कहा, "अल्लाह ही उस कृपादृष्टि को याद करो, जो तुमपर हुई। जब उसने तुम्हें फ़िरऔनियों से छुटकारा दिलाया जो तुम्हें बुरी यातना दे रहे थे, तुम्हारे बेटों का वध कर डालते थे और तुम्हारी औरतों को जीवित रखते थे, किन्तु इसमें तुम्हारे रब की ओर से बड़ी कृपा हुई।" 14|7|जब तुम्हारे रब ने सचेत कर दिया था कि 'यदि तुम कृतज्ञ हुए तो मैं तुम्हें और अधिक दूँगा, परन्तु यदि तुम अकृतज्ञ सिद्ध हुए तो निश्चय ही मेरी यातना भी अत्यन्त कठोर है।' 14|8|और मूसा ने भी कहा था, "यदि तुम और वे जो भी धरती में हैं सब के सब अकृतज्ञ हो जाओ तो अल्लाह तो बड़ा निरपेक्ष, प्रशंस्य है।" 14|9|क्या तुम्हें उन लोगों की खबर नहीं पहुँची जो तुमसे पहले गुज़रे हैं, नूह की क़ौम और आद और समूद और वे लोग जो उनके पश्चात हुए जिनको अल्लाह के अतिरिक्त कोई नहीं जानता? उनके पास उनके रसूल स्पष्टि प्रमाण लेकर आए थे, किन्तु उन्होंने उनके मुँह पर अपने हाथ रख दिए और कहने लगे, "जो कुछ देकर तुम्हें भेजा गया है, हम उसका इनकार करते है और जिसकी ओर तुम हमें बुला रहे हो, उसके विषय में तो हम अत्यन्त दुविधाजनक संदेह में ग्रस्त है।" 14|10|उनके रसूलों ने कहो, "क्या अल्लाह के विषय में संदेह है, जो आकाशों और धरती का रचयिता है? वह तो तुम्हें इसलिए बुला रहा है, ताकि तुम्हारे गुनाहों को क्षमा कर दे और तुम्हें एक नियत समय तक मुहल्ल दे।" उन्होंने कहा, "तुम तो बस हमारे ही जैसे एक मनुष्य हो, चाहते हो कि हमें उनसे रोक दो जिनकी पूजा हमारे बाप-दादा करते आए है। अच्छा, तो अब हमारे सामने कोई स्पष्ट प्रमाण ले आओ।" 14|11|उनके रसूलों ने उनसे कहा, "हम तो वास्तव में बस तुम्हारे ही जैसे मनुष्य है, किन्तु अल्लाह अपने बन्दों में से जिनपर चाहता है एहसान करता है और यह हमारा काम नहीं कि तुम्हारे सामने कोई प्रमाण ले आएँ। यह तो बस अल्लाह के आदेश के पश्चात ही सम्भव है; और अल्लाह ही पर ईमानवालों को भरोसा करना चाहिए 14|12|आख़िर हमें क्या हुआ है कि हम अल्लाह पर भरोसा न करें, जबकि उसने हमें हमारे मार्ग दिखाए है? तुम हमें जो तकलीफ़ पहुँचा रहे हो उसके मुक़ाबले में हम धैर्य से काम लेंगे। भरोसा करनेवालों को तो अल्लाह ही पर भरोसा करना चाहिए।" 14|13|अन्ततः इनकार करनेवालों ने अपने रसूलों से कहा, "हम तुम्हें अपने भू-भाग से निकालकर रहेंगे, या तो तुम्हें हमारे पंथ में लौट आना होगा।" तब उनके रब ने उनकी ओर प्रकाशना की, "हम अत्याचारियों को विनष्ट करके रहेंगे 14|14|और उनके पश्चात तुम्हें इस धरती में बसाएँगे। यह उसके लिए है, जिसे मेरे समक्ष खड़े होने का भय हो और जो मेरी चेतावनी से डरे।" 14|15|उन्होंने फ़ैसला चाहा और प्रत्येक सरकश-दुराग्रही असफल होकर रहा 14|16|वह जहन्नम से घिरा है और पीने को उसे कचलोहू का पानी दिया जाएगा, 14|17|जिसे वह कठिनाई से घूँट-घूँट करके पिएगा और ऐसा नहीं लगेगा कि वह आसानी से उसे उतार सकता है, और मृत्यु उसपर हर ओर से चली आती होगी, फिर भी वह मरेगा नहीं। और उसके सामने कठोर यातना होगी 14|18|जिन लोगों ने अपने रब का इनकार किया उनकी मिसाल यह है कि उनके कर्म जैसे राख हों जिसपर आँधी के दिन प्रचंड हवा का झोंका चले। कुछ भी उन्हें अपनी कमाई में से हाथ न आ सकेगा। यही परले दर्जे की तबाही और गुमराही है 14|19|क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने आकाशों और धरती को सोद्देश्य पैदा किया? यदि वह चाहे तो तुम सबको ले जाए और एक नवीन सृष्टा जनसमूह ले आए 14|20|और यह अल्लाह के लिए कुछ भी कठिन नहीं है 14|21|सबके सब अल्लाह के सामने खुलकर आ जाएँगे तो कमज़ोर लोग, उन लोगों से जो बड़े बने हुए थे, कहेंगे, "हम तो तुम्हारे पीछे चलते थे। तो क्या तुम अल्लाह की यातना में से कुछ हमपर टाल सकते हो? वे कहेंगे, "यदि अल्लाह हमें मार्ग दिखाता तो हम तुम्हें भी दिखाते। अब यदि हम व्याकुल हों या धैर्य से काम लें, हमारे लिए बराबर है। हमारे लिए बचने का कोई उपाय नहीं।" 14|22|जब मामले का फ़ैसला हो चुकेगा तब शैतान कहेगा, "अल्लाह ने तो तुमसे सच्चा वादा किया था और मैंने भी तुमसे वादा किया था, फिर मैंने तो तुमसे सत्य के प्रतिकूल कहा था। और मेरा तो तुमपर कोई अधिकार नहीं था, सिवाय इसके कि मैंने मान ली; बल्कि अपने आप ही को मलामत करो, न मैं तुम्हारी फ़रियाद सुन सकता हूँ और न तुम मेरी फ़रियाद सुन सकते हो। पहले जो तुमने सहभागी ठहराया था, मैं उससे विरक्त हूँ।" निश्चय ही अत्याचारियों के लिए दुखदायिनी यातना है 14|23|इसके विपरीत जो लोग ईमान लाए और उन्होंने अच्छे कर्म किए वे ऐसे बाग़ों में प्रवेश करेंगे जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी। उनमें वे अपने रब की अनुमति से सदैव रहेंगे। वहाँ उनका अभिवादन 'सलाम' से होगा 14|24|क्या तुमने देखा नहीं कि अल्लाह ने कैसी मिसाल पेश की? अच्छी उत्तम बात एक अच्छे शुभ वृक्ष के सदृश है, जिसकी जड़ गहरी जमी हुई हो और उसकी शाखाएँ आकाश में पहुँची हुई हों; 14|25|अपने रब की अनुमति से वह हर समय अपना फल दे रहा हो। अल्लाह तो लोगों के लिए मिशालें पेश करता है, ताकि वे जाग्रत हों 14|26|और अशुभ एंव अशुद्ध बात की मिसाल एक अशुभ वृक्ष के सदृश है, जिसे धरती के ऊपर ही से उखाड़ लिया जाए और उसे कुछ भी स्थिरता प्राप्त न हो 14|27|ईमान लानेवालों को अल्लाह सुदृढ़ बात के द्वारा सांसारिक जीवन में भी परलोक में भी सुदृढ़ता प्रदान करता है और अत्याचारियों को अल्लाह विचलित कर देता है। और अल्लाह जो चाहता है, करता है 14|28|क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जिन्होंने अल्लाह की नेमत को कुफ़्र से बदल डाला औऱ अपनी क़ौम को विनाश-गृह में उतार दिया; 14|29|जहन्नम में, जिसमें वे झोंके जाएँगे और वह अत्यन्त बुरा ठिकाना है! 14|30|और उन्होंने अल्लाह के प्रतिद्वन्दी बना दिए, ताकि परिणामस्वरूप वे उन्हें उसके मार्ग से भटका दें। कह दो, "थोड़े दिन मज़े ले लो। अन्ततः तुम्हें आग ही की ओर जाना है।" 14|31|मेरे जो बन्दे ईमान लाए है उनसे कह दो कि वे नमाज़ की पाबन्दी करें और हमने उन्हें जो कुछ दिया है उसमें से छुपे और खुले ख़र्च करें, इससे पहले कि वह दिन आ जाए जिनमें न कोई क्रय-विक्रय होगा और न मैत्री 14|32|वह अल्लाह ही है जिसने आकाशों और धरती की सृष्टि की और आकाश से पानी उतारा, फिर वह उसके द्वारा कितने ही पैदावार और फल तुम्हारी आजीविका के रूप में सामने लाया। और नौका को तुम्हारे काम में लगाया, ताकि समुद्र में उसके आदेश से चले और नदियों को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगाया 14|33|और सूर्य और चन्द्रमा को तुम्हारे लिए कार्यरत किया और एक नियत विधान के अधीन निरंतर गतिशील है। और रात औऱ दिन को भी तुम्हें लाभ पहुँचाने में लगा रखा है 14|34|और हर उस चीज़ में से तुम्हें दिया जो तुमने उससे माँगा यदि तुम अल्लाह की नेमतों की गणना नहीं कर सकते। वास्तव में मनुष्य ही बड़ा ही अन्यायी, कृतघ्न है 14|35|याद करो जब इबराहीम ने कहा था, "मेरे रब! इस भूभाग (मक्का) को शान्तिमय बना दे और मुझे और मेरी सन्तान को इससे बचा कि हम मूर्तियों को पूजने लग जाए 14|36|मेरे रब! इन्होंने (इन मूर्तियों नॆ) बहुत से लोगों को पथभ्रष्ट किया है। अतः जिस किसी ने मॆरा अनुसरण किया वह मेरा है और जिस ने मेरी अवज्ञा की तो निश्चय ही तू बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है 14|37|मेरे रब! मैंने एक ऐसी घाटी में जहाँ कृषि-योग्य भूमि नहीं अपनी सन्तान के एक हिस्से को तेरे प्रतिष्ठित घर (काबा) के निकट बसा दिया है। हमारे रब! ताकि वे नमाज़ क़ायम करें। अतः तू लोगों के दिलों को उनकी ओर झुका दे और उन्हें फलों और पैदावार की आजीविका प्रदान कर, ताकि वे कृतज्ञ बने 14|38|हमारे रब! तू जानता ही है जो कुछ हम छिपाते है और जो कुछ प्रकट करते है। अल्लाह से तो कोई चीज़ न धरती में छिपी है और न आकाश में 14|39|सारी प्रशंसा है उस अल्लाह की जिसने बुढ़ापे के होते हुए भी मुझे इसमाईल और इसहाक़ दिए। निस्संदेह मेरा रब प्रार्थना अवश्य सुनता है 14|40|मेरे रब! मुझे और मेरी सन्तान को नमाज़ क़ायम करनेवाला बना। हमारे रब! और हमारी प्रार्थना स्वीकार कर 14|41|हमारे रब! मुझे और मेरे माँ-बाप को और मोमिनों को उस दिन क्षमाकर देना, जिस दिन हिसाब का मामला पेश आएगा।" 14|42|अब ये अत्याचारी जो कुछ कर रहे है, उससे अल्लाह को असावधान न समझो। वह तो इन्हें बस उस दिन तक के लिए टाल रहा है जबकि आँखे फटी की फटी रह जाएँगी, 14|43|अपने सिर उठाए भागे चले जा रहे होंगे; उनकी निगाह स्वयं उनकी अपनी ओर भी न फिरेगी और उनके दिल उड़े जा रहे होंगे 14|44|लोगों को उस दिन से डराओ, जब यातना उन्हें आ लेगी। उस समय अत्याचारी लोग कहेंगे, "हमारे रब! हमें थोड़ी-सी मुहलत दे दे। हम तेरे आमंत्रण को स्वीकार करेंगे और रसूलों का अनुसरण करेंगे।" कहा जाएगा, "क्या तुम इससे पहले क़समें नहीं खाया करते थे कि हमारा तो पतन ही न होगा?" 14|45|तुम लोगों की बस्तियों में रह-बस चुके थे, जिन्होंने अपने ऊपर अत्याचार किया था और तुमपर अच्छी तरह स्पष्ट हो चुका था कि उनके साथ हमने कैसा मामला किया और हमने तुम्हारे लिए कितनी ही मिशालें बयान की थी।" 14|46|वे अपनी चाल चल चुक हैं। अल्लाह के पास भी उनके लिए चाल मौजूद थी, यद्यपि उनकी चाल ऐसी ही क्यों न रही हो जिससे पर्वत भी अपने स्थान से टल जाएँ 14|47|अतः यह न समझना कि अल्लाह अपने रसूलों से किए हुए अपने वादे के विरुद्ध जाएगा। अल्लाह तो अपार शक्तिवाला, प्रतिशोधक है 14|48|जिस दिन यह धरती दूसरी धरती से बदल दी जाएगी और आकाश भी। और वे सब के सब अल्लाह के सामने खुलकर आ जाएँगे, जो अकेला है, सबपर जिसका आधिपत्य है 14|49|और उस दिन तुम अपराधियों को देखोगे कि ज़ंजीरों में जकड़े हुए है 14|50|उनके परिधान तारकोल के होंगे और आग उनके चहरों पर छा रही होगी, 14|51|ताकि अल्लाह प्रत्येक जीव को उसकी कमाई का बदला दे। निश्चय ही अल्लाह जल्द हिसाब लेनेवाला है 14|52|यह लोगों को सन्देश पहुँचा देना है (ताकि वे इसे ध्यानपूर्वक सुनें) और ताकि उन्हें इसके द्वारा सावधान कर दिया जाए और ताकि वे जान लें कि वही अकेला पूज्य है और ताकि वे सचेत हो जाएँ, तो बुद्धि और समझ रखते है 15|1|अलिफ़॰ लाम॰ रा॰। यह किताब अर्थात स्पष्ट क़ुरआन की आयतें हैं 15|2|ऐसे समय आएँगे जब इनकार करनेवाले कामना करेंगे कि क्या ही अच्छा होता कि हम मुस्लिम (आज्ञाकारी) होते! 15|3|छोड़ो उन्हें खाएँ और मज़े उड़ाएँ और (लम्बी) आशा उन्हें भुलावे में डाले रखे। उन्हें जल्द ही मालूम हो जाएगा! 15|4|हमने जिस बस्ती को भी विनष्ट किया है, उसके लिए अनिवार्यतः एक निश्चित फ़ैसला रहा है! 15|5|किसी समुदाय के लोग न अपने निश्चि‍त समय से आगे बढ़ सकते है और न वे पीछे रह सकते है 15|6|वे कहते है, "ऐ व्यक्ति, जिसपर अनुस्मरण अवतरित हुआ, तुम निश्चय ही दीवाने हो! 15|7|यदि तुम सच्चे हो तो हमारे समक्ष फ़रिश्तों को क्यों नहीं ले आते?" 15|8|फ़रिश्तों को हम केवल सत्य के प्रयोजन हेतु उतारते है और उस समय लोगों को मुहलत नहीं मिलेगी 15|9|यह अनुसरण निश्चय ही हमने अवतरित किया है और हम स्वयं इसके रक्षक हैं 15|10|तुमसे पहले कितने ही विगत गिरोंहों में हम रसूल भेज चुके है 15|11|कोई भी रसूल उनके पास ऐसा नहीं आया, जिसका उन्होंने उपहास न किया हो 15|12|इसी तरह हम अपराधियों के दिलों में इसे उतारते है 15|13|वे इसे मानेंगे नहीं। पहले के लोगों की मिसालें गुज़र चुकी हैं 15|14|यदि हम उनपर आकाश से कोई द्वार खोल दें और वे दिन-दहाड़े उसमें चढ़ने भी लगें, 15|15|फिर भी वे यही कहेंगे, "हमारी आँखें मदमाती हैं, बल्कि हम लोगों पर जादू कर दिया गया है!" 15|16|हमने आकाश में बुर्ज (तारा-समूह) बनाए और हमने उसे देखनेवालों के लिए सुसज्जित भी किया 15|17|और हर फिटकारे हुए शैतान से उसे सुरक्षित रखा - 15|18|यह और बात है कि किसी ने चोरी-छिपे कुछ सुनगुन ले लिया तो एक प्रत्यक्ष अग्निशिखा ने भी झपटकर उसका पीछा किया - 15|19|और हमने धरती को फैलाया और उसमें अटल पहाड़ डाल दिए और उसमें हर चीज़ नपे-तुले अन्दाज़ में उगाई 15|20|और उसमें तुम्हारे गुज़र-बसर के सामान निर्मित किए, और उनको भी जिनको रोज़ी देनेवाले तुम नहीं हो 15|21|कोई भी चीज़ तो ऐसी नहीं है जिसके भंडार हमारे पास न हों, फिर भी हम उसे एक ज्ञात (निश्चिंत) मात्रा के साथ उतारते है 15|22|हम ही वर्षा लानेवाली हवाओं को भेजते है। फिर आकाश से पानी बरसाते है और उससे तुम्हें सिंचित करते है। उसके ख़जानादार तुम नहीं हो 15|23|हम ही जीवन और मृत्यु देते है और हम ही उत्तराधिकारी रह जाते है 15|24|हम तुम्हारे पहले के लोगों को भी जानते है और बाद के आनेवालों को भी हम जानते है 15|25|तुम्हारा रब ही है, जो उन्हें इकट्ठा करेगा। निस्संदेह वह तत्वदर्शी, सर्वज्ञ है 15|26|हमने मनुष्य को सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से बनाया है, 15|27|और उससे पहले हम जिन्नों को लू रूपी अग्नि से पैदा कर चुके थे 15|28|याद करो जब तुम्हारे रब ने फ़रिश्तों से कहा, "मैं सड़े हुए गारे की खनखनाती हुई मिट्टी से एक मनुष्य पैदा करनेवाला हूँ 15|29|तो जब मैं उसे पूरा बना चुकूँ और उसमें अपनी रूह फूँक दूँ तो तुम उसके आगे सजदे में गिर जाना!" 15|30|अतएव सब के सब फ़रिश्तो ने सजदा किया, 15|31|सिवाय इबलीस के। उसने सजदा करनेवालों के साथ शामिल होने से इनकार कर दिया 15|32|कहा, "ऐ इबलीस! तुझे क्या हुआ कि तू सजदा करनेवालों में शामिल नहीं हुआ?" 15|33|उसने कहा, "मैं ऐसा नहीं हूँ कि मैं उस मनुष्य को सजदा करूँ जिसको तू ने सड़े हुए गारे की खनखनाती हुए मिट्टी से बनाया।" 15|34|कहा, "अच्छा, तू निकल जा यहाँ से, क्योंकि तुझपर फिटकार है! 15|35|निश्चय ही बदले के दिन तक तुझ पर धिक्कार है।" 15|36|उसने कहा, "मेरे रब! फिर तू मुझे उस दिन तक के लिए मुहलत दे, जबकि सब उठाए जाएँगे।" 15|37|कहा, "अच्छा, तुझे मुहलत है, 15|38|उस दिन तक के लिए जिसका समय ज्ञात एवं नियत है।" 15|39|उसने कहा, "मेरे रब! इसलिए कि तूने मुझे सीधे मार्ग से विचलित कर दिया है, अतः मैं भी धरती में उनके लिए मनमोहकता पैदा करूँगा और उन सबको बहकाकर रहूँगा, 15|40|सिवाय उनके जो तेरे चुने हुए बन्दे होंगे।" 15|41|कहा, "मुझ तक पहुँचने का यही सीधा मार्ग है, 15|42|मेरे बन्दों पर तो तेरा कुछ ज़ोर न चलेगा, सिवाय उन बहके हुए लोगों को जो तेरे पीछे हो लें 15|43|निश्चय ही जहन्नम ही का ऐसे समस्त लोगों से वादा है 15|44|उसके सात द्वार है। प्रत्येक द्वार के लिए एक ख़ास हिस्सा होगा।" 15|45|निस्संदेह डर रखनेवाले बाग़ों और स्रोतों में होंगे, 15|46|"प्रवेश करो इनमें निर्भयतापूर्वक सलामती के साथ!" 15|47|उनके सीनों में जो मन-मुटाव होगा उसे हम दूर कर देंगे। वे भाई-भाई बनकर आमने-सामने तख़्तों पर होंगे 15|48|उन्हें वहाँ न तो कोई थकान और तकलीफ़ पहुँचेगी औऱ न वे वहाँ से कभी निकाले ही जाएँगे 15|49|मेरे बन्दों को सूचित कर दो कि मैं अत्यन्त क्षमाशील, दयावान हूँ; 15|50|और यह कि मेरी यातना भी अत्यन्त दुखदायिनी यातना है 15|51|और उन्हें इबराहीम के अतिथियों का वृत्तान्त सुनाओ, 15|52|जब वे उसके यहाँ आए और उन्होंने सलाम किया तो उसने कहा, "हमें तो तुमसे डर लग रहा है।" 15|53|वे बोले, "डरो नहीं, हम तुम्हें एक ज्ञानवान पुत्र की शुभ सूचना देते है।" 15|54|उसने कहा, "क्या तुम मुझे शुभ सूचना दे रहे हो, इस अवस्था में कि मेरा बुढापा आ गया है? तो अब मुझे किस बात की शुभ सूचना दे रहे हो?" 15|55|उन्होंने कहा, "हम तुम्हें सच्ची शुभ सूचना दे रहे हैं, तो तुम निराश न हो" 15|56|उसने कहा, "अपने रब की दयालुता से पथभ्रष्टों के सिवा और कौन निराश होगा?" 15|57|उसने कहा, "ऐ दूतो, तुम किस अभियान पर आए हो?" 15|58|वे बोले, "हम तो एक अपराधी क़ौम की ओर भेजे गए है, 15|59|सिवाय लूत के घरवालों के। उन सबको तो हम बचा लेंगे, 15|60|सिवाय उसकी पत्नी के - हमने निश्चित कर दिया है, वह तो पीछे रह जानेवालों में रहेंगी।" 15|61|फिर जब ये दूत लूत के यहाँ पहुँचे, 15|62|तो उसने कहा, "तुम तो अपरिचित लोग हो।" 15|63|उन्होंने कहा, "नहीं, बल्कि हम तो तुम्हारे पास वही चीज़ लेकर आए है, जिसके विषय में वे सन्देह कर रहे थे 15|64|और हम तुम्हारे पास यक़ीनी चीज़ लेकर आए है, और हम बिलकुल सच कह रहे है 15|65|अतएव अब तुम अपने घरवालों को लेकर रात्रि के किसी हिस्से में निकल जाओ, और स्वयं उन सबके पीछे-पीछे चलो। और तुममें से कोई भी पीछे मुड़कर न देखे। बस चले जाओ, जिधर का तुम्हे आदेश है।" 15|66|हमने उसे अपना यह फ़ैसला पहुँचा दिया कि प्रातः होते-होते उनकी जड़ कट चुकी होगी 15|67|इतने में नगर के लोग ख़ुश-ख़ुश आ पहुँचे 15|68|उसने कहा, "ये मेरे अतिथि है। मेरी फ़ज़ीहत मत करना, 15|69|अल्लाह का डर ऱखो, मुझे रुसवा न करो।" 15|70|उन्होंने कहा, "क्या हमने तुम्हें दुनिया भर के लोगों का ज़िम्मा लेने से रोका नहीं था?" 15|71|उसने कहा, "तुमको यदि कुछ करना है, तो ये मेरी (क़ौम की) बेटियाँ (विधितः विवाह के लिए) मौजूद है।" 15|72|तुम्हारे जीवन की सौगन्ध, वे अपनी मस्ती में खोए हुए थे, 15|73|अन्ततः पौ फटते-फटते एक भयंकर आवाज़ ने उन्हें आ लिया, 15|74|और हमने उस बस्ती को तलपट कर दिया, और उनपर कंकरीले पत्थर बरसाए 15|75|निश्चय ही इसमें भापनेवालों के लिए निशानियाँ है 15|76|और वह (बस्ती) सार्वजनिक मार्ग पर है 15|77|निश्चय ही इसमें मोमिनों के लिए एक बड़ी निशानी है 15|78|और निश्चय ही ऐसा वाले भी अत्याचारी थे, 15|79|फिर हमने उनसे भी बदला लिया, और ये दोनों (भू-भाग) खुले मार्ग पर स्थित है 15|80|हिज्रवाले भी रसूलों को झुठला चुके है 15|81|हमने तो उन्हें अपनी निशानियाँ प्रदान की थी, परन्तु वे उनकी उपेक्षा ही करते रहे 15|82|वे बड़ी बेफ़िक्री से पहाड़ो को काट-काटकर घर बनाते थे 15|83|अन्ततः एक भयानक आवाज़ ने प्रातः होते- होते उन्हें आ लिया 15|84|फिर जो कुछ वे कमाते रहे, वह उनके कुछ काम न आ सका 15|85|हमने तो आकाशों और धरती को और जो कुछ उनके मध्य है, सोद्देश्य पैदा किया है, और वह क़ियामत की घड़ी तो अनिवार्यतः आनेवाली है। अतः तुम भली प्रकार दरगुज़र (क्षमा) से काम लो 15|86|निश्चय ही तुम्हारा रब ही बड़ा पैदा करनेवाला, सब कुछ जाननेवाला है 15|87|हमने तुम्हें सात 'मसानी' का समूह यानी महान क़ुरआन दिया- 15|88|जो कुछ सुख-सामग्री हमने उनमें से विभिन्न प्रकार के लोगों को दी है, तुम उसपर अपनी आँखें न पसारो और न उनपर दुखी हो, तुम तो अपनी भुजाएँ मोमिनों के लिए झुकाए रखो, 15|89|और कह दो, "मैं तो साफ़-साफ़ चेतावनी देनेवाला हूँ।" 15|90|जिस प्रकार हमने हिस्सा-बख़रा करनेवालों पर उतारा था, 15|91|जिन्होंने (अपने) क़ुरआन को टुकड़े-टुकड़े कर डाला 15|92|अब तुम्हारे रब की क़सम! हम अवश्य ही उन सबसे उसके विषय में पूछेंगे 15|93|जो कुछ वे करते रहे। 15|94|अतः तु्म्हें जिस चीज़ का आदेश हुआ है, उसे हाँक-पुकारकर बयान कर दो, और मुशरिको की ओर ध्यान न दो 15|95|उपहास करनेवालों के लिए हम तुम्हारी ओर से काफ़ी है 15|96|जो अल्लाह के साथ दूसरों को पूज्य-प्रभु ठहराते है, तो शीघ्र ही उन्हें मालूम हो जाएगा! 15|97|हम जानते है कि वे जो कुछ कहते है, उससे तुम्हारा दिल तंग होता है 15|98|तो तुम अपने रब का गुणगान करो और सजदा करनेवालों में सम्मिलित रहो 15|99|और अपने रब की बन्दगी में लगे रहो, यहाँ तक कि जो यक़ीनी है, वह तुम्हारे सामने आ जाए 16|1|आ गया आदेश अल्लाह का, तो अब उसके लिए जल्दी न मचाओ। वह महान और उच्च है उस शिर्क से जो व कर रहे है 16|2|वह फ़रिश्तों को अपने हुक्म की रूह (वह्यल) के साथ अपने जिस बन्दे पर चाहता है उतारता है कि "सचेत कर दो, मेरे सिवा कोई पूज्य-प्रभु नहीं। अतः तुम मेरा ही डर रखो।" 16|3|उसने आकाशों और धरती को सोद्देश्य पैदा किया। वह अत्यन्त उच्च है उस शिर्क से जो वे कर रहे है 16|4|उसने मनुष्यों को एक बूँद से पैदा किया। फिर क्या देखते है कि वह खुला झगड़नेवाला बन गया! 16|5|रहे पशु, उन्हें भी उसी ने पैदा किया, जिसमें तुम्हारे लिए ऊष्मा प्राप्त करने का सामान भी है और हैं अन्य कितने ही लाभ। उनमें से कुछ को तुम खाते भी हो 16|6|उनमें तुम्हारे लिए सौन्दर्य भी है, जबकि तुम सायंकाल उन्हें लाते और जबकि तुम उन्हें चराने ले जाते हो 16|7|वे तुम्हारे बोझ ढोकर ऐसे भूभाग तक ले जाते हैं, जहाँ तुम जी-तोड़ परिश्रम के बिना नहीं पहुँच सकते थे। निस्संदेह तुम्हारा रब बड़ा ही करुणामय, दयावान है 16|8|और घोड़े और खच्चर और गधे भी पैदा किए, ताकि तुम उनपर सवार हो और शोभा का कारण भी। और वह उसे भी पैदा करता है, जिसे तुम नहीं जानते 16|9|अल्लाह के लिए ज़रूरी है उचित एवं अनुकूल मार्ग दिखाना और कुछ मार्ग टेढ़े भी है। यदि वह चाहता तो तुम सबको अवश्य सीधा मार्ग दिखा देता 16|10|वही है जिसने आकाश से तुम्हारे लिए पानी उतारा, जिसे तुम पीते हो और उसी से पेड़ और वनस्पतियाँ भी उगती है, जिनमें तुम जानवरों को चराते हो 16|11|और उसी से वह तुम्हारे लिए खेतियाँ उगाता है और ज़ैतून, खजूर, अंगूर और हर प्रकार के फल पैदा करता है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवालों के लिए इसमें एक निशानी है 16|12|और उसने तुम्हारे लिए रात और दिन को और सूर्य और चन्द्रमा को कार्यरत कर रखा है। और तारे भी उसी की आज्ञा से कार्यरत है - निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए निशानियाँ है जो बुद्धि से काम लेते है- 16|13|और धरती में तुम्हारे लिए जो रंग-बिरंग की चीज़े बिखेर रखी है, उसमें भी उन लोगों के लिए बड़ी निशानी है जो शिक्षा लेनेवाले है 16|14|वही तो है जिसने समुद्र को वश में किया है, ताकि तुम उससे ताज़ा मांस लेकर खाओ और उससे आभूषण निकालो, जिसे तुम पहनते हो। तुम देखते ही हो कि नौकाएँ उसको चीरती हुई चलती हैं (ताकि तुम सफ़र कर सको) और ताकि तुम उसका अनुग्रह तलाश करो और ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ 16|15|और उसने धरती में अटल पहाड़ डाल दिए, कि वह तुम्हें लेकर झुक न पड़े। और नदियाँ बनाई और प्राकृतिक मार्ग बनाए, ताकि तुम मार्ग पा सको 16|16|और मार्ग चिन्ह भी बनाए और तारों के द्वारा भी लोग मार्ग पर लेते है 16|17|फिर क्या जो पैदा करता है वह उस जैसा हो सकता है, जो पैदा नहीं करता? फिर क्या तुम्हें होश नहीं होता? 16|18|और यदि तुम अल्लाह की नेमतों (कृपादानों) को गिनना चाहो तो उन्हें पूर्ण-रूप से गिन नहीं सकते। निस्संदेह अल्लाह बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है 16|19|और अल्लाह जानता है जो कुछ तुम छिपाते हो और जो कुछ प्रकट करते हो 16|20|और जिन्हें वे अल्लाह से हटकर पुकारते है वे किसी चीज़ को भी पैदा नहीं करते, बल्कि वे स्वयं पैदा किए जाते है 16|21|मृत है, जिनमें प्राण नहीं। उन्हें मालूम नहीं कि वे कब उठाए जाएँगे 16|22|तुम्हारा पूज्य-प्रभु अकेला प्रभु-पूज्य है। किन्तु जो आख़िरत में विश्वास नहीं रखते, उनके दिलों को इनकार है। वे अपने आपको बड़ा समझ रहे है 16|23|निश्चय ही अल्लाह भली-भाँति जानता है, जो कुछ वे छिपाते है और जो कुछ प्रकट करते है। उसे ऐसे लोग प्रिय नहीं, जो अपने आपको बड़ा समझते हो 16|24|और जब उनसे कहा जाता है कि "तुम्हारे रब ने क्या अवतरित किया है?" कहते है, "वे तो पहले लोगों की कहानियाँ है।" 16|25|इसका परिणाम यह होगा कि वे क़ियामत के दिन अपने बोझ भी पूरे उठाएँगे और उनके बोझ में से भी जिन्हें वे अज्ञानता के कारण पथभ्रष्ट कर रहे है। सुन लो, बहुत ही बुरा है वह बोझ जो वे उठा रहे है! 16|26|जो उनसे पहले गुज़र है वे भी मक्कारियाँ कर चुके है। फिर अल्लाह उनके भवन पर नीवों की ओर से आया और छत उनपर उनके ऊपर से आ गिरी और ऐसे रुख़ से उनपर यातना आई जिसका उन्हें एहसास तक न था 16|27|फिर क़ियामत के दिन अल्लाह उन्हें अपमानित करेगा और कहेगा, "कहाँ है मेरे वे साझीदार, जिनके लिए तुम लड़ते-झगड़ते थे?" जिन्हें ज्ञान प्राप्त था वे कहेंगे, "निश्चय ही आज रुसवाई और ख़राबी है इनकार करनेवालों के लिए।" 16|28|जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते है कि वे अपने आप पर अत्याचार कर रहे होते है, तब आज्ञाकारी एवं वशीभूत होकर आ झुकते है कि "हम तो कोई बुराई नहीं करते थे।" "नहीं, बल्कि अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ तुम करते रहे हो 16|29|तो अब जहन्नम के द्वारों में, उसमें सदैव रहने के लिए प्रवेश करो। अतः निश्चय ही बहुत ही बुरा ठिकाना है यह अहंकारियों का।" 16|30|दूसरी ओर जो डर रखनेवाले है उनसे कहा जाता है, "तुम्हारे रब ने क्या अवतरित किया?" वे कहते है, "जो सबसे उत्तम है।" जिन लोगों ने भलाई की उनकी इस दुनिया में भी अच्छी हालत है और आख़िरत का घर तो अच्छा है ही। और क्या ही अच्छा घर है डर रखनेवालों का! 16|31|सदैव रहने के बाग़ जिनमें वे प्रवेश करेंगे, उनके नीचे नहरें बह रहीं होंगी, उनके लिए वहाँ वह सब कुछ संचित होगा, जो वे चाहे। अल्लाह डर रखनेवालों को ऐसा ही प्रतिदान प्रदान करता है 16|32|जिनकी रूहों को फ़रिश्ते इस दशा में ग्रस्त करते है कि वे पाक और नेक होते है, वे कहते है, "तुम पर सलाम हो! प्रवेश करो जन्नत में उसके बदले में जो कुछ तुम करते रहे हो।" 16|33|क्या अब वे इसी की प्रतीक्षा कर रहे है कि फ़रिश्ते उनके पास आ पहुँचे या तेरे रब का आदेश ही आ जाए? ऐसा ही उन लोगो ने भी किया, जो इनसे पहले थे। अल्लाह ने उनपर अत्याचार नहीं किया, किन्तु वे स्वयं अपने ऊपर अत्याचार करते रहे 16|34|अन्ततः उनकी करतूतों की बुराइयाँ उनपर आ पड़ी, और जिसका उपहास वे कहते थे, उसी ने उन्हें आ घेरा 16|35|शिर्क करनेवालों का कहना है, "यदि अल्लाह चाहता तो उससे हटकर किसी चीज़ की न हम बन्दगी करते और न हमारे बाप-दादा ही और न हम उसके बिना किसी चीज़ को अवैध ठहराते।" उनसे पहले के लोगों ने भी ऐसा ही किया। तो क्या साफ़-साफ़ सन्देश पहुँचा देने के सिवा रसूलों पर कोई और भी ज़िम्मेदारी है? 16|36|हमने हर समुदाय में कोई न कोई रसूल भेजा कि "अल्लाह की बन्दगी करो और ताग़ूत से बचो।" फिर उनमें से किसी को तो अल्लाह ने सीधे मार्ग पर लगाया और उनमें से किसी पर पथभ्रष्ट सिद्ध होकर रही। फिर तनिक धरती में चल-फिरकर तो देखो कि झुठलानेवालों का कैसा परिणाम हुआ 16|37|यद्यपि इस बात का कि वे राह पर आ जाएँ तुम्हें लालच ही क्यों न हो, किन्तु अल्लाह जिसे भटका देता है, उसे वह मार्ग नहीं दिखाया करता और ऐसे लोगों का कोई सहायक भी नहीं होता 16|38|उन्होंने अल्लाह की कड़ी-कड़ी क़समें खाकर कहा, "जो मर जाता है उसे अल्लाह नहीं उठाएगा।" क्यों नहीं? यह तो एक वादा है, जिसे पूरा करना उसके लिए अनिवार्य है - किन्तु अधिकतर लोग जानते नहीं। - 16|39|ताकि वह उनपर उसको स्पष्ट। कर दे, जिसके विषय में वे विभेद करते है और इसलिए भी कि इनकार करनेवाले जान लें कि वे झूठे थे 16|40|किसी चीज़ के लिए जब हम उसका इरादा करते है तो हमारा कहना बस यही होता है कि उससे कहते है, "हो जा!" और वह हो जाती है 16|41|और जिन लोगों ने इसके पश्चात कि उनपर ज़ुल्म ढाया गया था अल्लाह के लिए घर-बार छोड़ा उन्हें हम दुनिया में भी अच्छा ठिकाना देंगे और आख़िरत का प्रतिदान तो बहुत बड़ा है। क्या ही अच्छा होता कि वे जानते 16|42|ये वे लोग है जो जमे रहे और वे अपने रब पर भरोसा रखते है 16|43|हमने तुमसे पहले भी पुरुषों ही को रसूल बनाकर भेजा था - जिनकी ओर हम प्रकाशना करते रहे है। यदि तुम नहीं जानते तो अनुस्मृतिवालों से पूछ लो 16|44|स्पष्ट प्रमाणों और ज़बूरों (किताबों) के साथ। और अब यह अनुस्मृति तुम्हारी ओर हमने अवतरित की, ताकि तुम लोगों के समक्ष खोल-खोलकर बयान कर दो जो कुछ उनकी ओर उतारा गया है और ताकि वे सोच-विचार करें 16|45|फिर क्या वे लोग जो ऐसी बुरी-बुरी चालें चल रहे है, इस बात से निश्चिन्त हो गए है कि अल्लाह उन्हें धरती में धँसा दे या ऐसे मौके से उनपर यातना आ जाए जिसका उन्हें एहसास तक न हो? 16|46|या उन्हें चलते-फिरते ही पकड़ ले, वे क़ाबू से बाहर निकल जानेवाले तो है नहीं? 16|47|क्या अल्लाह की पैदा की हुई किसी चीज़ को उन्होंने देखा नहीं कि किस प्रकार उसकी परछाइयाँ अल्लाह को सजदा करती और विनम्रता दिखाती हुई दाएँ और बाएँ ढलती है? 16|48|या वह उन्हें त्रस्त अवस्था में पकड़ ले? किन्तु तुम्हारा रब तो बड़ा ही करुणामय, दयावान है 16|49|और आकाशों और धरती में जितने भी जीवधारी है वे सब अल्लाह ही को सजदा करते है और फ़रिश्ते भी और वे घमंड बिलकुल नहीं करते 16|50|अपने ऊपर से अपने रब का डर रखते है और जो उन्हें आदेश होता है, वही करते है 16|51|अल्लाह का फ़रमान है, "दो-दो पूज्य-प्रभु न बनाओ, वह तो बस अकेला पूज्य-प्रभु है। अतः मुझी से डरो।" 16|52|जो कुछ आकाशों और धरती में है सब उसी का है। उसी का दीन (धर्म) स्थायी और अनिवार्य है। फिर क्या अल्लाह के सिवा तुम किसी और का डर रखोगे? 16|53|तुम्हारे पास जो भी नेमत है वह अल्लाह ही की ओर से है। फिर जब तुम्हे कोई तकलीफ़ पहुँचती है, तो तुम उसी से फ़रियाद करते हो 16|54|फिर जब वह उस तकलीफ़ को तुमसे टाल देता है, तो क्या देखते है कि तुममें से कुछ लोग अपने रब के साथ साझीदार ठहराने लगते है, 16|55|कि परिणामस्वरूप जो कुछ हमने उन्हें दिया है उसके प्रति कृतघ्नता दिखलाएँ। अच्छा, कुछ मज़े ले लो, शीघ्र ही तुम्हें मालूम हो जाएगा 16|56|हमने उन्हें जो आजीविका प्रदान की है उसमें वे उसका हिस्सा लगाते है जिन्हें वे जानते भी नहीं। अल्लाह की सौगंध! तुम जो झूठ घड़ते हो उसके विषय में तुमसे अवश्य पूछा जाएगा 16|57|और वे अल्लाह के लिए बेटियाँ ठहराते है - महान और उच्च है वह - और अपने लिए वह, जो वे चाहें 16|58|और जब उनमें से किसी को बेटी की शुभ सूचना मिलती है तो उसके चहरे पर कलौंस छा जाती है और वह घुटा-घुटा रहता है 16|59|जो शुभ सूचना उसे दी गई वह (उसकी दृष्टि में) ऐसी बुराई की बात हुई जो उसके कारण वह लोगों से छिपता फिरता है कि अपमान सहन करके उसे रहने दे या उसे मिट्टी में दबा दे। देखो, कितना बुरा फ़ैसला है जो वे करते है! 16|60|जो लोग आख़िरत को नहीं मानते बुरी मिसाल है उनकी। रहा अल्लाह, तो उसकी मिसाल अत्यन्त उच्च है। वह तो प्रभुत्वशाली, तत्वदर्शी है 16|61|यदि अल्लाह लोगों को उनके अत्याचार पर पकड़ने ही लग जाता तो धरती पर किसी जीवधारी को न छोड़ता, किन्तु वह उन्हें एक निश्चित समय तक टाले जाता है। फिर जब उनका नियत समय आ जाता है तो वे न तो एक घड़ी पीछे हट सकते है और न आगे बढ़ सकते है 16|62|वे अल्लाह के लिए वह कुछ ठहराते है, जिसे ख़ुद अपने लिए नापसन्द करते है और उनकी ज़बाने झूठ कहती है कि उनके लिए अच्छा परिणाम है। निस्संदेह उनके लिए आग है और वे उसी में पड़े छोड़ दिए जाएँगे 16|63|अल्लाह की सौगंध! हम तुमसे पहले भी कितने समुदायों की ओर रसूल भेज चुके है, किन्तु शैतान ने उनकी करतूतों को उनके लिए सुहावना बना दिया। तो वही आज भी उनका संरक्षक है। उनके लिए तो एक दुखद यातना है 16|64|हमने यह किताब तुमपर इसीलिए अवतरित की है कि जिसमें वे विभेद कर रहे है उसे तुम उनपर स्पष्टा कर दो और यह मार्गदर्शन और दयालुता है उन लोगों के लिए जो ईमान लाएँ 16|65|और अल्लाह ही ने आकाश से पानी बरसाया। फिर उसके द्वारा धरती को उसके मृत हो जाने के पश्चात जीवित किया। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए बड़ी निशानी है जो सुनते है 16|66|और तुम्हारे लिए चौपायों में से एक बड़ी शिक्षा-सामग्री है, जो कुछ उनके पेटों में है उसमें से गोबर और रक्त से मध्य से हम तुम्हे विशुद्ध दूध पिलाते है, जो पीनेवालों के लिए अत्यन्त प्रिय है, 16|67|और खजूरों और अंगूरों के फलों से भी, जिससे तुम मादक चीज़ भी तैयार कर लेते हो और अच्छी रोज़ी भी। निश्चय ही इसमें बुद्धि से काम लेनेवाले लोगों के लिए एक बड़ी निशानी है 16|68|और तुम्हारे रब ने मुधमक्खी के जी में यह बात डाल दी कि "पहाड़ों में और वृक्षों में और लोगों के बनाए हुए छत्रों में घर बना 16|69|फिर हर प्रकार के फल-फूलों से ख़ुराक ले और अपने रब के समतम मार्गों पर चलती रह।" उसके पेट से विभिन्न रंग का एक पेय निकलता है, जिसमें लोगों के लिए आरोग्य है। निश्चय ही सोच-विचार करनेवाले लोगों के लिए इसमें एक बड़ी निशानी है 16|70|अल्लाह ने तुम्हें पैदा किया। फिर वह तुम्हारी आत्माओं को ग्रस्त कर लेता है और तुममें से कोई (बुढापे की) निकृष्ट तम अवस्था की ओर फिर जाता है, कि (परिणामस्वरूप) जानने के पश्चात फिर वह कुछ न जाने। निस्संदेह अल्लाह सर्वज्ञ, बड़ा सामर्थ्यवान है 16|71|और अल्लाह ने तुममें से किसी को किसी पर रोज़ी में बड़ाई दी है। किन्तु जिनको बड़ाई दी गई है वे ऐसे नहीं है कि अपनी रोज़ी उनकी ओर फेर दिया करते हों, जो उनके क़ब्ज़े में है कि वे सब इसमें बराबर हो जाएँ। फिर क्या अल्लाह के अनुग्रह का उन्हें इनकार है? 16|72|और अल्लाह ही ने तुम्हारे लिए तुम्हारी सहजाति पत्नियों बनाई और तुम्हारी पत्नियों से तुम्हारे लिए पुत्र और पौत्र पैदा किए और तुम्हे अच्छी पाक चीज़ों की रोज़ी प्रदान की; तो क्या वे मिथ्या को मानते है और अल्लाह के अनुग्रह ही का उन्हें इनकार है? 16|73|और अल्लाह से हटकर उन्हें पूजते है, जिन्हें आकाशों और धरती से रोज़ी प्रदान करने का कुछ भी अधिकार प्राप्त नहीं है और न उन्हें कोई सामर्थ्य ही प्राप्त है 16|74|अतः अल्लाह के लिए मिसालें न घड़ो। जानता अल्लाह है, तुम नहीं जानते 16|75|अल्लाह ने एक मिसाल पेश की है: एक ग़ुलाम है, जिसपर दूसरे का अधिकार है, उसे किसी चीज़ पर अधिकार प्राप्त नहीं। इसके विपरीत एक वह व्यक्ति है, जिसे हमने अपनी ओर से अच्छी रोज़ी प्रदान की है, फिर वह उसमें से खुले और छिपे ख़र्च करता है। तो क्या वे परस्पर समान है? प्रशंसा अल्लाह के लिए है! किन्तु उनमें अधिकतर लोग जानते नहीं 16|76|अल्लाह ने एक और मिसाल पेश की है: दो व्यक्ति है। उनमें से एक गूँगा है। किसी चीज़ पर उसे अधिकार प्राप्त नहीं। वह अपने स्वामी पर एक बोझ है - उसे वह जहाँ भेजता है, कुछ भला करके नहीं लाता। क्या वह और जो न्याय का आदेश देता है और स्वयं भी सीधे मार्ग पर है वह, समान हो सकते है? 16|77|आकाशों और धरती के रहस्यों का सम्बन्ध अल्लाह ही से है। और उस क़ियामत की घड़ी का मामला तो बस ऐसा है जैसे आँखों का झपकना या वह इससे भी अधिक निकट है। निश्चय ही अल्लाह को हर चीज़ की सामर्थ्य प्राप्ती है 16|78|अल्लाह ने तुम्हें तुम्हारी माँओ के पेट से इस दशा में निकाला कि तुम कुछ जानते न थे। उसने तुम्हें कान, आँखें और दिल दिए, ताकि तुम कृतज्ञता दिखलाओ 16|79|क्या उन्होंने पक्षियों को नभ मंडल में वशीभूत नहीं देखा? उन्हें तो बस अल्लाह ही थामें हुए होता है। निश्चय ही इसमें उन लोगों के लिए कितनी ही निशानियाँ है जो ईमान लाएँ 16|80|और अल्लाह ने तुम्हारे घरों को तुम्हारे लिए टिकने की जगह बनाया है और जानवरों की खालों से भी तुम्हारे लिए घर बनाए - जिन्हें तुम अपनी यात्रा के दिन और अपने ठहरने के दिन हल्का-फुलका पाते हो - और एक अवधि के लिए उनके ऊन, उनके लोमचर्म और उनके बालों से कितने ही सामान और बरतने की चीज़े बनाई 16|81|और अल्लाह ने तुम्हारे लिए अपनी पैदा की हुई चीज़ों से छाँवों का प्रबन्ध किया और पहाड़ो में तुम्हारे लिए छिपने के स्थान बनाए और तुम्हें लिबास दिए जो गर्मी से बचाते है और कुछ अन्य वस्त्र भी दिए जो तुम्हारी लड़ाई में तुम्हारे लिए बचाव का काम करते है। इस प्रकार वह तुमपर अपनी नेमत पूरी करता है, ताकि तुम आज्ञाकारी बनो 16|82|फिर यदि वे मुँह मोड़ते है तो तुम्हारा दायित्व तो केवल साफ़-साफ़ सन्देश पहुँचा देना है 16|83|वे अल्लाह की नेमत को पहचानते है, फिर उसका इनकार करते है और उनमें अधिकतर तो अकृतज्ञ है 16|84|याद करो जिस दिन हम हर समुदाय में से एक गवाह खड़ा करेंगे, फिर जिन्होंने इनकार किया होगा उन्हें कोई अनुमति प्राप्त न होगी। और न उन्हें इसका अवसर ही दिया जाएगा वे उसे राज़ी कर लें 16|85|और जब वे लोग जिन्होंने अत्याचार किया, यातना देख लेंगे तो न वह उनके लिए हलकी की जाएगी और न उन्हें मुहलत ही मिलेगी 16|86|और जब वे लोग जिन्होंने शिर्क किया अपने ठहराए हुए साझीदारों को देखेंगे तो कहेंगे, "हमारे रब! यही हमारे वे साझीदार है जिन्हें हम तुझसे हटकर पुकारते थे।" इसपर वे उनकी ओर बात फेंक मारेंगे कि "तुम बिलकुल झूठे हो।" 16|87|उस दिन वे अल्लाह के आगे आज्ञाकारी एवं वशीभूत होकर आ पड़ेगे। और जो कुछ वे घड़ा करते थे वह सब उनसे खोकर रह जाएगा 16|88|जिन लोगों ने इनकार किया और अल्लाह के मार्ग से रोका उनके लिए हम यातना पर यातना बढ़ाते रहेंगे, उस बिगाड़ के बदले में जो वे पैदा करते रहे 16|89|और उस समय को याद करो जब हम हर समुदाय में स्वयं उसके अपने लोगों में से एक गवाह उनपर नियुक्त करके भेज रहे थे और (इसी रीति के अनुसार) तुम्हें इन लोगों पर गवाह नियुक्त करके लाए। हमने तुमपर किताब अवतरित की हर चीज़ को खोलकर बयान करने के लिए और मुस्लिम (आज्ञाकारियों) के लिए मार्गदर्शन, दयालुता और शुभ सूचना के रूप में 16|90|निश्चय ही अल्लाह न्याय का और भलाई का और नातेदारों को (उनके हक़) देने का आदेश देता है और अश्लीलता, बुराई और सरकशी से रोकता है। वह तुम्हें नसीहत करता है, ताकि तुम ध्यान दो 16|91|अल्लाह के साथ की हुई प्रतिज्ञा को पूरा करो, जबकि तुमने प्रतिज्ञा की हो। और अपनी क़समों को उन्हें सुदृढ़ करने के पश्चात मत तोड़ो, जबकि तुम अपने ऊपर अल्लाह को अपना ज़ामिन बना चुके हो। निश्चय ही अल्लाह जानता है जो कुछ तुम करते हो 16|92|तुम उस स्त्री की भाँति न हो जाओ जिसने अपना सूत मेहनत से कातने के पश्चात टुकड़-टुकड़े करके रख दिया। तुम अपनी क़समों को परस्पर हस्तक्षेप करने का बहाना बनाने लगो इस ध्येय से कहीं ऐसा न हो कि एक गिरोह दूसरे गिरोह से बढ़ जाए। बात केवल यह है कि अल्लाह इस प्रतिज्ञा के द्वारा तुम्हारी परीक्षा लेता है और जिस बात में तुम विभेद करते हो उसकी वास्तविकता तो वह क़ियामत के दिन अवश्य ही तुम पर खोल देगा 16|93|यदि अल्लाह चाहता तो तुम सबको एक ही समुदाय बना देता, परन्तु वह जिसे चाहता है गुमराही में छोड़ देता है और जिसे चाहता है सीधा मार्ग दिखाता है। तुम जो कुछ भी करते हो उसके विषय में तो तुमसे अवश्य पूछा जाएगा 16|94|तुम अपनी क़समों को परस्पर हस्तक्षेप करने का बहाना न बना लेना। कहीं ऐसा न हो कि कोई क़दम जमने के पश्चात उखड़ जाए और अल्लाह के मार्ग से तुम्हारे रोकने के बदले में तुम्हें तकलीफ़ का मज़ा चखना पड़े और तुम एक बड़ी यातना के भागी ठहरो 16|95|और तुच्छ मूल्य के लिए अल्लाह की प्रतिज्ञा का सौदा न करो। अल्लाह के पास जो कुछ है वह तुम्हारे लिए अधिक अच्छा है, यदि तुम जानो; 16|96|तुम्हारे पास जो कुछ है वह तो समाप्त हो जाएगा, किन्तु अल्लाह के पास जो कुछ है वही बाक़ी रहनेवाला है। जिन लोगों ने धैर्य से काम लिया उन्हें तो, जो उत्तम कर्म वे करते रहे उसके बदले में, हम अवश्य उनका प्रतिदान प्रदान करेंगे 16|97|जिस किसी ने भी अच्छा कर्म किया, पुरुष हो या स्त्री, शर्त यह है कि वह ईमान पर हो, तो हम उसे अवश्य पवित्र जीवन-यापन कराएँगे। ऐसे लोग जो अच्छा कर्म करते रहे उसके बदले में हम उन्हें अवश्य उनका प्रतिदान प्रदान करेंगे 16|98|अतः जब तुम क़ुरआन पढ़ने लगो तो फिटकारे हुए शैतान से बचने के लिए अल्लाह की पनाह माँग लिया करो 16|99|उसका तो उन लोगों पर कोई ज़ोर नहीं चलता जो ईमान लाए और अपने रब पर भरोसा रखते है 16|100|उसका ज़ोर तो बस उन्हीं लोगों पर चलता है जो उसे अपना मित्र बनाते है और उस (अल्लाह) के साथ साझी ठहराते है 16|101|जब हम किसी आयत की जगह दूसरी आयत बदलकर लाते है - और अल्लाह भली-भाँति जानता है जो कुछ वह अवतरित करता है - तो वे कहते है, "तुम स्वयं ही घड़ लेते हो!" नहीं, बल्कि उनमें से अधिकतर लोग नहीं जानते 16|102|कह दो, "इसे ता पवित्र आत्मा ने तुम्हारे रब की ओर क्रमशः सत्य के साथ उतारा है, ताकि ईमान लानेवालों को जमाव प्रदान करे और आज्ञाकारियों के लिए मार्गदर्शन और शुभ सूचना हो 16|103|हमें मालूम है कि वे कहते है, "उसको तो बस एक आदमी सिखाता पढ़ाता है।" हालाँकि जिसकी ओर वे संकेत करते है उसकी भाषा विदेशी है और यह स्पष्ट अरबी भाषा है 16|104|सच्ची बात यह है कि जो लोग अल्लाह की आयतों को नहीं मानते, अल्लाह उनका मार्गदर्शन नहीं करता। उनके लिए तो एक दुखद यातना है 16|105|झूठ तो बस वही लोग घड़ते है जो अल्लाह की आयतों को मानते नहीं और वही है जो झूठे है 16|106|जिस किसी ने अपने ईमान के पश्चात अल्लाह के साथ कुफ़्र किया -सिवाय उसके जो इसके लिए विवश कर दिया गया हो और दिल उसका ईमान पर सन्तुष्ट हो - बल्कि वह जिसने सीना कुफ़्र के लिए खोल दिया हो, तो ऐसे लोगो पर अल्लाह का प्रकोप है और उनके लिए बड़ी यातना है 16|107|यह इसलिए कि उन्होंने आख़िरत की अपेक्षा सांसारिक जीवन को पसन्द किया और यह कि अल्लाह कुफ़्र करनेवालो लोगों का मार्गदर्शन नहीं करता 16|108|वही लोग है जिनके दिलों और जिनके कानों और जिनकी आँखों पर अल्लाह ने मुहर लगा दी है; और वही है जो ग़फ़लत में पड़े हुए है 16|109|निश्चय ही आख़िरत में वही घाटे में रहेंगे 16|110|फिर तुम्हारा रब उन लोगों के लिए जिन्होंने इसके उपरान्त कि वे आज़माइश में पड़ चुके थे घर-बार छोड़ा, फिर जिहाद (संघर्ष) किया और जमे रहे तो इन बातों के पश्चात तो निश्चय ही तुम्हारा रब बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है 16|111|जिस दिन प्रत्येक व्यक्ति अपनी और प्रत्येक व्यक्ति को जो कुछ उसने किया होगा, उसका पूरा-पूरा बदला चुका दिया जाएगा, और उनपर कुछ भी अत्याचार न होगा 16|112|अल्लाह ने एक मिसाल बयान की है: एक बस्ती थी जो निश्चिन्त और सन्तुष्ट थी। हर जगह से उसकी रोज़ी प्रचुरता के साथ चली आ रही थी कि वह अल्लाह की नेमतों के प्रति अकृतज्ञता दिखाने लगी। तब अल्लाह ने उसके निवासियों को उनकी करतूतों के बदले में भूख का मज़ा चख़ाया और भय का वस्त्र पहनाया 16|113|उनके पास उन्हीं में से एक रसूल आया। किन्तु उन्होंने उसे झुठला दिया। अन्ततः यातना ने उन्हें इस दशा में आ लिया कि वे अत्याचारी थे 16|114|अतः जो कुछ अल्लाह ने तुम्हें हलाल-पाक रोज़ी दी है उसे खाओ और अल्लाह की नेमत के प्रति कृतज्ञता दिखाओ, यदि तुम उसी को स्वामी मानते हो 16|115|उसने तो तुमपर केवल मुर्दार, रक्त, सुअर का मांस और जिसपर अल्लाह के सिवा किसी और का नाम लिया गया हो, हराम ठहराया है। फिर यदि कोई इस प्रकार विवश हो जाए कि न तो उसकी ललक हो और न वह हद से आगे बढ़नेवाला हो तो निश्चय ही अल्लाह बड़ा क्षमाशील, दयावान है 16|116|और अपनी ज़बानों के बयान किए हुए झूठ के आधार पर यह न कहा करो, "यह हलाल है और यह हराम है," ताकि इस तरह अल्लाह पर झूठ आरोपित करो। जो लोग अल्लाह से सम्बद्ध करके झूठ घड़ते है, वे कदापि सफल होनेवाले नहीं 16|117|यह उपभोग थोड़ा है, उनके लिए वास्तव में तो दुखद यातना है 16|118|जो यहूदी है उनपर हम पहले वे चीज़े हराम कर चुके है जिनका उल्लेख हमने तुमसे किया। उनपर तो अत्याचार हमने नहीं किया, बल्कि वे स्वयं ही अपने ऊपर अत्याचार करते रहे 16|119|फिर तुम्हारा रब उनके लिए जिन्होंने अज्ञानवश बुरा कर्म किया, फिर इसके बाद तौबा करके सुधार कर लिया, तो निश्चय ही तुम्हारा रब इसके पश्चात बड़ा क्षमाशील, अत्यन्त दयावान है 16|120|निश्चय ही इबराहीम की स्थिति एक समुदाय की थी। वह अल्लाह का आज्ञाकारी और उसकी ओर एकाग्र था। वह कोई बहुदेववादी न था 16|121|वह उसके (अल्लाह के) उदार अनुग्रहों के प्रति कृतज्ञता दिखलानेवाला था। अल्लाह ने उसे चुन लिया और उसे सीधे मार्ग पर चलाया 16|122|और हमने उसे दुनिया में भी भलाई दी और आख़िरत में भी वह अच्छे पूर्णकाम लोगों मे से होगा 16|123|फिर अब हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना की, "इबराहीम के तरीक़े पर चलो, जो बिलकुल एक ओर का हो गया था और बहुदेववादियों में से न था।" 16|124|'सब्त' तो केवल उन लोगों पर लागू हुआ था जिन्होंने उसके विषय में विभेद किया था। निश्चय ही तुम्हारा रब उनके बीच क़ियामत के दिन उसका फ़ैसला कर देगा, जिसमें वे विभेद करते रहे है 16|125|अपने रब के मार्ग की ओर तत्वदर्शिता और सदुपदेश के साथ बुलाओ और उनसे ऐसे ढंग से वाद विवाद करो जो उत्तम हो। तुम्हारा रब उसे भली-भाँति जानता है जो उसके मार्ग से भटक गया और वह उन्हें भी भली-भाँति जानता है जो मार्ग पर है 16|126|और यदि तुम बदला लो तो उतना ही जितना तुम्हें कष्ट पहुँचा हो, किन्तु यदि तुम सब्र करो तो निश्चय ही यह सब्र करनेवालों के लिए ज़्यादा अच्छा है 16|127|सब्र से काम लो - और तुम्हारा सब्र अल्लाह ही से सम्बद्ध है - और उन पर दुखी न हो और न उससे दिल तंग हो जो चालें वे चलते है 16|128|निश्चय ही, अल्लाह उनके साथ है जो डर रखते है और जो उत्तमकार है 17|1|क्या ही महिमावान है वह जो रातों-रात अपने बन्दे (मुहम्मद) को प्रतिष्ठित मस्जिद (काबा) से दूरवर्ती मस्जिद (अक़्सा) तक ले गया, जिसके चतुर्दिक को हमने बरकत दी, ताकि हम उसे अपनी कुछ निशानियाँ दिखाएँ। निस्संदेह वही सब कुछ सुनता, देखता है 17|2|हमने मूसा को किताब दी थी और उसे इसराईल की सन्तान के लिए मार्गदर्शन बनाया था कि "हमारे सिवा किसी को कार्य-साधक न ठहराना।" 17|3|ऐ उनकी सन्तान, जिन्हें हमने नूह के साथ (नौका में) सवार किया था! निश्चय ही वह एक कृतज्ञ बन्दा था 17|4|और हमने किताब में इसराईल की सन्तान को इस फ़ैसले की ख़बर दे दी थी, "तुम धरती में अवश्य दो बार बड़ा फ़साद मचाओगे और बड़ी सरकशी दिखाओगे।" 17|5|फिर जब उन दोनों में से पहले वादे का मौक़ा आ गया तो हमने तुम्हारे मुक़ाबले में अपने ऐसे बन्दों को उठाया जो युद्ध में बड़े बलशाली थे। तो वे बस्तियों में घुसकर हर ओर फैल गए और यह वादा पूरा होना ही था 17|6|फिर हमने तुम्हारी बारी उनपर लौटाई कि उनपर प्रभावी हो सको। और धनों और पुत्रों से तुम्हारी सहायता की और तुम्हें बहुसंख्यक लोगों का एक जत्था बनाया 17|7|"यदि तुमने भलाई की तो अपने ही लिए भलाई की और यदि तुमने बुराई की तो अपने ही लिए की।" फिर जब दूसरे वादे का मौक़ा आ गया (तो हमने तुम्हारे मुक़ाबले में ऐसे प्रबल को उठाया) कि वे तुम्हारे चेहरे बिगाड़ दें और मस्जिद (बैतुलमक़दिस) में घुसे थे और ताकि जिस चीज़ पर भी उनका ज़ोर चले विनष्टि कर डालें 17|8|हो सकता है तुम्हारा रब तुमपर दया करे, किन्तु यदि तुम फिर उसी पूर्व नीति की ओर पलटे तो हम भी पलटेंगे, और हमने जहन्नम को इनकार करनेवालों के लिए कारागार बना रखा है 17|9|वास्तव में यह क़ुरआन वह मार्ग दिखाता है जो सबसे सीधा है और उन मोमिमों को, जो अच्छे कर्म करते है, शूभ सूचना देता है कि उनके लिए बड़ा बदला है 17|10|और यह कि जो आख़िरत को नहीं मानते उनके लिए हमने दुखद यातना तैयार कर रखी है 17|11|मनुष्य उस प्रकार बुराई माँगता है जिस प्रकार उसकी प्रार्थना भलाई के लिए होनी चाहिए। मनुष्य है ही बड़ा उतावला! 17|12|हमने रात और दिन को दो निशानियाँ बनाई है। फिर रात की निशानी को हमने मिटी हुई (प्रकाशहीन) बनाया और दिन की निशानी को हमने प्रकाशमान बनाया, ताकि तुम अपने रब का अनुग्रह (रोज़ी) ढूँढो और ताकि तुम वर्षो की गणना और हिसाब मालूम कर सको, और हर चीज़ को हमने अलग-अलग स्पष्ट कर रखा है 17|13|हमने प्रत्येक मनुष्य का शकुन-अपशकुन उसकी अपनी गरदन से बाँध दिया है और क़ियामत के दिन हम उसके लिए एक किताब निकालेंगे, जिसको वह खुला हुआ पाएगा 17|14|"पढ़ ले अपनी किताब (कर्मपत्र)! आज तू स्वयं ही अपना हिसाब लेने के लिए काफ़ी है।" 17|15|जो कोई सीधा मार्ग अपनाए तो उसने अपने ही लिए सीधा मार्ग अपनाया और जो पथभ्रष्टो हुआ, तो वह अपने ही बुरे के लिए भटका। और कोई भी बोझ उठानेवाला किसी दूसरे का बोझ नहीं उठाएगा। और हम लोगों को यातना नहीं देते जब तक कोई रसूल न भेज दें 17|16|और जब हम किसी बस्ती को विनष्ट करने का इरादा कर लेते है तो उसके सुखभोगी लोगों को आदेश देते है तो (आदेश मानने के बजाए) वे वहाँ अवज्ञा करने लग जाते है, तब उनपर बात पूरी हो जाती है, फिर हम उन्हें बिलकुल उखाड़ फेकते है 17|17|हमने नूह के पश्चात कितनी ही नस्लों को विनष्ट कर दिया। तुम्हारा रब अपने बन्दों के गुनाहों की ख़बर रखने, देखने के लिए काफ़ी है 17|18|जो कोई शीघ्र प्राप्त, होनेवाली को चाहता है उसके लिए हम उसी में जो कुछ किसी के लिए चाहते है शीघ्र प्रदान कर देते है। फिर उसके लिए हमने जहन्नम तैयार कर रखा है जिसमें वह अपयशग्रस्त और ठुकराया हुआ प्रवेश करेगा 17|19|और जो आख़िरत चाहता हो और उसके लिए ऐसा प्रयास भी करे जैसा कि उसके लिए प्रयास करना चाहिए और वह हो मोमिन, तो ऐसे ही लोग है जिनके प्रयास की क़द्र की जाएगी 17|20|इन्हें भी और इनको भी, प्रत्येक को हम तुम्हारे रब की देन में से सहायता पहुँचाए जा रहे है, और तुम्हारे रब की देन बन्द नहीं है 17|21|देखो, कैसे हमने उनके कुछ लोगों को कुछ के मुक़ाबले में आगे रखा है! और आख़िरत दर्जों की दृष्टि से सबसे बढ़कर है और श्रेष्ठ़ता की दृष्टि से भी वह सबसे बढ़-चढ़कर है 17|22|अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न बनाओ अन्यथा निन्दित और असहाय होकर बैठे रह जाओगे 17|23|तुम्हारे रब ने फ़ैसला कर दिया है कि उसके सिवा किसी की बन्दगी न करो और माँ-बाप के साथ अच्छा व्यवहार करो। यदि उनमें से कोई एक या दोनों ही तुम्हारे सामने बुढ़ापे को पहुँच जाएँ तो उन्हें 'उँह' तक न कहो और न उन्हें झिझको, बल्कि उनसे शिष्टतापूर्वक बात करो 17|24|और उनके आगे दयालुता से नम्रता की भुजाएँ बिछाए रखो और कहो, "मेरे रब! जिस प्रकार उन्होंने बालकाल में मुझे पाला है, तू भी उनपर दया कर।" 17|25|जो कुछ तुम्हारे जी में है उसे तुम्हारा रब भली-भाँति जानता है। यदि तुम सुयोग्य और अच्छे हुए तो निश्चय ही वह भी ऐसे रुजू करनेवालों के लिए बड़ा क्षमाशील है 17|26|और नातेदार को उसका हक़ दो मुहताज और मुसाफ़िर को भी - और फुज़ूलख़र्ची न करो 17|27|निश्चय ही फ़ु़ज़ूलख़र्ची करनेवाले शैतान के भाई है और शैतान अपने रब का बड़ा ही कृतघ्न है। - 17|28|किन्तु यदि तुम्हें अपने रब की दयालुता की खोज में, जिसकी तुम आशा रखते हो, उनसे कतराना भी पड़े, तो इस दशा में तुम उनसें नर्म बात करो 17|29|और अपना हाथ न तो अपनी गरदन से बाँधे रखो और न उसे बिलकुल खुला छोड़ दो कि निन्दित और असहाय होकर बैठ जाओ 17|30|तुम्हारा रब जिसको चाहता है प्रचुर और फैली हुई रोज़ी प्रदान करता है और इसी प्रकार नपी-तुली भी। निस्संदेह वह अपने बन्दों की ख़बर और उनपर नज़र रखता है 17|31|और निर्धनता के भय से अपनी सन्तान की हत्या न करो, हम उन्हें भी रोज़ी देंगे और तुम्हें भी। वास्तव में उनकी हत्या बहुत ही बड़ा अपराध है 17|32|और व्यभिचार के निकट न जाओ। वह एक अश्लील कर्म और बुरा मार्ग है 17|33|किसी जीव की हत्या न करो, जिसे (मारना) अल्लाह ने हराम ठहराया है। यह और बात है कि हक़ (न्याय) का तक़ाज़ा यही हो। और जिसकी अन्यायपूर्वक हत्या की गई हो, उसके उत्तराधिकारी को हमने अधिकार दिया है (कि वह हत्यारे से बदला ले सकता है), किन्तु वह हत्या के विषय में सीमा का उल्लंघन न करे। निश्चय ही उसकी सहायता की जाएगी 17|34|और अनाथ के माल को हाथ में लगाओ सिवाय उत्तम रीति के, यहाँ तक कि वह अपनी युवा अवस्था को पहुँच जाए, और प्रतिज्ञा पूरी करो। प्रतिज्ञा के विषय में अवश्य पूछा जाएगा 17|35|और जब नापकर दो तो, नाप पूरी रखो। और ठीक तराज़ू से तौलो, यही उत्तम और परिणाम की दृष्टि से भी अधिक अच्छा है 17|36|और जिस चीज़ का तुम्हें ज्ञान न हो उसके पीछे न लगो। निस्संदेह कान और आँख और दिल इनमें से प्रत्येक के विषय में पूछा जाएगा 17|37|और धरती में अकड़कर न चलो, न तो तुम धरती को फाड़ सकते हो और न लम्बे होकर पहाड़ो को पहुँच सकते हो 17|38|इनमें से प्रत्येक की बुराई तुम्हारे रब की स्पष्ट में अप्रिय ही है 17|39|ये तत्वदर्शिता की वे बातें है, जिनकी प्रकाशना तुम्हारे रब ने तुम्हारी ओर की है। और देखो, अल्लाह के साथ कोई दूसरा पूज्य-प्रभु न घड़ना, अन्यथा जहन्नम में डाल दिए जाओगे निन्दित, ठुकराए हुए! 17|40|क्या तुम्हारे रब ने तुम्हें तो बेटों के लिए ख़ास किया और स्वयं अपने लिए फ़रिश्तों को बेटियाँ बनाया? बहुत भारी बात है जो तुम कह रहे हो! 17|41|हमने इस क़ुरआन में विभिन्न ढंग से बात का स्पष्टीकरण किया कि वे चेतें, किन्तु इसमें उनकी नफ़रत ही बढ़ती है 17|42|कह दो, "यदि उसके साथ अन्य भी पूज्य-प्रभु होते, जैसा कि ये कहते हैं, तब तो वे सिंहासनवाले (के पद) तक पहुँचने का कोई मार्ग अवश्य तलाश करते" 17|43|महिमावान है वह! और बहुत उच्च है उन बातों से जो वे कहते है! 17|44|सातों आकाश और धरती और जो कोई भी उनमें है सब उसकी तसबीह (महिमागान) करते है और ऐसी कोई चीज़ नहीं जो उसका गुणगान न करती हो। किन्तु तुम उनकी तसबीह को समझते नहीं। निश्चय ही वह अत्यन्त सहनशील, क्षमावान है 17|45|जब तुम क़ुरआन पढ़ते हो तो हम तुम्हारे और उन लोगों के बीच, जो आख़िरत को नहीं मानते एक अदृश्य पर्दे की आड़ कर देते है 17|46|और उनके दिलों पर भी परदे डाल देते है कि वे समझ न सकें। और उनके कानों में बोझ (कि वे सुन न सकें) । और जब तुम क़ुरआन के माध्यम से अपने रब का वर्णन उसे अकेला बताते हुए करते हो तो वे नफ़रत से अपनी पीठ फेरकर चल देते है 17|47|जब वे तुम्हारी ओर कान लगाते हैं तो हम भली-भाँति जानते है कि उनके कान लगाने का प्रयोजन क्या है और उसे भी जब वे आपस में कानाफूसियाँ करते है, जब वे ज़ालिम कहते है, "तुम लोग तो बस उस आदमी के पीछे चलते हो जो पक्का जादूगर है।" 17|48|देखो, वे कैसी मिसालें तुमपर चस्पाँ करते है! वे तो भटक गए है, अब कोई मार्ग नहीं पा सकते! 17|49|वे कहते है, "क्या जब हम हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाएँगे, तो क्या हम फिर नए बनकर उठेंगे?" 17|50|कह दो, "तुम पत्थर या लोहो हो जाओ, 17|51|या कोई और चीज़ जो तुम्हारे जी में अत्यन्त विकट हो।" तब वे कहेंगे, "कौन हमें पलटाकर लाएगा?" कह दो, "वहीं जिसने तुम्हें पहली बार पैदा किया।" तब वे तुम्हारे आगे अपने सिरों को हिला-हिलाकर कहेंगे, "अच्छा तो वह कह होगा?" कह दो, "कदाचित कि वह निकट ही हो।" 17|52|जिस दिन वह तुम्हें पुकारेगा, तो तुम उसकी प्रशंसा करते हुए उसकी आज्ञा को स्वीकार करोगे और समझोगे कि तुम बस थोड़ी ही देर ठहरे रहे हो 17|53|मेरे बन्दों से कह दो कि "बात वहीं कहें जो उत्तम हो। शैतान तो उनके बीच उकसाकर फ़साद डालता रहता है। निस्संदेह शैतान मनुष्य का प्रत्यक्ष शत्रु है।" 17|54|तुम्हारा रब तुमसे भली-भाँति परिचित है। वह चाहे तो तुमपर दया करे या चाहे तो तुम्हें यातना दे। हमने तुम्हें उनकी ज़िम्मेदारी लेनेवाला कोई क्यक्ति बनाकर नहीं भेजा है (कि उन्हें अनिवार्यतः संमार्ग पर ला ही दो) 17|55|तुम्हारा रब उससे भी भली-भाँति परिचित है जो कोई आकाशों और धरती में है, और हमने कुछ नबियों को कुछ की अपेक्षा श्रेष्ठता दी और हमने ही दाऊद को ज़बूर प्रदान की थी 17|56|कह दो, "तुम उससे इतर जिनको भी पूज्य-प्रभु समझते हो उन्हें पुकार कर देखो। वे न तुमसे कोई कष्ट दूर करने का अधिकार रखते है और न उसे बदलने का।" 17|57|जिनको ये लोग पुकारते है वे तो स्वयं अपने रब का सामीप्य ढूँढते है कि कौन उनमें से सबसे अधिक निकटता प्राप्त कर ले। और वे उसकी दयालुता की आशा रखते है और उसकी यातना से डरते रहते है। तुम्हारे रब की यातना तो है ही डरने की चीज़! 17|58|कोई भी (अवज्ञाकारी) बस्ती ऐसी नहीं जिसे हम क़ियामत के दिन से पहले विनष्टअ न कर दें या उसे कठोर यातना न दे। यह बात किताब में लिखी जा चुकी है 17|59|हमें निशानियाँ (देकर नबी को) भेजने से इसके सिवा किसी चीज़ ने नहीं रोका कि पहले के लोग उनको झुठला चुके है। और (उदाहरणार्थ) हमने समूद को स्पष्ट प्रमाण के रूप में ऊँटनी दी, किन्तु उन्होंने ग़लत नीति अपनाकर स्वयं ही अपनी जानों पर ज़ुल्म किया। हम निशानियाँ तो डराने ही के लिए भेजते है 17|60|जब हमने तुमसे कहा, "तुम्हारे रब ने लोगों को अपने घेरे में ले रखा है और जो अलौकिक दर्शन हमने तुम्हें कराया उसे तो हमने लोगों के लिए केवल एक आज़माइश बना दिया और उस वृक्ष को भी जिसे क़ुरआन में तिरस्कृत ठहराया गया है। हम उन्हें डराते है, किन्तु यह चीज़ उनकी बढ़ी हुई सरकशी ही को बढ़ा रही है।" 17|61|याद करो जब हमने फ़रिश्तों से कहा, "आदम को सजदा करो तो इबलीस को छोड़कर सबने सजदा किया।" उसने कहा, "क्या मैं उसे सजदा करूँ, जिसे तूने मिट्टी से बनाया है?" 17|62|कहने लगा, "देख तो सही, उसे जिसको तूने मेरे मुक़ाबले में श्रेष्ठ ता प्रदान की है, यदि तूने मुझे क़ियामत के दिन तक मुहलत दे दी, तो मैं अवश्य ही उसकी सन्तान को वश में करके उसका उन्मूलन कर डालूँगा। केवल थोड़े ही लोग बच सकेंगे।" 17|63|कहा, "जा, उनमें से जो भी तेरा अनुसरण करेगा, तो तुझ सहित ऐसे सभी लोगों का भरपूर बदला जहन्नम है 17|64|उनमें सो जिस किसी पर तेरा बस चले उसके क़दम अपनी आवाज़ से उखाड़ दे। और उनपर अपने सवार और अपने प्यादे (पैदल सेना) चढ़ा ला। और माल और सन्तान में भी उनके साथ साझा लगा। और उनसे वादे कर!" - किन्तु शैतान उनसे जो वादे करता है वह एक धोखे के सिवा और कुछ भी नहीं होता। - 17|65|"निश्चय ही जो मेरे (सच्चे) बन्दे है उनपर तेरा कुछ भी ज़ोर नहीं चल सकता।" तुम्हारा रब इसके लिए काफ़ी है कि अपना मामला उसी को सौंप दिया जाए 17|66|तुम्हारा रब तो वह है जो तुम्हारे लिए समुद्र में नौका चलाता है, ताकि तुम उसका अनुग्रह (आजीविका) तलाश करो। वह तुम्हारे हाल पर अत्यन्त दयावान है 17|67|जब समुद्र में तुम पर कोई आपदा आती है तो उसके सिवा वे सब जिन्हें तुम पुकारते हो, गुम होकर रह जाते है, किन्तु फिर जब वह तुम्हें बचाकर थल पर पहुँचा देता है तो तुम उससे मुँह मोड़ जाते हो। मानव बड़ा ही अकृतज्ञ है 17|68|क्या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह कभी थल की ओर ले जाकर तुम्हें धँसा दे या तुमपर पथराव करनेवाली आँधी भेज दे; फिर अपना कोई कार्यसाधक न पाओ? 17|69|या तुम इससे निश्चिन्त हो कि वह फिर तुम्हें उसमें दोबारा ले जाए और तुमपर प्रचंड तूफ़ानी हवा भेज दे और तुम्हें तुम्हारे इनकार के बदले में डूबो दे। फिर तुम किसी को ऐसा न पाओ जो तुम्हारे लिए इसपर हमारा पीछा करनेवाला हो? 17|70|हमने आदम की सन्तान को श्रेष्ठता प्रदान की और उन्हें थल औऱ जल में सवारी दी और अच्छी-पाक चीज़ों की उन्हें रोज़ी दी और अपने पैदा किए हुए बहुत-से प्राणियों की अपेक्षा उन्हें श्रेष्ठता प्रदान की 17|71|(उस दिन से डरो) जिस दिन हम मानव के प्रत्येक गिरोह को उसके अपने नायक के साथ बुलाएँगे। फिर जिसे उसका कर्मपत्र उसके दाहिने हाथ में दिया गया, तो ऐसे लोग अपना कर्मपत्र पढ़ेंगे और उनके साथ तनिक भी अन्याय न होगा 17|72|और जो यहाँ अंधा होकर रहा वह आख़िरत में भी अंधा ही रहेगा, बल्कि वह मार्ग से और भी अधिक दूर पड़ा होगा 17|73|और वे लगते थे कि तुम्हें फ़िले में डालकर उस चीज़ से हटा देने को है जिसकी प्रकाशना हमने तुम्हारी ओर की है, ताकि तुम उससे भिन्न चीज़ घड़कर हमपर थोपो, और तब वे तुम्हें अपना घनिष्ठ मित्र बना लेते 17|74|यदि हम तुम्हें जमाव प्रदान न करते तो तुम उनकी ओर थोड़ा झुकने के निकट जा पहुँचते 17|75|उस समय हम तुम्हें जीवन में भी दोहरा मज़ा चखाते और मृत्यु के पश्चात भी दोहरा मज़ा चखाते। फिर तुम हमारे मुक़ाबले में अपना कोई सहायक न पाते 17|76|और निश्चय ही उन्होंने चाल चली कि इस भूभाग से तुम्हारे क़दम उखाड़ दें, ताकि तुम्हें यहाँ से निकालकर ही रहे। और ऐसा हुआ तो तुम्हारे पीछे ये भी रह थोड़े ही पाएँगे 17|77|यही कार्य-प्रणाली हमारे उन रसूलों के विषय में भी रही है, जिन्हें हमने तुमसे पहले भेजा था और तुम हमारी कार्य-प्रणाली में कोई अन्तर न पाओगे 17|78|नमाज़ क़ायम करो सूर्य के ढलने से लेकर रात के छा जाने तक और फ़ज्र (प्रभात) के क़ुरआन (अर्थात फ़ज्र की नमाज़ः के पाबन्द रहो। निश्चय ही फ़ज्र का क़ुरआन पढ़ना हुज़ूरी की चीज़ है 17|79|और रात के कुछ हिस्से में उस (क़ुरआन) के द्वारा जागरण किया करो, यह तुम्हारे लिए तद्अधिक (नफ़्ल) है। आशा है कि तुम्हारा रब तुम्हें उठाए ऐसा उठाना जो प्रशंसित हो 17|80|और कहो, "मेरे रब! तू मुझे ख़ूबी के साथ दाख़िल कर और ख़ूबी के साथ निकाल, और अपनी ओर से मुझे सहायक शक्ति प्रदान कर।" 17|81|कह दो, "सत्य आ गया और असत्य मिट गया; असत्य तो मिट जानेवाला ही होता है।" 17|82|हम क़ुरआन में से जो उतारते है वह मोमिनों के लिए शिफ़ा (आरोग्य) और दयालुता है, किन्तु ज़ालिमों के लिए तो वह बस घाटे ही में अभिवृद्धि करता है 17|83|मानव पर जब हम सुखद कृपा करते है तो वह मुँह फेरता और अपना पहलू बचाता है। किन्तु जब उसे तकलीफ़ पहुँचती है, तो वह निराश होने लगता है 17|84|कह दो, "हर एक अपने ढब पर काम कर रहा है, तो अब तुम्हारा रब ही भली-भाँति जानता है कि कौन अधिक सीधे मार्ग पर है।" 17|85|वे तुमसे रूह के विषय में पूछते है। कह दो, "रूह का संबंध तो मेरे रब के आदेश से है, किन्तु ज्ञान तुम्हें मिला थोड़ा ही है।" 17|86|यदि हम चाहें तो वह सब छीन लें जो हमने तुम्हारी ओर प्रकाशना की है, फिर इसके लिए हमारे मुक़ाबले में अपना कोई समर्थक न पाओगे 17|87|यह तो बस तुम्हारे रब की दयालुता है। वास्तविकता यह है कि उसका तुमपर बड़ा अनुग्रह है 17|88|कह दो, "यदि मनुष्य और जिन्न इसके लिए इकट्ठे हो जाएँ कि क़ुरआन जैसी कोई चीज़ लाएँ, तो वे इस जैसी कोई चीज़ न ला सकेंगे, चाहे वे आपस में एक-दूसरे के सहायक ही क्यों न हों।" 17|89|हमने इस क़ुरआन में लोगों के लिए प्रत्येक तत्वदर्शिता की बात फेर-फेरकर बयान की, फिर भी अधिकतर लोगों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही 17|90|और उन्होंने कहा, "हम तुम्हारी बात नहीं मानेंगे, जब तक कि तुम हमारे लिए धरती से एक स्रोत प्रवाहित न कर दो, 17|91|या फिर तुम्हारे लिए खजूरों और अंगूरों का एक बाग़ हो और तुम उसके बीच बहती नहरें निकाल दो, 17|92|या आकाश को टुकड़े-टुकड़े करके हम पर गिरा दो जैसा कि तुम्हारा दावा है, या अल्लाह और फ़रिश्तों ही को हमारे समझ ले आओ, 17|93|या तुम्हारे लिए स्वर्ण-निर्मित एक घर हो जाए या तुम आकाश में चढ़ जाओ, और हम तुम्हारे चढ़ने को भी कदापि न मानेंगे, जब तक कि तुम हम पर एक किताब न उतार लाओ, जिसे हम पढ़ सकें।" कह दो, "महिमावान है मेरा रब! क्या मैं एक संदेश लानेवाला मनुष्य के सिवा कुछ और भी हूँ?" 17|94|लोगों को जबकि उनके पास मार्गदर्शन आया तो उनको ईमान लाने से केवल यही चीज़ रुकावट बनी कि वे कहने लगे, "क्या अल्लाह ने एक मनुष्य को रसूल बनाकर भेज दिया?" 17|95|कह दो, "यदि धरती में फ़रिश्ते आबाद होकर चलते-फिरते होते तो हम उनके लिए अवश्य आकाश से किसी फ़रिश्ते ही को रसूल बनाकर भेजते।" 17|96|कह दो, "मेरे और तुम्हारे बीच अल्लाह ही एक गवाह काफ़ी है। निश्चय ही वह अपने बन्दों की पूरी ख़बर रखनेवाला, देखनेवाला है।" 17|97|जिसे अल्लाह ही मार्ग दिखाए वही मार्ग पानेवाला है और वह जिसे पथभ्रष्ट होने दे, तो ऐसे लोगों के लिए उससे इतर तुम सहायक न पाओगे। क़ियामत के दिन हम उन्हें औंधे मुँह इस दशा में इकट्ठा करेंगे कि वे अंधे गूँगे और बहरे होंगे। उनका ठिकाना जहन्नम है। जब भी उसकी आग धीमी पड़ने लगेगी तो हम उसे उनके लिए भड़का देंगे 17|98|यही उनका बदला है, इसलिए कि उन्होंने हमारी आयतों का इनकार किया और कहा, "क्या जब हम केवल हड्डियाँ और चूर्ण-विचूर्ण होकर रह जाएँगे, तो क्या हमें नए सिरे से पैदा करके उठा खड़ा किया जाएगा?" 17|99|क्या उन्हें यह न सूझा कि जिस अल्लाह ने आकाशों और धरती को पैदा किया है उसे उन जैसों को भी पैदा करने की सामर्थ्य प्राप्त है? उसने तो उनके लिए एक समय निर्धारित कर रखा है, जिसमें कोई सन्देह नहीं है। फिर भी ज़ालिमों के लिए इनकार के सिवा हर चीज़ अस्वीकार्य ही रही 17|100|कहो, "यदि कहीं मेरे रब की दयालुता के ख़ज़ाने तुम्हारे अधिकार में होते हो ख़र्च हो जाने के भय से तुम रोके ही रखते। वास्तव में इनसान तो दिल का बड़ा ही तंग है 17|101|हमने मूसा को नौ खुली निशानियाँ प्रदान की थी। अब इसराईल की सन्तान से पूछ लो कि जब वह उनके पास आया और फ़िरऔन ने उससे कहा, "ऐ मूसा! मैं तो तुम्हें बड़ा जादूगर समझता हूँ।" 17|102|उसने कहा, "तू भली-भाँति जानता हैं कि आकाशों और धऱती के रब के सिवा किसी और ने इन (निशानियों) को स्पष्ट प्रमाण बनाकर नहीं उतारा है। और ऐ फ़िरऔन! मैं तो समझता हूँ कि तू विनष्ट होने को है।" 17|103|अन्ततः उसने चाहा कि उनको उस भूभाग से उखाड़ फेंके, किन्तु हमने उसे और जो उसके साथ थे सभी को डूबो दिया 17|104|और हमने उसके बाद इसराईल की सन्तान से कहा, "तुम इस भूभाग में बसो। फिर जब आख़िरत का वादा आ पूरा होगा, तो हम तुम सबको इकट्ठा ला उपस्थित करेंगे।" 17|105|सत्य के साथ हमने उसे अवतरित किया और सत्य के साथ वह अवतरित भी हुआ। और तुम्हें तो हमने केवल शुभ सूचना देनेवाला और सावधान करनेवाला बनाकर भेजा है 17|106|और क़ुरआन को हमने थोड़ा-थोड़ा करके इसलिए अवतरित किया, ताकि तुम ठहर-ठहरकर उसे लोगो को सुनाओ, और हमने उसे उत्तम रीति से क्रमशः उतारा है 17|107|कह दो, "तुम उसे मानो या न मानो, जिन लोगों को इससे पहले ज्ञान दिया गया है, उन्हें जब वह पढ़कर सुनाया जाता है, तो वे ठोड़ियों के बल सजदे में गिर पड़ते है 17|108|और कहते है, "महान और उच्च है हमारा रब! हमारे रब का वादा तो पूरा होकर ही रहता है।" 17|109|और वे रोते हुए ठोड़ियों के बल गिर जाते है और वह (क़ुरआन) उनकी विनम्रता को और बढ़ा देता है 17|110|कह दो, "तुम अल्लाह को पुकारो या रहमान को पुकारो या जिस नाम से भी पुकारो, उसके लिए सब अच्छे ही नाम है।" और अपनी नमाज़ न बहुत ऊँची आवाज़ से पढ़ो और न उसे बहुत चुपके से पढ़ो, बल्कि इन दोनों के बीच मध्य मार्ग अपनाओ 17|111|और कहो, "प्रशंसा अल्लाह के लिए है, जिसने न तो अपना कोई बेटा बनाया और न बादशाही में उसका कोई सहभागी है और न ऐसा ही है कि वह दीन-हीन हो जिसके कारण बचाव के लिए उसका कोई सहायक मित्र हो।" और बड़ाई बयान करो उसकी, पूर्ण बड़ाई 18|1|प्रशंसा अल्लाह के लिए है जिसने अपने बन्दे पर यह किताब अवतरित की और उसमें (अर्थात उस बन्दे में) कोई टेढ़ नहीं रखी, 18|2|ठीक और दूरुस्त, ताकि एक कठोर आपदा से सावधान कर दे जो उसकी और से आ पड़ेगी। और मोमिनों को, जो अच्छे कर्म करते है, शुभ सूचना दे दे कि उनके लिए अच्छा बदला है; 18|3|जिसमें वे सदैव रहेंगे 18|4|और उनको सावधान कर दे, जो कहते है, "अल्लाह सन्तानवाला है।" 18|5|इसका न उन्हें कोई ज्ञान है और न उनके बाप-दादा ही को था। बड़ी बात है जो उनके मुँह से निकलती है। वे केवल झूठ बोलते है 18|6|अच्छा, शायद उनके पीछे, यदि उन्होंने यह बात न मानी तो तुम अफ़सोस के मारे अपने प्राण ही खो दोगे! 18|7|धरती पर जो कुछ है उसे तो हमने उसकी शोभा बनाई है, ताकि हम उनकी परीक्षा लें कि उनमें कर्म की दृष्टि से कौन उत्तम है 18|8|और जो कुछ उसपर है उसे तो हम एक चटियल मैदान बना देनेवाले है 18|9|क्या तुम समझते हो कि गुफा और रक़ीमवाले हमारी अद्भु त निशानियों में से थे? 18|10|जब उन नवयुवकों ने गुफ़ा में जाकर शरण ली तो कहा, "हमारे रब! हमें अपने यहाँ से दयालुता प्रदान कर और हमारे लिए हमारे अपने मामले को ठीक कर दे।" 18|11|फिर हमने उस गुफा में कई वर्षो के लिए उनके कानों पर परदा डाल दिया 18|12|फिर हमने उन्हें भेजा, ताकि मालूम करें कि दोनों गिरोहों में से किसने याद रखा है कि कितनी अवधि तक वे रहे 18|13|हम तुन्हें ठीक-ठीक उनका वृत्तान्त सुनाते है। वे कुछ नवयुवक थे जो अपने रब पर ईमान लाए थे, और हमने उन्हें मार्गदर्शन में बढ़ोत्तरी प्रदान की 18|14|और हमने उनके दिलों को सुदृढ़ कर दिया। जब वे उठे तो उन्होंने कहा, "हमारा रब तो वही है जो आकाशों और धरती का रब है। हम उससे इतर किसी अन्य पूज्य को कदापि न पुकारेंगे। यदि हमने ऐसा किया तब तो हमारी बात हक़ से बहुत हटी हुई होगी 18|15|ये हमारी क़ौम के लोग है, जिन्होंने उससे इतर कुछ अन्य पूज्य-प्रभु बना लिए है। आख़िर ये उनके हक़ में कोई स्पष्ट, प्रमाण क्यों नहीं लाते! भला उससे बढ़कर ज़ालिम कौन होगा जो झूठ घड़कर अल्लाह पर थोपे? 18|16|और जबकि इनसे तुम अलग हो गए हो और उनसे भी जिनको अल्लाह के सिवा ये पूजते है, तो गुफा में चलकर शरण लो। तुम्हारा रब तुम्हारे लिए अपनी दयालुता का दामन फैला देगा और तुम्हारे लिए तुम्हारे अपने काम से स